याद तेरी ,
.
सतरंगी आभा ,
.
याद तेरी ,
.
गोधुली की गाथा ,
.
याद तेरी ,
.
ठंडी का कंपना ,
.
याद तेरी ,
.
बाँहों में रमना ,
.
याद तेरी /
याद तेरी ,
.
सतरंगी आभा ,
.
याद तेरी ,
.
गोधुली की गाथा ,
.
याद तेरी ,
.
ठंडी का कंपना ,
.
याद तेरी ,
.
बाँहों में रमना ,
.
याद तेरी /
बोध कथा ३२: गुलामी -खलील जिब्रान | ||
राजसिंहासन पर सो रही बूढ़ी रानी को चार दास खड़े पंखा झल रहे थे और वह मस्त खर्राटे ले रही थी। रानी की गोद में एक बिल्ली बैठी घुरघुरा रही थी और उनींदी आंखों से गुलामों की ओर टकटकी लगाए थी। एक दास ने कहा, ‘‘यह बूढ़ी औरत नींद में कितनी बदसूरत लग रही है। इसका लटका हुआ मुँह तो देखो, ऐसे भद्दे ढंग से साँस ले रही है मानों किसी ने गर्दन दबा रखी हो।’’ तभी बिल्ली घुरघुराई और अपनी भाषा में बोली, ‘‘सोते हुए रानी उतनी बदसूरत नहीं लग रही जितना कि तुम जागते हुए अपनी गुलामी में लग रहे हो।’’ तभी दूसरा दास बोला, ‘‘सोते हुए इसकी झुर्रियां कितनी गहरी मालूम हो रही हैं, जरूर कोई बुरा सपना देख रही है।’’ बिल्ली फिर घुरघुराई, ‘‘तुम जागते हुए आजादी के सपने कब देखोगे?’’ तीसरे ने कहा, ‘‘शायद यह सपने में उन लोगों को जुलूस की शक्ल में देख रही है, जिनको इसने निर्ममता से कत्ल करवा दिया था।’’ बिल्ली अपनी जबान में बोली, ‘‘हाँ, वह तुम्हारे बाप दादाओं और बड़े हो रहे बच्चों के सपने देख रही हेै।’’ चौथे ने कहा, ‘‘इस तरह इसके बारे में बातें करने से अच्छा लगता है, फिर भी खड़े–खड़े पंखा करने से हो रही थकान में तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा।’’ बिल्ली घुरघुराई,‘‘तुम्हें अनन्तकाल तक इसी तरह पंखे से हवा करते रहना चाहिए...’’ ठीक इसी समय रानी ने नींद में सिर हिलाया तो उसका मुकुट फर्श पर गिर गया। उनमें से एक दास बोला, ‘‘यह तो अपशकुन है।’’ बिल्ली ने कहा, ‘‘किसी के लिए जो अपशकुन होता है, वही दूसरे के लिए शुभ संकेत होता है।’’ दूसरा दास बोला, ‘‘अगर अभी ये जाग जाए और अपना गिरा हुआ मुकुट देख ले तो? निश्चित रूप से हमें कत्ल करवा देगी।’’ बिल्ली घुरघुराई, ‘‘जब से तुम पैदा हुए वो वह तुम्हें कत्ल करवाती आ रही है और तुम्हें पता ही नही।’’ तीसरे दास ने कहा, ‘‘हाँ, वह हमें कत्ल करवा देगी और फिर इसे ‘ईश्वर के लिए बलिदान’ का नाम देगी।’’ बिल्ली की घुरघुराहट, ‘‘केवल कमजोर लोगों की ही बलि चढ़ायी जाती है।’’ चौथे दास ने सबको चुप कराया और फिर सावधानी से मुकुट उठाकर वापस रानी के सिर पर रख दिया। उसने इस बात का ध्यान रखा कि कहीं रानी जाग न जाए। बिल्ली ने घुरघुराहट में कहा, ‘‘एक गुलाम ही गिरा हुआ मुकुट वापस रखता है।’’ थोड़ी देर बाद रानी जाग गई। उसने जमुहाई लेते हुए चारों तरफ देखा, फिर बोली, ‘‘लगता है मैं सपना देख रही थी। एक अत्यद्दिक प्राचीन ओक का पेड़...उसके चारों और भागते चार कीड़े..उनका पीछा करता एक बिच्छु! मुझे तो यह सपना अच्छा नहीं लगा।’’ यह कहकर उसने फिर अंाखें बन्द कर लीं और खर्राटे लेने लगी। चारों दास फिर पंखों से हवा करने लगे। बिल्ली घुरघुराई और बोली, ‘‘हवा करते रहो...पंखा झलते रहो! मूर्खो!! तुम आग को हवा देते रहो ताकि वह तुम्हें जलाकर राख कर दे।’’ किसी ने लिखा भी है क़ि-------- ''पिजड़ा हो सोने का फिर भी , भली नहीं है कभी गुलामी '' |
बोध कथा ३१ : दैवी ऊँगली | ||
एक समय की बात है ताओ भिक्षु भविष्य बताया करते थे। इतने नामी कि जगह–जगह से लोग उनके पास अपनी किस्मत जानने आते थे। एक बार तीन स्कॉलर, जो पेइचिङ में होने वाली शाही परीक्षा में बैठने वाले थे, अपना भाग्य जानने के लिए इन भिक्षु महोदय के पास आए। उन्होंने इन्हें धूपदान किया और सिर नवाया। आखें बंदकर ताओ भिक्षु ने अपनी तर्जनी उनकी ओर उठाई। स्कॉलर, इस प्रतीक को समझ नहीं पाए। तो उन्होंने भिक्षु से मतलब समझाने को कहा। भिक्षु ने कहा, ‘‘दैवी इच्छा उद्घाटित नहीं की जा सकती।’’ तीनों मुँह लटकाए वहाँ से चल पड़े। उनके जाने के बाद एक नौजवान शिष्य ने ताओ भिक्षु से पूछा, ‘‘आचार्य, तीनों में से कौन परीक्षा में सफल होगा? भिक्षु ने कहा, ‘‘सही संख्या तो पहले से ही ज्ञात है।’’ ‘‘क्या एक उंगली (तर्जनी) उठाने का मतलब है कि उनमें से केवल एक सफल होगा? ‘‘हाँ’ ‘‘लेकिन अगर उनमें से दो सफल हो गए तो? ‘‘तब इसका मतलब हुआ कि उनमें से एक फेल होगा।’’ ‘‘लेकिन अगर तीनों सफल हो गए तो?” ‘‘तो अकेली उंगली का मतलब होगा,तीनों एक साथ पास होंगे?” ‘‘और अगर तीनों फेल हो गए तो?” ‘‘तो मेरी अकेली उंगली का मतलब होगा कि उनमें से एक भी सफल नहीं होगा।’’ शिष्य की समझ में बात समा गई , बोला,‘‘तो यही है दैवी की इच्छा। ऐसे लोगो के लिए ही किसी ने लिखा है कि-------------- '' उनका हर ऐब हुनर है , जो कहता खुद को ईश्वर है '' अनुवाद:सुकेश साहनी यह कहानी http://www.laghukatha.com/dasanter-23-1.हतं से ली गई है. |
याद तेरी ,
रातों का जगना ;
याद तेरी ,
खुदी में रमना;
याद तेरी ,
भावों की महफ़िल ,
याद तेरी ;
राहों की मुश्किल ;
याद तेरी /
उज़्बेकिस्तान में एक पार्क ऐसा भी है जो यहां के वरिष्ठ साहित्यकारों के नाम है। यहां उनकी मूर्तियां पूरे सम्मान से लगी हैं। अली शेर नवाई, ऑ...