Saturday 22 May 2010
abhilasha-1001
''आनर किलिंग'' बंद करो गदहों !!!!/Honour Killings in India
पिछले कई दिनों से दिल में आग लगी हुई थी . समाचार पत्रों और मीडिया चैनलों के माध्यम से देश भर में मध्यम वर्गीय परिवारों के बीच ''आनर किलिंग '' क़ी खबरें खून में उबाल ला रही थीं .
अपने ही बेटे-बेटी क़ी निर्ममता पूर्वक हत्या सिर्फ इस लिए कर देना क्योंकि वह प्यार करता है या करती है , इसे सही कहने वाले निकम्मों और नालायकों को क्या कहूं ?
मध्यवर्ग जैसा स्वार्थी,लोभी ,भीरु ,मौकापरस्त और झूठा कोई और हो ही नहीं सकता . झूठी शानो-शौकत के लिए यह वर्ग मानवता का भी खून कर सकता है . शर्म आती है अपने आप पर यह सोच कर क़ि मैं भी इसी समाज का एक हिस्सा हूँ. यह बात दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए भी शर्म की ही है . राधा-कृष्ण को पूजने वाला यह देश किस गर्त में जा रहा है ?
मैं सभी लोगों से हाथ जोड़ के यही विनती करना चाहता हूँ क़ि ,''समाज,परम्परा ,रीति -रिवाज ,मान-अपमान और झूठी प्रतिष्ठा की वेदी पर अपने मासूम बच्चों की बलि मत दो.प्रेम से बड़ा ना कोई धर्म है और ना ही काम ''
प्रेम तो मानवता का आधार है ,इसका गला घोंट कर क्या शैतानो की दुनिया बनाना चाहते हो ?
ओम प्रकश पांडे''नमन'' जी अब हिंदी ब्लागिंग क़ी दुनिया से जोड़े जा चुके हैं .
हिंदी ब्लागिंग करने के साथ-साथ हमारी एक कोशिस यह भी रहती है क़ि हम हिंदी से जुड़े अच्छे और सजग रचनाकारों को भी इस प्रक्रिया से जोड़ें .
इसी कड़ी में भाई ओम प्रकश पांडे''नमन'' जी अब हिंदी ब्लागिंग क़ी दुनिया से जोड़े जा चुके हैं . आप उनके ब्लॉग http://namanbatkahi.blogspot.com/2010/05/blog-post.हटमल पर जाकर उनके विचारो से अवगत हो सकते हैं.
मुझे पूरा विश्वाश है क़ि आप को उनका ब्लॉग जरूर पसंद आएगा . नमन क़ी बतकही में सहमति का साहस और असहमति का विवेक आप को हमेशा दिखाई देगा .
उन्ही क़ी एक कविता आप लोगों के लिए
भले बाँट दो तुम हमें सरहदों में
भले बाँट दो तुम हमें मजहबों में
भले खीँच दो तुम लकीरें जमीं पर
नहीं बाँट पाओगे दिल को हदों में !
नहीं बाँट पाओगे तुम इन गुलों को
यहाँ भी खिलेंगे वहां भी खिलेंगे
नहीं बाँट पाओगे तुम चाँद तारे
ये यहाँ भी उगेंगे वहां भी उगेंगे !
जहाँ तक चलेंगी ये ठंडी हवाएं
जहाँ तक घिरेंगी ये काली घटायें
जहाँ तक मोहब्बत का पैगाम जाये
जहाँ तक पहुंचती हैं मेरी सदायें !
वहां तक न धरती गगन ये बंटेगा
वहां तक न अपना चमन ये बंटेगा
न तुम बाँट पाओगे मेरी मोहब्बत
न तुम बाँट पाओगे ये दिलकी दौलत!
भले बाँट दो तुम जमीं ये हमारी
नहीं बंट सकेंगी हमारी दुवायें !
कभी देश बांटे, कभी प्रान्त बांटे
कभी बांटी नदियाँ, कभी खेत बांटे
खुदा ने बनाया था सिर्फ एक इन्सान
मगर मजहबों ने है इंसान बांटे !
मेरी प्रार्थना है न बांटो दिलों को
न बोवो दिलों में ए नफरत के कांटे!!
Thursday 13 May 2010
तू आज कौन है मेरा भले कभी तू मेरा महबूब था ?
मेरे सवालों पे बड़ी शालीनता से पूंछा तेरा सवाल खूब था ;
तू आज कौन है मेरा भले कभी तू मेरा महबूब था ?
न ही आज तू मेरे किसी काम न आज तेरा कोई रसूख था ,
आज मेरे खैरख्वाह हैं बहुत, क्या तेरा वक़्त तेरे करीब था ?
आवाक था , पर उसका ये सवाल भी मुझे अजीज था ;
मेरे आहत मन से बने ,मेरी तल्ख़ आवाज से बुने ,
मेरे सवालों पे तेरा बड़ी शालीनता से पूंछा सवाल खूब था ;
तू आज कौन है मेरा भले कभी तू मेरा महबूब था ?
मुस्कराते आंसुओं से उसको दी दुवाएं और रुखसत हुआ
राहों में उदासियों ने संबल और काटों ने सुकून दिया ,
मेरी दिल की धड़कन आज मै अपना ही अतीत था ;
मेरे जनाजे को रौंदा उसने जों मेरा सबसे करीब था /
मेरे आहत मन से बने ,मेरी तल्ख़ आवाज से बुने ,
मेरे सवालों पे बड़ी शालीनता से पूंछा तेरा सवाल खूब था ;
तू आज कौन है मेरा भले कभी तू मेरा महबूब था ?
Sunday 9 May 2010
मेरा दिल है बावरा तेरी मुलाकात के लिए ,
मेरा दिल है बावरा तेरी मुलाकात के लिए ,
सिने में जलती मशाल है तेरे प्यार के लिए ;
सोचों में दिन गुजरा यादों में रात ,
मेरी आखें सुनी है तेरे इक ख्वाब के लिए /
Friday 7 May 2010
हवाओं से बात करता रहा मैं /
हवाओं से बात करता रहा मैं ;
आखें बिछा रखी थी राहों में ,
आसमान ताकता रहा मैं ;
कान तरसते रहे चन्द बोल उनके सुने ,
काटों बीच खुसबू तलाशता रहा मैं ;
सुबह फिजाओं से हाल उनका पूंछा ,
भोर की किरणों में उनको पुकारता रहा मैं /
हवाओं से बात करता रहा मैं ;
Thursday 6 May 2010
झुके कंधे आँखों में आंसू लिए ,
झुके कंधे आँखों में आंसू लिए ,
खड़ा एक कोने में चेहरे पे उदासी लिए ,
इंतजार अब भी है उसको की वो पलट आएगा ,
क्या जानता था वो की उसका प्यार बदल जायेगा /
दबी हुई आशाओं से अब लड़ पड़ता है वो ;
क्या पता था की निराशाओं से ना लड़ पायेगा /
झुके कंधे आँखों में आंसू लिए ,
खड़ा एक कोने में चेहरे पे उदासी लिए ,
उस दिल को कभी मोहब्बत सिखाया था उसने ,
उस हंसी के इश्क से दिल के हर कोने को सजाया था उसने ;
उस गुदाज बदन को कभी भावों से संवारा था उसने ,
क्या जानता था वो अनजान बन यूँ ही निकल जायेगा ,
क्या जानता था उसके दिल में पत्थर भी बसाया था उसने ;
झुके कंधे आँखों में आंसू लिए ,
खड़ा एक कोने में चेहरे पे उदासी लिए /
अमरकांत का प्रकीर्ण साहित्य
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लहरें -अमरकांत का नया उपन्यास /amerkant
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