Thursday 12 March 2009

४ पीढियों का कवि नीरज

नीरज का नाम कौन नही जनता है ,हिन्दी साहित्य मे ? लेकिन जब मैने बाल कवि बैरागी के मुह से यह सुना की आज भी जिस कवि को ४ पीढियां एक साथ सुनती हैं ,वह कोई और नही बल्कि कवि नीरज ही हैं।
नीरज के बारे मे उन्होने बताया की एक बार जब नीरज के साथ बैरागी जी काव्य पाठ कर रहे थे तो बैरागी जी ने कहा की- आप के मर जाने के बाद हम लोग तो आप को कन्धा भी नही डे पायेंगे ।
इस पर नीरज ने पुछा -क्यों आप ऐसा क्यों कह रहे हो ?
बैरागीजी बोले- जब आप की शव यात्रा निकले गी तो हमे कन्धा देने के लिये बिना चप्पलो के चलना होगा ,और ऐसे मे आप की प्रेमिकाओं की टूटी हुई चूडियाँ हमारे पैरों मे चुभेंगी । तो आप ही बताओ हम कैसे चल पायेंगे ।
इतना सुनते ही नीरज ने बैरागी जी को गले लगा लिया । बात मजाक मे khatm ho gai । lekin jo niraj ko kareeb say jaantay hain vo इस बात की गहराई को समझते हैं । प्यार मे कोई बरबाद नही होता । प्यार हमे उदार बनता है ,samvaidansheel banata hai , yahaa tak ki maanav ko मानव भी प्रेम ही बनता है । प्रेम से बचो मत --------इसमे गहरा उतारने की कोशिस करो । तुम्हारी जय हो गी -------प्रेम करो ---प्रेम बांटो -----------------------------------------------------------------------------------

Wednesday 11 March 2009

होली के रंग -बाल कवि बैरागी के संग

कल की होली मेरे लिये यादगार बन गई ,क्योंकि कल का पूरा दिन मुझे बाल कवि बैरागी जैसे महान कवि के साथ बिताने का अवसर मिला । सुबह ७.३० बजे मोबाइल की घंटी बजी । देखा तो श्री ओम प्रकाश मुन्ना पाण्डेय जी का फ़ोन था । उन्हों ने कहा की मुंबई सेंट्रल जाना है ,बाल कवि जी को लेने ।
मै फटाफट तैयार हो गया । मुन्ना भइया की ही कार से हम लोग मुंबई सेंट्रल पहुंचे .थोडी देर के बाद ही राजधानी एक्सप्रेस आ गई । बैरागी जी को हमलोगों ने रिसिव किया और कार तक ले आये ।
बैरागी जी ने फ़ोन से घर पे सूचना दी की वे पहुँच गये हैं और दो लिखे-पढे लोग उन्हे लेकर जा रहे हैं । फ़िर मोबाइल को दिखाते हुए बोले की -यह वो जनेऊ है जो कान पर चढाते ही आदमी बोलने लगता है । फ़िर हम लोग एक दूसरे से इधर -उधर की बातें करने लगे । उन्होने अपने कुछ मित्रों के नाम लिये जिन्हें मै-और मुन्ना भइया भी जानते थे ,उनसे बैरागी जी की मोबाइल पर ही बात कराइ गयी । जैसे की NAIND किशोर नौटियाल ,सचिन्द्र त्रिपाठी ,आलोक भट्टाचार्य और विजय पंडित .रास्ते मे बैरागी जी की नजर पोस्टर और बैनरों पर बराबर पड़ रही थी । मैं ने कहा -दादा यंहा लोग हिन्दी -मराठी के घाल-मेल के कारण अक्सर गलतियां कर देते हैं । मेरी बात सुनकर उन्होने कहा कि-कोई बात नही है ,हिन्दी की सास्त्रियता का यह समय नही है । जरूरत इस बात की है कि हम इसका जादा से जादा उपयोग करें ,और इसके विकास के लिये सरकार कि तरफ़ देखना बंद करें। बैरागी जी लोकसभा और राज्यसभा दोनों के ही सदस्य रह चुके हैं । वे राजभाषा समिति के सदस्य के रूप मे अपनी कुछ स्मृतियों का जिक्र करते हुवे बतातें हैं कि ---गोविन्द मिश्र भी उनके गुस्से का कारन बने थे । मुंबई मे ही सन १९८६-८७ के आस -पास जब वे संसदीय समिति के सदस्य के रूप मे आयकर विभाग मे आये तो गोविन्द मिश्र की हिन्दी सम्बन्धी शासकीय जवाब देही से नाखुश हुए और खाना खाने से भी INKAAR KAR DIYA POOREE SAMITI NAY .
इसी तरह बैरागी जी ने पूर्व राष्टपति कलाम के सम्बन्ध मे भी बताया कि एक बार उन्हे कलाम जी के हस्ताक्षर वाला एक निमंत्रण मिला ,जिसे उन्होने सिर्फ़ इस लिये अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह निमंत्रण हिन्दी मे नही अंग्रजी मे था .इसी तरह कि कई बाते उन्होने बताई । आध्यात्म ,वेद और आयुर्वेद के साथ -साथ अहिंसा दिवस को वे भारत की तरफ़ से पूरी दुनिया को दिया गया श्रेष्ठ उपहार मानते हैं ।
बैरागी जी ने अपने बारे मे बताया कि वे एक भिखमंगे परिवार से आते हैं । ४ साल कि उम्र मे उन्हें जो पहला खिलौना मिला वह था -भीख मांगने का कटोरा । उम्र के २४ साल तक उन्होने भीख माँगा । आज भी बैरागी जी कपड़ा मांग कर ही पहनते हैं । ऐसी ही कई बाते करते हुए हमलोग अम्बरनाथ के प्रीतम होटल तक पहुंचे । वहा हम तीनो ने दोपहर का खाना खाया .फ़िर हमने बैरागी जी से कहा कि वे अपने रूम मे आराम करें ,शाम कोहम फ़िर मिलेंगे ।
शाम को कवि सम्मेलन था । मैं और मुन्ना भइया फ़िर शाम को बैरागी जी का काव्य पाठ सुनने अम्बरनाथ पहुंचे .बैरागी जी ने जब काव्य पाठ शुरू किया तो समां बंध गया । पनिहारिन .दिनकर के वंसज और ऐसी ही कई रचनायें वे रात २ बजे तक सुनाते रहे । उनकी यह पंक्ति याद रह गई कि --
''मैं कभी मरूँगा नही , क्योंकि मैं ऐसा कुछ करूँगा नही "
रात ३ बजे मै और मुन्ना भाई जब वापस निकले तो हमे याद आया कि रात का खाना हमने खाया ही नही है और भूख काफ़ी लगी है । कल्याण आकर रातभर चलने वाली एक दूकान पर हमने आलू कि टिकिया खाई और चाय पी । ३.४५ पर मैं घर पहुँचा और सोने कि कोशिस करने लगा । पर आँखों मे बालकवि जी दिखाई पड़ रहे थे और कानो मे उनकी यह पंक्तियाँ सुनाई पड़ रही थी ---
''अपनी ही आहूती देकर ,स्वयम प्रकाशित होना सीखो
यश-अप्य्स जो मिल जाये ,उसको हस कर सहना सीखो ''------------








Monday 9 March 2009

निरर्थक परीक्षा प्रणाली

इस साल पहली बार मुंबई बोर्ड के १२ कक्षा के प्रश्न पत्र जांचने के लिये मिले ,वो भी पूरे २५० । साथ ही साथ यह आदेश भी मिला की मै जल्द से जल्द उन्हे मोडरेटर के पास भिजवा दूँ । मै परेसान था की इतने जल्दी मैं २५० प्रश्न पत्र किसी जांच सकता हूँ ?
परेसान हो कर मैं ने अपने मोडरेटर को फ़ोन किया । उन्हे अपनी परेसानी बताई । इस पर उन्होने कहा की ''तुम २५० पेपर लेकर परेसान हो, मुझे तो १७०० पेपर निपटाने हैं । जल्दी करो ---"
मैं ने भी निपटा ही दिया २५० प्रश्न पत्र । लेकिन यह सोच कर परेसान था की जो विद्यार्थी साल भर मेहनत करते हैं .उन्हें इस तरह निपटा देना कितना सही है ? आख़िर यह व्यवस्था किस काम की है ? इसका इलाज होना ही चाहिये । परीक्षा के नाम पे यह दिखावटी व्यवस्था ख़त्म होनी चाहिये ।
आप इस बारे मे क्या सोचते हैं ?

Friday 6 March 2009

कबीर और तुकाराम के काव्य मे अभिव्यक्त सांस्कृतिक चेतना का तुलनात्मक अनुशीलन

डॉ.बालकवि सुरंजे द्वारा लिखी गई यह प्रथम पुस्तक हाल ही मे प्रकाशित हुई .इस पुस्तक को पढ़ने के बाद इस बात का अंदाजा सहज ही हो जाता है की लेखक ने इस पुस्तक को लिखने मे जी-तोड़ मेहनत की है । साथ ही साथ मराठी और हिन्दी दोनों भाषावो पर उनका समान अधिकार है । कबीर हिन्दी साहित्य के बहूत बडे कवि हैं , तुकाराम भी संत परम्परा के मध्यकालीन कवि हैं ,महाराष्ट्र से । इन दोनों के साहित्य मे जो समानता रही है उसे ही सामने लाने का प्रयास लेखक ने किया है ।
यह पुस्तक लेखक का शोध -प्रबंध रहा है ,इस कारण कुछ स्थानों पर विस्तार अधिक दिखाई पड़ता है .लेकिन कुल मिलाकर पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है .पुस्तक पाप्ति के लिये लेखक से निम्नलिखित पते पर संपर्क किया जा सकता है
डॉ.बालकवि सुरंजे
अध्यक्ष-हिन्दी विभाग
बिरला महाविद्यालय
कल्याण -पश्चिम ४२१३०१
महाराष्ट्र

Wednesday 4 March 2009

भव्य लोकार्पण समारोह -मन के साँचे की मिट्टी


सोमवार दिनांक ०२ मार्च २००९ की शाम कल्याण के आदर्श हिन्दी हाई स्कूल मे श्री विजय नारायण पंडित जी के प्रथम काव्य संग्रह ''मन के सांचे की मिट्टी '' का भव्य लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया ।



इस समारोह मे अध्यक्ष के रूप मे बिरला कॉलेज के प्राचार्य डॉ.नरेश चंद्र उपस्थित थे । लोकार्पण कर्ता के रूप मे मुंबई विद्यापीठ के पूर्व हिन्दी विभाग प्रमुख डॉ.रामजी तिवारी उपस्थित थे । स्वागत वक्तव्य हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार श्री अलोक भट्टाचार्य जी ने दिया । अतिथि स्वागत भाषण दी कल्याण होलेसले मर्चंट असोसिएशन के अध्यक्ष श्री नन्द कुमार लक्ष्मण सोनवाने जी ने दिया । प्रमुख अतिथि के रूप मे कल्याण डोम्बिवली महानगर पालिका के कमिश्नर श्री गोविन्द राठोड जी उपस्थित थे । दोपहर का सामना हिन्दी समाचार के कार्यकारी संपादक श्री प्रेम शुक्ला जी भी प्रमुख अतिथि के रूप मे उपस्थित थे ।



प्रमुख वक्ता के रूप मे डॉ.सतीश पाण्डेय ,डॉ.अनिल सिंह, और डॉ.ईश्वर पवार जी उपस्थित थे । इस समारोह मे मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध कई महाविद्यालयों के हिन्दी विभाग प्रमुख उपस्थित थे । जैसे की -डॉ.प्रकास मिश्रा ,डॉ.संतोष मोटवानी,डॉ.प्रदीप सिंघ,डॉ.दौलत सिंग पालीवाल,डॉ.बालकवि सुरंजय ,डॉ.स्याम सुंदर पाण्डेय .डॉ.दामोदर मोरे ,डॉ.अनीता मन्ना ,डॉ.डी.पी.सिंग और डॉ.संजीव दुबे । इनके अतरिक्त भी कई पत्त्रिकाओ से सम्बंधित लोग भी उपस्थित थे .सञ्चालन श्री ॐ प्रकाश पाण्डेय जी ने किया ।



इस अवसर पर २००० के करीब लोग उपस्थित थे .सभी ने हिन्दी के विद्वानों को गंभीरता पुर्वक सुना ।



अपना भाषण देते हुवे डॉ.रामजी तिवारी ने कवितावों की खूब प्रसंसा की । इस समारोह की कुछ तस्वीरे आप इस लेख के साथ देख सकते हैं । मुंबई जैसे सहर मे किसी कविता पुस्तक के लोकार्पण मे इतने लोगो का उपस्थित होना एक आश्चर्य ही है । मगर यह सच है । आँखों देखा सुखद सच ---------------



Friday 27 February 2009

क्यो होता है प्यार ?

सोचा है कभी आपने की आख़िर क्या है यह प्यार ? क्यो हम प्यार करते हैं ? आख़िर यह प्यार होता क्या है ? ये सारे सवाल आसन नही हैं । इनका जवाब खोजना और मुस्किल काम है । अगर आप इस तरह के सवाल अपने मित्रो से करेंगे तो कुछ पुराने और तर्क हीन जवाब मिल जायेगा । जै से की -------
१-प्यार बता के नही होता ।
२-यह दिमाक से नही दिल से होता है ।
३-मै प्यार करना नही चाहता था /थी पर हो गया
४-प्यार खुदा/इश्वर की इनायत है ।
इसी तरह की अनेको बातो से आप को टाल दिया जाता है । लेकिन सच्चाई इन सब बातो से कोसो दूर है । दरअसल प्यार का दिल से कुछ लेना -देना नही है । यह सब हमारे मनोविज्ञान और शारीरिक-मानसिक प्रवित्ति का एक हिस्सा है । यह बात विज्ञानं के शोध मे भी साबित हो चुकी है ।
मनुष्य के रूप मे अपना सामाजिक जीवन जीते हुए, हम बहुत से कार्य ना चाहते हुऐ भी करते हैं । हम कई तरह के समझोते भी करते हैं । व्यवहार मे आडम्बर ,ओपचारिकता और ऐसी ही अनेकों बातो का घाल -मेल बढ़ता जाता है । ऐसे मे हमारी हालत उस मकडी की तरह हो जाती है जो अपने ही बनाये जाल मे फस कर मरने लगती है । ऐसे मे हमे एक तरह की मानसिक विश्रांती की आवश्यकता होती है । किसी के स्नेह और विशवास की आवश्यकता होती है । अपनी पूरी वास्तविकता के साथ किसी के सामने प्रस्तुत होने का मन होता है । मन होता है की कोई हमे हमारी पूरी कमियों के साथ स्वीकार कर ले । कोई हो जिसके लिये मुझसे जादा महत्वपूर्ण और कुछ ना हो ।
तो जब मन चाहता है तो हम अपने आस पास से ही किसी को चुन कर उसे अपने प्यार के काबिल बना लेते हैं .

Wednesday 25 February 2009

सीख

आज जब क्लास रूम मे पंहुचा तो मै १०-१५ मिनट देरी से था । लेकिन अगर ईमानदारी से कहूं तो यह कोई नई बात नही थी । अध्यापक के तौर पर आज भी कितने लोग ठीक समय पे क्लास में जाते हैं , यह शोध किया जाय तो चौकाने वाले नतीजे निकल सकते हैं । फ़िर मै कोई अपवाद कैसे हो सकता हूँ ?

कभी-कभी इसका कारण बड़ा अजीब सा होता है , जैसे की साथ काम करने वालों के साथ उनका बनकर रहने की मजबूरी । मसलन अगर सभी क्लास मे देरी से जाते हैं तो यह आप की नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है की आप भी उन्ही की तरह आचरण करें । अन्यथा ''अलग करने '' के चक्कर मे आप ही सबसे अलग कर दिये जायेंगे । और इस तरह का अलगाव बड़ा ही कस्टप्रद होता है .अतः ''जन्हा रहो सब का बन कर रहो ''यह बहुत जरूरी है । दूसरा कारन यह भी है की आज शिक्षको की हालत सरकारी नियमो की वजह say और bigdi है ।
अगर महाराष्ट्र की बात karoo to आप को जानकर aaschary हो ga की yanha

thaika padhati pay sikshako say काम लिया जाता है । इस कारण यह उसकी भी मजबूरी है की वह एक say अधिक जगहों pay काम karay और आमदनी के vaikalpik rasto की talaas karai ।

to बात यहाँ say shoroo हुई थी की मैं क्लास may dair say pahucha । गाँधी जी के sansmaran का एक paath padhanay लगा । jismay way एक dair say aanay wakai adhyaapak को samjhatai हैं की उसकी dari के कारण देश कितना peechay हो जा reha है। जब paath khatm हुआ to एक लड़की nay dhheray say कहा -sir आप भी dair say aayain हैं ।

मैं ander ही ander kafi sarminda हुआ । और उस दिन say मैं nai यह tain किया की मैं अब कभी भी dari say क्लास may नही jaoonga । उस paath nay bachho के साथ -साथ mujhai भी एक nai seekh दी ।

यही थी mari seekh -------------------------------------

Saturday 21 February 2009

हास्य सम्राट सुनील सावरा



आप लोगो को जान कर खुशी होगी की अब आप मशहूर हास्य सम्राट सुनील सावरा को भी इसी ब्लॉग पर एक लेखक के रूप मे पढ़ सकते हैं। उनके अनुभव और चुटीले व्यन्गो का मजा ले सकते हैं।


majak aur baba ramdev

mujhai kai baar mauka mila baba ramdev say milnay kaa. vai ek achhai insaan hai.unkay ander gajab ka sense of humer hai.vay har baat may hasya khoj laitai hain.hasanai valon ko bhi hasy ka visay bana detai hain.
pichlay dino jab unsay mila to mujhsai bolay-aaj kal kya kar rehai ho ?
mai bola-baba vahi logo ko hasanay ka kaam.
baba bolay beta pranayam shuroo kar do ,nahi to log tumhai sun kar nahi dekh kar hasayin gai.




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Friday 13 February 2009

Just to say a 'HI!!!'

Hello friends,  now youu can read my articles on this blog in english.
Thanks to Manish, for inviting me as an Author on this Blog.
Hope you like my posts.

Thursday 12 February 2009

वैलेंटाइन डे और डॉ.विद्यानिवास मिश्र ----------------------

बात १४ फ़रवरी २००४ की है । मै अपने शोध कार्य से लखनऊ गया था । वहा के महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विस्वविद्यालय -शोध केन्द्र मे मेरा वय्बा था ,विषय स्वीकार करने हेतु। मैं
वहा पे डॉ वीद्याबिंदु सिंह के यहाँ रुका था । विद्या दीदी मुझपे अपार स्नेह रखती हैं । मै अपना शोध कार्य भी उन्ही के साहित्य पे करना चाहता था । पंडित जी (डॉ.विद्यानिवास मिश्र ) भी मरे शोध कार्य से खुश थे। १४ फ़रवरी को मैने अपना विषय शोध समिति के सामने प्रस्तुत किया। विषय स्वीकार भी हो गया । मैं सोच रहा था की जल्दी से यह खबर विद्यादिदी को बता दूँ ।
मैं शाम को जब दीदी के घर आया तो ,सब लोग खामोश थे .दीदी अपने रूम मे रो रही थी । मेरी समझ मे कुछ नही आ रहा था । फ़िर किसी ने बताया की पंडित जी का रोड एक्सीडेंट हो गया ,और वे अब नही रहे ।
यह सुन कर मैं हतप्रभ रह गया .------------------------------आज २००९ ,१४ फ़रवरी को मैं अपना शोध कार्य पूरा कर चुका हूँ । मुंबई विश्विद्यालय से अमरकांत के कथा साहित्य पे । लेकिन जब भी यह १४ फ़रवरी आती है तो पंडित जी का चेहरा आँखों के सामने आ जाता है । सायद इस लिये भी की वो ख़ुद एक संत थे । दीदी ने बताया था की सफ़र में-------JAB KABHI PANDIT JI KO KOI PURANA पेड दिखाई देता वो उसके पास जाते उस पेड से लिपट कर उसे उसकी सेवा के लिये धन्यवाद देते । Aउर उसके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते ।
पंडित जी का यह प्रेम का संदेश हम सभी को समझना होगा ।

उज़्बेकिस्तान में एक पार्क ऐसा भी

  उज़्बेकिस्तान में एक पार्क ऐसा भी है जो यहां के वरिष्ठ साहित्यकारों के नाम है। यहां उनकी मूर्तियां पूरे सम्मान से लगी हैं। अली शेर नवाई, ऑ...