Wednesday 26 November 2014
Thursday 20 November 2014
बनारस के बुनकरों की वर्तमान स्थिति
मार्क
ट्वेन ( Mark Twain )
ने लिखा है कि बनारस इतिहास से भी पुराना है । इतिहास और परंपरा दोनों ही
दृष्टियों से विश्व की प्राचीनतम नागरियों में से एक है काशी । अर्ध चंद्राकार रूप
में गंगा किनारे बसा हुआ यह शहर महाश्मशान है तो आनंदवन भी । माँ अन्नपूर्णा और
संकटमोचन हनुमान जी यहीं हैं । अक्खड़-फक्कड़-झक्कड़ स्वभाव बनारसियों को विरासत में
मिला है । यह बाबा भोलेनाथ की नगरी है ।
बुद्ध की उपदेश स्थली है । कई तीर्थंकरों
की जन्मस्थली है । कबीर,रैदास और तुलसीदास इसी काशी में रहे
हैं । प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद,भारतेन्दु,आचार्य रामचन्द्र शुक्ल,आचार्य हज़ारीप्रसाद और शिवप्रसाद
सिंह जी जैसे साहित्यकार इसी काशी में रहे । इसी काशी का नाम बनारसी वस्त्र उद्योग
के लिये भी सदियों से जाना गया ।
बनारसी साड़ियों एवं वस्त्र उद्योग का उल्लेख 600
ई.पू. से मिलता है । इसके रेशम उद्योग की चर्चा 12वीं- 14वीं शताब्दी में होने लगी
थी । मुगलों और पर्सिअन संस्कृति का इसपर तगड़ा प्रभाव पड़ा । 20वीं शताब्दी तक
बनारसी साड़ियों का खूब नाम हो गया । बुनकरों के लिए “
जुलाहा” शब्द प्रचलित रहा है जिसका अँग्रेजी
में अर्थ होगा – Ignorant Class । इनके मूल निवास के बारे
में लिखित प्रमाण नहीं है लेकिन ये अपने आप को अरब से स्थानांतरित मानते हैं और अब
अपने आप को “ अंसारी / अंसार ” कहलवाना
पसंद करते हैं । प्रो. मुहम्मद तोहा ‘बनारस के जुलाहे’
नामक अपने लेख में मानते हैं कि 1092 ई. के आस पास मुसलमान काशी आए
। उनका काशी आगमन बहराइच के गाजी सालार मसूद की सैन्य टुकड़ी के रूप में हुआ जो
काशी के तत्कालीन राजा से लड़ने के लिए मलिक अफ़जल अलवी के नेतृत्व में आए थे । इस
लड़ाई में हारने के बाद इन मुसलमानों ने काशी के पास ही रहने की अनुमति मांगी ।
अपनी आजीविका चलाने के लिए इन्होंने काशी में प्रचलित वस्त्र व्यवसाय को अपनाया ।
आजीविका के लिए वस्त्र व्यवसाय को चुनने के पीछे एक प्रमुख कारण यह था कि इन
मुसलमानों में कई ऐसे थे जो ईरान,अफगानिस्तान और मध्य एशिया
से थे और वस्त्र व्यवसाय उनका परंपरागत कार्य था ।आज बनारस के बुनकरों की संख्या
05 लाख के करीब है । घर में करघा रखकर या कोठीदार/ मास्टर के यहाँ जाकर ये बुनकर काम करते है ।
सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग, भारत सरकार की रिपोर्ट
के अनुसार जौनपुर,गाजीपुर,चंदौली,मिर्जापुर और संत रविदास नगर जिलों की सीमाओं
से बनारस जुड़ा हुआ है । इसका क्षेत्रफल 1535 स्क्वायर किलो मीटर तथा आबादी 31.48
लाख है । यहाँ आबादी का घनत्व बहुत अधिक है । इस बात को आंकड़े में इसतरह समझिये कि
बनारस में प्रति स्क्वायर किलो मीटर में 2063 व्यक्ति हैं जबकि पूरे राज्य का औसत
689 प्रति स्क्वायर किलो मीटर का है । बनारस में मुख्य रूप से तीन तहसील हैं – वाराणसी,पिंडरा और राजतालाब जिनमें 1327 के क़रीब गाँव हैं । 08 ब्लाक,702 ग्राम पंचायत और 08 विधानसभा क्षेत्र हैं । 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ
की पुरुष आबादी 19,28,641 और महिला आबादी 17,53,553 है । इस क्षेत्र में 122 किलोमीटर रेल मार्ग, नेशनल
हाइवे – 100 किलोमीटर, और 2012-2013 तक 30,50,000 मोबाइल कनेकशन थे । 2012-13 तक के आकड़ों के अनुसार ही यहाँ ऐलोपैथिक
अस्पताल – 202, आयुर्वेदिक अस्पताल- 26, यूनानी अस्पताल- 01, कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर -08,प्राइमरी हेल्थ सेंटर – 30 और प्राइवेट हास्पिटल – 70 हैं । बनारस हिन्दू
यूनिवर्सिटी से जुड़ा नवनिर्मित ट्रामा सेंटर शायद देश का सबसे बड़ा सेंटर हो जिसका
कार्य अभी हो रहा है । यहाँ प्राइमरी स्कूल – 1851, मिडल
स्कूल – 989, सीनियर और सीनियर सेकंडरी स्कूल – 409 तथा
महाविद्यालय – 21 हैं ।
बनारस / काशी / वाराणसी / इत्यादि नामों से
जानी जाने वाली भगवान भोलेनाथ की यह नगरी इन दिनों देश के प्रधानमंत्री /
प्रधानसेवक श्री नरेंद्र मोदी जी के अपने संसदीय क्षेत्र के नाते भी चर्चा के
केंद्र में है । हर हर महादेव के नारे से सदा गुंजायमान रहनेवाला यह नगर पिछले
लोकसभा चुनाव में हर हर मोदी,घर घर मोदी के नये नारे के साथ
भारत की तस्वीर और तक़दीर बदलने की प्रतिबद्धता का मुख्य केंद्र रहा । परिणाम
स्वरूप स्वयं काशी के कायाकल्प को निखारने और सवारने की कोशिशें तेज हो गयी हैं ।
क्योटो बनने का काशी का नया सपना है । गंगा की सफ़ाई, घाटों
की सफ़ाई, मेट्रो, रिंग रूट इत्यादि के
साथ – साथ बनारस के बुनकरों के लिये भी कई योजनाएँ- आयोजन- घोषणाएँ सामने हैं । इन
परिस्थितियों के परिप्रेक्ष में बनारस के बुनकरों की वर्तमान स्थिति को समझने का
प्रयास इस शोधपत्र के माध्यम से कर रहा हूँ ।
अपने असंगठित क्षेत्र के
विस्तार और इसके महत्व की दृष्टि से भारत दुनियाँ मेँ अनोखी अर्थव्यवस्था वाला देश
है । असंगठित से अभिप्राय उस विशाल व्यवस्था की कार्यप्रणाली से है जो सरकारी रूप
से पंजीकृत नही है । इस के परिचालन मेँ परोक्ष रूप से सरकार का कोई नियम लागू नहीं
होता । एक अनुमान के हिसाब से भारत देश के 92.5% लोगों की आजीविका अपंजीकृत है जो
देश के सकल घरेलू उत्पाद(GDP) में दो तिहाई
का योगदान करती है । अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संघ(ILO) आमतौर से
गरिमाहीन कार्यों की श्रेणी में इसे रखता है । इसका नियमन समाज करता है न की सरकार
। जिस तरह आज़ का कॉर्पोरेट वर्ड अपने प्रबंधन की तारीफ़ें लूटता, कॉर्पोरेट कल्चर जैसी नई प्रणाली का हल्ला मचाया जाता है, उसी कॉर्पोरेट वर्ड का 40 से 80% श्रम कार्य असंगठित है इसपर चर्चा नहीं
होती ।
समान्य तौर पर यह एक धारणा सी
बन गयी है कि असंगठित क्षेत्र का श्रमबल अकुशल,
अप्रशिक्षित एवं अल्प लाभ देने वाला होता है । लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है । यह
सच है कि यह वर्ग औपचारिक रूप से शिक्षित या प्रशिक्षित नहीं होता लेकिन पीढ़ी दर
पीढ़ी चले आ रहे अपने कार्य में ये कुशल होते हैं । विश्व बैंक और विश्व बौद्धिक
संपदा संगठन जैसी संस्थाएं भी यह मानती हैं कि स्वदेशी ज्ञान और पारंपरिक कुशलता
का एक ज्ञान भंडार इस असंगठित क्षेत्र के पास सदैव से रहा है । कृषि, हस्तकला,हस्तशिल्प,वाद्ययंत्र,खाद्य,कपड़ा,प्लास्टिक,धातु,निर्माण,यंत्र,चिकित्सा और सेवा जैसे क्षेत्रों में हमेशा से इन्होंने अपनी मजबूत
उपस्थिति दर्ज़ की है । हर हुनर वाले हांथ को काम का जो सपना वर्तमान में
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी दिखा रहे हैं वह सच साबित हुआ तो देश की
सामाजिक और आर्थिक तस्वीर बदल जायेगी । यह वह सपना है जो भारतीय समाज को ज्ञान
समाज़ में बदलने की ताकत रखता है । बनारसी बुनकर समाज़ भी शताब्दियों से अपनी कला का
संरक्षण करता आ रहा है । आज आवश्यकता इस बात की है कि सरकार इनके संरक्षण की ठोस
और व्यापक पहल करे ।
वर्तमान सरकार कई योजनाओं पर काम कर रही है ।
उन्हीं में से एक योजना है – प्रधानमंत्री धन – जन योजना । इस योजना से बुनकरों का
सीधा न सही पर संबंध ज़रूर है । 2011 की जनगणना के अनुसार देश के 24.67 करोड़
परिवारों में सिर्फ 14.48 करोड़ ( 58.69%) परिवारों के पास ही बैंकिंग सुविधा
उपलब्ध है । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा प्रधानमंत्री जन –धन योजना
शुरू की गयी और आकड़ों के अनुसार अभी तक 7 करोड़ लोगों के बैंक खाते खोले गए हैं ।
इस योजना के तहत नवंबर 2014 तक लगभग 5,400 करोड़
रूपये बंकों में जमा किये गए । जब कि एक सच्चाई यह भी है कि इस योजना के तहत खुले
खातों में से 74% खाते “ज़ीरो बैलेंस” के साथ पाये गए । यह जानकारी RTI के द्वारा दी गयी जिसे टाइम्स ऑफ इंडिया, वाराणसी
अखबार ने 19 नवंबर को छापा । यह भी एक बड़ी
महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी योजना है । बिचौलियों से बचाकर सीधे लाभ पहुंचाने की
भावी योजनाओं का जब भी विस्तार और कार्यान्वयन होगा उस समय यह योजना बड़ी सहायक
सिद्ध होगी । बुनकरों को सीधे लाभ पहुंचाने के क्रम में भी यह सहायक हो सकती है ।
भारत में हथकरघा की संख्या 38
लाख के करीब मानी जाती है । बुनकरों और इस व्यवसाय से सम्बद्ध श्रमिकों की संख्या
43.32 लाख के करीब आंकी जाती है । पूर्वोत्तर क्षेत्र में लूमों की संख्या 15.50
लाख के करीब है । पूर्वी उत्तर प्रदेश अपने हथकरघा उद्योग के लिए जाना-जाता रहा है
।हथकरघा बनारस की प्राचीनतम कारीगरी है । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की पहल पर
हाल ही में बनारस के बडालालपुरा में करीब 08 एकड़ भूभाग पर 170400 स्कायर फिट में
व्यापार सुविधा सेवा केंद्र 500 करोड़ रुपये की लागत से बनना सुनिश्चित हुआ है । यहाँ
के लाखों लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं । इस योजना के आते ही बदलालपुरा इलाके के
लगभग 03 किलोमीटर की परिधि में ज़मीनों के भाव आसमान छूने लगे हैं । किसान और
स्थानीय लोग खुश हैं । उनकी आखों में भविष्य के सुनहरे सपने हैं जो विकास,रोजगार,सम्मान और प्रगति से जुड़े हैं । बरेली,लखनऊ,सूरत,कच्छ,भागलपुर और मैसूर में
भी इसी तर्ज पर व्यावसायिक केन्द्रों के गठन की मंजूरी केंद्रीय बजट में पहले ही
दी जा चुकी है ।
एशियन ह्यूमन राइट कमीशन की
2007 के रिपोर्ट में यह बताया जा चुका है कि बुनकर और उनके परिवार टी.बी.(Tuberculosis) की बीमारी से मर रहे हैं । आर्थिक विपन्नता में ये रिक्शा खीचने,नाव चलाने जैसे कार्य करने लगते हैं जिससे इनका बीमार शरीर और बीमार हो
जाता है । ये या तो इलाज में लापरवाही दिखाते हैं या फ़िर आर्थिक तंगी की वजह से इलाज़
करवाते ही नहीं । Designated Microscopy Center (DMC) वाराणसी जिले के
08 ब्लाक में अपनी सुविधा 2007 से प्रदान कर रहे हैं लेकिन इसकी जानकारी आज़ भी कई
बुनकरों को नहीं है । Revised National
Tuberculosis Control Programme बड़े व्यापक स्तर पर शुरू किया गया था और इसका लोगों को लाभ भी मिला ।
लेकिन बीमार बुनकर के इलाज़ से उसके परिवार की जरूरतें नहीं पूरी हुई । उनका जीवन
संघर्ष यथावत रहा । समय-समय पर सरकारी – गैर सरकारी संगठनों द्वारा सरकारी योजनाओं
की जानकारी बुनकरों तक पहुंचाई जाती है जिसका लाभ बुनकर उठा सकते हैं । टेक्नालजी
अपग्रडेशन फ़ंड योज़ना,ग्रुप वर्कशेड योज़ना,टेक्सटाइल पार्क योज़ना,समूह बीमा योज़ना,शिक्षा सहयोग योज़ना,महात्मा गांधी बुनकर बीमा योज़ना, ICICI लोमबार्ड हेल्थ स्कीम, Integrated Handloom Cluster Development scheme और
हेल्थ कार्ड जैसी अनेकों अन्य योजनाओं की जानकारी बुनकरों तक पहुंचाने का
प्रयास किया जाता है । क्राफ्ट काउंसिल आफ़ इंडिया, क्राफ्ट
रिवाइवल ट्रस्ट, क्राफ़्टमार्क, PVCHR, CRY & ASHA और AHRC जैसे कई गैर सरकारी संगठन इन बुनकरों की
भलाई के लिये कार्य कर रहे हैं ।
बहुत सारी रिटेल चैन चलाने वाली कंपनियाँ
इधर बुनकरों की सहायता के लिए आगे आयी हैं । इन्होने नियमित रूप से ख़रीदारी के कुछ
अनुबंध बुनकरों के साथ किये हैं । इन कंपनियों में बिग बाजार, फैब इंडिया , केलिको, पैंटलून
इत्यादि हैं । Entrepreneurship Development Institute Of India ( EDI ) इस तरह के औद्योगिक करार में सहायता कर रहा है । पूर्व प्रधानमंत्री
माननीय मनमोहन सिंह जी ने 1000 करोड़ की धन राशि बुनकरों के लिए सस्ती ब्याज दरों
पर कर्ज़ के लिये उपलब्ध कराई थी । 25,000 तक के कर्ज़ वो बिना
किसी गारंटी के ले सकते थे । वर्तमान सरकार भी बुनकरों के विकास के लिये गंभीर
दिखाई पड़ रही है । माननीय प्रधानमंत्री जी स्वयं बनारस से सांसद हैं तो लोगों को
उनसे उम्मीद भी अधिक है ।
बनारस के 90% से भी अधिक बुनकर
मुस्लिम समुदाय से हैं । शेष अन्य पिछड़ा वर्ग या फ़िर दलित हैं । इन बुनकरों की कुल आबादी लगभग 5 लाख के आसपास मानी
जाती लेकिन कोई अधिकृत सूचना इस संदर्भ में मुझे नहीं मिली है । अलईपुरा,मदनपुरा,जैतपुरा,रेवड़ी तालाब,लल्लापुरा,सरैया,बजरडीहा और
लोहता के इलाकों में बुनकर आबादी अधिक है । सरकारी दस्तावेज़ों में ये मोमिन अंसार
नाम से दर्ज हैं । अधिकांश रूप से ये सुन्नी संप्रदाय के हैं । इनके अंदर भी कई
वर्ग हैं । जैसे कि बरेलवी, अहले अजीज,
देवबंदी इत्यादि । इनकी अपनी जात पंचायत व्यवस्था भी है । सँकरे घर, आश्रित बड़े परिवार, आर्थिक तंगी और गिरते स्वास्थ
के बीच Bronchitis, Tuberculosis, Visual Complications, Arthritis, के
साथ साथ दमा की बीमारी बुनकरों में आम है । पिछले कुछ सालों में एड्स जैसी बीमारी
से ग्रस्त मरीज़ भी मिले हैं । कम उम्र में शादी, बड़ा परिवार,धार्मिक मान्यताएं, पुरानी शिक्षा पद्धति जैसी कई
बातें इनकी दिक्कतों के मूल में हैं । PVCHR नामक संस्था ने
अपने अध्ययन में पाया है कि 2002 से अब तक की बुनकर आत्महत्याओं की संख्या 175 से
अधिक है । इधर इनकी आर्थिक दुर्दशा के जो
प्रमुख कारण रहे हैं, वे निम्नलिखित हैं
·
नये धागे
·
आधुनिक मशीने
·
सरकारी अनुदान अभाव
·
तकनीकी सुविधा
·
बदलता फ़ैशन
·
अधिक लागत कम मुनाफ़ा
·
कच्चे माल की कमी
·
चीन,ढाका एवं दक्षिण भारत के रेशम
व्यवसाय से प्रतिस्पर्धा
·
बिचौलियों की मुनाफ़ाखोरी
·
सरकारी योजनाओं की जानकारी न होना
·
सरकारी भ्रष्टाचार
·
आधुनिकता से दूरी
·
धार्मिक मान्यताएं /परम्पराएँ/ विश्वास
·
बाजार का बदलता स्वरूप
·
कम मासिक आय
·
आश्रित बड़ा परिवार
·
आधुनिक शिक्षा पद्धति से दूरी
·
सरकारी बदलती नीतियाँ
आँकड़े बताते हैं कि सन 1990 से
बनारसी साड़ियों की माँग कम होनी शुरू हुई । वैश्विक उदारीकरण,
मुक्त व्यापार संबंधी समझौते, सरकारी नीतियाँ, फ़ैशन में बदलाव, भारतीय फिल्मों द्वारा बनारसी साड़ी
की जगह विवाह इत्यादि में लहंगा – चोली में नायिका को दिखाना और साड़ियों के
अतिरिक्त अन्य उत्पादों से न जुड़ पाना वे प्रमुख कारण हैं जिनसे इस उद्योग को हानि
हुई । सन1995 से सन1998 तक तत्कालीन देवेगौड़ा सरकार ने घरेलू रेशम उद्योग को बढ़ावा
देने के लिए चीन से आनेवाले सिल्क के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया । लेकिन इसका
परिणाम बनारसी साड़ी उद्योग पर उल्टा हुआ । अब यहाँ के व्यापारी बैंगलुरु/ बैंगलोर
सिल्क का उपयोग करने लगे जिसकी क़ीमत अधिक थी, तो साड़ियों के
मूल्य भी बढ़ गये । दूसरी तरफ प्रतिबंधित चीनी सिल्क की स्म्गलिंग होने लगी और
व्यापारी स्थानीय बुनकरों से उसी सिल्क पर
काम करा के बनारसी साड़ियों को ही “ मेड इन चाइना” के नाम से बाजार में बेचने लगे
जिनकी क़ीमत वास्तविक बनारसी साड़ियों के मुक़ाबले काफ़ी कम थी । यह काम और बड़े पैमाने
पर 1999 के बाद शुरू हुआ जब सरकार ने Chines Plain Crepe Fabrics के आयात की
अनुमति दे दी । ये सिल्क 01 – 1.25 डालर में प्रति मीटर पड़ता था । जब की भारतीय
सिल्क 2.5 – 04 डालर प्रति मीटर पड़ता । यही कारण भी रहा की 2001- 2005 के बीच चीनी
सिल्क का आयात 6500% बढ़ गया । हालांकि इधर इसके आयात में कमी आयी है लेकिन बनारसी
साड़ियों का बाजार बिगाड़ने का खेल बदस्तूर जारी है ।
गुजरात के सूरत में 900,000 पावरलूम हैं । ये बनारसी साड़ियों के प्रिंट/ नकल बनाते हैं और बनारसी
साड़ियों की क़ीमत की तुलना में बहुत सस्ती साड़ियाँ बाज़ार में उपलब्ध करा देते हैं ।
बनारसी पैटर्न की साड़ी बनारसी साड़ी नहीं है, इसे समझना होगा ।
इससे भी बनारसी साड़ी उद्योग को बहुत नुकसान हुआ । भारत का हथकरघा व्यवसाय विश्व
में सबसे पुराना और सबसे बड़ा है जो आज बदहाली की कगार पर है । भारतीय साड़ियों का
ताजमहल कहा जाने वाला बनारसी साड़ी उद्योग जर्जर हो चुका है । झीनी-झीनी चदरिया
बिननेवाले कबीर के ये पेशागत भाई असल ज़िंदगी में चिंदी –चिंदी हो गये हैं । चिथड़ों
में जीते हुए पाई-पाई को मोहताज़ ।
गरीबी,बेरोजगारी,भुखमरी,कुपोषण और बढ़ते कर्ज़ के बोझ तले दबे हुए बुनकर समाज़
में आत्महत्याओं का दौर शुरू हो गया ।
वाराणसी, 18 नवंबर 2014 को दैनिक जागरण में ख़बर छपी कि सिगरा
थाना क्षेत्र के सोनिया पोखरा इलाके में रहनेवाले 38 वर्षीय बुनकर राजू शर्मा ने
आर्थिक तंगी से लाचार होकर फांसी लगा ली । खबरों के अनुसार लल्लापुरा स्थित
पावरलूम में काम करनेवाले राजू के पास बुनकर कार्ड एवं हेल्थ कार्ड भी थे जिनसे
उसे कभी कोई लाभ नहीं मिला । यह समसामयिक घटना तमाम सरकारी योजनाओं के अस्तित्व पर
ही सवालिया निशान लगाती हैं ।
बुनकर कर्म रूपी साधना तो कर
रहा है लेकिन साधनों पर उसका अधिकार नहीं है । उसके और बाजार के बीच कई तरह के
बिचौलिये और दलाल हैं । मालिक, दलाल,कमीशन
एजेंट,कोठीदार,होलसेलर और खुरदरा
व्यापारी इनके बीच बुनकर एक दम हाशिये पर है । बनारस के लगभग तीन चौथाई बुनकर ठेके
या मजदूरी पर काम करते हैं । अनुमानतः 20% से भी कम बुनकर स्थायी कर्मचारी के रूप
में कार्य करते हैं । बुनकरों को व्यापारी एक साड़ी के पीछे 300 से 700 रूपये से
अधिक नहीं देते । और ये पैसे भी साड़ी के बिकने के बाद ही दिये जाते हैं । यह एक
साड़ी बनाने के लिए एक बुनकर को प्रतिदिन 10 घंटे काम करने पर 10 से 15 दिन लग जाते
हैं । औरतों को बुनकरी का काम सीधे तौर पर नहीं दिया जाता लेकिन वे घर में रहते
हुए साड़ी से जुड़े कई महीन काम करती हैं जिसके बदले उन्हें 10 से 15 रूपये प्रति
दिन के हिसाब से मिल पाता है । ऐसे में इनकी हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है
।
कुछ दिनों पहले माननीय
प्रधानमंत्री जी ने रेडियो पर “मन की बात” नामक कार्यक्रम में बताया कि खादी के
प्रति उनकी अपील के बाद खादी की बिक्री कई गुना बढ़ी । मैं उनसे अनुरोध करता हूँ कि
वे बनारसी साड़ियों को लेकर भी एक अपील देश और दुनियाँ से ज़रूर करें । आप सभी से भी
विनम्र अनुरोध है कि हो सके तो एक बनारसी साड़ी ज़रूर खरीदें ।
डॉ मनीषकुमार सी. मिश्रा
यूजीसी रिसर्च अवार्डी
हिंदी विभाग
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
वाराणसी ।
संदर्भ ग्रंथ सूची :
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2.
Government
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Fading
Colours of a Glorious Past: A Discourse on the Socio-economic
dimensions of marginalize Banarasi sari weaving community Satyendra N. Singh, Senior Research Fellow, Shailendra K.
Singh, Junior Research Fellow Vipin C. Pandey, Senior
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4.
Karnataka
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Home Science University of Agricultural Sciences, Dharwad-580
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– 2017) VSE Division, Planning
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Varanasi Commissioned byPeoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR)SA 4/2 A Daulatpur, Varanasi -221002Uttar
Pradesh, Indiawww.pvchr.blogspot.com, www.varanasi-weaver.blogspot.com
7. Varanasi Weavers in Crisis: Rahul
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9. योजना – अक्टूबर 2014
10. योजना – नवंबर 2014
11. The Brocades of Banaras – Cynthia R. Cunningham
12. दैनिक जागरण, वाराणसी – 18, 19 नवंबर 2014
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Ph.D.Thesis, Banaras Hindu
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15. Times Of India, Varanasi – 17,18,19 नवंबर
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16. जन मीडिया – अंक 25, 2014
17. सोच विचार – काशी अंक –चार, जुलाई 2013
18. सोच विचार – काशी अंक – पाँच, जुलाई 2014
19. सोच विचार – काशी अंक –2, जुलाई 2011
20. योजना – मार्च 2014
Wednesday 19 November 2014
Free Hindi Teaching in Varanasi
People from Abroad who are in Varanasi and willing to learn Hindi for them we will provide free Teaching for the expansion of our Language and Culture.
our facebook group is https://www.facebook.com/groups/778858845510786/
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Saturday 8 November 2014
National Seminar on Poverty and Health Rights of Handloom Weavers in India
Dear Sir/Madam,
Greetings!
It gives us immense pleasure to inform you that our college-Satyawati College (University of Delhi) is organizing a National Seminar on Poverty and Health Rights of Handloom Weavers in India on 21st November, 2014. We take this opportunity to invite you for your invaluable contribution to this national seminar. This event would provide a common forum for academia, professionals, entrepreneurs, social workers to exchange their views on the various areas of handloom sector. Paper presentations and contributions by the invited speakers will definitely enrich the experience of the participants. The details of the seminar are available in the brochure attached herewith.
Important Information
Last date for submission of paper abstract: 10.11.2014
Confirmation of accepted abstract 12.11.2014
Last Date of Registration Fee 15.11.2014
Look forward to see your participation in the academic pursuit.
kind regards, Prabhat
Dr. Prabhat Mittal Ph.D.(FMS, DU)
Astt. Professor, Satyawati College, University of Delhi, INDIA
Post-doctoral fellow, Industrial and Systems Engineering, University of Minnesota, USA
Post-doctoral fellow, Industrial and Systems Engineering, University of Minnesota, USA
Associate, Indian Institute of Advanced Study (IIAS), Shimla
URL: http://www.qtanalytics. com
Ph: 09868101820
URL: http://www.qtanalytics.
Ph: 09868101820
Interdisciplinary International Conference on “Internal and International Migration: Issues and Challenges”
Dear Sir/Madam,
We are glad to inform you that Smt. C.H.M.College, Ulhasnagar, (Dist-Thane, Mumbai, Maharashtra) is celebrating its Golden Jubilee Year 2014-15. Under the aegis of our college, Department of Economics and Business Economics is organizing an Interdisciplinary International Conference on “Internal and International Migration: Issues and Challenges”
Sir, this is very first invitation which we are sending to you ever.
You are cordially invited to participate in the conference.
We call for the paper/poster presentation with/without ISBN.
For details, kindly refer the attached brochure.
Regards,
Organizing Committee
Interdisciplinary International Conference (IIC)
Dept. of Economics and Business Economics
Smt. C.H.M. College, Ulhasnagar,
Dist-Thane, Mumbai
Maharashtra
08806957754
Wednesday 17 September 2014
परिसंवाद रिपोर्ट -2014 वैकल्पिक पत्रकारिता और सामाजिक सरोकार
परिसंवाद रिपोर्ट -2014
वैकल्पिक पत्रकारिता और सामाजिक सरोकार
(शुक्रवार-शनिवार, 07-08 फरवरी 2014)
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग,भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्,नई
दिल्ली (ICSSR),महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी एवं हिंदी विभाग,के.एम.अग्रवाल कला,वाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालय,कल्याण (प.)के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्वि दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिसंवाद वैकल्पिक पत्रकारिता और
सामाजिक सरोकार(शुक्रवार-शनिवार, 07-08 फरवरी 2014) को सुव्यवस्थित तरीके से संपन्न हुआ ।
शुक्रवार, 07 फरवरी 2014 को पंजीकरण और जलपान सुबह 9.30 से 10.30 बजे तक रहा । उद्घाटन
सत्र सुबह 10.30 से 12.30 बजे तक प्रस्तावित था । जिसमें
अध्यक्ष
के
रूप में डॉ आर.बी.सिंह
(अध्यक्ष – के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय) ,लोकार्पणकर्ता श्री विजयनारायण पंडित ( सचिव - के.एम. अग्रवाल
महाविद्यालय),स्वागत भाषण ,डॉ.अनिता मन्ना (प्राचार्या - के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय), बीज़ भाषण श्री हरिवंश जी ( संपादक - प्रभात ख़बर ),प्रमुख अतिथि डॉ. दामोदर खड्से (
कार्याध्यक्ष,
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ),विशेष अतिथि :- डॉ निर्मल कुमार ( विजिटिंग प्रोफेसर, वियना
यूनिवर्सिटी, आस्ट्रिया ),डॉ. रामजी तिवारी ( पूर्व अध्यक्ष –
हिंदी विभाग, मुंबई विद्यापीठ ) उपस्थित थे । सत्र का संचालन डॉ. विरेन्द्र कुमार मिश्रा (संयोजक एवं अध्यक्ष - बाटनी विभाग, के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय) ने किया । इसके उपरांत दोपहर का भोजन 12.30 से 1.30 बजे तक सुनिश्चित था ।
प्रथम चर्चा सत्र (1.30 बजे से 3.00 बजे तक ) प्रस्तावित था । इस सत्र के अध्यक्ष डॉ टी.एन.राय ( सदस्य,
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, महाराष्ट्र ),विशेष अतिथि श्री निराला जी ( वरिष्ठ
पत्रकार,तहलका
),श्री अनुराग चतुर्वेदी जी (सदस्य, महाराष्ट्र राज्य
हिंदी साहित्य अकादमी, महाराष्ट्र ) जी उपस्थित थे । प्रपत्र वाचक के रूप में डॉ गंगासहाय
मीणा जी (प्राध्यापक, जे.एन.यू., नई दिल्ली ,डॉ. मुकेश कुमार मिरोठा, (प्राध्यापक
- जामिया मिल्लिया इस्लामिया,नई दिल्ली),कु.ज्योति शर्मा (प्राध्यापिका – (लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, पंजाब ),श्री रजनीश मिश्रा ( शोध छात्र – पांडीचेरी विश्वविद्यालय ), श्रीमती रीना थामस (प्राध्यापिका – संत अलायसिस कालेज, जबलपुर ), डॉ. रमा सिंह (
महाराष्ट्र कालेज़ , मुंबई ),सत्र संयोजन एवं संचालन :- डॉ. आर.बी.सिंह ( उप प्राचार्य, अग्रवाल कालेज़ ) जी रहे । प्रथम समानांतरचर्चा सत्र (1.30 बजे से 3.00 बजे तक ) सुनिश्चित था । जिसके अध्यक्ष डॉ सतीश पाण्डेय ( हिंदी विभाग प्रमुख – के.जे.सोमैया महाविद्यालय,मुंबई ),विशेष अतिथि -डॉ प्रभात मित्तल ( पोस्ट
डॉक्टरल फेलो, यूनिवर्सिटी आफ़ मिनीसोटा,USA), डॉ. ईश्वर पवार (हिंदी विभाग प्रमुख – बोरा कालेज़ , शिरूर ) थे । प्रपत्र वाचक के रूप में डॉ
आरती झा ( प्राध्यापिका, सहडोल, मध्य प्रदेश, डॉ सुरेखा प्रेमचंद मंत्री ( प्राध्यापिका, महाराष्ट्र ),
डॉ.गिरीश वी वेलियत
( प्राध्यापक, गुजरात ),
प्रो. बारिया ईला टी. (प्राध्यापिका, मुंबई ), डॉ॰ चन्द्रप्रकाश मिश्र ( प्राध्यापक, नई
दिल्ली),डॉ. सतीश अर्जुन घोरपड़े ( प्राध्यापक – माउली महाविद्यालय , सोलापुर, डॉ. नारायण राठोड़ (
प्राध्यापक ), श्रीमती अनिता लक्ष्मणराव ठाकरे (
प्राध्यापिका – छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश ), डॉ. शमा ( प्राध्यापिका एवं उप प्राचार्या – डिबाई, बुलंदशहर ) , डॉ पुष्पा पुष्पध ( प्राध्यापिका, NDA, पुणे ) थी । सत्र संयोजक :- डॉ. महेश भिवंडीकर (
वरिष्ठ प्राध्यापक – अग्रवाल महाविद्यालय ) थे । संचालन : डॉ.के.पी.सिंह. (प्राध्यापक, एटा,
उत्तर प्रदेश
) जी
ने किया ।
द्वितीय चर्चा सत्र :- ( 3.00 बजे से 4.30 बजे तक ) प्रस्तावित था । जिसके अध्यक्ष :- डॉ आर.पी.त्रिवेदी (पूर्व प्राचार्य, बिर्ला
महाविद्यालय, कल्याण ),विशेष अतिथि :- डॉ. हरीश अरोड़ा ( हिंदी प्राध्यापक
– दिल्ली वि. ),श्री शैलेश मरजी क़दम ( प्राध्यापक – म.गाँ.अ.हि.वि., वर्धा ) जी थे । प्रपत्र वाचक के रूप में - डॉ. चमनलाल शर्मा ( प्राध्यापक – रतलाम , मध्यप्रदेश ) ,प्रा. अर्जुन पवार (महाराष्ट्र ),
डॉ. सूर्यकांत नाथ
(प्राध्यापक – NDA, पुणे ) ,डॉ. रावेन्द्र शाहू
( प्राध्यापक – रींवा,
मध्य प्रदेश ),डॉ कल्पना जे. मोदी ( प्राध्यापिका – मुंबई ),डॉ. संतोष मोटवानी ( उप प्राचार्य एवं
हिंदी विभाग प्रमुख – आर.के.टी. कालेज ), श्री नारायण बागुल ( मुरुंड- जंजीरा, महाराष्ट्र ) थे । सत्र
संयोजक :- डॉ (श्रीमती) रत्ना निंबालकर ( उप प्राचार्या – अग्रवाल महाविद्यालय ) एवं संचालन :- डॉ. मिथलेश शर्मा ( हिंदी विभाग प्रमुख – आर. जे . कालेज, घाटकोपर ) ने किया । द्वितीय समानांतर चर्चा सत्र :- ( 3.00 बजे से 4.30 बजे तक ) प्रस्तावित था । इस सत्र के
अध्यक्ष डॉ अनिल सिंह
(अध्यक्ष, हिंदी
विभाग, एस.बी.कालेज, शाहपुर),विशेष अतिथि :- श्री अनिल सिंह ( वरिष्ठ हिंदी ब्लागर एवं
पत्रकार, मुंबई )
प्रपत्र
वाचक- डॉ नीतू दुबे ( प्राध्यापिका, भोपाल ), डॉ हेमलता सुमन ( प्राध्यापिका, शिकोहाबाद
),डा.श्रीमती सुनीता विवेक तेरगाँवकर ( प्राध्यापिका, बैंगलुरु
),डॉ लक्ष्मी पाण्डेय ( प्राध्यापिका, सागर, मध्य प्रदेश ),रामशंकर ( शोध छात्र, वर्धा ), डॉ. प्रतिमा यादव ( प्राध्यापिका, मध्य प्रदेश ), डॉ.अरूणा हिरेमठ ( प्राध्यापिका, रायचूर ), डॉ. उमेश चन्द्र शुक्ल ( प्राध्यापक, मुंबई ), डॉ. बालकवि
सुरंजे ( अध्यक्ष- हिंदी विभाग , बिर्ला कालेज, कल्याण ), डॉ मिथलेश शर्मा ( अध्यक्ष-हिंदी विभाग,
आर.जे.कालेज,मुंबई ),सत्र संयोजक :-डॉ. वि.के. मिश्रा ( वरिष्ठ
प्राध्यापक – अग्रवाल महाविद्यालय ),संचालन :- डॉ. रावेन्द्र शाहू ( वरिष्ठ हिंदी प्राध्यापक, सतना ) जी
ने किया । इसके बाद चाय-पान :- शाम 4.30 से 5.00 बजे तक हुआ । इसतरह पहले दिन का कार्यक्रम संपन्न हुआ ।
शनिवार, 08 फरवरी 2014 की शुरुआत जलपान द्वारा सुबह 9.00
से 10.00 बजे तक हुई ।
तृतीय चर्चा सत्र :- (सुबह 10.00 बजे से 11.30 बजे तक ) प्रस्तावित था । जिसके
अध्यक्ष :- श्री चंचल जी (
वरिष्ठ
पत्रकार , उत्तर प्रदेश ),विशेष अतिथि :- डॉ गंगसहाय मीणा ( दिल्ली )प्रपत्र वाचक :-- डॉ. कैरोलीन सैनी ( मध्य प्रदेश ), डॉ अंजू पांचाल ( दिल्ली ), डॉ सी.एल.गोसाई ( गुजरात ),डॉ के.डी.कलसारिया
( गुजरात ), ज्योती शर्मा , अनुराग भारद्वाज ( पंजाब ), डॉ महात्मा पाण्डेय ( साठेय कालेज़
),डॉ. विजय गाड़े (महाराष्ट्र ) ,सत्र संयोजक :- डॉ. वी. के. मिश्रा ( वरिष्ठ प्राध्यापक,
अग्रवाल कालेज ),संचालन :- डॉ. विजय अवस्थी ( नाशिक ) जी ने किया । तृतीय समानांतर चर्चा सत्र :- (सुबह 10.00 बजे से 11.30 बजे तक ) था । अध्यक्ष :- डॉ. आर.पी.त्रिवेदी ( पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग – बिड़ला
कालेज, कल्याण )विशेष अतिथि :- श्री शैलेष भारतवासी –
(हिंदी ब्लागर, नई दिल्ली ),प्रपत्र वाचक :- डॉ भाऊसाहेब नवनाथ नवले ( महाराष्ट्र ),श्री साकेत रमन ( मध्य प्रदेश ),चंदा गुप्ता (पंजाब ),सुष्मिता जैसवाल (पंजाब ), राजवंत कौर (पंजाब ),मोहित शर्मा( पंजाब ), डॉ.श्यामसुंदर
पाण्डेय ( कल्याण, महाराष्ट्र ), डॉ.हर्षा
त्रिवेदी ( उदयपुर ),प्रा. डॉ हरदीप सिंह (लुधियाना ),डॉ सोनू चौरे ( इटारसी ),रूबी पाण्डेय ( सागर ),सत्र संयोजक :- डॉ. रत्ना निमबालकर ( उप प्राचार्य- अग्रवाल कालेज ),संचालन डॉ
ऋषिकेश मिश्रा ( मुंबई ) ने किया ।
चतुर्थ चर्चा सत्र :- ( 11.30 बजे से 1.00 बजे तक ) अध्यक्ष :- डॉ निर्मल कुमार ( विजिटिंग प्रोफ़ेसर, वियना
यूनिवर्सिटी, आस्ट्रिया),विशेष अतिथि :- डॉ किम कोजांग ( हिंदी
विद्वान, उत्तर कोरिया )प्रपत्र वाचक :- डॉ नाजिश फातिमा ( प्राध्यापिका- अलीगढ़
मुस्लिम यूनिवर्सिटी ), डॉ धीरेन्द्र शुक्ल, डॉ मालविका गुहा ( इटारसी ) ,प्रा. डा. मा. ना. गायकवाड ( लातूर,
महाराष्ट्र ),डॉ. दिनेश पाठक ( प्राध्यापक – एस.आई.ई.एस. कालेज़, साईन ),प्रा. अनिल धवले (
हिंदी विभाग प्रमुख – जोशी बेडेकर कालेज़ , ठाणे ), प्रा.सविता भाऊलाल नागरे ( औरंगाबाद), डॉ कामिनी बल्लाड़ ( अहमदनगर, महाराष्ट्र ),सत्र संयोजक :- डॉ. महेश भिवंडीकर ( वरिष्ठ प्राध्यापक – अग्रवाल कालेज ),संचालन :- डॉ. तेज़ बहादुर सिंह (
प्राध्यापक – आर. जे . कालेज , मुंबई ) ।चतुर्थ समानांतर चर्चा सत्र :- ( 11.30 बजे से 1.00 बजे तक ),अध्यक्ष :- डॉ. हरिवंश जी ( वरिष्ठ पत्रकार – प्रभात ख़बर ),विशेष अतिथि :- श्री आनंद शुक्ल ( संपादक-
यशोभूमि ),पपत्र वाचक :- डॉ एन. सत्यनारायन (आंध्र विश्वविद्यालय , विशाखपट्टनम ), डॉ के.वी.देवरे ( मुंबई ), डॉ विजय लक्ष्मी राय ( भोपाल ),डॉ मेरगसिंह यादव ( गुजरात ),प्रा. एम.एस. वाला (गुजरात),श्री .संजय पुरुषोत्तम शेडमाके ( मुंबई ), श्री संजीव विश्वकर्मा ( मध्य प्रदेश ),श्री अंकुर जैन ( मध्यप्रदेश )
,डॉ.अख़्तर आलम ( वर्धा),डॉ शीला भास्कर (महाराष्ट्र ),डॉ कैलाश निंबालकर ( शहापुर,
एस.बी.कालेज ),सत्र संयोजक :- डॉ आर. बी. सिंह ( उप
प्राचार्य – अग्रवाल महाविद्यालय ),संचालन :- डॉ रावेन्द्र शाहू ( मध्य प्रदेश ) ने किया । भोजनावकाश : 1.00 से 2.00 बजे तक रहा ।
पंचम चर्चा सत्र :- ( 2.00 बजे से 3.30 बजे तक )-अध्यक्ष :- श्री राघवेंद्र द्विवेदी ( संपादक – हमारा महानगर ) ,विशेष अतिथि :- श्री राजमणि त्रिपाठी (
वरिष्ठ उप मुख्य संपादक- नवभारत टाईम्स ) प्रपत्र वाचक :- प्रा. प्रा. क्षीरसागर लक्ष्मण घोंडिराम (परली, बीड़ ),प्रा. श्री रामसेवक झा ( मुंबई ),प्रा. नेहा बंसल, रीतिका गुप्ता ( नई दिल्ली ),डॉ. साक्षी गोयल, वैशाली कपूर ( नई दिल्ली ),श्री डॉ सुनीता आगतराव क्षीरसागर ( महाराष्ट्र ), डॉ. डॉ कामायनी सुर्व,डॉ मनीषा पाटिल ( मुंबई ) सत्र संयोजक :- डॉ वी. के. मिश्रा ( वरिष्ठ प्राध्यापक – अग्रवाल कालेज ),संचालन :- श्रीमती सुरेखा मंत्री (
महाराष्ट्र ) जी
ने किया । पंचम समानांतर
चर्चा सत्र :- ( 2.00 बजे से 3.30 बजे तक ) अध्यक्ष
:- डॉ सुनील
शर्मा जी ( प्राचार्य – भारत कालेज, बदलापुर ),विशेष अतिथि :- डॉ. गणेश पवार ( प्राध्यापक, कर्नाटक
केंद्रीय विश्वविद्यालय), प्रपत्र वाचक :- श्री दीपमाला कोरी (सागर, मध्य प्रदेश),श्री
रावेन्द्र सिंह
पटेल (सतना, मध्य
प्रदेश), डॉ. प्रा. संजीवनी आर. नाईक( अलीबाग, महाराष्ट्र ),डॉ पंकज कुमार शुक्ला ( लखनऊ,- साधना पोटे (
मुंबई ),डॉ मंजू पाठक ( उल्हासनगर,
महाराष्ट्र ),उषा ओमन (
उल्हास्नगर, महाराष्ट्र ), श्री ऋतेश चौधरी ( लखनऊ ),उमा सन्होत्रा ( NDA, पुणे
),संजय गोस्वामी ( मुंबई ),डॉ पुरुषोत्तम कुंदे ( शेवगाँव, अहमदनगर ) सत्र संयोजक :- डॉ महेश भिवंडीकर (
वरिष्ठ प्राध्यापक – अग्रवाल महाविद्यालय ),संचालन :- डॉ ज्योति शर्मा ( पंजाब ) जी ने किया ।
समापन सत्र :- ( 3.30 बजे से 4.30 बजे तक )अध्यक्ष : श्री चंचल जी ( वरिष्ठ
पत्रकार ),विशेष अतिथि :- श्री ओम प्रकाश पाण्डेय (
ज्वाइंट सेक्रेटरी, अग्रवाल कालेज ) ,डॉ. अनिता मन्ना ( प्राचार्या, अग्रवाल कालेज ) थी ।अभिमत :- श्री अनिल सिंह (
मुंबई ), डॉ रावेन्द्र शाहू, प्रा. ज्योति शर्मा , डॉ. हर्षा त्रिवेदी ,डॉ शास्त्री, डॉ चमनलाल शर्मा ,मनोगत :- डॉ वीरेन्द्र कुमार मिश्रा ( संयोजक ), सत्र संयोजक :- डॉ आर.बी.सिंह ,संचालक :- डॉ. हरीश अरोड़ा और आभार :-
डॉ रत्ना निंबालकर ने दिया । इसके बाद चाय-पान एवं प्रमाण पत्र वितरण (शाम 4.30 से 5.00 बजे तक ) हुआ । इस तरह दो दिवसीय यह
परिसंवाद कुशलता पूर्वक संपन्न हुआ ।
संयोजक
डॉ वी. के. मिश्रा
************** समापन ***************
धन्यवाद
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