Friday 6 August 2010
Thursday 5 August 2010
Wednesday 4 August 2010
विषय-पीच.डी धारकों की नेट /सेट से छूट के सम्बन्ध में .
manish mishra | 4 August 2010 22:09 | |||
To: vc@fort.mu.ac.in | ||||
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Tuesday 3 August 2010
मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे
मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे
दे सके तो मेरे सपनों को कोई आकार तो दे दे
चाहत नहीं बची किसी चाह की कोई
मेरे बिखरे वजूद को कोई राह तो दे दे
सूखे ख्वाबों का पेड़ हूँ हरियाली के आँगन में
दे सके तो आहों की राख तो दे दे
जिंदगी बिताने को एक आस है बहुत
मेरी मोहब्बत को कोई विचार तो दे दे
गुजर रही तेरी जिंदगी बड़े सुखो आराम से
इस जन्म का न सही अगले जन्म का होंकार तो दे दे
मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे
मेरे बिखरे वजूद को कोई राह तो दे दे
दे सके तो मेरे सपनों को कोई आकार तो दे दे
चाहत नहीं बची किसी चाह की कोई
मेरे बिखरे वजूद को कोई राह तो दे दे
सूखे ख्वाबों का पेड़ हूँ हरियाली के आँगन में
दे सके तो आहों की राख तो दे दे
जिंदगी बिताने को एक आस है बहुत
मेरी मोहब्बत को कोई विचार तो दे दे
गुजर रही तेरी जिंदगी बड़े सुखो आराम से
इस जन्म का न सही अगले जन्म का होंकार तो दे दे
मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे
मेरे बिखरे वजूद को कोई राह तो दे दे
Sunday 1 August 2010
क्या आप कभी मेरी मोहब्बत के पात्र रहे हैं
क्या आप कभी मेरी मोहब्बत के पात्र रहे हैं
क्या आप कई वर्ष मेरे आस पास रहे हैं
क्या आपने मेरी आखों में समुन्दर तलाशा था
क्या आपने मेरी जुल्फों में निशा के मंजर को ढाला था
क्या आपने चूमा था मेरा ललाट अधिकार से कभी
क्या आपने सींचा था मुझे अपने प्यार से कभी
क्या आपके ओठों ने मेरे लबों की लाली बडाई थी
क्या मेरे उफनते सीने को अपने आलिगन में समायी थी
क्या मेरी रातें तेरी बाँहों में महकी थी
क्या तुम हो वही जिसकी आगोश में मेरी सुबहें बहकी थी
जाने दो गुजरे वक़्त को अब याद क्या करना
जाने दो तुम्हे पहचान के अब अहसान क्या करना
जों गुजर गया वो भुत है अब नया मेरा मीत है
भविष्य नया तलाश कर यादों का कभी ना साथ कर
सीख दे गयी वो बात तो पते की थी
कैसे बदलता दिल मेरा वो मेरे धड़कन में थी
क्या आप कई वर्ष मेरे आस पास रहे हैं
क्या आपने मेरी आखों में समुन्दर तलाशा था
क्या आपने मेरी जुल्फों में निशा के मंजर को ढाला था
क्या आपने चूमा था मेरा ललाट अधिकार से कभी
क्या आपने सींचा था मुझे अपने प्यार से कभी
क्या आपके ओठों ने मेरे लबों की लाली बडाई थी
क्या मेरे उफनते सीने को अपने आलिगन में समायी थी
क्या मेरी रातें तेरी बाँहों में महकी थी
क्या तुम हो वही जिसकी आगोश में मेरी सुबहें बहकी थी
जाने दो गुजरे वक़्त को अब याद क्या करना
जाने दो तुम्हे पहचान के अब अहसान क्या करना
जों गुजर गया वो भुत है अब नया मेरा मीत है
भविष्य नया तलाश कर यादों का कभी ना साथ कर
सीख दे गयी वो बात तो पते की थी
कैसे बदलता दिल मेरा वो मेरे धड़कन में थी
ठहरा हुआ जों वक़्त हो उससे निकल चलो
ठहरा हुआ जों वक़्त हो उससे निकल चलो
गम की उदासियों से हंस कर निपट चलो
गमनीन जिंदगानी को खो कर निखर चलो
कठिनाई के दौर से डटकर निपट चलो
बिखर रहा हो लम्हा यादों में किसी के
सजों कर कुछ पल दिल से निकल चलो
जिंदगी गुजर रही जों उसकी तलाश में
जी भर के तड़प के मुस्कराते निकल चलो
गम की उदासियों से हंस कर निपट चलो
गमनीन जिंदगानी को खो कर निखर चलो
कठिनाई के दौर से डटकर निपट चलो
बिखर रहा हो लम्हा यादों में किसी के
सजों कर कुछ पल दिल से निकल चलो
जिंदगी गुजर रही जों उसकी तलाश में
जी भर के तड़प के मुस्कराते निकल चलो
Saturday 31 July 2010
इम्तहान लेती रही जिंदगी मेरी
इम्तहान लेती रही जिंदगी मेरी
यूँ ही चलती रही जिदगी मेरी
कमियाँ तलाशते रहे लोग अपने
असफलताएं सजाती रही मेरी जिंदगी
व्यवहार बदलता रहा हर मोड़ पे लोंगों का
मेरी मुसीबतों पे मुस्कराती रही मेरी जिंदगी
हर ठोकर के बाद लंगडाती रही मेरी जिंदगी
अपनो को यूँ सुकूँ पहुंचाती रही मेरी जिंदगी
कोई मरहम लगता नमक का कोई तिरस्कार की बातें
कोई अहसान की दवा देता कोई दया की बातें
कोई मुस्कराता हर तकलीफ पे कोई खिलखिलाता हर चोट पे
ऐसे कितनो को सुख पहुंचाती रही मेरी जिंदगी
यूँ ही चलती रही जिदगी मेरी
कमियाँ तलाशते रहे लोग अपने
असफलताएं सजाती रही मेरी जिंदगी
व्यवहार बदलता रहा हर मोड़ पे लोंगों का
मेरी मुसीबतों पे मुस्कराती रही मेरी जिंदगी
हर ठोकर के बाद लंगडाती रही मेरी जिंदगी
अपनो को यूँ सुकूँ पहुंचाती रही मेरी जिंदगी
कोई मरहम लगता नमक का कोई तिरस्कार की बातें
कोई अहसान की दवा देता कोई दया की बातें
कोई मुस्कराता हर तकलीफ पे कोई खिलखिलाता हर चोट पे
ऐसे कितनो को सुख पहुंचाती रही मेरी जिंदगी
Friday 30 July 2010
एक दिवसीय हिंदी कार्यशाला का आयोजन
बुधवार , दिनांक १८ अगस्त २०१० को महाविद्यालय के हिंदी विभाग और हिंदी अध्ययन मंडल,मुंबई विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में बी.ए. प्रथम वर्ष (वैकल्पिक ) पेपर-१ पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है.
कार्यशाला के लिए पंजीकरण का समय सुबह ९.३० से १०.०० बजे तक रहेगा .१०.०० बजे से ११.०० बजे तक उदघाटन सत्र चलेगा .१११.०० बजे से १.३० बजे तक चर्चा सत्र चलेगा. १.३० बजे से २.३० तक भोजनावकाश रहेगा .२.३० बजे से ३.०० बजे तक समापन सत्र होगा .
महाविद्यालय का पता इस प्रकार है ------
के.एम.अग्रवाल कला,वाणिज्य और विज्ञान महाविद्यालय
पडघा रोड,गांधारी गाँव ,
कल्याण (पश्चिम )४२१३०१
आप इस कार्यशाला में सादर आमंत्रित हैं.
http://maps.google.com/maps?f=d&source=s_d&saddr=Stationery+near+Kalyan,+Maharashtra,+India&daddr=19.262177,73.135728&geocode=%3BFeHqJQEdcPZbBA&hl=en&mra=ls&sll=19.261593,73.134763&sspn=0.001924,0.004823&ie=UTF8&ll=19.260894,73.134527&spn=0.007698,0.01929&z=16&lci=com.panoramio.अल
इस मैप द्वारा आप आसानी से कॉलेज तक आ सकते हैं.
जिंदगानी भटकी हुई या खोया हुआ हूँ मै
जिंदगानी भटकी हुई या खोया हुआ हूँ मै
राह चुनी थी सीधी चलता रहा हूँ मै
रिश्तों में राजनीती थी या संबंधों में कूटनीति
स्वार्थ था नातों में या नाता था स्वार्थ का
बातें दुविधाओं की थी या दुविधाओं की बातें
भाव ले प्यार का सरल चलता रहा हूँ मै
उलझे हुए किस्से सुने
झूठे फलसफे सुने
मोहब्बत की खोटी कसमे सुनी
सच्चाई की असत्य रस्में सुनी
प्यार को सजोये दिल में
चलता रहा हूँ मै
इश्क के वादों को
वफ़ा करता रहा हूँ मै
भटकी हुई जिंदगानी या खोया हुआ हूँ मै
राह चुनी थी सीधी चलता रहा हूँ मै
राह चुनी थी सीधी चलता रहा हूँ मै
रिश्तों में राजनीती थी या संबंधों में कूटनीति
स्वार्थ था नातों में या नाता था स्वार्थ का
बातें दुविधाओं की थी या दुविधाओं की बातें
भाव ले प्यार का सरल चलता रहा हूँ मै
उलझे हुए किस्से सुने
झूठे फलसफे सुने
मोहब्बत की खोटी कसमे सुनी
सच्चाई की असत्य रस्में सुनी
प्यार को सजोये दिल में
चलता रहा हूँ मै
इश्क के वादों को
वफ़ा करता रहा हूँ मै
भटकी हुई जिंदगानी या खोया हुआ हूँ मै
राह चुनी थी सीधी चलता रहा हूँ मै
Thursday 29 July 2010
बेवफा सनम मेरा
बेवफा सनम मेरा
झूठ है फितरत
सच ना कह सका कभी
मेरी सच्चाई से है उसे नफरत
बेवफा सनम मेरा
अपने रिश्तों की बानगी
क्या कहे बदलती उसके दिल की रवानगी
झूठ का बड़ता उसका अंबार है
झूठे प्यार का उसका व्यापार है
बेवफा सनम मेरा
गलती नहीं उसकी कोई
बदलती कहाँ आदत कोई
गोपनीयता का वो सरताज है
बेवफाई पे ही उसका संसार है
बेवफा सनम मेरा
झूठ है फितरत
सच ना कह सका कभी
मेरी सच्चाई से है उसे नफरत
बेवफा सनम मेरा
अपने रिश्तों की बानगी
क्या कहे बदलती उसके दिल की रवानगी
झूठ का बड़ता उसका अंबार है
झूठे प्यार का उसका व्यापार है
बेवफा सनम मेरा
गलती नहीं उसकी कोई
बदलती कहाँ आदत कोई
गोपनीयता का वो सरताज है
बेवफाई पे ही उसका संसार है
बेवफा सनम मेरा
Sunday 25 July 2010
प्यास बुझा के प्यास बड़ाता पानी
जंगल का कोहरा और बरसता पानी
पेड़ के पत्तों से सरकता पानी
पहाड़ों पे रिमझिम बहकता पानी
सूरज को बादलों से ढकता पानी
चाँद तरसता तेरे बदन पे पड़ता पानी
प्यास बुझा के प्यास बड़ाता पानी
पेड़ के पत्तों से सरकता पानी
पहाड़ों पे रिमझिम बहकता पानी
सूरज को बादलों से ढकता पानी
चाँद तरसता तेरे बदन पे पड़ता पानी
प्यास बुझा के प्यास बड़ाता पानी
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