Wednesday 29 April 2009

बरबादियों का आलम यूँ है, कोई आंसू बहता कोई खूं है /

बरबादियों का आलम यूँ है,कोई आंसू बहता कोई खूं है ;
मोहब्बत में बरबादियों का दस्तूर तो पुराना है ,
कहीं जफा करती है , कहीं वफ़ा करती है ;
बरबादियों का आलम यूँ है,कोई आंसू बहता कोई खूं है ;
ना गुरेज था मुझको तेरी जफावों से ,
दिल हो जाता था चाक तेरी निगाहों से ;
बावजूद तेरी बेवफ़ाइआ , तेरा हर नाज हम सह लेते ;
खंजर सिने में मेरे तेरा ,फिर भी हम हंस लेते ;
पीठ में खंजर ,वो भी गैरों के हाथों से ,
हैरान थे तेरी सोच पे , तेरे इरादों पे ;
शुक्रिया ,तेरे हंसते चेहरे ने मौत आसान कर दी ;
मेरी डूबती सांसे औ तेरा खिलखिलाना ,
तेरी महकती सांसों ने वो महफ़िल खुशनुमा कर दी ;
हुस्न तेरा ये जलवा भी, मैंने देखा है ;
तेरी उस खिलखिलाहट में भी , एक आंसू का कतरा देखा है ;
बरबादियों का आलम यूँ है,कोई आंसू बहता कोई खूं है /
Vinay

Tuesday 28 April 2009

ख्यालों में भी ख्याल से डर लगता है /

खयालो में भी ख्याल से डर लगता है ,
अजीब वक़्त है ,इन्सान को इन्सान से डर लगता है ;
रास्ते में कौनसा धर्म टकरा जाये ,क्या पहन के निकले डर लगता है ;
सरकारी नौकरी में आरक्छन से कौनसा मातहत, बॉस बन जाये डर लगता है ;
क्या बतायुं किस प्रदेश से आया हूँ कौन कह दे मेरे प्रेदश से निकल जा डर लगता है ;
सांप्रदायिक करार दिया जायुं ; कैसे जायुं मंदिर डर लगता है ;
खयालो में भी ख्याल से डर लगता है ,
अजीब वक़्त है ,इन्सान को इन्सान से डर लगता है /

Monday 27 April 2009

चीत्कारता समाचार

प्रताडित तःथ्यों और पीड़ित शब्दों से बने ,आज के समाचारों की चिल्लाहट से हम सब सराबोर हैं ;

इन समाचार कथन के टी। वी के अत्याचार से से भावाभोर हैं/

Breaking News शब्द सही नही लगता ,इन समाचारों की व्याख्या का ;

चीत्कारता समाचार ज्यादा उचित शब्द है इन टी। वी। के समाचारों के व्यभिचार का/

वैसे उचित प्रतीत होती है ,इन समचारों को हमारे सर पर मारने की विधी ,

आखिर हमारे आचार विचार और कर्मों की सीमा ही है इनकी परिधी /

ये समाचार आज के आईने हैं ,थोडा बड़ा और नाटकीय भले प्रस्तुति है इनकी ,

स्वार्थ ने उसकाया, फायदा दलालों और सरकारी बाबुओं ने उठाया है ;

हम सबसे और सरकारी बाबुओं से फायदा उठाये वो नेता कहलाया है /

हमारा स्वार्थ छोटा है ,परिपेछ्य छोटा है ,बाबु का दायरा बड़ा स्वार्थ बड़ा चडा है ,

नेता का इरादा दोनों से बना और विशाल है ;

हम , सरकारी बाबु और नेता अभी एक आइना कम था ;अभी भी भ्रस्टाचार थोडा नम था /

ये समाचार पत्रों और टी। वी। के समाचार के पत्रकार इन सबसे एक कदम आगे हैं ;

किसी का हाथ थामे किसी को पुचकारे किसी को धमकाए हैं ;

कभी नेता का हाथ कभी जनता का दामन कभी बाबुओं के साथ ,ये सभी के दुलारें हैं /

ये तीनो की भ्रष्टतम स्थिति यही संभाले हैं ;तभी जनतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाते हैं \

इनके कर्मों से खुद को दुत्कारती इनकी आत्मा चित्कारती रहती है ;

तभी कहता हूँ ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं चित्कारती आत्मा का समाचार ;

ब्रेकिंग खुच बचा नहीं ,चिल्लाती अंतरात्मा का समाचार ;चीत्कारता समाचार ही होना चाहिए /

विनय

Sunday 26 April 2009

उनसे ही मासूम उनके बहाने है ----------------------------------

उनसे ही मासूम उनके बहाने हैं ।
क्या करे उन्ही के दीवाने हैं ।

जो मिले वही रास्ता बताये ,
हम सचमुच कितने अनजाने हैं ।

एक साथ एक घर मे रहनेवाले भी,
एक-दूसरे से कितने बेगाने हैं ।

जंहा मिला रास्ता वंही चल पडे,
पहले से तय नही हमारे ठिकाने हैं ।

ये बाजारवाद का नया युग है,
यंहा रिश्ते सिर्फ़ भुनाने हैं ।

बार -बार उन्ही से मिला रहा है ---------------------------

वह बहुत याद आ रहा है ।
अपने पास बुला रहा है ।

हर पल खयालो मे आकर ,
गम जुदाई का बढ़ा रहा है ।

उसके हाथ मे है मेरी डोर ,
जैसे चाहे वैसे नचा रहा है ।


मैने तो मना किया था लेकिन,
शाकी जाम पे जाम पिला रहा है ।


मिलने पर अब पहचानता नही,
वह इस तरह मुझे जला रहा है ।


कुछ रब ने ठान रक्खी है शायद ,
बार-बार उन्ही से मिला रहा है ।

कभी वो न मेरी थी ,कभी मैं न दूजा था

कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;
बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
दिन निकालता है रात ढलती है , उसके बदन की खुसबू मन में बसी रहती है ;
कभी आँखें दिखाती थी ,कभी निगाहें मिलाती थी ;
कभी वो मुस्कराती थी ,कभी खिलखिलाती थी ;
कभी वो शरमा के आती थी ,कभी वो तन के जाती थी ;
नजदीक आती कुछ इस अदा से, दिल चाक हो ,
उसके सिने की मासूम सी हलचल , या खुदा इंसाफ हो जाये ;
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
दिन रात मेरी यादों में बसा रहता है ;उसकी यादों से मेरा कोई रिश्ता न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
सांसें महकती थी ,तूफान उठता था ;बाँहों के दरम्यान सारा जहान होता था ;
कभी सिने से लग जाती ,कभी बर्फ की मानिंद पिघल जाती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /ViNAY

Saturday 25 April 2009

शुन्यता अपना प्रभुत्व हर बार जता देती है ,जिंदगी फिर प्रश्न चिह्न बना लेती है

शुन्यता अपना प्रभुत्व हर बार जता देती है ,जिंदगी फिर प्रश्न चिह्न बना लेती है ;
रस्ते लौटा लाते हैं, जहाँ से शुरू मंजिल की तलाश होती है ;
समय अबाधित गति है , चलाना नियति ,
परिवर्तन सृजन का आधार है , श्रिस्टी का अभिप्राय है ;
संवेदनाएं भ्रमित हैं , अकंछायें द्रवित ;
आशाएं अचंभित;
वक़्त और भाग्य का अजीब मंथन ,
मन का सुरीला क्रंदन ;
कोशिशें हमेशा कामयाब नहीं होती ,
पर हर कोशिश भी ख़राब नहीं होती ;
मंजिलें पे पहुँच के फिर मंजिल की तलाश होती है ;
जिंदगी को नए प्रश्नों की आस होती है ;
शुन्यता अपना प्रभुत्व हर बार जता देती है ,जिंदगी फिर प्रश्न चिह्न बना लेती है ;
रस्ते लौटा लाते हैं, जहाँ से शुरू मंजिल की तलाश होती है ;

तजुर्बा उम्र का है या उम्र तजुर्बे की ?

तजुर्बा उम्र का है या उम्र तजुर्बे की ?
कैसे कहें की बात सच की है या सपने की ?
जो दिया जिंदगी ने समेट लिया ,
जो कहा अपनो ने सहेज लिया /
रास्ते कहाँ जायेंगे जानता नहीं हूँ मै; 
खुदा की राह है ,मंजिल तलाशता नहीं हूँ मै /

Friday 24 April 2009

कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु

कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु जी ने लिखना तो १९४५ से ही शुरू कर दिया था । लेकिन साहित्य जगत में उनकी पहचान १९५४ में प्रकाशित उनके उपन्यास ''मैला आँचल '' से हुई । इस उपन्यास ने हिन्दी समीक्षा के नए मापदंड सामने लाये । आंचलिक उपन्यासों पर नई बहस इसी उपन्यास के माध्यम से शुरू होती है । इस उपन्यास में पुर्णिया जिले के मेरीगंज का जिक्र है । जन्हा की पूरी आंचलिकता उपन्यास में विस्तार से चित्त्रित है । उपन्यास किसी एक मुख्य पात्र पर केन्द्रित ना हो कर एक अंचल विशेष पर केन्द्रित है । इस उपन्यास का नायक यंहा पे वर्णित अंचल ही है ।
आप ने कुल ६ उपन्यास लिखे जिनमे मैला आँचल , परती परिकथा ,कितने चौराहे और जुलूस प्रमुख है । आप ने उपन्यासों के अलावा कहानी .रिपोर्ताज ,संस्मरण आदि भी लिखे । लेकिन एक उपन्यासकार के तौर पे आप को अधिक ख्याति मिली ।
कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु जी के जीवन का सामान्य परिचय निम्नलिखित लिंक पर पढ़ा जा सकता है ।

Thursday 23 April 2009

India as a soft state.

India is a soft state is proved time and again by the policies of the politicians barring Indira Gandhi.
  What else you can say when a past Prime minister was killed by a terrorist out fit and Indian goverement did nothing against that outfit and when a defence minister himself hands over the terrorist and that too in other country .
  Indian politicians and we people too are responcible for that as we choose that politicians again and again.
  India and Indians are a passive country as is also proved
 by the fact that we are unable to sign the atomic deal with America which most knowledgeable people and scientist feel is good for our country .
  Indian parties are fighting over pota but too put pota on someone first you have to find the culprits but where are they ? From last few years terrorist has implimented same method and same type off target area but did we caught any real terrerorist behind these blast ? why?
  Because none of the parties like Congress or Bjp has any thing to do with India what you say about other parties 
Communist or BSp or Dmk? 
  Why government has not yet formulated a mechanism too 
 figt against terrorism or why Government has yet not decided to form a central agencies to combact internal sequrity matters ? Because we the comman peoples life is 
very small price on which these politicians want Power whatever happens too comman people they don`t mind . 
  Because we comman people are too much ingaged in catses and religion to aggigate for such purpose. Because We the comman people don`t care for our motherland and nor we aspire too see India as a true world power.
  So its our mistake and India Politician can`t think other then how to come to power and we people don`t demand enough for our sequrity and mostly we don`t demand anything for our Country.[ Irony is that we call country as mother].

kya kahun

क्या कहूँ किस बात पे,किस बात पे मै चुप रहूँ ;
जान पाता नहीं मै. हंसू किस बात पे ; किस बात पे गुम सुम रहूँ /
बड़ी उलझन है ,सुलझाती नहीं है बात अब ;
बच्चों के अरमानो को, कैसे पहनायुं अपनी असफलता का सब्र ;
माँ की आशावों को, क्या बतलायुं मेरी बदहाली का सबब/
कैसी राहों में उलझा ,कैसे बनी जिंदगी अजब ;
क्या कहूँ किस बात पे, किस बात पे मै चुप रहूँ ;
जान पाता नहीं मै. हंसू किस बात पे ; किस बात पे गुम सुम रहूँ /
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