Saturday 8 August 2009

आज तुझे फिर जीने का दिल चाहा है /

आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;

आज फिर यादों ने दिल ललचाया है ;

बारिश की फुहारों में तन भीगा है ;

तेरी यादों में मन भीगा है ;

भाव मचले हैं कितनी तमन्नाओं के साथ ;

याद आ रहे हैं गुजरे वाकयात /

क्या खूब घटा छाई थी ;

भीगी जुल्फों ने मासुकी फैलाई थी ;

बारिश की बौछारों ने , बहती बहारों ने ,

हमारे तन की आतुरता बडाई थी ;

मन पे मदहोशी छाई थी ;

मखमली बदन के बड़ते अहसास ;

मेरे शरारती हाथों के बड़ते प्रयास ;

लरजते होठों का तपते होठों से गहराता विस्वास ;

बेकाबू जजबातों का ,दो बदनों के बिच मचाया वो उत्पात ;

बारिश का मौसम और वो तूफानी रात ;

आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;

आज फिर यादों ने दिल मचलाया है /

अभिलाषा-2



तनया तू है मानवता की ,
प्रेम भाव की तेरी काया।
तेरे प्रेम का जोग लिया तो,
जोगी बन वन फिरूं प्रिये ।

दर्द दिया है इतना तो --------------------------



दर्द दिया है इतना तो ,
अब तुम थोड़ा प्यार भी दो ।
आँचल की थोडी हवा सही ,
या बांहों का हार प्रिये ।
अभिलाषा -

Friday 7 August 2009

मेरी अन्तिम साँस की बेला ----------------------------

मेरी अन्तिम साँस की बेला ,
मत देना तुलसी-गंगाजल ।
अपने ओठों का एक चुम्बन ,
ओठों पे देना मेरे प्रिये ।

इससे पावन जग मे पूरे ,
वस्तु ना दूजी कोई होगी ।
इसमे तेरा प्यार भरा ,
और स्वप्न मेरा साकार प्रिये ।

हम जैसों के खातिर ही ------------------


इंतजार हो मौसम का ,
इतना मुझ मे सब्र कँहा ?
हम जैसों के खातिर ही ,
बेमौसम होती बरसात प्रिये ।
-अभिलाषा

लूट लिया उस दिल को ही -------------------

लूट लिया उस दिल को ही
जिसमे तुम मेहमान बने थे ।
सोचा होता मेजबान का ,
कैसा होगा हाल प्रिये ।
-अभिलाषा

Thursday 6 August 2009

बेटियाँ और भारतीय समाज -2




जैसा की मैंने अपने पहले पोस्ट मे बताया की लड़कियों पे जो सामजिक बंधन लगाए गए उनके पीछे उस समय की परिस्थितिया थीफ़िर जब अंग्रेजो का शासन शुरू हुआ तो, उन्होंने अपने मतलब के लिए भारतीयों को पढाना -लिखाना शुरू कियाआधुनिक ज्ञान विज्ञान से भारत का युवा वर्ग परचित हुआउसने शिक्षा के महत्त्व को समझाऔर हम जानते हैं की सन १९०० के बाद से ही सामजिक सुधार आन्दोलन शुरू हो गएराजाराम मोहनराय ,महात्मा फूले,स्वामी दयानंद सरस्वती कुछ ऐसे ही समाज सुधारक थेउन्होंने जिन बातों को ले कर आन्दोलन किए ,उनमे कुछ प्रमुख इस प्रकार के है -


  1. विधवा विवाह

  2. बाल विवाह

  3. अंतरजातीय विवाह

  4. अनमेल विवाह

  5. जातिगत संकीर्णता

  6. अंग्रेजी शिक्षा

  7. दलित शिक्षा

  8. दलितोधार

  9. सती प्रथा

  10. दहेज प्रथा


इसी तरह की कई सामजिक बुराइयों को ले कर आन्दोलन चलाए गएशिक्षा के प्रचार -प्रसार के कारण पढ़ा -लिखा नया मध्यम वर्ग अस्तित्व मे आयालड़कियों ने भी शिक्षा ग्रहण कीवे अपनी अधिकारों से परिचित होने लगीअपने अधिकारों के लिए लड़ने लगीअपनी पसंद -नापसंद जाहिर करने लगीअपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने लगीयह सब भारत की नई तस्वीर थीदो पीढियों के बीच संघर्ष की नई स्थिती थीसरकार नारा दे रही थी की -बेटा -बेटी एक समान , शिक्षा सब का है अधिकारलेकिन पुराने लोग इस बात को पचा नही पा रहे थेयह स्थिती अब भी इस देश मे मौजूद हैयह अलग बात है की इसी देश की इंदिरा गांधी,सरोजनी नायडू ,कल्पना चावला ,पी.टी.उषा,सानिया मिर्जा,महामहिम प्रतिभा पाटिल और किरण बेदी जैसी बेटियों ने पूरी दुनिया मे देश का नाम ऊँचा किया है


समय बदल रहा है ,और हमारी सोच भी बदल रही हैइस देश मे राखी सावंत जैसी लडकियां फ़िर से स्वयम्वर रचने लगी हैं ,वो भी डंके की चोट पेआज लडकियां लड़को के साथ कंधे से कन्धा मिला कर काम कर रही हैंबाजारवाद की बदली हुई परिस्थितियों मे गृहस्थी की गाड़ी पुरूष के साथ मिल के चला रही हैं


आवस्यकता सिर्फ़ इस बात की है की हम पूरी इमानदारी के साथ उनकी आगे बढ़ने मे सहायता करेपुरानी दकियानूसी मान्यताओं को भूलकर सम सामयिक परिस्थितियों के अनुकूल अपनी विचार धारा मे परिवर्तन लायेंहाल ही मे शिक्षा के अधिकार का बिल संसद से पारित हुआ ,यह एक अच्छी पहल हैमहिलाओ के लिए ३३ % आरक्षण वाला विधेयक भी जल्द ही पास हो जाना चाहिए


इस देश की बेटियाँ इस देश के सुनहरे भविष्य का आधार हैंअगर भारत को २१वी सदी मे विश्व की एक महाशक्ति के रूप मे उभरना है तो उसे अपनी बेटियों को शिक्षित,आत्मनिर्भर,खुशहाल ओर हर तरह से सक्षम बनाना ही होगा


Wednesday 5 August 2009

बेटियाँ और भारतीय समाज




भारत देश मे लड़कियों को हमेशा ही दोयम दर्जे का व्यवहार झेलना पड़ा है ,यह सच नही है । कम से कम हमारे वेद-पुराण तो यही कहते हैं ।

यह भारत देश ही है जन्हा स्त्री को देवी मानकर उसकी पूजा सदियों से की जाती है । कहा जाता है की -"जन्हा स्त्रियों का सम्मान होता है ,वन्ही देवता निवास करते हैं । '' बेटियों को घर की लक्ष्मी माना जाता रहा है । उन्हे अपना वर चुनने का अधिकार मिलता रहा । गार्गी और शबरी जैसी स्त्रियों को हम आदि ऋषि माता के रूप मे याद करते हैं । परिवार नामक भारतीय समाज पद्धति मे स्त्रियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है ।
लेकिन धर्म और दर्शन का यह देश लंबे समय तक विदेशी आक्रमण से जूझता रहा ,साथ ही साथ नवीन संस्कृतियों के साथ समन्वय की नीति अपनाता रहा । सामजिक ,आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों ने इस देश मे कई परिवर्तन लाये । जिनमे से एक प्रमुख परिवर्तन रहा स्त्रियों के प्रति सामजिक दृष्टिकोण ।
वह समय जब भारतीय समाज अस्थिरता के दौर से गुजर रहा होगा तो स्त्रियों की सुरक्षा उसकी एक प्रमुख चिंता रही होगी । इसी कारण उसने उनके उपर कई तरह के प्रतिबन्ध लगाए होंगे । जैसे की --

१। स्त्रियों को घर की चार दीवारी मे ही रहने के लिए कहना ।

२। उनका बाहर निकलना बंद करना ।

३। उन्हे शिक्षा से वंचित करना ।


Tuesday 4 August 2009

कल रक्षा बंधन का त्यौहार है -------------------------------


कल रक्षा बंधन का त्यौहार है ,

पर मेरा मन उदास है ।

इसलिए नही की -मुझे राखी कोई नही बांधेगी

बल्कि इस लिए की -यह रिश्ता फ़िर कंही न कंही ,

देश दुनिया के किसी कोने मे ,शर्मिंदा होगा ।

कोई बहिन कल भी शिकार होगी ,

किसी राखी बंधे भाई के द्वारा ही -बलात्कार और न जाने किस किस की ।

कोई बहिन कल भी किसी कोठे पे नंगी होगी ,

किसी राखी बंधे भाई के ही हांथो ।

कल भी किसी शराब घर मे कोई बहिन ,

जिस्म की नुमाईस कर जो पाएगी ,

उसी से किसी भाई के लिए राखी खरीदेगी ,

किसी से रक्षा का वचन लेगी ।

यह सब सोचता हूँ तो खुश हो जाता हूँ ,

यह सोच कर की चलो मैं इन ढकोसलों से बच गया,

क्योंकि मेरी कोई बहिन नही है ।

और जो हैं ,उनकी रक्षा मैं अकेले नही कर सकता ।

नैतिकता जोर मारती है लेकिन -----असमर्थ हूँ ।

ऐसा सम्भव तभी होगा जब ,

संस्कार बचेंगे ,जब हम सीखेगे

रचना ,प्रेम और त्याग ।

जब नियम ,संयम और समर्पण को हम जान पायेंगे ।

अन्यथा होता रहेगा यही ,

एक बहिन से राखी बंधवाकर ,

दूसरी बहिन की कपड़े उतारते रहेंगे हम .

राखी का स्वयंवर बनाम कमाई

राखी सावंत और विवादो का चोली -दामन का साथ है । हाल ही मे उनका नौटंकी भरा स्वयम्वर खूब चर्चित हुआ । अब कई लोग मीडिया के माध्यम से यह कहने मे लगे हैं की राखी ने जो किया वह सब पैसे और trp का खेल था ।
अगर यह सच भी है तो इसमे आश्चर्य की कोण सी बात है ? आज मीडिया के माध्यम से पैसे कमाने मे कौन नही लगा है । जिसे जन्हा मौका मिल रहा है वह कम ही तो रहा है । फ़िर क्या नेता,क्या अभिनेता और क्या हमारा मध्यम वर्गीय और उच् मध्यम वर्गीय समाज । भौतिकता के इस युग मे जो नही कमा रहा वह मूर्ख माना जाता है । राखी समाज की इस सच्चाई से बखूबी वाकिफ हैं, साथ ही उसने गरीबी को भी बहुत करीब से देखा है , इस लिए वह हेर कीमत पे कमाना चाहती है , आप उसे आदर्शो की चासनी मत चटाओ । नही तो वह आप को ठेंगा दिखा देगी । वह वक्त की नब्ज को समझ कर सही तरीके से आगे बढ़ रही है ,आप की नैतिकता उसे दो वक्त की दाल-रोटी भी नही दिला सकती ।
फ़िर वह कोन से दंगे-फसाद करा रही है , कौन सा बम ब्लास्ट करा रही है , कोन सी आतंकवादी गतिविधि कर रही है , कहा जनता को धोखा दे कर अपनी तिजोरी भर रही है ? वह तो बस वही कर रही है जो इस देश की जनता सदियों से चाहती रही है --तमाशा ।
इस देश के लोंगो को हमेशा ही तमासे मे मजा आता रहा , दूसरो पर हंसना इनका शौख रहा है । अपने दामन को पाक-साफ़ बतला कर दूसरो पे कीचड उछालना इन्हे पसंद रहा है। राखी ने अपनी नकारात्मक स्थिति को ही सकारात्मक रूप मे बदल लिया है । इस लिए राखी सावंत को दोष देने से अच्छा होगा की हम अपनी मानसिकता को बदलने का प्रयास करे ।