Tuesday 14 May 2013

जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया

ले चल वहाँ भुलावा देकर
मेरे नाविक ! धीरे-धीरे ।
जिस निर्जन में सागर लहरी,
अम्बर के कानों में गहरी,
निश्छल प्रेम-कथा कहती हो-
तज कोलाहल की अवनी रे ।
जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया,
ढीली अपनी कोमल काया,
नील नयन से ढुलकाती हो-
ताराओं की पाँति घनी रे ।

जिस गम्भीर मधुर छाया में,
विश्व चित्र-पट चल माया में,
विभुता विभु-सी पड़े दिखाई-
दुख-सुख बाली सत्य बनी रे ।
श्रम-विश्राम क्षितिज-वेला से
जहाँ सृजन करते मेला से,
अमर जागरण उषा नयन से-
बिखराती हो ज्योति घनी रे !


                                - जयशंकर प्रसाद 

Sunday 12 May 2013

माँ जब आँचल में छुपा लेती है


मुझे हर मुसीबत से बचा लेती है 

माँ जब  आँचल में छुपा लेती है 


मीलों पैदल मुझे सीने से लगाए 

उतरवाने मेरी नज़र चल देती है 


वो मेरी खुशियों के खातिर ही तो 

जाने कितने उपवास कर लेती है 


छुप के दबे पाँव भी घर आऊँ तो 

वो मेरी हर आहाट पहचान लेती है  


लगता है अपनी  हर साँस के साथ

वो मेरे हक़ में दुआएँ मांग लेती है 


मेरी जरूरतों से कहीं जादा,बहुत जादा 

माँ अपना प्यार मुझपे लुटा देती है 


प्यार,विश्वास ,समर्पण और मूल्य

इसकी मिसाल माँ में दिख जाती है 







माँ को सलाम


Saturday 11 May 2013

आवारगी 07


                 शायद हमारे बीच में कोई रिश्ता है
                 राधा और कृष्ण सा कोई किस्सा है


                 जब कोई पूछता है तेरे बारे में
                 कह देता हूँ कि - मेरी जिज्ञासा है


                 अपनी –अपनी मर्यादाओं में
                 हम दोनों की ही अभिलाषा है  


                 अनुबंधों के संबंधों से परे कहीं
                 सुंदर सा अपना कुछ बिखरा-बिखरा है
                 
                  

आवारगी 06


                   किस कदर बेज़ार हो गए
                   इश्क़ में हम लाचार हो गए


                   जिसे माना था इलाज़ अपना
                   उसी के चलते बिमार हो गए


                  किसी के इक़रार के ख़ातिर
                  देखो कितने बेक़रार हो गए  


                 खाते थे जो मोहब्बत कि कसमें  
                 बदले –बदले से वो सरकार हो गए   


आवारगी 5


             मैं उनसे दूर ना जाऊँ ये उनकी ही हिदायत है
             उनके पास जो बैठूँ तो समझो बस कयामत है
 

             खिली रंगत, खुली ज़ुल्फें, और शोखियाँ उनकी
             ये पैगाम मोहब्बत का, बड़ी उनकी इनायत है

              
             शिकायत वो कभी कोई मुझसे नहीं करती
             बस इसी एक बात कि मुझको शिकायत है


             मोहब्बत के ना जाने क्यों लोग दुश्मन हैं
             मोहब्बत के ही दम से तो दुनियाँ सलामत है
       

Tuesday 7 May 2013

आवारगी 4


            यह दिल, यह दिल ही बड़ा नादान है
            नहीं तो जीना,सिर्फ़ जीना,बड़ा आसान है

            तेरी यादें, तेरी बातें, और ये रातों की तनहाई
            कुछ और नहीं, सब ग़ज़ल का सामान है

            वो जो मुंतजिर है मोहब्बत की राहों का
            वो मासूम तो, अपने अंजाम से अंजान है

            मेरे सीने में धड़कता दिल, उकसाता है मुझे
            है अजीज़ मुझको, पर बड़ा ही शैतान है     

आवारगी 3


          आदत है बहकने की, बहक जाता हूँ
          उसे जब भी देखता हूँ, दहक जाता हूँ

          मुँह तोड़ देता हूँ, सभी के सवालों का
          पर सामने उसके ही मैं, हिचक जाता हूँ  

          पास मेरे हैं, तनहा रातें, यादें, बातें
          इनमें उसकी ख़ुशबू है, सो महक जाता हूँ
        
          वो जब रोशनी की शहतीरों सी बिखरती है
          मैं भोर के पंछियों की तरह ,चहक जाता हूँ

आवारगी 2


          उसे भुलाने का कोई सलीका नहीं आता
          बिना उसके जीने का तरीका नहीं आता

          मैं दे तो दूँ , सब के सवालों के जवाब
          पर मेरे ओठों पे नाम, उसका नहीं आता

          ख़्वाब मेरे भी टूटे हैं यूँ तो कई लेकिन
          अधूरे ख्वाबों को अधूरा,छोड़ा नहीं जाता

          यक़ीनन होगी तेरी कोई मज़बूरी लेकिन
          मुझसे तो इसकदर ,मुँह मोड़ा नहीं जाता ।  

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  उज़्बेकिस्तान में एक पार्क ऐसा भी है जो यहां के वरिष्ठ साहित्यकारों के नाम है। यहां उनकी मूर्तियां पूरे सम्मान से लगी हैं। अली शेर नवाई, ऑ...