आज से करीब एक -दो साल पहले सहारा समय अखबार मे इंदिरा जी के उपर एक बड़ा लेख छपा था । और यह तस्वीर भी । तस्वीर खास लगी इस लिये काट कर रख लिया । आज अचानक तस्वीर किसी किताब मे से मिल गई तो सोचा ब्लॉग पर डाल देता हूँ । तस्वीर सुरक्षित भी रहे गी और लोंगो को देखनो को भी मिलेगी । आप को यह तस्वीर कैसी लगी ?
Tuesday 7 April 2009
हजारो मिन्नतों के बाद ..........................
इस तस्वीर को देखकर एक ग़ज़ल लिखी है । इस तस्वीर में जो बात है वो अलग है ।
हजारों मिन्नतों के बाद ,चले आते हैं
आकर बैठे भी नही,की चले जाते हैं ।
कभी अम्मी ,कभी अब्बा कभी खाला ,
इनके नाम से कितना डराते हैं ।
होश रहेगा कैसे ,उनसे मिलने के बाद
वो तो नजरो ही नजरो से पिलाते हैं ।
इश्क की गाड़ी में,बैठे हैं हम मियां
रोज ही झटके पे झटका खाते हैं ।
यहाँ जाती है इस गरीब की जान ,
एक वो हैं की बस मुस्कुराते हैं ।
इश्क की बात ...................................
इश्क की बात छुपाऊँ कैसे
छुपी बात है ,बताऊँ कैसे ?
पहले ख़ुद ही सताया उन्हे ,
अब सोचता हूँ,मनाऊँ कैसे ?
चोर तो मेरे अंदर ही है ,
मैं भला शोर मचाऊँ कैसे ?
आँगन मेरा ही टेढा है ,
सब को नाच नचाऊँ कैसे ?
भूखे पेट आ गया हूँ ,
आपको हंसाऊं कैसे ?
छुपी बात है ,बताऊँ कैसे ?
पहले ख़ुद ही सताया उन्हे ,
अब सोचता हूँ,मनाऊँ कैसे ?
चोर तो मेरे अंदर ही है ,
मैं भला शोर मचाऊँ कैसे ?
आँगन मेरा ही टेढा है ,
सब को नाच नचाऊँ कैसे ?
भूखे पेट आ गया हूँ ,
आपको हंसाऊं कैसे ?
प्यार -मोहब्बत और शराब ..............................
इनसे ही पूरा सारा हिसाब
प्यार -मोहब्बत और शराब ।
जिसने इन्हे बनाया है ,
उसी को मेरा है आदाब ।
छोड़ दिया उस घर को ही ,
जहा थे देते सभी रुबाब ।
कहने को सब कहते हैं ,
आदत हो गई मेरी ख़राब ।
ग़लत सवालों के बदले ,
कैसे देता कोई जवाब ।
प्यार -मोहब्बत और शराब ।
जिसने इन्हे बनाया है ,
उसी को मेरा है आदाब ।
छोड़ दिया उस घर को ही ,
जहा थे देते सभी रुबाब ।
कहने को सब कहते हैं ,
आदत हो गई मेरी ख़राब ।
ग़लत सवालों के बदले ,
कैसे देता कोई जवाब ।
इश्क में .........................................
इश्क में वो मुझे सिर्फ़ गम देगा
जिंदगी भर को ,आंखे नम देगा ।
मैने तो थोड़ी रोशनी मांगी थी
वह मेरे हिस्से में ,बस तम् देगा ।
सनम के सितम की इंतहा क्या है ,
जितना भी देगा ,वह कम देगा ।
सियासतदानों की बातो में ना आना ,
यह जब भी देगा ,सिर्फ़ भरम देगा ।
यह इलेक्ट्रोनिक मीडिया है जनाब ,
हर बासी खबर को ,यह गरम देगा ।
जिंदगी भर को ,आंखे नम देगा ।
मैने तो थोड़ी रोशनी मांगी थी
वह मेरे हिस्से में ,बस तम् देगा ।
सनम के सितम की इंतहा क्या है ,
जितना भी देगा ,वह कम देगा ।
सियासतदानों की बातो में ना आना ,
यह जब भी देगा ,सिर्फ़ भरम देगा ।
यह इलेक्ट्रोनिक मीडिया है जनाब ,
हर बासी खबर को ,यह गरम देगा ।
मुझको अब एक बाजा दे .................
सब की पोल खोलने को , मुझको अब एक बाजा दे
नई उम्र की नई बानगी ,वाला मुझको राजा दे ।
नही रहे हैं जख्म पुराने ,दिये हुए जो तूने थे
मेरे जीवन मे आकर ,जख्म कोई फ़िर ताज़ा दे ।
फाँका मस्ती अपनी हस्ती ,चाहत एकदम छोटी है
बची-खुची रुखी -सूखी ,साथ में थोड़ा गाँजा दे ।
आओ दोनों कर लें ,थोडी सी अदला-बदली
मेरी रोटी तू ले ले ,मुझको अपना खाजा दे ।
नई उम्र की नई बानगी ,वाला मुझको राजा दे ।
नही रहे हैं जख्म पुराने ,दिये हुए जो तूने थे
मेरे जीवन मे आकर ,जख्म कोई फ़िर ताज़ा दे ।
फाँका मस्ती अपनी हस्ती ,चाहत एकदम छोटी है
बची-खुची रुखी -सूखी ,साथ में थोड़ा गाँजा दे ।
आओ दोनों कर लें ,थोडी सी अदला-बदली
मेरी रोटी तू ले ले ,मुझको अपना खाजा दे ।
Sunday 5 April 2009
माँ जलती रही -------------------------------------------
मैं बोला -'' माँ , दिये की रौशनी जरा जादा करना ,
मैं पढ़ नही पा रहा हूँ । ''
बाप बोला -"अरे ओ , रौशनी कम कर ,
मैं सो नही पा रहा हूँ । "
वह बेचारी रात भर रौशनी कम-जादा करती रही ,
हम दोनों के बीच जीवन भर ,इसी तरह जलती रही ।
(यह कविता मूल रूप में मराठी भाषा में है । मराठी के लोक कवि श्री प्रशांत मोरे जी ने यह कविता सुनाई थी । उसी कविता का यह हिन्दी अनुवाद आप लोगो के लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ । )
मैं पढ़ नही पा रहा हूँ । ''
बाप बोला -"अरे ओ , रौशनी कम कर ,
मैं सो नही पा रहा हूँ । "
वह बेचारी रात भर रौशनी कम-जादा करती रही ,
हम दोनों के बीच जीवन भर ,इसी तरह जलती रही ।
(यह कविता मूल रूप में मराठी भाषा में है । मराठी के लोक कवि श्री प्रशांत मोरे जी ने यह कविता सुनाई थी । उसी कविता का यह हिन्दी अनुवाद आप लोगो के लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ । )
देखो कितनी गुमसुम माँ ---------------------------------
साथ मेरे है हरदम माँ
हर दर्द पे मेरे मरहम माँ ।
कोई नही है उससे प्यारी ,
सात सुरों की सरगम माँ ।
सुबह-सुबह फूलो पर ,
प्रेम लुटाती शबनम माँ ।
मुझसे जादा मेरी चिंता ,
देखो कितनी गुमसुम माँ ।
घर के अंदर बात-बात पर ,
देखो बनती मुजरिम माँ ।
सब के लिये जादा-जादा ,
पर ख़ुद लेती कम -कम माँ ।
सब की सुनती पर चुप रहती ,
कितना रखती संयम माँ ।
साथ मेरे है हरदम माँ -----------------------------------------------------------------।
हर दर्द पे मेरे मरहम माँ ।
कोई नही है उससे प्यारी ,
सात सुरों की सरगम माँ ।
सुबह-सुबह फूलो पर ,
प्रेम लुटाती शबनम माँ ।
मुझसे जादा मेरी चिंता ,
देखो कितनी गुमसुम माँ ।
घर के अंदर बात-बात पर ,
देखो बनती मुजरिम माँ ।
सब के लिये जादा-जादा ,
पर ख़ुद लेती कम -कम माँ ।
सब की सुनती पर चुप रहती ,
कितना रखती संयम माँ ।
साथ मेरे है हरदम माँ -----------------------------------------------------------------।
Saturday 4 April 2009
आप लोंगो से निवेदन ------------------------------
आप लोंगो का मैं आभारी हूँ जो आप लोग मेरे ब्लॉग को पढ़ते हैं और कभी-कभी अपनी प्रतिक्रियाओ से अवगत भी कराते हैं । कुछ लोगो को मेरी हिन्दी की शुद्धता को लेकर शिकायत रहती है । लेकिन अगर आप रोज ब्लॉग लिखते हैं तो आप यह समझ सकते हैं कि हिन्दी में ब्लॉग लिखना आसान काम नही है । कभी -कभी अंग्रजी का सही परिवर्तन नही हो पता तो कभी परिवर्तन की प्रक्रिया बीच मे ही रुक जाती है । फ़िर हिन्दी में पहले से लिखा हुआ लेख आप कट -पेस्ट भी तो नही कर पाते । इस लिये यह बहुत जरूरी है कि इन तकनीकी समस्याओं को समझते हुये , हम हिन्दी ब्लागिंग को प्रोत्साहित करे ।
मेरे एक ब्लॉग मित्र ने इस सन्दर्भ मे मुझसे शिकायत की , उनका कहना सही है लेकिन मैं भी तो मजबूर हूँ । हो सकता है कि धीरे -धीरे मैं अपनी हिन्दी टायपिंग मे सुधार ला सकू । मुझे आप लोगो के सहयोग की आवश्यकता है । आशा और विश्वाश है कि आप अपने इस भाई को थोड़ा समय अवस्य दो गे ।
जहा तक मेरे हिन्दी प्रवक्ता होने की बात है तो मैं आप लोगो से विनम्र अनुरोध करना चाहूंगा कि वह एक अलग विषय है । मैं हिन्दी का ब्लॉग लिखकर प्रवक्ता तो बना नही हूँ , हा प्रवक्ता बनकर ब्लॉग लिखने कि कोशिस जरूर कर रहा हूँ । फ़िर आप ही जरा सोचिये कि आप की जानकारी मे हिन्दी के कितने प्रवक्ता हैं जो ब्लागिंग जैसे कार्यो से जुडे हैं ?
आप सभी सुधी पाठक और लेखक हैं .मेरे कहने के तात्पर्य को समझ गये होंगे । अपनी प्रतिक्रिया से अवस्य अवगत कराये ।
मेरे एक ब्लॉग मित्र ने इस सन्दर्भ मे मुझसे शिकायत की , उनका कहना सही है लेकिन मैं भी तो मजबूर हूँ । हो सकता है कि धीरे -धीरे मैं अपनी हिन्दी टायपिंग मे सुधार ला सकू । मुझे आप लोगो के सहयोग की आवश्यकता है । आशा और विश्वाश है कि आप अपने इस भाई को थोड़ा समय अवस्य दो गे ।
जहा तक मेरे हिन्दी प्रवक्ता होने की बात है तो मैं आप लोगो से विनम्र अनुरोध करना चाहूंगा कि वह एक अलग विषय है । मैं हिन्दी का ब्लॉग लिखकर प्रवक्ता तो बना नही हूँ , हा प्रवक्ता बनकर ब्लॉग लिखने कि कोशिस जरूर कर रहा हूँ । फ़िर आप ही जरा सोचिये कि आप की जानकारी मे हिन्दी के कितने प्रवक्ता हैं जो ब्लागिंग जैसे कार्यो से जुडे हैं ?
आप सभी सुधी पाठक और लेखक हैं .मेरे कहने के तात्पर्य को समझ गये होंगे । अपनी प्रतिक्रिया से अवस्य अवगत कराये ।
Friday 3 April 2009
गृहस्थी एक बैल गाड़ी है -----------------
गृहस्थी एक बैलगाडी है
बेचार बैल ,कितना अनाड़ी है ।
काम उसी के होते हैं अब ,
जो शुरू से जुगाड़ी है ।
मेरे हांथो मे उनके मेकप का बिल ,
दुशाशन के हाँथ द्रोपती की साड़ी है ।
दुश्मन घर में घुस के मारते हैं ,
किस बात पे चौडी छाती हमारी है ।
बेचार बैल ,कितना अनाड़ी है ।
काम उसी के होते हैं अब ,
जो शुरू से जुगाड़ी है ।
मेरे हांथो मे उनके मेकप का बिल ,
दुशाशन के हाँथ द्रोपती की साड़ी है ।
दुश्मन घर में घुस के मारते हैं ,
किस बात पे चौडी छाती हमारी है ।
तुझसे नजरें मिली तो ------------------------
तुझसे नजरे मिली तो गजब हो गया
प्यार पहली नजर में अजब हो गया ।
नही था जिस मोहब्बत पे यंकी,
ख़ुद उसी का मैं सबब हो गया
नये जमाने की ,यह नई चाल है
हमारे घरो से गायब ,अदब हो गया ।
प्यार पहली नजर में अजब हो गया ।
नही था जिस मोहब्बत पे यंकी,
ख़ुद उसी का मैं सबब हो गया
नये जमाने की ,यह नई चाल है
हमारे घरो से गायब ,अदब हो गया ।
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