Friday 2 October 2009
शुन्यता है खालीपन है और है अभाव आनंद का ;
Thursday 1 October 2009
गाँधी जी के तीन बंदर
गांधीजी के तीन बंदर राज घाट पे आए.
और एक-एक कर गांधी जी से बुदबुदाए,
पहले बंदर ने कहा-
''बापू अब तुम्हारे सत्य और अंहिंसा के हथियार,
किसी काम नही आ रहे हैं ।
इसलिए आज-कल हम भी एके४७ ले कर चल रहे हैं। ''
दूसरे बंदर ने कहा-
''बापू शान्ति के नाम ,
आज कल जो कबूतर छोडे जा रहे हैं,
शाम को वही कबूतर,नेता जी की प्लेट मे नजर आ रहे हैं । ''
तीसरे बंदर ने कहा-
''बापू यह सब देख कर भी,
हम कुछ कर नही पा रहे हैं ।
आख़िर पानी मे रह कर ,
मगरमच्छ से बैर थोड़े ही कर सकते हैं ? ''
तीनो ने फ़िर एक साथ कहा --
''अतः बापू अब हमे माफ़ कर दीजिये,
और सत्य और अंहिंसा की जगह ,कोई दूसरा संदेश दीजिये। ''
इस पर बापू क्रोध मे बोले-
'' अपना काम जारी रखो,
यह समय बदल जाएगा ।
अमन का प्रभात जल्द आयेगा । ''
गाँधी जी की बात मान,
वे बंदर अपना काम करते रहे।
सत्य और अंहिंसा का प्रचार करते रहे ।
लेकिन एक साल के भीतर ही ,
एक भयानक घटना घटी ।
इस २ अक्टूबर २००९ को ,
राजघाट पे उन्ही तीन बंदरो की,
सर कटी लाश मिली ।
Tuesday 29 September 2009
मेरी जुदाई को और जुदा कैसे करोगे तुम /
Sunday 27 September 2009
सब्र कर कुछ दिन
Thursday 24 September 2009
केशों से ढलकता पानी है ;
केशों से ढलकता पानी है ;
रिमझिम बरसते मौसम की अजब रवानी है ;
महकते फुल हैं ,मदहोशी का शमा है ;
भीगा बदन ,गहरी सांसें अरमां जवां है ;
झिझकती काया है ,उफनते जजबातों की माया है ;
कामनाएं फैला रही हैं अपने अधिकारों को ;
संस्कार की रीतियाँ रोक रही है भावनावों को ;
मन उलझा हुआ है , तन बहका हुआ है ;
डर रह रह के उभर आता है सीमाएं टूट न जायें ;
अरमां आगे बडाते हैं ये लम्हा छुट न जाए ;
स्वर्गिक अनुभूति है पर ज़माने की भी कुछ रीती है ;
प्रिती प्यासी है ख़ुद पे बस कहाँ बाकी है ;
झिझक ,तड़प ,प्यास ,विस्वास ,खुशियाँ और उदाशी हैं ;
आंनद बिखरा पूरे माहोल में है ;
वो सिमटा मेरे आगोस में है ;
मन झूमा तन आह्लादित है ;
बिजलियाँ कौंध रही मनो उल्लासित हैं ;
ह्रदय में द्विक संगीत सा बज रहा है कुछ ;
प्यार की जीत है , बंधन और दूरी झूट है ;
प्यार भी इक पूजा है ,इसके बिना जीवन अजूबा है ;
मिलन भी एक सच है , इश्क भी इक रब है ;
अरमान विजीत है , मन हर्षित है ;
धरती महक रही भीनी खुसबू से ;
पेडों की हरियाली अदभुत है ;
एक अनोखी अनुभूति है छाई ;
वो अब भी है मेरे बाँहों में समाई /
क्या उत्सव है ,क्या है ये लम्हा ;
सांसों का सांसों में मिलना ;
रुक जा वक्त अनमोल ये लम्हा ;
क्या सच है ये ; या है इक सपना /
Monday 21 September 2009
अधीरता का मंजर मुझमे है ;
अधीरता का मंजर मुझमे है ;
अव्यक्त की सहजता तुझमे है ;
नदी का वेग हूँ , मन का आवेश हूँ ;
प्यार का झोखा हूँ , सावन अनोखा हूँ ;
तू बहती हवा है ,बादल और निशा है ;
आखों का धोखा है ;स्वार्थ का सखा है ;
मै भावना से ओतप्रोत हूँ ,पानी का स्रोत हूँ ;
तू बिखरी हुयी माया है ;छल और छाया है ,
तुने सहजता का गुन पाया है /
मै स्थिरता हूँ ,जड़ता हूँ ;
रमा हूँ एक भावः में ;
इसीलिए अधीरता का मंजर पाया है /
हिन्दी लेखको -कवियों की तस्वीरे
Sunday 20 September 2009
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अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
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मै बार -बार university grant commission के उस फैसले के ख़िलाफ़ आवाज उठा रहा हूँ ,जिसमे वे एक बार M.PHIL/Ph.D वालो को योग्य तो कभी अयोग्य बता...