Wednesday 21 April 2010

याद तेरी ,3

याद तेरी ,
भावों का कोहरा ;
याद तेरी ,
सुबह सुनहरा ;
याद तेरी ,
आखों की भाषा ;
याद तेरी ,
मन की आशा ;
याद तेरी /

  

Tuesday 20 April 2010

Sunil Sawara: Unique comedy with a message – Aalok Bhattacharya

Sunil Sawara: Unique comedy with a message – Aalok Bhattacharya
Sunil Sawara makes you laugh.  This is a ‘Pious job he does with a commitment. In an era, when people have almost forgotten to laugh, no one has time to laugh, everyone is running madly after so many things which give them nothing but tension, everyone is living a life full of stress. Sunil Sawara makes you laugh with his unique comedy, comedy positive, creative and classic.  A full course of Sunil’s comedy makes fresh giving you decent entertainment of good taste.  Enjoying highest popularity worldwide as a comic artist, Sunil’s sensibility give him a highly regarded position of a comedy artist, not more joker.  His confidence, intellect presence of mind, stage appearance makes him as renowned artist.
Sunil is an multi-talented artists.  Actually he is born to create and serve Art.  He is a poet of emotional values.  He writes in Hindi. He is also a responsible journalist contributing article on art, culture, literature and on socio-economical affairs for the leading Hindi dailies and periodicals.  He has command over Hindi language.  His literally talent boosts his comic item to a realistic level, where audience of class and man both get full satisfaction with a range of performance.
Sunil Sawara is a wonderful mimicry Artist.  This makes his comedy live and joyful, acceptable and worth.
He is winner of so many TV comedy and laughter, social competitions like comedy challenge, comedy circus, etc. keep on performing on TV, Radio and recently in some Hindi movie.
Sunil is an energetic good looking young man receiving the society at large through his talent.  A very prosperous shinning, popular future of high honour is waiting ahead for Sybil.
Keep it up Sunil. Cheers. Keep laughing and continue make laughing and making people laugh is worshiping God!

DR.manish kumar mishra
 

Monday 19 April 2010

याद तेरी ,2

याद तेरी ,

रातों का जगना ;

याद तेरी ,

खुदी में रमना;

याद तेरी ,

भावों की महफ़िल ,

याद तेरी ;

राहों की मुश्किल ;

याद तेरी /

क्या आप को स्वीकार है ये चुनौती ?.

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याद तेरी , 1

याद तेरी ,
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बीता सपना ;
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याद तेरी ,
.
कोई अपना ;
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याद तेरी ,
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महके गेंसुं ;
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याद तेरी ,
.
बहते आंसूं ;
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याद तेरी /
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बोध कथा ३० : बोलो सोच समझकर

बोध कथा ३० : बोलो सोच समझकर
 एक किसान की एक दिन अपने पड़ोसी से खूब जमकर लड़ाई हुई।
बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसे ख़ुद पर शर्म आई। वह इतना शर्मसार हुआ कि एक साधु के पास पहुँचा और पूछा, ‘‘मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूँ।’’ साधु ने कहा कि पंखों से भरा एक थैला लाओ और उसे शहर के बीचों-बीच उड़ा दो।
किसान ने ठीक वैसा ही किया, जैसा कि साधु ने उससे कहा था और फिर साधु के पास लौट आया। लौटने पर साधु ने उससे कहा, ‘‘अब जाओ और जितने भी पंख उड़े हैं उन्हें बटोर कर थैले में भर लाओ।’’
 नादान किसान जब वैसा करने पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि यह काम मुश्किल नहीं बल्कि असंभव है। खैर, खाली थैला ले, वह वापस साधु के पास आ गया।
यह देख साधु ने उससे कहा, ‘‘ऐसा ही मुँह से निकले शब्दों के साथ भी होता है।’’हमे कुछ भी बोलने से पहले १० बार सोचना  चाहिए .
किसी ने लिखा भी है क़ि -----------------------------
              '' जो निकली तो वापस कंहा आएगी ?,
            बात जो हो गयी,वह दूर तक जाएगी ''

 **भारत-दर्शन पत्रिका से ली गयी कहानी लिंक Bharat-Darshan- World's first Hindi literary magazine on the net
 
Bharat-Darshan- World's first Hindi literary magazine on the net

 

उसमे नहाया मै इकलौता गुनाहगार नहीं /

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मेरे इश्क से तुझे इत्तफाक नहीं ,
मेरे जलते ह्रदय का तू आफ़ताब नहीं ;
बह रही है प्यार की गंगा जों तेरे नश नश में ;
उसमे नहाया मै इकलौता गुनाहगार नहीं /
  
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बोध कथा २९ : घमंड

 बोध कथा २९ : घमंड  
एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’

नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’
दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’
थोड़ी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?”
नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए ‘नहीं’ कहा।

दंभी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।“
मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया।
नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’
सवारी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’
“फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया।
मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर गर्व नहीं करना चाहिए। 
    किसी ने लिखा भी है क़ि -----------------
                          '' जग में जिसने किया घमंड ,
                   उसकी सबसे केवल जंग ''
 
 **भारत -दर्शन पत्रिका से ली गई कहानी 
  

बोध कथा २८: सकारात्मक सोच

बोध कथा २८: सकारात्मक सोच 
 पुराने जमाने की बात है। ग्रीस देश के स्पार्टा राज्य में पिडार्टस नाम का एक नौजवान रहता था। वह पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान बन गया था।
एक बार उसे पता चला कि राज्य में तीन सौ जगहें खाली हैं। वह नौकरी की तलाश में था ही, इसलिए उसने तुरन्त अर्जी भेज दी।
लेकिन जब नतीजा निकला तो मालूम पड़ा कि पिडार्टस को नौकरी के लिए नहीं चुना गया था।
जब उसके मित्रों को इसका पता लगा तो उन्होंने सोचा कि इससे पिडार्टस बहुत दुखी हो गया होगा, इसलिए वे सब मिलकर उसे आश्वासन देने उसके घर पहुंचे।

पिडार्टस ने मित्रों की बात सुनी और हंसते-हंसते कहने लगा, “मित्रों, इसमें दुखी होने की क्या बात है? मुझे तो यह जानकर आनन्द हुआ है कि अपने राज्य में मुझसे अधिक योग्यता वाले तीन सौ मनुष्य हैं।” किसी ने लिखा भी है क़ि 
                '' सही सोच और सही विचार ,
                 है जीवन के सुख का आधार ''


 **भारत-दर्शन पत्रिका से ली गई कहानी
  

बोध कथा २७ : जिसका सहज-सरल स्वभाव है

एक दिन बादशाह अकबर ने दरबार में आते ही दरबारियों से पूछा – किसी ने आज मेरी मूंछें नोचने की जुर्रत की। उसे क्या सज़ा दी जानी चाहिए।

दरबारियों में से किसी ने कहा – उसे सूली पर लटका देना चाहिए, किसी ने कहा उसे फाँसी दे देनी चाहिए, किसी ने कहा उसकी गरदन धड़ से तत्काल उड़ा देनी चाहिए।

बादशाह नाराज हुए। अंत में उन्होंने बीरबल से पूछा – तुमने कोई राय नहीं दी!
बादशाह  धीरे से मुस्कराए,  बोले - क्या मतलब?
जहाँपनाह, ख़ता माफ हो, इस गुनहगार को तो सज़ा के बजाए उपहार देना चाहिए – बीरबल ने जवाब दिया।  जहाँपनाह, जो व्यक्ति आपकी मूँछें नोचने की जुर्रत कर सकता है, वह आपके शहजादे के सिवा कोई और हो ही नहीं सकता जो आपकी गोद में खेलता है। गोद में खेलते-खेलते उसने आज आपकी मूँछें नोच ली होंगी। उस मासूम को उसकी इस जुर्रत के बदले मिठाई खाने की मासूम सज़ा दी जानी चाहिए – बीरबल ने खुलासा किया।

बादशाह ने ठहाका लगाया और अन्य दरबारी बगलें झांकने लगे। 
           आखिर किसी निर्मल बाल हृदय को इससे जादा कोई सजा दी भी क्या जा सकती थी. बच्चों क़ी मासूमियत सब को अपना बना लेती है . इस कहानी से हमे यह सीखने को मिलता है क़ि बहुत अधिक चतुराई और तीन-तिकडम पर सहजता और स्वाभाविकता अधिक भारी पड़ती है .
             किसी ने लिखा भी है क़ि ------------------------------- 
                        '' जिसका  सहज-सरल स्वभाव है 
                      उसकी हर मुश्किल आसान है ''

                          

बोध कथा २६ : सहनशीलता

भगवान् बुद्ध को बिहार के एक बड़े ही पिछड़े और बेहद खुंखार लोगो के बीच धर्म प्रचार के काम को आगे बढ़ाने के लिएअपने किसी शिष्य को  भेजना था ,लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था क़ि इतनी भयानक जगह वे किसे भेजें . अंत में उन्होंने निर्णय लिया क़ि वे अपने शिष्यों क़ी परीक्षा लेंगे और जो  सफल होगा उसे ही वे इस कार्य के लिए चुनेगे .
                 दूसरे दिन उन्होंने अपने सभी शिष्यों को बारी-बारी से अपने पास बुलाया और उनके धैर्य क़ी परीक्षा लेने लगे. वे उन्हें उस भयानक जगह के बारे में बताते और शिष्यों के उत्तर जानते .सभी शिष्य अपनी सुरक्षा उपायों को लेकर प्रश्न करते . आखिर में भगवान् ने अपने सबसे प्रिये शिष्य को बुलाया .
              भगवान् ने कहा ,'' वत्स ,मैं तुम्हे जंहा भेज रहा हूँ ,वे लोग बड़े खुंखार है .वे तुम्हारे साथ अभद्र व्यवहार कर सकते हैं .क्या तुम वहां जाना पसंद करोगे ?'' शिष्य ने कहा ,'' प्रभू, वे मुझे मारेंगे तो नहीं ना ! मै चला जाऊँगा .'' इस पर भगवान् बोले,'' हो सकता है वे तुम्हे मारें भी '' इसपर शिष्य बोला ,''प्रभू ,वे मुझे जान से तो नहीं मारेंगे ! मैं जा सकता हूँ .'' इस बात के जवाब में भगवान् फिर बोले,'' हो सकता है वत्स क़ी वे तुम्हे जान से भी मार दें .'' इसपर दो पल सोचकर शिष्य बोला,''प्रभू, अगर वे मुझे जान से मार देंगे तो आगे मुझे कोई और कस्ट नहीं दे पायेंगे .फिर आप क़ी आज्ञा का पालन करते हुवे मरना मेरे लिए गर्व क़ी बात होगी,मैं अवश्य जाऊँगा .''
                 भगवान् समझ गए क़ी इसके अंदर धैर्य है .यह मुसीबतों का सामना कर सकता है .और उन्होंने उस शिष्य को आज्ञां दे दी .इस कहानी से हमे बोध होता है क़ि हमे धैर्य नहीं खोना चाहिए.किसी ने लिखा भी है क़ि 
          ''  धारण धैर्य किये रहो,जब भी आये वक्त कठिन 
         यही राह दिखलायेगा,घना हो चाहे जितना विपिन''