Monday 13 December 2010

कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;

कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;
सजाई है जब एक महफ़िल , महफ़िल में कभी तो खिलो ;
क्यूँ चुप हो ,क्या बात है, क्यूँ मुद्दे नहीं मिलते ;
जीवन का हर पल एक बात है ,क्यूँ बात नहीं करते ;
चुप रहने से कुछ हासिल नहीं होता ,
बिना अपनी बात कहे, समाज के बदलाव में शामिल नहीं होता ;
गर चीजें बदलनी है बेहतरी के लिए ,
खुल के कहो बात अपनी ,देश की तरक्की के लिए

Friday 10 December 2010

फ्रेंच भाषा भी खूब है पर मुझसे कितनी दूर है

जिंदगी गुजर रही अब नए आशियाने में ,
सीख रहे हर पल कुछ नया जिंदगी नए पैमाने में 
सोना वही है जागना वही है पर साथ नए अनजाने है
दूर देश में बैठे हम आये यहाँ कमाने हैं /


फ्रेंच भाषा भी खूब है पर मुझसे कितनी दूर है 
भरमाती है तड़पाती है  है और बड़ा तरसाती है ,
भागा पीछे वो आगे भागे अलसाया तो वो मुस्काए 
नजर मिलाये पास बुलाये नित नए वो ठौर दिखाए 

फ्रेंच भाषा भी खूब है पर कितनी दूर है 

Thursday 9 December 2010

State Level Seminar - Translation Triggers Employability (TTE)

March 10th - 11th, 2011 Hindi State Level Seminar - Translation Triggers Employability (TTE)

UGC sponsored National Seminar in the third week of January 2011.

Hindi Department of Khalsa College Amritsar is going to organize UGC sponsored National Seminar in the third week of January 2011.

NET or SLET mandatory for appointment of lecturers

Observing that “the courts should not venture into academic arena which is best suited for academician and experts”, the Delhi High Court has upheld the mandatory requirement of clearing the National Eligibility Test (NET) or the State Level Eligibility Test (SLET) for appointment to the post of lecturer.
The University Grants Commission had framed this rule called Regulations-2009 in July last year.
However, those who have secured a Ph.D. degree in compliance with the UGC Regulations-2009 (Minimum Standards and Procedure for award of Ph.D.) are exempted from this rule.
The judgment by a Division Bench of the Court comprising Justice Dipak Misra and Justice Manmohan came on a petition by the All India Researchers' Co-ordination Committee challenging the Constitutional validity of fixing the minimum eligibility requirement for appointment as a lecturer.
Counsel for the petitioner, Amit Kumar, had challenged the rule mainly on the ground that the UGC had framed it on a direction by the Union Government which is against the express provisions in the UGC Act, 1956, for framing regulations.
He further submitted that the Act empowers the UGC to frame rules for regulating teaching, research and examinations in universities across the country independent of any external pressure from the Government.
Another submission by him was that it had been the consistent policy of the UGC and the Government to grant exemption to those who had obtained M.Phil. or Ph.D. degree before the cut-off date.
A similar exemption was also provided by Regulations-2006 which had given rise to a legitimate expectation that a person having an M.Phil. or a Ph.D. degree would be eligible for the post of lecturer, he further submitted, adding that an impression was created that they would not have to pass the NET.
Counsel for the Centre Neeraj Chaudhury defended the Government's directive to the UGC to frame the rule as the Act empowers it to issue directions to the regulatory body on questions of policy relating to national interest.
UGC counsel Amitesh Kumar submitted that under Section 20 of the Act the Centre is empowered to issue directions to the UGC on questions of policy relating to national purposes and such directions are binding on the UGC.
In pursuance of the direction issued by the Government, the UGC in exercise of its power conferred by Section 26(1)(e) and (g) read with Section 14 of the Act had framed the Regulations, 2009, he added.
The Bench dismissed the petition saying that it is bereft of merit. Also, it has not been implemented retrospectively.

Wednesday 8 December 2010

भारतीय लोक साहित्य पर रास्ट्रीय संगोष्ठी

भारतीय लोक साहित्य पर रास्ट्रीय संगोष्ठी ;
                                  दिनांक २७-२८ जनवरी २०११ को फरुखाबाद में दो दिवसीय रास्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित क़ी जा रही है. संगोष्ठी का विषय है लोक साहित्य .
 आप सभी इसमें  आमंत्रित हैं.

हिंदी विवेक

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निस्पृह शिक्षाव्रती डा. आर. बी. सिंह-उमेश सिंह

देश के समग्र विकास के लिए नागरिकों का शिक्षित होना परमावश्यक है। इसी बात को ध्यान में रखकर प्राय: सभी चिन्तकों, सामाजिक सुधारकों और शिक्षाविदों ने शिक्षा को सर्वोपरि स्थान दिया है। यह बात अलग है कि अनेक प्रकार के सरकारी और निजी स्तर पर किए गए शिक्षा सुधार के कार्यों के बावजूद आज भी देश की जनता का एक बडा भाग निरक्षर है। शहरों से दूर ग्रामीण भागों में विद्यालयों का अभाव है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षण संस्थानों की व्यवस्था और रखरखाव ही नहीं, वहां पर दी जाने वाली शिक्षा का स्तर भी ठीक नहीं है। दुर्दैव से शिक्षा के लिए सरकारी बजट में बहुत कम धन आवंटित किया जाता है। सरकारी स्तर पर शिक्षा के प्रति उदासीनता सर्व विदित है। ऐसे अनेक शिक्षा सेवियों और समाज के समृद्धजनों के प्रयास से अनेक शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की गयी है। जिनके माध्यम से शहरी और ग्रामीण बच्चों और युवकों को शिक्षा का लाभ मिल रहा है। इन शिक्षासेवी महानुभावों ने समाजसेवा का जो मार्ग चुना है वह किसी भी अन्य कार्य से अधिक महत्त्वपूर्ण है। ऐसे ही समाजसेवी और नि:स्पृह शिक्षाव्रती हैं कल्याण के डा. आर. बी. सिंह उन्हें स्नेह से "सिंह सर' उपाख्य से भी पहचाना जाता है।
लम्बी, मजबूत कद-काठी, स्मित चेहरा, चेहरे पर बढी काली दाढी, सफेद कुर्ता-पायजमा और उस पर सुशोभित काली सदरी, डा. आर. बी. सिंह की दशकों पुरानी पहचान है। कल्याण के बिरला कालेज के संस्थापक रजिस्ट्रार के रूप में उन्होंने महाविद्यालय में पठन-पाठन की उच्च परम्परा को जीवंत बनाये रखने के साथ ही अनुशासन की उल्लेखनीय व्यवस्था कायम की। उनके प्रयासों से वर्तमान में बिरला कालेज में कला, वाणिज्य, विज्ञान, सूचना तकनीक सहित अनेक पाठ¬क्रम संचालित किए जा रहे हैं। जिनमें जूनियर कक्षाओं की शिक्षा से लेकर शोधकार्य तक किए जाते हैं। इस समय बिरला कालेज पंचतारांकित श्रेणी का एक प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान बन गया है।
सिंह सर कालेज के कार्यों के साथ ही सामाजिक कार्यों में गहरी रुचि रखते हैं। वे कहते हैं कि समाज के हर वर्ग के लिए कुछ करते रहने से उन्हें आत्मिक सुख मिलता है। इसीलिए उन्होंने देशकाल की नब्ज को पहचानते हुए राजनीति के माध्यम से समाजसेवा का कार्य शुरू किया। उन्होंने वर्ष 1974 में बिरला कालेज की नौकरी शुरू की जबकि उससे पहले ही सर 1971 में अखिल भारतीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। तब से लेकर अब तक लगभग चार दशकों की राजनीतिक यात्रा में सिंह सर ने कई महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। उन्होंने वर्ष 1984 से 87 तक युवक कांग्रेस के रूप में दायित्व का निर्वाह किया। 1987 से वर्ष 2000 तक वे जिला और प्रदेश की नई समितियों में जिम्मेदारीवाले पदों पर रहे और वर्ष 2001 से 2007 तक कल्याण जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। उनके अध्यक्ष रहते हुए कल्याण व आस-पास के क्षेत्रों में कांग्रेस ने अच्छी पैठ बनायी। उसका परिणाम था कि कई वर्षों के उपरान्त कल्याण-डांेबिवली महानगरपालिका में कांग्रेस की सत्ता स्थापित हुई।
डा. आर. बी. सिंह ने राजनीति में रहते हुए कभी किसी पद की लालसा नहीं की, किन्तु जो भी कार्य उन्हें सौंपा गया, उसे पूरी तन्मयता से निभाया और पार्टी के आदेश पर दो बार कल्याण विधान सभा से चुनाव भी लडा।
सिंह सर के लिए राजनीति सेवा का एक माध्यम भर रही। जबकि इनका मुख्य कार्य शिक्षा के ही क्षेत्र में रहा। शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों की ही भांति शिक्षकेतर कर्मचारियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसा उनका मानना है। इसी ध्येय से उन्होंने वर्ष 1977 से मुंबई महाविद्यालयीन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष पद का दायित्व स्वीकार किया। उनके कार्यकाल में अनेक समस्याओं का निदान हुआ। शासन तथा प्रशासन ने उनके रुख की प्रशंसा की। तब से आज तक वे इस पद पर आसीन हैं। उनकी कर्मठता और कुशलता के चलते सिंह सर को अखिल भारतीय स्तर के महासंघ, आल इण्डिया कालेज एण्ड युनिवर्सिटी इम्प्लाइज फेडरेशन का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने इस पद पर रहते हुए विगत बारह वर्षों से पूरे देश का कई बार भ्रमण किया और देश के शिक्षकेतर कर्मचारियों की समस्याओं को केन्द्र व राज्य सरकारों से निदान प्राप्त करवाया।
डा. आर. बी. सिंह यद्यपि 1974 ई. से ही बिरला कालेज में हैं, किन्तु कल्याण की शिक्षा व्यवस्था उन्हें सदैव पीडा पहुंचाती रहती है। कल्याण की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि और क्षेत्र का विस्तार हो रहा था। ऐसे में उन्हें अधिक कालेजों की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने अपने अथक प्रयास से सन 1994 ई. में हिन्दी भाषी जनकल्याण शिक्षण संस्था के द्वारा संचालित के. एम. अग्रवाल कालेज ऑफ आट्र्स, सायंस एण्ड कामर्स की स्थापना की । इससे कल्याण (पश्चिम) की समस्या कुछ हद तक कम हुई, किन्तु कल्याण (पूर्व) में भी एक कालेज की जरूरत को देखते हुए साकेत महाविद्यालय की स्थापना करवाई। वे इन दोनों कालेजों के अध्यक्ष हैं।
सिंह सर का जन्म फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) के सरायगसी गांव में हुआ। यद्यपि गांव शहर के निकट ही है फिर भी लडकियों और गरीब बच्चों की शिक्षा फैजाबाद न जा सकने के कारण बन्द हो जाती थी। अत: उन्होंने वर्ष 2001 में डा. रामप्रसन्ना मणिराम सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना की। इस महाविद्यालय में शिक्षा तथा कला संकाय में पाठ¬क्रम चलाए जा रहे हैं। स्वयं उच्च शिक्षित, एम.ए., पीएच.डी., डी.ए.एम. डा. सिंह ने "मोहन राकेश की सर्जना और विकास' पर शोधकार्य पूरा किया है। साहित्य का विद्यार्थी होते हुए भी उन्होंने तकनीकी शिक्षा के महत्त्व को समय के साथ पहचाना और अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्ज इंजीनियरिंग कालेज की स्थापना के लिए प्रयास शुरू किया है। "महाराणा प्रताप शिक्षण संस्था' के द्वारा इसका संचालन किया जाएगा। उम्मीद है एक-दो वर्षों में इसमें शिक्षण कार्य शुरू हो जाएगा। खेल में बेहद रुचि रखने वाले (वे वालीबाल के अच्छे खिलाडी थे) डा. आर. बी. सिंह ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए सतत प्रयास किया। उनके प्रयासों तथा सहयोग से आज कल्याण में कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हो सकी है। वे इस क्षेत्र में आज भी हैं। सच्चे अर्थों में वे एक श्रेष्ठ शिक्षासेवा व्रती हैं।

Tuesday 7 December 2010

नया शहर नया बसेरा है /

यादों  की महफ़िल है काम का है दौर ,
जीवन की प्रक्रिया का बदलना है ठौर ;

नए लोंगों से मुलाकाते हैं
कुछ पुरानी कुछ नयी बातें हैं 

कुछ लम्हे गुनगुनाते हैं
कुछ पल मुस्कुराते हैं

नयी सुबहे औ नया सबेरा है
नया शहर नया बसेरा है /