Friday 1 November 2013
दीपावली और धनतेरश कि हार्दिक शुभकामनाएँ
दीपावली और धनतेरश कि हार्दिक शुभकामनाएँ ।
माँ महालक्ष्मी जीवन के हर भौतिक मनोरथ पूर्ण
करे ।
दीप पर्व आपके और आपके परिवार में सुख शान्ति और वैभव लाए ।
पद्मानने पद्मिनि पद्म-हस्ते पद्म-प्रिये पद्म-दलायताक्षि।
विश्वे-प्रिये विष्णु-मनोनुकूले, त्वत्-पाद-पद्मं मयि सन्निधत्स्व।।
पद्मानने पद्म-उरु, पद्माक्षी पद्म-सम्भवे।
त्वन्मा भजस्व पद्माक्षि, येन सौख्यं लभाम्यहम्।।
Wednesday 30 October 2013
तुम से तुम ही को चुराने क़ी आदत में
तुम से
तुम ही को चुराने क़ी आदत में
जो कुछ बातें शामिल हैं
वो हैं -
तुमसे मिलना
तुम्हे देखना
तुमसे बातें करना
और जब ये संभव न हों तो
तुम्हें सोचना
तुम्हें महसूस करना
या कि
तुम पर ही कविता लिखना
तुम
अब मेरे लिए
जीवन की एक अनिवार्य शर्त सी हो
तुम एक आदत हो
तुम परा-अपरा के बीच
मेरे लिए संतुलन का भाव हो
तुम जितना ख़ुद की हो ,
उससे कँही अधिक
मेरी हो।
हो ना ?
Tuesday 29 October 2013
Monday 21 October 2013
the National Seminar being organised by Vivekananda Institute of Professional studies (VIPS), GGS IP University, New Delhi, on January 10, 11 and 12, 2014
Dear Sir/Madam,
We are extending you an invitation for participating in the National Seminar being organised by Vivekananda Institute of Professional studies (VIPS), GGS IP University, New Delhi, on January 10, 11 and 12, 2014.
The theme of the seminar is "Media Issues and Social Transformation-MIST".
Kindly submit your paper and oblige. The papers will be published in a book with ISBN, and the same will be released on the first day of the seminar.
Please also spread the work around so that all academically inclined teachers, research scholars and students contribute by way of submitting their research papers.
Please see the attachments for details of the seminar.
Thanking you
Prof Ambrish Saxena
09810059895
Dr Sunil Kr Mishra
International Conference on ‘India’s Political Economy in Transition
International Conference on
‘India’s Political Economy in Transition:
The Crisis of Governance, Democracy and Development’
Organized by
Department of Political Science, Goa University, India
Indian Institute of Advanced Study, Shimla
Supported by Indian Council for Social Science Research, New Delhi
21-22 December 2013
Saturday 19 October 2013
राष्ट्रवाद : तुलनात्मक हिंदी साहित्य की चुनौतियाँ
‘’NATIONALISM: CHALLENGES OF COMPARATIVE HINDI LITERATURE’’
DECEMBER 12-13, 2013.
CALL FOR PAPERS:
हिंदी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा दिसंबर 12-13, 2013 को विश्वविद्यालयी मुख्यपरिसर कासरगोड में प्रस्तावित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी:
राष्ट्रवाद : तुलनात्मक हिंदी साहित्य की चुनौतियाँ
राष्ट्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जो धर्मनिरपेक्षता, संस्कृति, स्वनिर्णयाधिकार, इतिहास बोध आदि के योग से बनता है, जो साहित्य की कारयित्री अभिव्यक्ति और सामाजिक व ऐतिहासिक यथार्थ के बीच का संबंध स्थापित करता है। आधुनिक जनतंत्र के विकास का यह स्रोत माना जाता है।
जर्मन विद्वान गेयथे के समान भारतीय मनीषी रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विश्वसाहित्य की परिकल्पना की जो तुलनात्मक साहित्य में राष्ट्रवाद की संभावनाओं पर नया प्रतिमान जोडती जा रही है। भारत के प्रसिद्ध आलोचक गणेश देवी के अनुसार तुलनात्मक साहित्य आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद से सीधा जुडा है, राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान पर वह बल देता है।
हिंदी में मुख्यधारा के साहित्य के साथ-साथ जातीय साहित्य, धार्मिक साहित्य, प्रांतीय या क्षेत्रीय साहित्य, आदि समांतर रूप में मौजूद हैं। मुख्यधारा के साहित्य में शास्त्रवादी, नव्यशास्त्रवादी जैसे ही विभिन्न कालखंडों को प्रतिनिधित्व करनेवाली साहित्यिक धाराएँ विद्यमान हैं। कई विधाओं में परिव्याप्त यह साहित्य तुलना का सामान्य मुद्दा अपना लेता है कि इसका मुख्यधारा के साहित्य के समांतर अस्तित्व है।
नरेन्द्रमोहन का नाटक “जिन्ना” राष्ट्रवाद की आलोचना पर केंद्रित है, तो भारतीयता का आधुनिक चेहरा दूधनाथ सिंह के “यमगाथा” में प्रकट होता है। बंटवारे पर लिखे गये अधिकांश हिंदी साहित्य द्विराष्ट्रवाद के इर्द-गिर्द मंडरानेवाली लेखकीय प्रतिक्रियाएँ हैं। आज के भूमंडलीय परिवेश में बहुराष्ट्रवाद की गूँज है, जो राष्ट्रवाद की धारणा को अंतर्राष्ट्रीयता प्रदान करनेवाली है। तुलनात्मक हिंदी साहित्य ने किस हद तक इन तथ्यों, कथ्यों, प्रभावों, स्वीकृति अध्ययनों तथा विश्वसाहित्य अवधारणाओं को आत्मसात कर पाया है, प्रस्तुत संगोष्ठी उन्हीं पर प्रकाश डालने का प्रयास है।
संगोष्ठी के मुख्य मुद्दे होंगे –
· तुलनात्मक साहित्य व राष्ट्रवाद : चुनौतियाँ
· राष्ट्रवाद : आधुनिक स्वरूप
· तुलनात्मक हिंदी साहित्य में बहुराष्ट्रवाद या भारतीय राष्ट्रवाद
· तुलनात्मक हिंदी साहित्य में विश्वसाहित्य के परिदृश्य
· समकालीन हिंदी साहित्य – राष्ट्रवाद– एक बहस
· मुख्यधारा के हिंदी साहित्य की हाशियेकृत साहित्य से तुलना
· भाषा और अनुवाद के माध्यम से राष्ट्रवाद का प्रचार-तंत्र
· तुलनात्मक हिंदी साहित्य में राष्ट्रीयता – समस्याएँ व संभावनाएँ
भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों, संस्थाओं के विद्वानों, आचार्यों, व साहित्यकार मनीषियों तथा शोधार्थियों से प्रस्तुत संगोष्ठी में शोध-आलेख प्रस्तुत करने का अनुरोध है।
उपर्युक्त मुद्दों से जुडे विषय स्वीकार्य होंगे।
संगोष्ठी की प्रविष्टियाँ सिर्फ हिंदी में होंगी। शोध- आलेख तैयार करते हुए अंतटिप्पणियाँ देना मत भूलिएगा।
शोध सारांश व पूर्ण आलेख में शीर्षक के नीचे प्रस्तुतकर्ता/कर्ती का नाम, व्यवसाय, व पूरा पता ई मेल व संपर्क मोबाइल नंबर आदि साफ-साफ देने का कष्ट करें।
सारांश व आलेख यूनिकोड में टंकित करते समय दो लाइनों का स्पेस अवश्य रखें।
पर्चा यूनिकोड हिंदी में फोन्ट 14 में टंकित कर भेजें।
संगोष्टी में भागीदारी हेतु 250 शब्दों की रूपरेखा दिनांक 30 अक्तूबर 2013 तक भेजें।
स्वीकृत प्रविष्टियों की जानकारी दी जाएगी।
पूरा पर्चा 30 नवंबर 2013 तक भेजने का कष्ट करें।
संगोष्ठी में प्रतिभागी बनने के लिए पंजीकरण आवश्यक है।
पंजीकरण शुल्क प्रति व्यक्ति रू 750/- निश्चित है।
Bank Draft, drawn in the name of the Head of the department of Hindi, Central University of Kerala, Kasaragod, payable at Kasaragod, should be sent to the following address:
Head, Department of Hindi, Central University of Kerala, Vidyanagar, Kasaragod - 671123. Kerala.
संगोष्ठी में स्वीकृत पर्चों को पुस्तकाकार में प्रकाशित किये जाने की संभावना है।
अतिरिक्त जानकारी के लिए संपर्क करें –
डॉ. जॉसफ कोयिप्पल्ली,
संगोष्ठी समन्वयक,अध्यक्ष, हिंदी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय, कासरगोड – 671 123.
शोध-सारांश/ पूर्ण आलेख व अन्य प्रविष्टियाँ इस पते पर भेजने का कष्ट करें –
महासंयोजक, राष्ट्रीय संगोष्ठी, हिंदी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय, कासरगोड – 671 123.
हमारा विश्वजाल : http://www.cukerala.ac.in/
Thursday 17 October 2013
तुम्हें भूलना
तुम्हें भूलना
आस्था और विश्वास से
उखड़ने जैसा है ।
सपनों और उम्मीद से
नाता तोड़ने जैसा है ।
खुद को असीम विस्तार से
रोकने जैसा है ।
खुश रहने की आदत से
रूठने जैसा है ।
आस्था और विश्वास से
उखड़ने जैसा है ।
सपनों और उम्मीद से
नाता तोड़ने जैसा है ।
खुद को असीम विस्तार से
रोकने जैसा है ।
खुश रहने की आदत से
रूठने जैसा है ।
मुझे उतनी ही मिली तुम
किसी पूजा के बाद
हिस्से में आता है
जितना
ईश्वर का प्रसाद
उतना ही
मेरे हिस्से में
तुम आयी ।
और उतने में ही
मुझे मिल गया
जीवन जीने का विश्वास ।
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