संत काव्य परम्परा में कबीरदास का स्थान सबसे उच् है । उन्होंने संत सिरोमणि बनकर हिन्दी कविता को नई दिशा प्रदान की । धर्मं को अंधविश्वास और आडम्बर से मुक्त करने का प्रयास किया,और हिंदू मुस्लिम एकता का मार्ग दिखलाया।
Saturday 25 July 2009
संत कबीरदास
अनेक यादें बिखरी हुई हैं
अनेक यादें बिखरी हुई हैं ;
कितनी ही बातें उलझी हुई हैं ;
खुबसूरत वाकयों का हिसाब क्या करें ;
सब तेरी बेतकल्लुफी में सिमटी हुई हैं /
----------------------------------
मोहब्बत और तनहाई से कैसे रूठें ;
अपनो की जुदाई से कैसे रूठें ;
ईश्वर की खुदाई पे कैसे रूठें ;
जीने को कुछ खुशियाँ ,
खुशियों को कुछ भावः लगते हैं ;
मेरी जिंदगी मेरे प्यार ,
तेरी मोहब्बत और बेवफाई पे कैसे रूठें ?
Tuesday 21 July 2009
तेरी स्तुति में मन लीन रहे ,
गुरु को समर्पित
तेरी स्तुति में मन लीन रहे ,
तेरी महिमा में तल्लीन रहे ;
तेरी आभा का गुडगान करे ,
हर पल तेरा ध्यान करे ;
तू सर्वज्ञ , तू सर्वदा ,
तू संवाद तू संवेदना ;
तू ही कारन तू ही कर्ता ,
तू ही है सब कर्ता धर्ता ; तू ही सांसे ,
तू ही जीवन ,तू ही है जीवन का प्रकरण ;
तू ही शिव है तू ही शक्ति ,
तू ही है मेरी भक्ती ;
गान करूँ गुडगान करूँ ,हर पल तेरा ध्यान करूँ ;
Monday 20 July 2009
प्रकृति का नियम ;
हर चीज का छरण ;
पत्तों का गिरना ;
फूलों का खिलना
नव अंकुरित बीज ;
सूखे पेड़ों की खीज ;
पिघलती बर्फ ;
आदमी का दर्प ;
उजड़ते खलिहान ;
लहलहाते रेगिस्तान ;
मौत पे बिलखना ;
बच्चों का किलकना ;
पत्थरों में भगवान ;
इंसानों में शैतान ;
क्या सच , क्या सपना ;
क्या भाग्य , क्या विडंबना /
Saturday 18 July 2009
तुम मेरा प्यार हो ;मेरा आधार हो
तुम मेरा प्यार हो ;मेरा आधार हो
--------------------------------
बड़ी खुबसूरत हो ;घटाओं की मुरत हो ;
नदी की गरमी हो , पर्वतों की नरमी हो ;
गुलाब की काया हो , चाँद की माया हो ;
सूरज की शीतलता हो , मन की निर्मलता हो ;
बच्चों का स्वभाव हो , दिल का कयास हो ;
तन की प्यास हो ; मन का अहसास हो ;
बड़ी बेमिशाल हो ,वाकई लाजवाब हो /
Monday 13 July 2009
उनकी नाराजगी का सबब ढूंढ़ता हूँ ;
अपनी मजबूरी की गरज ढूंढ़ता हूँ ;
हर तरफ़ से जकडा हूँ ,
आज़ादी की डगर ढूंढ़ता हूँ /
मेरी तकलीफें न बड़ा तेरी बेवफाई का असर ढूंढ़ता हूँ ;
जो ना किए तुने उन अहसानों का कर्ज ढूंढ़ता हूँ ;
तेरी उलझी बातों का अर्थ ढूंढ़ता हूँ ;
तू यार है मेरा ;
मेरे दुसमन और तुझमे फर्क ढूंढ़ता हूँ ;
आखों को दिए आंसू दिल को दर्द ,
यकीं है उसपे ;
तुने दी जो खुशियाँ ; उसका तर्क ढूंढ़ता हूँ /
Thursday 9 July 2009
वर्जनाओं से थम गया ;आशाओं से थम गया ;
कठनायियाँ ना रोक सकी ;
दृढ़ता के अभावों से थम गया ;
दौड़ सका न चंद कदम ; भावनाओं से थम गया /
दोष नही सपनों का ,द्वेष नही अपनो का ;
परिश्थीतियाँ जीत गई ,अपने कर्मों से थम गया ;
दौड़ सका न चंद कदम ;अपनी धारनावोंसे थम गया /
बच्चों के मुख पे प्रश्न छिपे ;बीबी के मन में मर्म छिपे ;
माँ के ह्रदय में अविश्वास छिपे ;लोंगों के चेहरे पे हास्य छिपे ;
इस हालत में कैसे आया ;क्यूँ राहों में मन ललचाया ?
क्यूँ पग फिसले कठिनाई में ,क्यूँ मन बहका तन्हाई में ?
लड़ न सका जज्बातों से अपने ;
जीत सका न मन को अपने ;
जीती बाजी हार रहा मै ;
क्यूँ हिम्मत हार रहा मै ?
अपने विकारों से थम गया ,अपने अहंकारों से थम गया ;
अपनो के बंधन से थम गया, अपने विचारों से थम गया ;
दौड़ सका ना चंद कदम ,अधूरे धर्मों से थम गया /
दिल के दर्पों से थम गया ;
दौड़ सका ना चंद कदम ,
औरों की खुशियों पे थम गया /
Tuesday 7 July 2009
आदमी हूँ आदमी से प्यार करना -----------------------------
यह खबर क्या आई पूरी की पूरी मीडिया जैसे पागल सी हो गई । आप कोई भी समाचार चैनल खोल कर देख लीजिये ,हर जगह एक ही चर्चा -क्या भारत जैसे देश मे समलैंगिकता को सामजिक मान्यता दी जा सकती है ?
सवाल यह है की इसे अभी स्वीकार ही किसने किया ? कानून का अपना एक अलग नजरिया होता है । वह अपनी जगह सही भी है । अगर दो वयस्क आपस मे समलैंगिक रिश्ता आपसी सहमती से बनाते हैं तो उसे कोई भी लोकतांत्रिक कानून आपराधिक गतिविधि नही मान सकता । इस लिए कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है ।
लेकिन इस बात को पकड़कर मीडिया ने जो निष्कर्ष निकाला वो एक दम हास्यास्पद है । कोर्ट ने समलैंगिकता को आपराधिक कृत्य नही माना है ,पर इसका यह कत्तई अर्थ नही निकालना चाहिये की कोर्ट समलैंगिकता के पक्ष मे खड़ा है ।
जन्हा तक भारतीय समाज का प्रश्न है तो मुझे नही लगता की इस विश्विक सत्य को स्वीकार करने मे भारतीय जनमानस को कोई कष्ट होगा। भारत देश पूरे विश्व मे एक ऐसी बीच की जमीन के रूप मे जाना जाता है जन्हा सभी के लिए स्थान है । विविधता मे एकता यंहा की विशेषता है ।
अब अगर व्यवहारिक रूप मे समलैंगिकता को स्वीकार या अस्वीकार करने की बात करे तो मेरा मानना यह है की इस तेरह के सम्बन्ध भावनात्मक और कुछ हद तक कामुक स्थितियों को ले केर बन तो जरूर सकते हैं,लेकिन ये पारिवारिक इकाई का विकल्प नही बन सकते । और एक स्वस्थ समृद्ध नई पीढी परिवार नामक परम्परागत ढांचे मे ही विकसित हो सकती है ।
Sunday 5 July 2009
आ गया मानसून
लकिन लगता है अब इसकी जरुरत नही पड़ेगी । उत्तर भारत को अब भी मानसून का इंतजार है ।
आशा है पुरे भारत में भी मानसून जल्द ही आएगा ।
Saturday 4 July 2009
वक्त का शिकवा कैसा
पानी ले बुलबुलों को थामना क्या ;
ये सब गुजर जाते है,सब बदल जाते हैं ;
कैसे कहोगे की साथ किसका था ;
क्या कहोगे की भाग्य ऐसा था ;
जो गुजर गया उसे बांधना क्या ,
कैसे कहोगे कौन अपना था ?
जिंदगी की हकीकते और सपने सुहाने ;
अपनो की प्रीती और प्यार के अफसाने ;
ये बिखर जाते हैं ;सब बदल जाते हैं /
कैसे कहोगे कौन सपना था ;
क्या कहोगे कौन अपना था ?
Friday 3 July 2009
भले आखों में आंसू हो पर वो मुस्कराती रहे ;
सिमटा हो दर्द दिल में पर वो खिलखिलाती रहे /
रक्तिम हो चेहरा बड़े हुए कष्ट से ;
पर हास्य हो मुख पे उस असह्य दर्द पे /
न हो मंजिल का पता , न राहे सुझे,
अँधेरा छाए अपनो के भावों पे ;
ह्रदय मुस्काओं ,ख़ुद को जलावो;
और करो अट्टाहस अपने अभावों पे /
-----------------------------------
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
-
मै बार -बार university grant commission के उस फैसले के ख़िलाफ़ आवाज उठा रहा हूँ ,जिसमे वे एक बार M.PHIL/Ph.D वालो को योग्य तो कभी अयोग्य बता...