Tuesday 4 January 2011

हकीकते जिंदगी स्वीकार कर तू खुल के

हकीकते  जिंदगी  स्वीकार  कर  तू  खुल  के  ,

मुश्किलों  की  बारिश  में  तू  मुस्करा   खुल  के ,
वक़्त  का ये  खेल  है  कर्मे  जिंदगी  ,

हार  हो  या  जीत  हो  तू  खिलखिला  खुल  के  !

Monday 27 December 2010

पति पत्नी का रिश्ता हो मिनट का पल का या हो दिन महीने साल का

पति पत्नी का रिश्ता हो मिनट का पल का या हो दिन महीने साल का
मिटा सके ये इतना बस नहीं है काल का ;
शिव की भभूती औ  माता का सिंदूर भरा था औ भाव अटूट प्यार का
तब मांग भरी थी तेरी मैंने इश्वर स्वयम गवाह था ,
कैसे भूलूं वो घड़ियाँ मैं आंसूं से सींचा था रिश्ता प्यार का ,
झूठ कहे या भूले तू पर ये रिश्ता मेरे हर जनम हर सांस का ;

भाव से बड़कर क्या दुनिया में
प्यार से अच्छा क्या इन्सा में

सही गलत उंच नीच का फैसला कोई कैसे करे है
है मोहब्बत खुदा का जज्बा उसे बुरा कैसे कहे है /
राधा कृष्ण भजते सभी हैं
द्रौपदी को कहते सती हैं  
रीती में उलझे है क्यूँकर
प्रीती बिन जीना हो क्यूँ कर

प्यार से बड़कर पूजा नहीं कोई इस जगत इस संसार में
क्यूँ झिझक कैसी ये दुविधा क्या मैं नहीं तेरे दिल की छाँव में
सरल नहीं  है राह  प्रीती की पर सरल कहाँ जीना संसार में
क्यूँ हो अब तक तू उलझी क्या कमी रही मेरे  प्यार में ;

प्यार को रब समझा और तुझको जिंदगी
मेरे जीने का उद्देश्य तू ही है तेरी करूँ मै बंदगी /

नाम ले मेरा या पति कह ले या कुछ भी कह के पुकार ले
मेरा जीवन तेरा साँसे तेरी क़त्ल करे या साथ ले

करे बहस इनकार करे या बचपने का नाम दे
समझे भावुकता पागलपन या अर्थहीन कह टाल दे
चाहे समझे कोरी बातें या मुर्खता का नाम दे
 मेरा जीवन तुझको अर्पण तू खुशियों दे या आंसुओं की सौगात दे  /

Sunday 26 December 2010

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
                    शहरीकरण का प्रभाव - इस विषय पर  दिनांक-२४-२५ जनवरी को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित क़ी जा रही है. इस  संगोष्ठी में देश भर से  करीब  ३०० विद्वान शामिल होंगे. यदि आप इसमें भाग लेना चाहते हैं तो कृपया संपर्क करें .

Monday 13 December 2010

कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;

कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;
सजाई है जब एक महफ़िल , महफ़िल में कभी तो खिलो ;
क्यूँ चुप हो ,क्या बात है, क्यूँ मुद्दे नहीं मिलते ;
जीवन का हर पल एक बात है ,क्यूँ बात नहीं करते ;
चुप रहने से कुछ हासिल नहीं होता ,
बिना अपनी बात कहे, समाज के बदलाव में शामिल नहीं होता ;
गर चीजें बदलनी है बेहतरी के लिए ,
खुल के कहो बात अपनी ,देश की तरक्की के लिए

Friday 10 December 2010

फ्रेंच भाषा भी खूब है पर मुझसे कितनी दूर है

जिंदगी गुजर रही अब नए आशियाने में ,
सीख रहे हर पल कुछ नया जिंदगी नए पैमाने में 
सोना वही है जागना वही है पर साथ नए अनजाने है
दूर देश में बैठे हम आये यहाँ कमाने हैं /


फ्रेंच भाषा भी खूब है पर मुझसे कितनी दूर है 
भरमाती है तड़पाती है  है और बड़ा तरसाती है ,
भागा पीछे वो आगे भागे अलसाया तो वो मुस्काए 
नजर मिलाये पास बुलाये नित नए वो ठौर दिखाए 

फ्रेंच भाषा भी खूब है पर कितनी दूर है