उद्विग्नता की शाम छाई है ,
खिन्नता साथ लायी है ;
उनसे मेरी दुरी क्या कम थी,
जों नाराजगी का पैगाम फिजा साथ लायी है ;
.
चल रही है जिंदगी यूँ तो अपनी चाल से ,
फिर किसे ढूंढ़ रही हैं आखें किस नाम से ;
.
ना रिश्ता रहा न नजदीकी रही ,
ना भुला उसे न आखें भीगी रखीं ;
हर बार हारा उससे हर बार वो है हारी ,
हर बार जीती वो ही हर बार जीता मै ही ;
.
सब शायद इसे मेरी उलझन समझें ,
नहीं चाहता मै इसे वो मेरी भटकन समझें /
Saturday 12 June 2010
Thursday 10 June 2010
ऐसा भी मेरे साथ हुआ -----
ऐसा भी मेरे साथ हुआ -----
पिछले २० दिनों से मैं यंहा मुंबई में अकेला हूँ. घर के सभी लोग गाँव गए हुवे हैं. मैं कतिपय कारणों से यंही रह गया .इस बीच ३० साल क़ी उम्र में पहली बार अपने कपडे खुद धोने क़ी मजबूरी के तहत मैंने यह महान अनुष्ठान संपन्न करने का साहसिक संकल्प लिया .
सारे कपडे टब में भिगोने के बाद जब उस पर नजर गयी तो हिम्मत ने जवाब दे दिया. अपने पक्ष में मैंने तर्क तलासने का आदेश मस्तिस्क को दिया .मस्तिस्क ने तुरंत वफादार सेवक क़ी तरह तर्क हाजिर कर दिया . उसने मानो कहा -'' इतने कपडे हैं,पहले इन्हें दिन भर भिगो देना चाहिए.इन्हें कल साफ़ किया जाएगा तो परिणाम जादा अच्छा और सुखद होगा .'' बस फिर क्या था ,मुझे तो ऐसा ही कोई बहाना चाहिए था.
अगले दिन सुबह फिर जब कपड़ों से भरा टब देखा तो वही विचार फिर मन में आया .इस बार विचार में जो नई बात जुडी थी वह यह क़ि'' कपडे सुबह की जगह शाम को साफ़ किये जायेंगे तो अच्छा रहेगा .गर्मी भी नहीं लगे गी और जादा कस्ट भी नहीं होगा .'' इस तरह शाम तक के लिए अनुष्ठान टल गया .
शाम को अनुष्ठान करना अनिवार्य हो गया क्योंकि मस्तिस्क ने ही बताया कि,'' अब अगर कपड़ों को नहीं धो दिया गया तो ये खराब हो सकते हैं,और अगर ये खराब हो गए तो नागा बाबा की बिरादरी में सम्मिलित होना पड़ेगा . सावधान !!!'' मरता क्या न करता ,मैंने जैसे -तैसे कार्य को अंजाम तक पहुंचाकर चैन की सांस लेते हुवे अपनी नीद पूरी की .
अगले दिन सुबह सूखे हुवे कपड़ों को देखकर मैं अपने श्रम पर फूला नहीं समाया. लेकिन जब उन कपड़ों को लेकर मैं प्रेस कराने गया तो प्रेस वाली ने कहा ,'' साहब ,गंदे कपडे ही प्रेस करवाने हैं क्या ?'' मुझे काटो तो खून नहीं . सोचिये ऐसा भी होता है .
पिछले २० दिनों से मैं यंहा मुंबई में अकेला हूँ. घर के सभी लोग गाँव गए हुवे हैं. मैं कतिपय कारणों से यंही रह गया .इस बीच ३० साल क़ी उम्र में पहली बार अपने कपडे खुद धोने क़ी मजबूरी के तहत मैंने यह महान अनुष्ठान संपन्न करने का साहसिक संकल्प लिया .
सारे कपडे टब में भिगोने के बाद जब उस पर नजर गयी तो हिम्मत ने जवाब दे दिया. अपने पक्ष में मैंने तर्क तलासने का आदेश मस्तिस्क को दिया .मस्तिस्क ने तुरंत वफादार सेवक क़ी तरह तर्क हाजिर कर दिया . उसने मानो कहा -'' इतने कपडे हैं,पहले इन्हें दिन भर भिगो देना चाहिए.इन्हें कल साफ़ किया जाएगा तो परिणाम जादा अच्छा और सुखद होगा .'' बस फिर क्या था ,मुझे तो ऐसा ही कोई बहाना चाहिए था.
अगले दिन सुबह फिर जब कपड़ों से भरा टब देखा तो वही विचार फिर मन में आया .इस बार विचार में जो नई बात जुडी थी वह यह क़ि'' कपडे सुबह की जगह शाम को साफ़ किये जायेंगे तो अच्छा रहेगा .गर्मी भी नहीं लगे गी और जादा कस्ट भी नहीं होगा .'' इस तरह शाम तक के लिए अनुष्ठान टल गया .
शाम को अनुष्ठान करना अनिवार्य हो गया क्योंकि मस्तिस्क ने ही बताया कि,'' अब अगर कपड़ों को नहीं धो दिया गया तो ये खराब हो सकते हैं,और अगर ये खराब हो गए तो नागा बाबा की बिरादरी में सम्मिलित होना पड़ेगा . सावधान !!!'' मरता क्या न करता ,मैंने जैसे -तैसे कार्य को अंजाम तक पहुंचाकर चैन की सांस लेते हुवे अपनी नीद पूरी की .
अगले दिन सुबह सूखे हुवे कपड़ों को देखकर मैं अपने श्रम पर फूला नहीं समाया. लेकिन जब उन कपड़ों को लेकर मैं प्रेस कराने गया तो प्रेस वाली ने कहा ,'' साहब ,गंदे कपडे ही प्रेस करवाने हैं क्या ?'' मुझे काटो तो खून नहीं . सोचिये ऐसा भी होता है .
Tuesday 8 June 2010
विवेकी राय जी
विवेकी राय जी का जन्म १९२७ में हुआ.आप हिंदी और भोजपुरी साहित्य में काफी प्रसिद्ध रहे.आप उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक छोटे से गाँव सोनवानी से हैं.आप ने ५० से अधिक पुस्तकें लिखीं .आप को कई पुरस्कार भी प्राप्त हुवे.सोनामाटी आप का मशहूर उपन्यास रहा. महापंडित राहुल संकृत्यायन अवार्ड सन २००१ में और उत्तर प्रदेश ' का यश भारती अवार्ड सन २००६ में आप को मिला .
आप क़ी प्रमुख कृतियाँ है
- मंगल भवन
- नमामि ग्रामं
- देहरी के पार
- सर्कस
- सोनामाटी
- कालातीत
- गंगा जहाज
- पुरुस पुरान
- समर शेष है
- फिर बैतलवा डार पर
- आम रास्ता नहीं है
- आंगन के बन्दनवार
- आस्था और चिंतन
- अतिथि
- बबूल
- चली फगुनहट बुरे आम
- गंवाई गंध गुलाब
- जीवन अज्ञान का गणित है
- लौटकर देखना
- लोक्रिन
- मनबोध मास्टर की डायरी
- मेरे शुद्ध श्रद्धेय
- मेरी तेरह कहानियां
- नरेन्द्र कोहली अप्रतिम कथा यात्री
- सवालों के सामने
- श्वेत पत्र
- यह जो है गायत्री
- कल्पना और हिंदी साहित्य , .
- मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ , 1984.
ये बेखुदी बेसबब नहीं
ये बेखुदी बेसबब नहीं ..................................
भोपाल गैस कांड क़ी भयानक तस्वीरें मैं तो देखने क़ी भी हिम्मत नहीं कर सकता,जिनपर यह सब बीता उनके बारे में सोच कर ही आँख भर आती है. लेकिन यह उनलोगों का दुर्भाग्य है क़ि वे इस देश में पैदा हुवे वो भी गरीब बन कर. यह वही देश है जंहा से गरीबी नहीं गरीब को ही ख़त्म कर देने क़ि बात कही जाती है . शायद यही कारण रहा होगा जो एक रात में ही पूरे शहर को शमसान बना देने वालों को सरकार बचाती रही . सालों के इन्तजार के बाद इन्साफ के नाम पर गरीबों के गाल पर फिरसे तमाचा जड़ने का ही काम इस सरकार ने किया है.
यह देश सामाजिक सरोकारों से बहुत दूर होता जा रहा है. भ्रष्ट लोगों के हाँथ क़ी कठपुतली बन कर रह गया है दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र .पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ मैं नहीं हूँ ,लेकिन अगर सामान्य जनता द्वारा चुनी गयी लोकतान्त्रिक सरकार पूजी पतियों को बचाने के लिए इतनी अमानवीय और असहनीय कार्य को करे गी तो लोकतंत्र में सांस लेना नामुमकिन हो जायेगा .
सरकार ने जिस तरह से सी.बी.आई. का दुरूपयोग करके पूंजीपतियों के हितों क़ी रक्षा क़ी उसकी जितनी भी निंदा क़ी जाय वह कम है .सरकार क़ी सारी उठा-पटक देख कर ग़ालिब का वह शेर याद आता है क़ि--
ये बेखुदी बेसबब नहीं है ग़ालिब
कही किसी क़ी पर्दादारी तो है .
भोपाल गैस कांड क़ी भयानक तस्वीरें मैं तो देखने क़ी भी हिम्मत नहीं कर सकता,जिनपर यह सब बीता उनके बारे में सोच कर ही आँख भर आती है. लेकिन यह उनलोगों का दुर्भाग्य है क़ि वे इस देश में पैदा हुवे वो भी गरीब बन कर. यह वही देश है जंहा से गरीबी नहीं गरीब को ही ख़त्म कर देने क़ि बात कही जाती है . शायद यही कारण रहा होगा जो एक रात में ही पूरे शहर को शमसान बना देने वालों को सरकार बचाती रही . सालों के इन्तजार के बाद इन्साफ के नाम पर गरीबों के गाल पर फिरसे तमाचा जड़ने का ही काम इस सरकार ने किया है.
यह देश सामाजिक सरोकारों से बहुत दूर होता जा रहा है. भ्रष्ट लोगों के हाँथ क़ी कठपुतली बन कर रह गया है दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र .पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ मैं नहीं हूँ ,लेकिन अगर सामान्य जनता द्वारा चुनी गयी लोकतान्त्रिक सरकार पूजी पतियों को बचाने के लिए इतनी अमानवीय और असहनीय कार्य को करे गी तो लोकतंत्र में सांस लेना नामुमकिन हो जायेगा .
सरकार ने जिस तरह से सी.बी.आई. का दुरूपयोग करके पूंजीपतियों के हितों क़ी रक्षा क़ी उसकी जितनी भी निंदा क़ी जाय वह कम है .सरकार क़ी सारी उठा-पटक देख कर ग़ालिब का वह शेर याद आता है क़ि--
ये बेखुदी बेसबब नहीं है ग़ालिब
कही किसी क़ी पर्दादारी तो है .
Monday 7 June 2010
Maharashtra State Eligibility Test for Lectureship (SET) - 2010
महाराष्ट्र सेट परीक्षा क़ी तारीख घोषित हो गयी है .विवरण निम्नलिखित रूप में है .
Maharashtra State Eligibility Test for Lectureship (SET) - 2010
Important Dates for SET - 2010 | |||||||||||||||||||||||||||||||||
Date of examination : Sunday, 8th August 2010 | |||||||||||||||||||||||||||||||||
Online Form Submission : 26th May 2010 (11.00 a.m.) to 19th June 2010 (6.00 p.m.) | |||||||||||||||||||||||||||||||||
Last Date of Hard Copy Submission : 24th June 2010 (6.00 p.m
| |||||||||||||||||||||||||||||||||
Wednesday 2 June 2010
जिसमे तुम्हारी याद ना हो,
जिसमे तुम्हारी याद ना हो,
ऐसा कोई पल मेरे पास नहीं है .
जिसमे तेरी महक शामिल ना हो,
मेरी ऐसी कोई सांस नहीं है .
चाहूँ किसी और को मैं लेकिन,
किसी में तेरी वाली बात नहीं है .
दूर कितना भी चली जाओ तुम ,
मुझे भुला पाना आसान नहीं है .
ऐसा कोई पल मेरे पास नहीं है .
जिसमे तेरी महक शामिल ना हो,
मेरी ऐसी कोई सांस नहीं है .
चाहूँ किसी और को मैं लेकिन,
किसी में तेरी वाली बात नहीं है .
दूर कितना भी चली जाओ तुम ,
मुझे भुला पाना आसान नहीं है .
Sunday 30 May 2010
प्यार मेरा मुझे देख के चौंका , बड़ी अदा से फिर उसने पूंछा ;
प्यार मेरा मुझे देख के चौंका , बड़ी अदा से फिर उसने पूंछा ;
कौन है तू क्या तेरा परिचय , क्या इच्छा है तेरी रहबर ;
मुंह से निकला मै परछाई हूँ तेरी ,तेरे दिल की प्यास ;
न मानेगा इसको तू पर मै हूँ तेरा अहसास /
कौन है तू क्या तेरा परिचय , क्या इच्छा है तेरी रहबर ;
मुंह से निकला मै परछाई हूँ तेरी ,तेरे दिल की प्यास ;
न मानेगा इसको तू पर मै हूँ तेरा अहसास /
Thursday 27 May 2010
Birthday wish
This is written to wish someone who care`s a lot.
-----------------------------------------------------
The birthday of a beautiful person,
who is of caring incursion ;
a lady of honest desires ,
very lovely and poious;
a strong character of good intent,
upright who believe in consents ;
wishing her smile become wider ,
laugh following the laughter ;
happiness roam around ,
peace & joy with no bound ;
wishing your desires come true ,
dreams you can live ;
year full of event you can savour ,
all the happiness & moments you favour ;
HAPPY BIRTHDAY
------------------------------------------------------
Wednesday 26 May 2010
कभी इठला के दिल चुराया ,
कभी इठला के दिल चुराया ,
कभी शरमा के बदन ;
इन्तहा तब हो गयी ,
ढरकता पल्लू औ कहा हमदम /
Tuesday 25 May 2010
कहीं गुम था वो पल कहीं खोया हुआ था ,
कहीं गुम था वो पल कहीं खोया हुआ था ,
कितनी हसरते थी उसमे गम से पिरोया हुआ था ;
कशिश जीने की थी तपिश होने की थी ;
उलझा था नफरतों में बहकती हकीकतें थी ;
कहीं गुम था वो पल कहीं खोया हुआ था ,
कितनी हसरते थी उसमे गम से पिरोया हुआ था ;
चाह थी स्वातंत्र्य की बड़ती प्यास थी प्यार की ;
बंधन में जकड़ा था भीड़ से परे अकेला था
दहकता ख्वाब था सिमटता आकाश था ;
विशाल मत था छिद्र से रिसता मन था ,
कहीं गुम था वो पल कहीं खोया हुआ था ,
कितनी हसरते थी उसमे गम से पिरोया हुआ था ;
Subscribe to:
Posts (Atom)
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
-
मै बार -बार university grant commission के उस फैसले के ख़िलाफ़ आवाज उठा रहा हूँ ,जिसमे वे एक बार M.PHIL/Ph.D वालो को योग्य तो कभी अयोग्य बता...