Tuesday 24 March 2009

नैनो के फायदे और नुक्सान

टाटा मोटर्स का ६ साल पुराना सपना साकार हो गया और नैनो कार बाजार मे आ गई । अब सवाल यह उठता है की इसके फायदे और नुक्सान क्या -क्या हैं ?


अगर बात फायदे की करे तो कहा जा सकता है की -




  1. देश के मध्यम वर्ग का कार मे घूमने का सपना नैनो कार की वजह से पुरा हो गया । साथ ही साथ आम आदमी तक कार पहुँच सकी .isksathikइ

  2. दूसरी बात यह की इससे रोजगार के नए अवसर भी देश मे लोंगो को मिलेंगे ।

अब अगर दूसरी दृष्टी से सोचा जाये तो टाटा की नैनो को प्राथमिकता का निर्णय ग़लत भी लगता है । एक ऐसे समय मे जब पूरी दुनिया मे मंदी छाई हुई है तो देश के मध्यम वर्ग को कार देना कौन सा सार्थक निर्णय है ?

दूसरी बात हमारी ऊर्जा संकट की है । पेट्रोलियम पदार्थों की कमी की है । बुनियादी सुविधावों के आभाव की है । इन सब को भूल कर नैनो का स्वागत करना इतना आसन नही है ।

वैसे आप इस बारे मे क्या सोचते हैं ?


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Sunday 22 March 2009

आज से साहित्य का महा-कुम्भ द्वारका(गुजरात) मे -------

हिन्दी साहित्य समेलन प्रयाग का ६१ वां अधिवेशन और परिसंवाद आज २२ मार्च से गुजरात के द्वारका मे सुरु हो रहा है । यह सम्मलेन २४ मार्च २००९ तक चलेगा । देश भर से करीब ५०० से अधिक हिन्दी साहित्यकारों और विद्वानों के इस सम्मलेन मे सामिल होने की सम्भावना है ।

कार्यक्रम पुस्तकालय टाऊन हाल ,हरी प्रेम मार्ग ,द्वारका मे होगा । अधिक जानकारी के लिये शैलेस भाई नरेन्द्र भाई ठाकर से ०९४२८३१५४०३ इस मोबाइल पे संपर्क किया जा सकता है ।

Friday 20 March 2009

आतंकवाद के ख़िलाफ़ हिन्दी गीतों की सुरांजलि -आलोक भट्टाचार्य

अगर आप 26-3-2009 की शाम मुंबई मे हैं और अपनी शाम को यादगार बनाना चाहते हैं तो आप शाम ५.३० बजे मानिक सभागृह हाल ,लीलावती हॉस्पिटल के सामने,बान्द्रा पूर्व मे आना होगा ।
यंहा हिन्दी गीतों की एक सी.डी का लोकार्पण नूरजंहा के हांथो होगा । इन गीतों को लिखने का काम श्री आलोक भट्टाचार्य ने किया है । गीतों को अपनी आवाज से सवार हाय -सुरेश वाडेकर.साधना सरगम,मोहमद अजीज़ और जावेद अली ने ।
इस अवसर पे कई जाने-माने लोग भी उपस्थित रहेंगे । आप का भी स्वागत है इस साहित्यिक और संगीतमय आयोजन मे ।

Thursday 19 March 2009

अपनी राह बनाने को ---------------

अपनी राह बनाने को
मैं तो अकेला चल निकला
मंजिल का कहना मुस्किल है ,
पर साथ है मेरे राह प्रिये ।


आयेंगे जितने भी सब का
द्वार पे मेरे स्वागत होगा
जाना जो भी चाहेगा,
हर वक्त है वो आजाद प्रिये ।



इतनी अगर सजा दी है
तो फ़िर थोड़ा प्यार भी दो
आँचल की थोड़ी हवा सही ,
या बाँहों का हार प्रिये ।


तेरे-मरे रिश्ते जितना
उम्मीद से मेरा रिश्ता है ।
कितनी लम्बी प्यास है मेरी ,
पनघट बन तू देख प्रिये ।

भावों का यह वंदन पूजन --------

अनुग्रह की अभिलाषा यह
तुमको देव बनाती है
भावों का यह वंदन पूजन
कर लेना स्वीकार प्रिये


मेरी सारी इच्छायें
तुमसे ही तो जुड़ती हैं
फ़िर क्यों और किसी ठाकुर के
द्वार का घंट बजाऊँ प्रिये

जीत -जीत कर जीवन मे
चाहे जो भी हासिल कर लो
पर प्यार जीतने के खातिर
हार यंहा अनिवार्य प्रिये

खो कर ही सबकुछ
प्यार को पाना होता है
इसीलिये तो कहता हूँ
प्यार को मैं सन्यास प्रिये

मीठी -मीठी तेरी बोली

मीठी -मीठी तेरी बोली
मन को मोहित करती है
अंदर ही अंदर मै हर्षित
करके तुझको याद प्रिये


उषा की लाली मे ही
नया सवेरा खिलता है
तिमिर भरी हर रात के आगे
रश्मिरथी उपहार प्रिये


पहले कितना शर्माती थी
अब तुम कितना कहती हो
मुझसे मिलकर खिलती हो
लगती हो जैसे परी प्रिये


मरे अंदर जितना तुम हो
उतना हे मैं तेरे अंदर
हम दोनों मे मैं से जादा
भरा है हम का भाव प्रिये

Wednesday 18 March 2009

मै न रहूँगा सच है लेकिन --------

दे कर प्रेम ताल पे ताल
मस्ती भरी चलू मैं चाल
नव पर नव की अभिलाषा
मन मे मेरे भरी प्रिये


मैं न रहूँगा सच है लेकिन
रहेगी मेरी अभिलाषा
एक ह्रदय की दूजे ह्रदय से
यह करेगी सारी बात प्रिये


जो हम चाहें वो मिल जाये
ऐसा अक्सर कब होता
जो है उसमे खुश रहना
खुशियों की सौगात प्रिये


मंजिल की चाहत मे हम
लुफ्त सफ़र का खोते हैं
है जिसमे सच्चा आनंद
उसी को खोते रहे प्रिये

तकलीफों से डर के हम
नशे मे डूबा करते हैं
बद को बदतर ख़ुद करते
फ़िर किस्मत कोसा करें प्रिये

प्रेम भरे मन की अभिलाषा
मधुशाला मे ना पुरा होती
प्रेम को पूरा करता है ,
जग मे केवल प्रेम प्रिये

मदिरालय मे जानेवाला
कायर पथिक है जीवन का
जो संघर्षो को गले लगाये
कदमो मे उसके जग है प्रिये

जिसके जीवन मे केवल
पैमाना-शाकी -बाला है
जीवन पथ पे उसके गले मे
सदीव हार की माला प्रिये

Tuesday 17 March 2009

मेरी अन्तिम साँस की बेला

मेरी अन्तिम साँस की बेला
मत देना तुलसी गंगाजल
अपने ओठों का एक चुम्बन
ओठों पे देना मेरे प्रिये


इससे पावन जग मे सारे
वस्तु नही दूजी कोई
इसमे प्रेम की अभिलाषा
और उसी का यग्य प्रिये


मेरी अन्तिम शव यात्रा मे
राम नाम तुम सत्य ना कहना
प्रेम को कहना अन्तिम सच
प्रेमी कहना मुझे प्रिये


चिता सजी हो जब मेरी तो
मरघट पे तुम भी आना
आख़िर मेरे प्रिय स्वजनों मे
तुमसे बढ़कर कौन प्रिये ?

श्राद्ध मेरा तुम यूँ करना
जैसे उत्सव या त्यौहार
पर्व अगर जीवन है तो
महापर्व है मृत्यु प्रिये

इंतजार हो मौसम का
इतना धैर्य नही मुझमे
हम जैसो के खातिर ही
होती बेमौसम बरसात प्रिये

मेरा अर्पण और समर्पण
सब कुछ तेरे नाम प्रिये
स्वास-स्वास तेरी अभिलाषा
तू जीवन की प्राण प्रिये

Thursday 12 March 2009

४ पीढियों का कवि नीरज

नीरज का नाम कौन नही जनता है ,हिन्दी साहित्य मे ? लेकिन जब मैने बाल कवि बैरागी के मुह से यह सुना की आज भी जिस कवि को ४ पीढियां एक साथ सुनती हैं ,वह कोई और नही बल्कि कवि नीरज ही हैं।
नीरज के बारे मे उन्होने बताया की एक बार जब नीरज के साथ बैरागी जी काव्य पाठ कर रहे थे तो बैरागी जी ने कहा की- आप के मर जाने के बाद हम लोग तो आप को कन्धा भी नही डे पायेंगे ।
इस पर नीरज ने पुछा -क्यों आप ऐसा क्यों कह रहे हो ?
बैरागीजी बोले- जब आप की शव यात्रा निकले गी तो हमे कन्धा देने के लिये बिना चप्पलो के चलना होगा ,और ऐसे मे आप की प्रेमिकाओं की टूटी हुई चूडियाँ हमारे पैरों मे चुभेंगी । तो आप ही बताओ हम कैसे चल पायेंगे ।
इतना सुनते ही नीरज ने बैरागी जी को गले लगा लिया । बात मजाक मे khatm ho gai । lekin jo niraj ko kareeb say jaantay hain vo इस बात की गहराई को समझते हैं । प्यार मे कोई बरबाद नही होता । प्यार हमे उदार बनता है ,samvaidansheel banata hai , yahaa tak ki maanav ko मानव भी प्रेम ही बनता है । प्रेम से बचो मत --------इसमे गहरा उतारने की कोशिस करो । तुम्हारी जय हो गी -------प्रेम करो ---प्रेम बांटो -----------------------------------------------------------------------------------

Wednesday 11 March 2009

होली के रंग -बाल कवि बैरागी के संग

कल की होली मेरे लिये यादगार बन गई ,क्योंकि कल का पूरा दिन मुझे बाल कवि बैरागी जैसे महान कवि के साथ बिताने का अवसर मिला । सुबह ७.३० बजे मोबाइल की घंटी बजी । देखा तो श्री ओम प्रकाश मुन्ना पाण्डेय जी का फ़ोन था । उन्हों ने कहा की मुंबई सेंट्रल जाना है ,बाल कवि जी को लेने ।
मै फटाफट तैयार हो गया । मुन्ना भइया की ही कार से हम लोग मुंबई सेंट्रल पहुंचे .थोडी देर के बाद ही राजधानी एक्सप्रेस आ गई । बैरागी जी को हमलोगों ने रिसिव किया और कार तक ले आये ।
बैरागी जी ने फ़ोन से घर पे सूचना दी की वे पहुँच गये हैं और दो लिखे-पढे लोग उन्हे लेकर जा रहे हैं । फ़िर मोबाइल को दिखाते हुए बोले की -यह वो जनेऊ है जो कान पर चढाते ही आदमी बोलने लगता है । फ़िर हम लोग एक दूसरे से इधर -उधर की बातें करने लगे । उन्होने अपने कुछ मित्रों के नाम लिये जिन्हें मै-और मुन्ना भइया भी जानते थे ,उनसे बैरागी जी की मोबाइल पर ही बात कराइ गयी । जैसे की NAIND किशोर नौटियाल ,सचिन्द्र त्रिपाठी ,आलोक भट्टाचार्य और विजय पंडित .रास्ते मे बैरागी जी की नजर पोस्टर और बैनरों पर बराबर पड़ रही थी । मैं ने कहा -दादा यंहा लोग हिन्दी -मराठी के घाल-मेल के कारण अक्सर गलतियां कर देते हैं । मेरी बात सुनकर उन्होने कहा कि-कोई बात नही है ,हिन्दी की सास्त्रियता का यह समय नही है । जरूरत इस बात की है कि हम इसका जादा से जादा उपयोग करें ,और इसके विकास के लिये सरकार कि तरफ़ देखना बंद करें। बैरागी जी लोकसभा और राज्यसभा दोनों के ही सदस्य रह चुके हैं । वे राजभाषा समिति के सदस्य के रूप मे अपनी कुछ स्मृतियों का जिक्र करते हुवे बतातें हैं कि ---गोविन्द मिश्र भी उनके गुस्से का कारन बने थे । मुंबई मे ही सन १९८६-८७ के आस -पास जब वे संसदीय समिति के सदस्य के रूप मे आयकर विभाग मे आये तो गोविन्द मिश्र की हिन्दी सम्बन्धी शासकीय जवाब देही से नाखुश हुए और खाना खाने से भी INKAAR KAR DIYA POOREE SAMITI NAY .
इसी तरह बैरागी जी ने पूर्व राष्टपति कलाम के सम्बन्ध मे भी बताया कि एक बार उन्हे कलाम जी के हस्ताक्षर वाला एक निमंत्रण मिला ,जिसे उन्होने सिर्फ़ इस लिये अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह निमंत्रण हिन्दी मे नही अंग्रजी मे था .इसी तरह कि कई बाते उन्होने बताई । आध्यात्म ,वेद और आयुर्वेद के साथ -साथ अहिंसा दिवस को वे भारत की तरफ़ से पूरी दुनिया को दिया गया श्रेष्ठ उपहार मानते हैं ।
बैरागी जी ने अपने बारे मे बताया कि वे एक भिखमंगे परिवार से आते हैं । ४ साल कि उम्र मे उन्हें जो पहला खिलौना मिला वह था -भीख मांगने का कटोरा । उम्र के २४ साल तक उन्होने भीख माँगा । आज भी बैरागी जी कपड़ा मांग कर ही पहनते हैं । ऐसी ही कई बाते करते हुए हमलोग अम्बरनाथ के प्रीतम होटल तक पहुंचे । वहा हम तीनो ने दोपहर का खाना खाया .फ़िर हमने बैरागी जी से कहा कि वे अपने रूम मे आराम करें ,शाम कोहम फ़िर मिलेंगे ।
शाम को कवि सम्मेलन था । मैं और मुन्ना भइया फ़िर शाम को बैरागी जी का काव्य पाठ सुनने अम्बरनाथ पहुंचे .बैरागी जी ने जब काव्य पाठ शुरू किया तो समां बंध गया । पनिहारिन .दिनकर के वंसज और ऐसी ही कई रचनायें वे रात २ बजे तक सुनाते रहे । उनकी यह पंक्ति याद रह गई कि --
''मैं कभी मरूँगा नही , क्योंकि मैं ऐसा कुछ करूँगा नही "
रात ३ बजे मै और मुन्ना भाई जब वापस निकले तो हमे याद आया कि रात का खाना हमने खाया ही नही है और भूख काफ़ी लगी है । कल्याण आकर रातभर चलने वाली एक दूकान पर हमने आलू कि टिकिया खाई और चाय पी । ३.४५ पर मैं घर पहुँचा और सोने कि कोशिस करने लगा । पर आँखों मे बालकवि जी दिखाई पड़ रहे थे और कानो मे उनकी यह पंक्तियाँ सुनाई पड़ रही थी ---
''अपनी ही आहूती देकर ,स्वयम प्रकाशित होना सीखो
यश-अप्य्स जो मिल जाये ,उसको हस कर सहना सीखो ''------------








Monday 9 March 2009

निरर्थक परीक्षा प्रणाली

इस साल पहली बार मुंबई बोर्ड के १२ कक्षा के प्रश्न पत्र जांचने के लिये मिले ,वो भी पूरे २५० । साथ ही साथ यह आदेश भी मिला की मै जल्द से जल्द उन्हे मोडरेटर के पास भिजवा दूँ । मै परेसान था की इतने जल्दी मैं २५० प्रश्न पत्र किसी जांच सकता हूँ ?
परेसान हो कर मैं ने अपने मोडरेटर को फ़ोन किया । उन्हे अपनी परेसानी बताई । इस पर उन्होने कहा की ''तुम २५० पेपर लेकर परेसान हो, मुझे तो १७०० पेपर निपटाने हैं । जल्दी करो ---"
मैं ने भी निपटा ही दिया २५० प्रश्न पत्र । लेकिन यह सोच कर परेसान था की जो विद्यार्थी साल भर मेहनत करते हैं .उन्हें इस तरह निपटा देना कितना सही है ? आख़िर यह व्यवस्था किस काम की है ? इसका इलाज होना ही चाहिये । परीक्षा के नाम पे यह दिखावटी व्यवस्था ख़त्म होनी चाहिये ।
आप इस बारे मे क्या सोचते हैं ?