Wednesday 5 August 2009

बेटियाँ और भारतीय समाज




भारत देश मे लड़कियों को हमेशा ही दोयम दर्जे का व्यवहार झेलना पड़ा है ,यह सच नही है । कम से कम हमारे वेद-पुराण तो यही कहते हैं ।

यह भारत देश ही है जन्हा स्त्री को देवी मानकर उसकी पूजा सदियों से की जाती है । कहा जाता है की -"जन्हा स्त्रियों का सम्मान होता है ,वन्ही देवता निवास करते हैं । '' बेटियों को घर की लक्ष्मी माना जाता रहा है । उन्हे अपना वर चुनने का अधिकार मिलता रहा । गार्गी और शबरी जैसी स्त्रियों को हम आदि ऋषि माता के रूप मे याद करते हैं । परिवार नामक भारतीय समाज पद्धति मे स्त्रियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है ।
लेकिन धर्म और दर्शन का यह देश लंबे समय तक विदेशी आक्रमण से जूझता रहा ,साथ ही साथ नवीन संस्कृतियों के साथ समन्वय की नीति अपनाता रहा । सामजिक ,आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों ने इस देश मे कई परिवर्तन लाये । जिनमे से एक प्रमुख परिवर्तन रहा स्त्रियों के प्रति सामजिक दृष्टिकोण ।
वह समय जब भारतीय समाज अस्थिरता के दौर से गुजर रहा होगा तो स्त्रियों की सुरक्षा उसकी एक प्रमुख चिंता रही होगी । इसी कारण उसने उनके उपर कई तरह के प्रतिबन्ध लगाए होंगे । जैसे की --

१। स्त्रियों को घर की चार दीवारी मे ही रहने के लिए कहना ।

२। उनका बाहर निकलना बंद करना ।

३। उन्हे शिक्षा से वंचित करना ।


Tuesday 4 August 2009

कल रक्षा बंधन का त्यौहार है -------------------------------


कल रक्षा बंधन का त्यौहार है ,

पर मेरा मन उदास है ।

इसलिए नही की -मुझे राखी कोई नही बांधेगी

बल्कि इस लिए की -यह रिश्ता फ़िर कंही न कंही ,

देश दुनिया के किसी कोने मे ,शर्मिंदा होगा ।

कोई बहिन कल भी शिकार होगी ,

किसी राखी बंधे भाई के द्वारा ही -बलात्कार और न जाने किस किस की ।

कोई बहिन कल भी किसी कोठे पे नंगी होगी ,

किसी राखी बंधे भाई के ही हांथो ।

कल भी किसी शराब घर मे कोई बहिन ,

जिस्म की नुमाईस कर जो पाएगी ,

उसी से किसी भाई के लिए राखी खरीदेगी ,

किसी से रक्षा का वचन लेगी ।

यह सब सोचता हूँ तो खुश हो जाता हूँ ,

यह सोच कर की चलो मैं इन ढकोसलों से बच गया,

क्योंकि मेरी कोई बहिन नही है ।

और जो हैं ,उनकी रक्षा मैं अकेले नही कर सकता ।

नैतिकता जोर मारती है लेकिन -----असमर्थ हूँ ।

ऐसा सम्भव तभी होगा जब ,

संस्कार बचेंगे ,जब हम सीखेगे

रचना ,प्रेम और त्याग ।

जब नियम ,संयम और समर्पण को हम जान पायेंगे ।

अन्यथा होता रहेगा यही ,

एक बहिन से राखी बंधवाकर ,

दूसरी बहिन की कपड़े उतारते रहेंगे हम .

राखी का स्वयंवर बनाम कमाई

राखी सावंत और विवादो का चोली -दामन का साथ है । हाल ही मे उनका नौटंकी भरा स्वयम्वर खूब चर्चित हुआ । अब कई लोग मीडिया के माध्यम से यह कहने मे लगे हैं की राखी ने जो किया वह सब पैसे और trp का खेल था ।
अगर यह सच भी है तो इसमे आश्चर्य की कोण सी बात है ? आज मीडिया के माध्यम से पैसे कमाने मे कौन नही लगा है । जिसे जन्हा मौका मिल रहा है वह कम ही तो रहा है । फ़िर क्या नेता,क्या अभिनेता और क्या हमारा मध्यम वर्गीय और उच् मध्यम वर्गीय समाज । भौतिकता के इस युग मे जो नही कमा रहा वह मूर्ख माना जाता है । राखी समाज की इस सच्चाई से बखूबी वाकिफ हैं, साथ ही उसने गरीबी को भी बहुत करीब से देखा है , इस लिए वह हेर कीमत पे कमाना चाहती है , आप उसे आदर्शो की चासनी मत चटाओ । नही तो वह आप को ठेंगा दिखा देगी । वह वक्त की नब्ज को समझ कर सही तरीके से आगे बढ़ रही है ,आप की नैतिकता उसे दो वक्त की दाल-रोटी भी नही दिला सकती ।
फ़िर वह कोन से दंगे-फसाद करा रही है , कौन सा बम ब्लास्ट करा रही है , कोन सी आतंकवादी गतिविधि कर रही है , कहा जनता को धोखा दे कर अपनी तिजोरी भर रही है ? वह तो बस वही कर रही है जो इस देश की जनता सदियों से चाहती रही है --तमाशा ।
इस देश के लोंगो को हमेशा ही तमासे मे मजा आता रहा , दूसरो पर हंसना इनका शौख रहा है । अपने दामन को पाक-साफ़ बतला कर दूसरो पे कीचड उछालना इन्हे पसंद रहा है। राखी ने अपनी नकारात्मक स्थिति को ही सकारात्मक रूप मे बदल लिया है । इस लिए राखी सावंत को दोष देने से अच्छा होगा की हम अपनी मानसिकता को बदलने का प्रयास करे ।

Monday 3 August 2009

एक अदा यह भी ------------------

अंहकार मत कर

अंहकार मत कर , गलतियों को अधिकार मत कर ;
रिश्तों को मौसम का भाग मत कर ;
अपने भाग्य की बेइंतहा आज़माइश मत कर ;
अपने कर्मों की नुमाइश मत कर ;
अपने स्वार्थ को अपना व्यवहार मत कर ;
किसी के प्यार का उपहास मत कर ;
वक़्त का क्या भरोषा , कब ये बदल जाये ;
मन के अंधेरों का , लफ्जों के थपेडों का ;
अपनो की अवहेलना का ;प्यार की उलाहना का ;
खोयी तमन्ना का ;विस्वास मत कर; कब वो लौटें ;
जिंदगी काटों से भर दे ;आखों को आंसू हर लम्हे को उदासी कर दे ;
इश्क की हमेशा आजमाइश मत कर /अपनी नुमाईश मत कर /

माँ की मूरत

पनिहारिन

माँ

झाँसी की रानी

सादगी की मूरत

सादगी और उचे विचारो का साथ

हमेशा देखा गया है की जादा चमक धमक से रहने वालो को ठीक नजरो से नही देखा जाता , लेकिन जो लोग सादगी से रहते है सभी के नजरो में अच्छा समजा जाता है । लोगो के मन मे उनके प्रति अच्छी भावना रहती है , इसका कारण यह है की आज भी सादगी को फैशन की तुलना मे अधिक महत्व है ।
सादा जीवन जीने वाले व्यक्ति मे अपने आप त्याग की भावना आती है । तड़क-भड़क पसंद नही करता ,उसे जंद लम्हों के प्रति खास लगाव नही होता है । दुसरो को देख कर आनन्दित होता है ।
अपने देश को प्रगति के मार्ग पर देखना पसंद करता है, इसलिए अपने आप को भी उसमे जोड़ लेता है ।
विद्यर्थी जीवन मे सादगी का अत्यधिक महत्व है । क्योकि यह वह समय होता है जब बालक बनता या बिगड़ता है।
sansar मे जितने भी mahan पुरूष है वे सब सादगी को महत्व देते है । सादा जीवन uchh विचार की mahima सभी ने gaayi है । गाँधी जी या जितने भी hamre aadrsh है वे सभी ने सादगी को महत्व दिए है ।
भारत की नई pidhi को सादगी से जीवन जीने का prayas करना और अच्छे चरित्र ka nirman करना है। यही कोशिश hame karni है।
taki iss bheed मे भी अपने आप को संतुलित कर सके और सही chunao कर सके.