खुली हवाओं में सिमटता है,
सच का क्या कहें यारों,
दबाओगे जितना उतना ही उभरता है /
विरह की पीड़ा , मै अकेला ,धुल अंधड़ ,
रात नीरव ,चाँद निर्मल ,आसुओं का रण,
शाम रक्तिम ,निर्जन है मन ,यादें विहंगम ,
मोह इक व्यथा है ,
प्यार सुख की विधा है ,
लालसा बंधन की ,
चाह है ये ज्वलन की ,
क्यूँ हो विस्मित दुःख की दशा पे ,
क्यूँ हो चिंतित खुद की व्यथा पे ,
आग कब भागे जलन से ,
बर्फ कब पिघली ठिठुरन से ,
नीला अतुल आकाश खुला है ,
सागर विशाल भरा पड़ा है ,
समय निरंतर चल रहा है,
मृत्यु को जीतोगे कैसे ,
प्यार तो हर ओर पड़ा है /
विरह की पीड़ा , मै अकेला ,धुल अंधड़ ,
रात नीरव ,चाँद निर्मल ,आसुओं का रण,
शाम रक्तिम ,निर्जन है मन ,यादें विहंगम ,
नूतन क्या है जो मै लायुं ,
क्या नूतन मै भाव सजायुं ;
नित्य सुबह को नयी है किरणे ,
उनमे क्या मै और मिलायुं ,
नूतन क्या है जो मै लायुं ,
मेरी निजता तुममे है खोयी ,
तेरे सपनों से प्रभुता है जोई ;
नित नए पलों का उदगम हरदम ,
कितने उसमे सपने मै बोयुं ,
नूतन क्या है जो मै लायुं ,
तुझको तकते आखें है सोयी ;
नया है हर पल ,हर छन नया है ,
नयी है शामें सुबह नयी है ,
नया महिना साल नया है ,
क्या नया नया मै जोडूँ यार पुराने ,
क्या मै बदलूं प्यार पुराने ;
नूतन क्या है जो मै लायुं ,
क्या नूतन मै भाव सजायुं ;