Friday 21 June 2013
Thursday 20 June 2013
तुम चले जाओगे --रचनाकार: अशोक वाजपेयी
तुम चले जाओगे
पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है
पहली बारिश के बाद
हवा में धरती की सोंधी-सी गंध
भोर के उजास में
थोड़ा-सा चंद्रमा
खंडहर हो रहे मंदिर में
अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार|
तुम चले जाओगे
पर थोड़ी-सी हँसी
आँखों की थोड़ी-सी चमक
हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी
यहीं रह जाएँगे
प्रेम के इस सुनसान में|
तुम चले जाओगे
पर मेरे पास
रह जाएगी
प्रार्थना की तरह पवित्र
और अदम्य
तुम्हारी उपस्थिति,
छंद की तरह गूँजता
तुम्हारे पास होने का अहसास|
तुम चले जाओगे
और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे|
--रचनाकार: अशोक वाजपेयी
पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है
पहली बारिश के बाद
हवा में धरती की सोंधी-सी गंध
भोर के उजास में
थोड़ा-सा चंद्रमा
खंडहर हो रहे मंदिर में
अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार|
तुम चले जाओगे
पर थोड़ी-सी हँसी
आँखों की थोड़ी-सी चमक
हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी
यहीं रह जाएँगे
प्रेम के इस सुनसान में|
तुम चले जाओगे
पर मेरे पास
रह जाएगी
प्रार्थना की तरह पवित्र
और अदम्य
तुम्हारी उपस्थिति,
छंद की तरह गूँजता
तुम्हारे पास होने का अहसास|
तुम चले जाओगे
और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे|
--रचनाकार: अशोक वाजपेयी
Tuesday 18 June 2013
कनेक्टिविटी
उनसे फोन पे बात हो
रही थी
मैंने
पूछा – कहाँ हो
जवाब आया - छत पे
मैंने फ़िर
पूछा –
छत पे
क्या कर रही हो ?
यहाँ
कनेक्टिविटी मिल जाती है – उनका जवाब
मैंने कहा
–
अभी भी छत
पे कनेक्टिविटी खोजती हो ?
उसने कहा –
हाँ,
मोबाईल की कनेक्टिविटी यहीं मिलती है ।
Friday 14 June 2013
Wednesday 12 June 2013
Sunday 9 June 2013
Thursday 23 May 2013
Tuesday 21 May 2013
आवारगी - 10
कोई शिकवा ना कोई
गिला है
क्या कहूँ तुमसे क्या-क्या मिला है
याद तुझको बहुत यूं तो करता हूँ लेकिन,
तुझसे कभी भी , कुछ ना कहा है
मुझको अभी भी तु चाहता है
इसी बात से ख़ुद को बहला लिया है
तेरे सवालों में उलझा हूँ ऐसे
जैसे कि कोई, ब्रम्ह दर्शन बड़ा है
मेरा होकर भी तु मेरा नहीं है
क़िस्मत का कैसा अजब फैसला है
तुझसे मिलके मेरी आँखें नम हैं मगर
तुझसे मिलने का, फ़िर इरादा मेरा है
Sunday 19 May 2013
आवारगी -08
दरमियाँ हमारे कुछ
बचा सा है
कुछ सुना, कुछ अनसुना सा है
है मोहब्बत या मोहब्बत कि कसक
दिल में कोई तूफ़ान, रुका सा है
ये जो इतनी याद आती हो तुम
चाहतों में दिल कुछ बहका सा है
मेरे ख़्वाबों से हो के गुज़री हो
तुम
जागती आखों में एक नशा सा है
जिस तरह मैं चाहता हूँ तुम्हें अब
भी
यक़ीनन कोई अजीब फलसफ़ा सा है
कई सालों से हम दोनों के बीच में
बेनाम से रिश्ते का सिलसिला सा है
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