Saturday 9 May 2009

हमसफ़र कौन है ,कैसे कहे आज हम ?

हमसफ़र कौन है, कैसे कहें आज हम ?
hamsafar kaun है, kaise kahen aaj hum ;
रास्तों में भटके हुए हैं, मंजिल की तलाश है /
raston me bahatke huye hain; manjil ki talsh hai /
साथ तेरा सुखमय है , बात तेरी प्रियकर है ;
sath tera sukhmay hai ,bat teri priykar hai ;
कैसे कहें तू है वो हमसफ़र ,जिसकी मुझे तलाश है;
kaise kahen tu hai wo हमसफ़र, jisaki muje talash hai /
मेरी अनिभिज्ञता पे नाराज न हो ;
meri anibhigyta pe naraj na ho ;
पर रास्ते में ही मंजिल का हिसाब ना हो ;
par पर raste रास्ते me hi manjil ka hisab na ho ;
वाकये कितने अभी टकराने हैं ;
wakaye kitane anjane abhi takarane hai;
राहों में अभी फैसलों के वक्त आने हैं ;
rahon me abhi faisalon ke waqt aane hai;
दुविधाएं अभी कहाँ आई ?
duvidhayen abhi kahan aayi ?
जिंदगी की भूलभुलैया कहाँ छाई ?
jindagi ki bhulbuliya kahan chayi?
रिश्तों में गहराईयाँ अभी आनी है;
riston में गहराईयाँ aani hai ?
वो इक समुंदर है ,या बारिश का फैला हुआ पानी है ?
wo ek samunder hai ya barish ka faila huwa पानी hai है ?
कैसे कहें हमसफ़र मिल गया ?
रास्ते में उलझे हैं ;
rasten me ulaje hai ,
मंजिल की तलाश जारी है /
manjil ki talash jari hai /

Friday 8 May 2009

गुजरा ज़माना , आज का फ़साना /

गुजरा जमाना ,


आज का फ़साना ;


अनकही बातें ,


अधूरे जजबात ,


और वो रात /


अरमानो का मौसम ,


बाहों की जकडन ,


जलता तन ;


बहकता मन ,


सतत प्यास ,


वो भावों का कयास ;


महकी सांसों का बंधन ,


तन से खिलता तन ;


क्या सच क्या सपना ;


रास्ता देखती आखें ,


आखों से आखों की बातें ;


सुबह का इंतजार करती रातें ;


स्पर्श से आल्हादित दिन ,


सामने पाके हर्षित मन ;

प्यार बरसते नयन ,

भावनावों की मदहोशी ;

उसपे तेरी हंसी ,

क्या सच , क्या सपना ;

क्या भाग्य क्या विडम्बना ,

क्या तू है मेरा अपना /


Thursday 7 May 2009

उस रात का गिला क्या करे जब हम तुम साथ न थे

उस रात का गिला क्या करे जब हम तुम साथ न थे ,
उस पल की याद क्या जब हाथों में हाथ न थे ;
चाँद की चांदनी में भी कहाँ अब वो बात है ,
सूरज की रोशनी में भी अँधेरे की छाप है ;
क्या कहे दिल की हालत ए मेरी जिंदगी ,
जब से तुम बिचडे हो बहकता सावन भी उदास है ;

Wednesday 6 May 2009

कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;

कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;
सजाई है जब एक महफ़िल ,
महफ़िल में कभी तो खिलो ;
क्यूँ चुप हो ,क्या बात है,
क्यूँ मुद्दे नहीं मिलते ;
जीवन का हर पल एक बात है ,
क्यूँ बात नहीं करते ;
चुप रहने से कुछ हासिल नहीं होता ,
बिना अपनी बात कहे,
समाज के बदलाव में शामिल नहीं होता ;
गर चीजें बदलनी है बेहतरी के लिए ,
खुल के कहो बात अपनी ,
देश की तरक्की के लिए /

The caste system

In the Jatakas Brahmins are mentioned as traders, hunters and trappers. R P Masani quotes the case of a Kshatriya prince, Kusa, mentioned in one of the Jataka tales, who became an apprentice in turn to a potter, a basket maker, a florist and a cook. Conversely, from even the Vedic days there have been innumerable instances of men born in the lowest rank of caste-society taking to professions which in theory were the monopoly of the other castes. Even the Mauryas royal family came from among the Sudras.” Swami Chidanand Saraswatiji ( ? ) of the India Heritage Research Foundation defines: "The Caste system as you see it today is not was originally simply a division of labor based on personal, talents tendencies and abilities. It was never supposed to divide people. Rather, it was supposed to unite people so that everyone was simultaneously working to the best of his/her ability for the greater service of all. In the scriptures, when the system of dividing society into four groups was explained, the word used is “Varna.” Varna means “class” not “caste.” Caste is actually “Jati” and it is an incorrect translation of the word “varna.” When the Portuguese colonized parts of India, they mistakenly translated “varna vyavasthaa” as “caste system” and the mistake has stayed since then.

Monday 4 May 2009

लौटा है आज वो घर बरसों बाद

लौटा है आज वो घर बरसों बाद ,
हर साल दो साल बाद ,
वो घर आता जरूर था ;
पर लौटा है घर आज वो बरसों बाद /
ख़त या इ मेल तो अपनो को करता था ;
पर वो बस खोखले शब्दों का मायाजाल है मात्र /
उसने अपने फ्लैट में गमले सजाएँ हैं ;
कई छुट्टियाँ शहर के आस पास के पहाडों ,औ पर्यटन स्थल पे बिताएं हैं/
कहाँ पाया उसने गाँव की मिट्टी का अपनापन !
शहर की पार्टियों पर ,नेटवर्क की साइटों पर ,सैकडों मित्र, मैत्रिणी है उसकी ,
कहाँ पाया उसने ;बचपन के दोस्तों की निश्छलता ,अपनापन ;
कैसे पाए अपने वो मचले दिन ?
बचपन की लड़ाई ,वो कसक , उतावलापन ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
कभी फ़ोन ,कभी मोबाइल पे बात कर लिया करता था अपनो से ,
पर कहाँ पाए वो उष्मा दादी की गोद का ,
मामा की सोच का ,
चाचा की डांट का ,
पडोसी के दुलार का ;
माँ की ममता का ,
पिता की कडाई का ,
दादा की रजाई का /
बड़ा आदमी बन गया है अब वो ,
प्यार को कितना तरस गया है वो ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
बिस्तर माँ को जकडे पड़ा है ;
पिता की आखों में खालीपन सा छुपा है ;
बचपन का दोस्ताना ,अपनो का याराना कहीं खो सा गया है /
भाई भाभी विस्मित है ,किस ढंग से पेश आयें ;
सब चाहते तो है अपनापन और हक दिखलायें ;
झूठा दिखावा और भावों का ओथालापन ;
उसका खुद का और अपनो का ;
दोनों को व्यथित किये है ;
इतने सालों को कैसे जोड़े ,
ये प्रश्न भ्रमित किये है /
सालों की अपनी सफलता में ,
बीबी के चाह में ;
बच्चों को पालने में ,
शहर की चमक में ,
भविष्य को निखारने में ;
अपने सुख ,झूठे  दिखावे और विलासों के साये में ;
बिता डाले ;कितने ही सावन , होली दिवाली ;
शहरों की दीवालों में ;
पर लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
आज बीबी का तन शिथिल , मन का वो नही जानता ;
बच्चे अपनी जिंदगी में मस्त ;
समाज और दोस्तों में वाह  वाही है ;
ह्रदय खाली सिर्फ खाली है/
ये उसकी अपनी जिंदगी का खोखलापन,
डरावने सपने सा सामने खडा है ;
और आज उसके सामने practical बनने का  attitude ;
यछ प्रश्न सा सिने में जड़ा है /
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /

मै उससे अपने रिश्ते के वजूद को कैसे झुठलायुं

मै उससे अपने रिश्ते के वजूद को कैसे झुठलायुं ;
इस रिश्ते की हकीकत को खुद को कैसे समझायुं
/ बरसों से मिला नहीं है ,
पर कैसे कह दूँ रिश्ता नहीं है
?हर अहसास से इंकार है तुझको ;
ऐसा कोई पल नहीं, जब तू याद नहीं मुझको /
मेरी हर गम या ख़ुशी का , तुझे ध्यान है रहता
;कभी इतने दूर न हो जाये की पास न आ सके ;
इस पहलू ने एक अनजाने धागे से हमें बांध के रक्खा ;
इतने पास न आ जाये की दुरी में हो मुश्किल ;
इस डर ने हमें अनजान सा रक्खा /
मै उससे अपने रिश्ते के वजूद को कैसे झुठलायुं ;
इस रिश्ते की हकीकत को खुद को कैसे समझायुं /

Sunday 3 May 2009

आज नया क्या दूँ मै किसको

आज नया क्या दूँ मैं किसको ?
प्यार किया था एक सपने से ;
जो कसी ने तोड़ दिया ;
स्नेह दिया था जिस अपने को ;
उसने मुह मोड़ लिया ;
आज नया क्या दू मै किसको ?
विसवास किया था जीवन का जिसपे ;
उसको अपना ही हित प्यारा है ;
याद किया है जिसको हर पल ;
उसका ह्रदय पराया है ;
आज नया क्या दूँ मैं किसको ?

आज का नौजवान

आज का नौजवान
सीना तान के खडा है ,उंचाईयों की तरफ बड़ा है ;
आत्म विस्वास से भरा है,
आज का नौजवान /
मंजिले उसकी धाती है , असंभव की बात नहीं भाती है ;
तेजस्विता से ओतप्रोत है ,धर्म से सचेत है ;
सीमाओं में बन्धता नहीं, कठिनाईयों से रुकता नही ;
अपनी गरिमा जानता है ,स्वतंत्रता की सीमा पहचानता है ;
आज का नौजवान /

Saturday 2 May 2009

The caste system

Lord Krishna as saying, in response to the question— "How is Varna (social order) determined?"

"Birth is not the cause, my friend; it is virtues which are the cause of auspiciousness. Even a chandala (lower caste) observing the vow is considered a Brahman by the gods."

“The four fold division of castes’ “was created by me according to the apportionment of qualities and duties.” “Not birth, not sacrament, not learning, make one dvija (twice-born), but righteous conduct alone causes it.” “Be he a Sudra or a member of any other class, says the Lord in the same epic, “he that serves as a raft on a raftless current , or helps to ford the unfordable, deserves respect in everyway.”


Sardar Kavalam Madhava Panikkar (1896-1963) Indian scholar, journalist, historian from Kerala, administrator, diplomat, Minister in Patiala Bikaner and Ambassador to China, Egypt and France. Author of several books, including Asia and Western Dominance, India Through the ages and India and the Indian Ocean.

He says:

“The fact is that the four-fold caste is merely a theoretical division of society to which tribes, clans and family groups are affiliated. It is a sociological fiction. The earliest available literature gives instances of Brahmins carrying on the professions of medicine, arms and administration."

Friday 1 May 2009

अभ्यर्थना में तेरे निकाल दिए बरसों

अभ्यर्थना में तेरे निकाल दिए बरसों ;
तेरी अनिश्चितता का क्या कहें ,कभी तो खुल के बरसो /
हर बार कुछ आस दे के सिमट जाते हो ;
खुशी के कुछ लम्हे, पर लम्बा बनवास दिए जाते हो /
मजबूरियों से किसी के नावाकिफ नहीं है कोई ;
पर दिल को हर बार उदास किये जाते हो /
भावनावों का ;दुनिया की रीती से ,लोंगों की बुद्धिमत्ता की सीख से;
कब याराना रहा है यार मेरे ?
फिर क्यूँ भावों को हर बार, पराजय का अहसास दिए जाते हो ?