Friday 13 November 2009

चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,

चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,
मेरी बातों को तुम समझो तेरी राहों को मै जानू ;
मेरे भावों को तुम जानो तेरे सपनों को मै मानू ;
मेरे अरमाँ को तुम जिओं तेरी सोचों को मै मानू '
चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,
खो के इक-दूजे में अपने ख्वाबों को सच कर ले हम ;
दुनिया को ना भूलें मगर ख़ुद को ना तोडे हम ,
रिश्तों को तो जोडें मगर ख़ुद का ना छोडे हम ;
चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,
प्यार छिपा है जो हम दोनों के सीने में ;
क्यूँ उसे इक दूजे पे ना वारें हम ;
खुशियाँ गर मिलती हैं हमें बातों मुलाकातों में ,
क्यूँ न करें बातें क्यूँ ना करें मुलाकातें हम ;
कीमत तो देनी पड़ती है हर खुशी की जीवन में ,
जीवन का करेंगे क्या जिसमे न होंगे इक दूजे के संग हम ;
चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,
कुछ पल ख़ुद भी जी लें आ इक दूजे को बाँहों में भर लें हम ;
चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,

Thursday 12 November 2009

कभी पल मुस्कराया करते थे ,

कभी पल मुस्कराया करते थे ,

कभी क्षण गुनगुनाया करते थे ,

होते थे जब भी तुम कहीं आस पास ;

वो लम्हे खिलखिलाया करते थे /

सामने बैठ तुम कॉलेज की बातें किया करती थी ,

मेरी धडकनों के अंदाज बदल जाया करते थे ;

अपनी सहेलियों की शरारतें बता जब इठलाते थे तुम ,

मेरे अहसास नही दुनिया बसाया करते थे ;

तेरी हँसी का एक शमा बना होता था ,

हम तेरे खुबसूरत चेहरे को निहारा करते थे ;

जब कभी आहत होती किसी के बात पे तू ,

तेरी उदासी को तेरे सिने से चुराया करते थे ;

जब तेरा दिल भर आता अपनो के कारण कभी ,

तेरे ग़मों को अपने ह्रदय में छुपाया करते थे ;

हर रोज सुबह नहा के तेरे निकालने का इंतजार हम करते ,

तुझे देख हर रोज नए सपने बनाया करते थे ;

भोर हुए आखं मलते जब तुम सामने मेरे आते ,

कैसे हम एक दूजे की सिने से लगाया करते थे ;

मन्दिर जब भी गए संग तेरे हम,

तेरी खुशियाँ मांग तेरे मांग में सिंदूर भरा करते थे ;

कभी पल मुस्कराया करते थे ,
कभी क्षण गुनगुनाया करते थे ,
होते थे जब भी तुम कहीं आस पास ;
वो लम्हे खिलखिलाया करते थे /

Wednesday 11 November 2009

भोर हुए तेरी याद चली आती है /

भोर आखँ खुलते तेरी याद चली आती है ,

बाँहों में भरकर सिने से लगाती है ,

दिल को प्यास जीवन को आस दिए जाती है ,

भोर हुए तेरी याद चली आती है /

पल भर को जो हुआ अकेला ,

तेरे भावों ने आ मुझको घेरा ,

धड़कन को अहसास वो देते ,

गम को विश्वास वो देते ,

रातों में बिस्तर पे जब लेटा ,

तेरी बातों का होता सबेरा ,

नयनो में सपने आते हैं ,

तन मन पुलकित हो जाते हैं ,

भोर हुयी फिर यादें आती हैं ,

वो मेरी तन्हाई भर जाती हैं ,

कैसे तुझसे दूर मै जाऊं ,

कैसे मन मन्दिर फुसलाऊं,

भोर हुए तेरी यादें आती हैं ,

वो मेरी तन्हाई भर जाती हैं /

Monday 9 November 2009

आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती /

मेरे लम्हों की बेकरारी नही जाती ,

आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती ;

जब्त अरमां दिल को बेकरार नही करते ,

भूल जायुं तुझको क्यूँ ऐसी बीमारी नही आती /

है शांत शमा कैसे मै जानू ,

दिल में उलझन चंचल धड़कन ;

मन से खामोशी नही जाती ,

आखें प्यासी हैं क्यूँ नीद नही आती ?

तू गैर की बाँहों में ऐतबार है मुझको ,

तेरी जिंदगी उससे है इकरार है मुझको ;

तू है नही मेरी ये कैसे मै मानू ,

मेरे रग रग से बहते खूं से तेरी खुसबू नही जाती ;

आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती /

Saturday 7 November 2009

पर वो पल कितने प्यारे औ कितने अच्छे थे/

विस्तृत आकाश विदित है ;

मन का भावः विदित है ;

अहसास कहाँ कब सीमा जाने ,

दिल का विश्वास विदित है /

झिल-मिल तारों से ,आस करे क्या ?

सागर की लहरों से , प्यास करे क्या ?

रातों के ख्वाबों का मंतव्य समझ लेते ;

जागी आखों के सपने ,करे क्या ?

तू गैर नही है ;

तुझको मुझसे बैर नही है ;

मेरी तन्हाई से क्या रिश्ता तेरा ?

मेरी आगोस में होने का अब दौर नही है /

तेरे वादे क्या सच्चे थे ;

तेरे अहसास सभी कच्चे थे ;

बदन से मिलते बदन की यादें ;

क्या ले के बैठें अब उसको ;

पर वो पल कितने प्यारे औ कितने अच्छे थे/

नई दुनिया तुने बसाई है ;

मेरी यादों की अर्थी सजाई है ;

मेरे होने का अहसास ना हो ;

तुने अपने दिल की कब्र बनाई है /

Wednesday 28 October 2009

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

तुझे जरूरत ना पड़ती थी कहने की ,

तेरे अहसासों पे अमल कर देता था मै;

तेरी आखों में बुने सपनों को ,

अपने भावों से सजों देता था मै ;

तेरी राहों के काटें चुनता ,

तेरी मधुभासों में खोया रहता था मै ;

तेरी खुशियों को तुझसे ज्यादा सजोता ,

तेरे आंसुओं को अपनी आखों से रो लेता था मै ;

इन यादों से कैसे किनारा कर लूँ ,

गर तुझसे मोहब्बत एक गलती थी ;

उसे तोड़ कर गलती कैसे दोबारा कर लूँ ?

तेरी खुशियाँ अब भी मुझे प्यारी हैं ,

तुझे मिल के उन्हें कैसे गवांरा कर लूँ ;

तेरा आभास अब भी मेरे धड़कनों में शामिल है ,

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

Monday 26 October 2009

इक चाहत है ख़ुद से जुदा होने की ;

इक चाहत है ख़ुद से जुदा होने की ;

मोहब्बत में खुदा होने की ;

जी ना सके संग तेरे क्या हुआ ;

तमन्ना है तेरे इश्क में फ़ना होने की ;

मेरे अहसास अपने दिल में तू समेट ना सकी ;

मेरी दुरी को मोहब्बत में लपेट ना सकी ;

क्या कहूँ तेरे अरमां औ तेरी जरूरतों को ;

कैसे तू प्यार के जज्बे को सहेज ना सकी ?

तू गर्वित है अपने हालात पे ;

अपनी सफलता और बड़ती आगाज पे ;

क्या कहूँ मोहब्बत तेरी बिखरती जवानी पे ;

कैसे वो मेरी आखों में आंसुओं को रोक ना सकी ?

Saturday 24 October 2009

छठ मैया को श्रद्धा अर्पण

अस्ताचलगामी और उदयमान सूर्य को प्रणाम करने के लिए सदियोंसे चली आ रही परम्परा को आगे बढ़ाने की तैयारियां चल रही हैं । बस चंद क़दमों की दूरी पर पुण्यसलिला गंगा के किनारे सूर्य जब अस्त हो रहे होंगे तो हम सब उन्हें अर्पण कर रहे होंगे अपनी श्रद्धा , अपना सबकुछ । दिन भर व्रत रखकर महिलाएं भगवान भास्कर को जल आराध्य करती है। राजधानिओमें इसकी तैयारियां शुरू हो चुकी है। जैसे डेल्ही , पटना , यहाँ तक की महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में भी हम यह पर्व देख सकते है।


महाकाव्यात्मक गरिमा का उपन्यास -इन्ही हथियारों से :अमरकांत


महाकाव्यात्मक गरिमा का उपन्यास -इन्ही हथियारों से :अमरकांत


Thursday 22 October 2009

गुम हूँ कहीं ,खोया हूँ कहीं ;

गुम हूँ कहीं ,खोया हूँ कहीं ;

हूँ उसकी तलाश में ,

निकला हूँ कहीं ,पहुँचा हूँ कहीं ;

मदहोश नही हूँ , बेहोश नही हूँ ;

उलझा हूँ तेरी सोच में ;

अफ़सोस नही हूँ , सरफ़रोश नही हूँ ;

ढुढता हूँ ख्वाबों में , भटकता हूँ राहों में ;

नीद आये हुए वर्षों ;

सोया कहीं हूँ , जागा कहीं हूँ ;

तेरा अहसास नही हूँ , तेरा आकाश नही हूँ ;

हूँ हवा में शामिल ;

तेरा आभाष नही हूँ ,तेरी साँस नही हूँ ;

होयुं कोहरे में शामिल ऐसा खामोश नही हूँ /