बोध कथा १९ : बहेलिया आएगा ,जाल बिछाएगा -------------------------------
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एक बार क़ि बात है, नीलगिरी के जंगलों के पास के गाँव में एक बहेलिया रहता था. पक्षियों को पकडकर उन्हें बेचना ही उसका काम था. वह अपने काम में बड़ा निपुण था. जाल लगाने और पक्षियों को फसाने में वह माहिर था.
एक दिन जब वह जाल बिछा कर बैठा था तो जाने कंहा से एक तोता जाल पर बिखेरे दानों के लालच में वंहा आ गया और जाल में फंस गया. जब वह बहेलिया उस तोते को लेकर अपने घर क़ि तरफ जा रहा था,तभी एक साधू उसे मिले.तोते को तडपता हुआ देख कर उन्होंने बहेलिये से कहा क़ि ,''अरे बहेलिये, कई दिनों से मुझे एक तोते कई तलह थी.मैं उसे पालना चाहता था.क्या तुम यह प्यारा सा तोता मुझे दोगे ? मैं मुफ्त में नहीं लूँगा .तुम्हे इसके बदले उचित मूल्य भी दूंगा .''
साधू क़ी बात सुनकर बहेलिया बड़ा खुश हुआ .उसे तो तोता बेचना ही था. सो उसने उचित मूल्य लेकर तोता साधू को दे दिया.तोता लेकर साधू बाबा अपने आश्रम पहुंचे. और उन्होंने निर्णय लिया क़ी वे तोते को शिक्षित करेंगे ,जिससे यह तोता जंगल के अन्य पक्षियों को भी जागरूक कर सके. फिर क्या था !,साधू जी ने उस तोते को रटाना शुरू किया क़ि-बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
अब तोता रोज यही वाक्य सुन-सुन कर उसे बोलने लगा .वह हमेशा यही बोलता रहता क़ि --
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे -
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
साधू को यकीन हो गया क़ि अब तोता पूरी बात सीख गया है. उन्होंने तोते को जंगल में वापस छोड़ने का निर्णय लिया. तोता जंगल में जा कर खुश था. उसने लगभग जंगल के सभी पक्षियों को यह रटा दिया क़ि -
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
जब यह बात बहेलिये को पता चली तो वह बड़ा निराश हुआ. उसे लगा क़ि अब कोई भी पक्षी उसके जाल में नहीं फसेंगे. लेकिन फिर भी वह जंगल में गया और उसने पहले क़ी ही तरह जाल बिछाकर उसपर दाने ड़ाल दिए. थोड़ी देर में ह एक तोता आकर दाने खाने लगा.उसके पीछे पूरा का पूरा झुण्ड चला आया. बहेलिया बड़ा खुश हुआ. वह जल्द ही सभी तोतों को समेटकर ले जाने लगा.वह मस्ती से चला जा रहा था और सभी तोते वही रट लगाये हुवे थे क़ि-
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ि हमे सिर्फ किसी बात को तोते कीतरह रटना ही नहीं चाहिए अपितु उसका अर्थ भी समझना चाहिए. ज्ञान वही है जो समझ लिया जाय ,रटी हुई विद्या जादा उपयोगी नहीं होती . किसी ने लिखा भी है क़ि ----- '' समझ -बूझकर ज्ञान को ,करना आत्मसाथ
वरना वक्त पड़ेगा जब,तब मलोगे केवल हाथ ''
इस तोते क़ी तस्वीर मुझे parrotarchive.blogspot.com/ से प्राप्त हुई है. इसपर मेरा कोई कॉपी राईट नहीं है
Friday 9 April 2010
Thursday 8 April 2010
उम्मीदे वफ़ा है की तू मिल जाये
उम्मीदे वफ़ा है की तू मिल जाये ,
यादों का फलसफा है की तू मिल जाये ;
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वर्षों का इंतजार लाजमी है की निराशा छाये ;
मेरे जनाजे को यकीं है तू मिल जाये /
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हास्य कलाकार सुनील सावरा का पूरा परिचय
हास्य कलाकार सुनील सावरा का पूरा परिचय
Bio-Data
Name : Sunil Pathak Sawara
Occupation : Standup comedian
Host / Actor
Script writer / Poet
Telecast : Star One – Punjabi Chakdai Laughter Champion
Great Indian laughter challenge 2 (finalist)
Sony TV – Commedy Circus (First Top Three Finalist)
NDTV Imagin – Raju hagir ho
Sahara One – Comedy Champion
India TV – Just Laugh Baki Maaf
Zee News – Special Report (Ganga Kai Kinari gudgudi
Live India – Kya Baat hai (many episode)
Zee Smile – Hasya Kavi Mukabla (performer script writer)
Mahua TV – Special episode
Audio : 1) Merai guru prabhudev (Bhajan) Lyrics writer
2) Gori Teri Bhigi Chunari, Tips Holi songs Lyrics writer
3) Bhang Ki goli Mahuva ka holi, Tips Holi somng lyrics writer
4) Hasya Maev Jaitai, Tips (Poetry) Layrics writer
5) Hasi Kai Husgullai poetry, Tips Lyrics – Writer
6) Kamha Bhai Nirdaiya Tall Tarang company Layrics writer
Film : As a Actor
1) Ishq wishk total kisk
2) Bhawnavo ko samjho
3) Baglwali Jaan Maaraili (Bhojpuri)
Stage Show (Live) : More than 700 stages live show all over India
and abroad as comedian & host.
Book as a writer : 1) Srijam Sambarbh (poetry book)
2) Thali Mai Chaid (poetry)
Awards / prizes : 1) Uttar Pradesh Yuva Samma on by the --------- of honor Shrimati
Hema Malini in 2007 at Mumbai by ABHIYAN SANSTHA.
2) Hindi Srijan Puraskar Gov. of Karnataka in 2005.
3) Yuva Kavi Protsahaan –
Puraskar in 2006 by home ministry of India.
4) Hasya Shiromani Award in 2007 at delhi.
5) Chhatrapat Shivaji Puraskar in 2009 at नन्देद
Wednesday 7 April 2010
तेरी अदावत का असर मेरे बिखराव से पूंछो ;
तेरी मेहरबानियों का असर मेरी नमित निगाह से पूंछो ,
तेरी अदावत का असर मेरे बिखराव से पूंछो ;
.
कभी इक फूल रखा था हाथों पे मेरे ;
उसकी खुसबू का असर मेरे अजार से पूंछो /
.
राह चलते कभी हाथों में हाथ दिया था तुमने ;
उसके अहसासों का असर अपने दिलदार से पूंछो ;
.
भरी महफ़िल में तेरी नज़रों ने प्यार कहा था मुझसे ;
उन नजरो का कहर, प्यार का असर मेरे दिले बेक़रार से पूंछो /
.
बोध कथा १८ : संत
बोध कथा १८ : संत
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एक बार कबीर नगर मैं एक बहुत ही पहुंचे हुवे महात्मा आये. वे रोज शाम को २ घंटे का प्रवचन करते. काफी दूर-दूर से लोग महात्मा जी का प्रवचन सुनने के लिए आते थे. लोग अपनी जिज्ञासा के अनुसार सवाल करते और महात्मा जी उसका जवाब दे कर प्रश्नकर्ता को संतुस्ट करने क़ि कोशिस करते थे. कभी-कभी तो महात्मा जी के जवाब से लोग चकित रह जाते ,पर जब महात्मा जी अपनी कही हुई बात का विश्लेष्ण करते तब लोग तालियों क़ि गूँज के साथ उनकी जयजयकार भी करने लगते.
ऐसी ही एक शाम जब महात्मा जी का प्रवचन चल रहा था तो एक भक्त ने प्रश्न किया ,''महाराज, संत किसे कहते हैं ?'' इसके पहले क़ि महात्मा जी कुछ जवाब देते ,गाँव के पंडित ने खड़े हो कर कहा,''अरे ,ये कोन सा प्रश्न है ? जब मिला तो खा लिया,और ना मिला तो भगवान् भजन करने वाले को ही संत कहते है. क्यों महाराज ?सही कहा ना मैंने ?'' पुजारी क़ि बात सुनकर महात्मा जी मुस्कुराए और बोले,''नहीं ,ऐसे आदमी को संत नहीं कुत्ता कहते हैं . संत तो वो होता है जिसे मिले तो सब के साथ बांटकर खा ले और ना मिले तो भी ईश्वर में अपनी आस्था कम ना होने दे .''
महात्मा जी क़ी बात सुनकर सभी लोग उनकी जयजयकार करने लगे .इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ी हमे सब के साथ मिल बाँट कर ही भौतिक वस्तुओं का उपभोग करना चाहिए.किसे ने लिखा भी है क़ि-------------------------------------------------------------------------------------
'' मिलजुलकर एक साथ रहें सब, जीवन इसी का नाम
जाना एक दिन सब को है,मिटना तन का काम ''
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एक बार कबीर नगर मैं एक बहुत ही पहुंचे हुवे महात्मा आये. वे रोज शाम को २ घंटे का प्रवचन करते. काफी दूर-दूर से लोग महात्मा जी का प्रवचन सुनने के लिए आते थे. लोग अपनी जिज्ञासा के अनुसार सवाल करते और महात्मा जी उसका जवाब दे कर प्रश्नकर्ता को संतुस्ट करने क़ि कोशिस करते थे. कभी-कभी तो महात्मा जी के जवाब से लोग चकित रह जाते ,पर जब महात्मा जी अपनी कही हुई बात का विश्लेष्ण करते तब लोग तालियों क़ि गूँज के साथ उनकी जयजयकार भी करने लगते.
ऐसी ही एक शाम जब महात्मा जी का प्रवचन चल रहा था तो एक भक्त ने प्रश्न किया ,''महाराज, संत किसे कहते हैं ?'' इसके पहले क़ि महात्मा जी कुछ जवाब देते ,गाँव के पंडित ने खड़े हो कर कहा,''अरे ,ये कोन सा प्रश्न है ? जब मिला तो खा लिया,और ना मिला तो भगवान् भजन करने वाले को ही संत कहते है. क्यों महाराज ?सही कहा ना मैंने ?'' पुजारी क़ि बात सुनकर महात्मा जी मुस्कुराए और बोले,''नहीं ,ऐसे आदमी को संत नहीं कुत्ता कहते हैं . संत तो वो होता है जिसे मिले तो सब के साथ बांटकर खा ले और ना मिले तो भी ईश्वर में अपनी आस्था कम ना होने दे .''
महात्मा जी क़ी बात सुनकर सभी लोग उनकी जयजयकार करने लगे .इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ी हमे सब के साथ मिल बाँट कर ही भौतिक वस्तुओं का उपभोग करना चाहिए.किसे ने लिखा भी है क़ि-------------------------------------------------------------------------------------
'' मिलजुलकर एक साथ रहें सब, जीवन इसी का नाम
जाना एक दिन सब को है,मिटना तन का काम ''
क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
पूंछ रहा है कौन हो तुम क्या तेरा मुझसे नाता है ;
क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
.
कभी भाव जुड़े थे ,मन मंदिर के द्वार जुड़े थे ,
साथ हँसे थे कितने ही किस्सों पे , साथ चलें थे कुछ रास्तों पे ;
हाथों का वो स्पर्श अनोखा ,दिल का वो हर्ष अनोखा ;
छुप छुप के के तुम देखा करते थे ,अनजाने बन छुआ करते थे ;
बातों में में एक उष्मा होती , आखों में इक आकर्षण ;
पास रहो ये चाह थी होती ,बदन में होता था आमंत्रण ;
मन नहीं भरता था बातों से ,तन पिघला करता आभासों से ;
वो पहले चुम्बन की अनुभूति अजब थी ,तेरी खुशियों की चीख गजब थी ;
वो सिने से लग जाना शरमाके ,बाँहों में भर लेना इठलाके ;
तेरे जोबन की प्यास गजब थी ;मेरे इश्क की आस गजब थी ;
तेरा सीना महका उफानो से, मेरे हाथ बहकाता अरमानो को ;
सिने में मेरे खिल के सो जाना , वो हंस हंस के के वो मुसकाना ;
चैन न मिलता बिन देखे इक दूजे को , एक पल न जाता बिन तेरी सोचों के ;
.
आज पूंछ रहा है रिश्ता क्या है , क्या जानू मै नाता क्या है ?
भावों से पूंछुंगा , दिल के तारों से पूंछुंगा ,
तन के अभिषारों से पूंछुंगा ,वक़्त के मारों से पूंछुंगा ;
पूंछुंगा मै तेरी बाँहों से ; तेरी आहों से पूंछुंगा ;
पूंछुंगा मै आखों से ,सपनों की रातों से पूंछुंगा ;
सुबह की तन्हाई से पूंछुंगा ,हवा की ऊँचाई से पूंछुंगा ;
पून्छुगा उस कमरे की दीवारों से, मौसम की बहारों से ;
पूंछुंगा मै नयनो के आंसूं से , तेरे सिने की नर्म उदासी से ;
.
पूंछ रहा है कौन हो तुम क्या तेरा मुझसे नाता है ;
क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
.
क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
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कभी भाव जुड़े थे ,मन मंदिर के द्वार जुड़े थे ,
साथ हँसे थे कितने ही किस्सों पे , साथ चलें थे कुछ रास्तों पे ;
हाथों का वो स्पर्श अनोखा ,दिल का वो हर्ष अनोखा ;
छुप छुप के के तुम देखा करते थे ,अनजाने बन छुआ करते थे ;
बातों में में एक उष्मा होती , आखों में इक आकर्षण ;
पास रहो ये चाह थी होती ,बदन में होता था आमंत्रण ;
मन नहीं भरता था बातों से ,तन पिघला करता आभासों से ;
वो पहले चुम्बन की अनुभूति अजब थी ,तेरी खुशियों की चीख गजब थी ;
वो सिने से लग जाना शरमाके ,बाँहों में भर लेना इठलाके ;
तेरे जोबन की प्यास गजब थी ;मेरे इश्क की आस गजब थी ;
तेरा सीना महका उफानो से, मेरे हाथ बहकाता अरमानो को ;
सिने में मेरे खिल के सो जाना , वो हंस हंस के के वो मुसकाना ;
चैन न मिलता बिन देखे इक दूजे को , एक पल न जाता बिन तेरी सोचों के ;
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आज पूंछ रहा है रिश्ता क्या है , क्या जानू मै नाता क्या है ?
भावों से पूंछुंगा , दिल के तारों से पूंछुंगा ,
तन के अभिषारों से पूंछुंगा ,वक़्त के मारों से पूंछुंगा ;
पूंछुंगा मै तेरी बाँहों से ; तेरी आहों से पूंछुंगा ;
पूंछुंगा मै आखों से ,सपनों की रातों से पूंछुंगा ;
सुबह की तन्हाई से पूंछुंगा ,हवा की ऊँचाई से पूंछुंगा ;
पून्छुगा उस कमरे की दीवारों से, मौसम की बहारों से ;
पूंछुंगा मै नयनो के आंसूं से , तेरे सिने की नर्म उदासी से ;
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पूंछ रहा है कौन हो तुम क्या तेरा मुझसे नाता है ;
क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
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Tuesday 6 April 2010
मन के कोलाहल से अविचल ,
मन के कोलाहल से अविचल ,
देख रहा था खिला कँवल ;
पत्तों पे निर्मल ओस की बुँदे ,
डंठल के चहुँ ओर दल दल ;
.
.
माँ की ममता याद आई ,
देख रहा था खिला कँवल ;
गर्भ में कितनी आग लिए ,
कितना जीवन का संताप लिए ,
हर मुश्किल से वो लड़ लेती,
पर ममता का रहता खुला अंचल ;
मन के कोलाहल से अविचल ,
देख रहा था खिला कँवल ;
.
.
जंगल का कलरव ,
धुप का संबल ,
मृदु ह्रदय की वीणा ;
भावों की पीड़ा ,
अश्रु स्पंदन ,
खुशियों का क्रंदन ,
त्याग सभी रिश्तों का बंधन ;
मन के कोलाहल से अविचल ,
देख रहा था खिला कँवल ,
पत्तों पे निर्मल ओस की बुँदे ,
डंठल के चहुँ ओर दल दल /
.
.
देख रहा था खिला कँवल ;
पत्तों पे निर्मल ओस की बुँदे ,
डंठल के चहुँ ओर दल दल ;
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माँ की ममता याद आई ,
देख रहा था खिला कँवल ;
गर्भ में कितनी आग लिए ,
कितना जीवन का संताप लिए ,
हर मुश्किल से वो लड़ लेती,
पर ममता का रहता खुला अंचल ;
मन के कोलाहल से अविचल ,
देख रहा था खिला कँवल ;
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जंगल का कलरव ,
धुप का संबल ,
मृदु ह्रदय की वीणा ;
भावों की पीड़ा ,
अश्रु स्पंदन ,
खुशियों का क्रंदन ,
त्याग सभी रिश्तों का बंधन ;
मन के कोलाहल से अविचल ,
देख रहा था खिला कँवल ,
पत्तों पे निर्मल ओस की बुँदे ,
डंठल के चहुँ ओर दल दल /
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बोध कथा १७ : नमकहराम
बोध कथा १७ : नमकहराम
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राजा तेजबहादुर सिंह को शिकार का बड़ा शौख था. वे न्यायप्रिय भी थे. जनता का ख़याल अपने परिवार से भी बढ़ कर रखते थे. वे अन्याय और अत्याचार के घोर विरोधी थे. उनके सारे मंत्री किसी भी गलत काम को करने से डरते थे. राज्य पूरी तरह से संपन्न था.
राजा एक बार हमेशा क़ी तरह ही जंगल में शिकार खेलने के लिए गए.दिन भर जंगल में कड़ी मेहनत करने के बाद वे एक हिरन का शिकार करने में कामयाब हुवे. सैनिक जब हिरन को पकाने क़ी तैयारी कर रहे थे,तभी उनको ज्ञात हुवा क़ि वे अपने साथ नमक लाना तो भूल ही गए हैं. एक सैनिक राजा के पास आकर इस बात क़ी सूचना देता है. राजा दो पल चुप रहे ,फिर जेब से एक सोने क़ी अशर्फी निकाल कर सैनिक को देते हुवे बोले,''कोई बात नहीं.तुम पास के गाँव में जाओ और किसी भी भी घर से नमक मांग लाओ .याद रहे ,जिसके पास से भी नमक लेना उसे नमक के मूल्य स्वरूप ये एक सोने क़ी अशर्फी दे देना .''
राजा क़ी बात सुनकर साथ आये मंत्री को आश्चर्य हुवा. वे बोले ,''महाराज,आस -पास के गाँव भी हमारी सत्ता के ही अंदर हैं. थोड़े से नमक के लिए मूल्य चुकाने क़ी क्या जरूरत है.? कोई भी गाँव वासी खुशी-ख़ुशी नमक यूं ही दे देगा.फिर ये अशर्फी क्यों ?''
मंत्री क़ी बात सुन कर राजा मुस्कुराये,फिर बोले ,''मंत्री जी, बात समझने क़ी कोशिस कीजिये .हम यंहा के राजा हैं. अगर हम अपनी प्रजा का नामक यूं ही खा लेंगे तो हमारे लोगों को नमकहराम बनने में कितना समय लगेगा ? हम अपने लोगों के लिए कोई गलत उदाहरण नहीं बनना चाहते .''
राजा क़ी बात मंत्री जी की समझ में आ गयी. और वे राजा क़ी जयजयकार करने लगे.
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ि-
''हमे सिर्फ आदर्शों क़ी बात नहीं बल्कि अपने जीवन में उसे उतारना भी चाहिए.सिर्फ व्यवस्था को दोष देने से काम नहीं चलेगा,हमे अपने अस्तर पर उसे बदलने की कोशिस भी करनी चाहिए.''
किसी ने लिखा भी है क़ि ---------------------------------
'' सिर्फ उपदेश नहीं ,आचरण भी वैसा चाहिए
हमे खुद अपनी बातों का,मिसाल होना चाहिए ''
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राजा तेजबहादुर सिंह को शिकार का बड़ा शौख था. वे न्यायप्रिय भी थे. जनता का ख़याल अपने परिवार से भी बढ़ कर रखते थे. वे अन्याय और अत्याचार के घोर विरोधी थे. उनके सारे मंत्री किसी भी गलत काम को करने से डरते थे. राज्य पूरी तरह से संपन्न था.
राजा एक बार हमेशा क़ी तरह ही जंगल में शिकार खेलने के लिए गए.दिन भर जंगल में कड़ी मेहनत करने के बाद वे एक हिरन का शिकार करने में कामयाब हुवे. सैनिक जब हिरन को पकाने क़ी तैयारी कर रहे थे,तभी उनको ज्ञात हुवा क़ि वे अपने साथ नमक लाना तो भूल ही गए हैं. एक सैनिक राजा के पास आकर इस बात क़ी सूचना देता है. राजा दो पल चुप रहे ,फिर जेब से एक सोने क़ी अशर्फी निकाल कर सैनिक को देते हुवे बोले,''कोई बात नहीं.तुम पास के गाँव में जाओ और किसी भी भी घर से नमक मांग लाओ .याद रहे ,जिसके पास से भी नमक लेना उसे नमक के मूल्य स्वरूप ये एक सोने क़ी अशर्फी दे देना .''
राजा क़ी बात सुनकर साथ आये मंत्री को आश्चर्य हुवा. वे बोले ,''महाराज,आस -पास के गाँव भी हमारी सत्ता के ही अंदर हैं. थोड़े से नमक के लिए मूल्य चुकाने क़ी क्या जरूरत है.? कोई भी गाँव वासी खुशी-ख़ुशी नमक यूं ही दे देगा.फिर ये अशर्फी क्यों ?''
मंत्री क़ी बात सुन कर राजा मुस्कुराये,फिर बोले ,''मंत्री जी, बात समझने क़ी कोशिस कीजिये .हम यंहा के राजा हैं. अगर हम अपनी प्रजा का नामक यूं ही खा लेंगे तो हमारे लोगों को नमकहराम बनने में कितना समय लगेगा ? हम अपने लोगों के लिए कोई गलत उदाहरण नहीं बनना चाहते .''
राजा क़ी बात मंत्री जी की समझ में आ गयी. और वे राजा क़ी जयजयकार करने लगे.
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ि-
''हमे सिर्फ आदर्शों क़ी बात नहीं बल्कि अपने जीवन में उसे उतारना भी चाहिए.सिर्फ व्यवस्था को दोष देने से काम नहीं चलेगा,हमे अपने अस्तर पर उसे बदलने की कोशिस भी करनी चाहिए.''
किसी ने लिखा भी है क़ि ---------------------------------
'' सिर्फ उपदेश नहीं ,आचरण भी वैसा चाहिए
हमे खुद अपनी बातों का,मिसाल होना चाहिए ''
Monday 5 April 2010
बोध कथा -१६ :कल आना
बोध कथा -१६ :कल आना
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किसी राज्य में हर्षवर्धन नामक एक राजा राज्य करता था. वह बड़ा ही दानी और सरल ह्रदय का था.उसकी दानवीरता क़ी कहानी दूर-दूर तक फैली हुई थी. राज्य क़ी प्रजा अपने राजा का बड़ा आदर करती थी. उन्हें इस बात का गर्व था क़ी उनके पास इतना महान राजा है.
एक दिन जब दरबार खत्म होनेवाला था लगभा तभी एक ब्राह्मण राजा के दरबार में आया. उस ब्राह्मण ने अपनी कन्या के विवाह के लिए राजा से १०० स्वर्ण मुद्राएँ मांगी.राजा दरबार खत्म कर जल्दी जाना चाहते थे,इसलिए उन्होंने उस ब्राह्मण से कहा क़ि,''आप कल आइये ,हम आप को १०० स्वर्ण मुद्राएँ दिलवा देंगे .'' राजा क़ि बात सुन कर वह ब्राह्मण ख़ुशी-ख़ुशी जाने को हुआ तभी राजा के विद्वान महामंत्री ने उठकर जोर-जोर से घोषणा शुरू कर दी क़ि ,''महाराज क़ी जय हो !महाराज क़ी जय हो !! आपने काल को जीत लिया ,आप महाकाल हो गए !आप क़ी जय हो !आप क़ी जय हो !''
राजा कुछ समझ नहीं पा रहे थे. उन्होंने कब काल को जीता ? वे महाकाल कैसे हो गए ? आखिर उन्होंने महामंत्री से इस घोषणा का कारण पूछा तो महामंत्री ने विनम्रता पूर्वक कहा ,''महाराज ,अभी-अभी आप ने इस ब्राह्मण को कल आने के लिए कहा है. साथ ही साथ कल आप ने इन्हें १०० स्वर्ण मुद्राएँ देने का वचन भी दिया है.लेकिन महाराज कल किसने देखा है ? कल का क्या भरोसा है ? कोन जाने कल तक आप या मैं रहूँ या ना रहूँ ? लेकिन आप को कल का विश्वाश है,तो आप महाकाल हुवे क़ी नहीं ?''
राजा को अपनी गलती समझ में आ गयी. उन्होंने ब्राह्मण से क्षमा मांगते हुवे उन्हें तुरंत १०० स्वर्ण मुद्राएँ दिलाई .सब राजा और महामंत्री क़ी जय-जयकार करने लगे.
इस कहानी से हमे सीख मिलती है क़ी हमे कभी भी आज का काम कल पे नहीं डालना चाहिए .किसी ने लिखा भी है क़ि------------------------------
'' काल करे सो आज कर,आज करे सो अब
पल में प्रलय होयगी ,बहुरी करोगे कब ''
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किसी राज्य में हर्षवर्धन नामक एक राजा राज्य करता था. वह बड़ा ही दानी और सरल ह्रदय का था.उसकी दानवीरता क़ी कहानी दूर-दूर तक फैली हुई थी. राज्य क़ी प्रजा अपने राजा का बड़ा आदर करती थी. उन्हें इस बात का गर्व था क़ी उनके पास इतना महान राजा है.
एक दिन जब दरबार खत्म होनेवाला था लगभा तभी एक ब्राह्मण राजा के दरबार में आया. उस ब्राह्मण ने अपनी कन्या के विवाह के लिए राजा से १०० स्वर्ण मुद्राएँ मांगी.राजा दरबार खत्म कर जल्दी जाना चाहते थे,इसलिए उन्होंने उस ब्राह्मण से कहा क़ि,''आप कल आइये ,हम आप को १०० स्वर्ण मुद्राएँ दिलवा देंगे .'' राजा क़ि बात सुन कर वह ब्राह्मण ख़ुशी-ख़ुशी जाने को हुआ तभी राजा के विद्वान महामंत्री ने उठकर जोर-जोर से घोषणा शुरू कर दी क़ि ,''महाराज क़ी जय हो !महाराज क़ी जय हो !! आपने काल को जीत लिया ,आप महाकाल हो गए !आप क़ी जय हो !आप क़ी जय हो !''
राजा कुछ समझ नहीं पा रहे थे. उन्होंने कब काल को जीता ? वे महाकाल कैसे हो गए ? आखिर उन्होंने महामंत्री से इस घोषणा का कारण पूछा तो महामंत्री ने विनम्रता पूर्वक कहा ,''महाराज ,अभी-अभी आप ने इस ब्राह्मण को कल आने के लिए कहा है. साथ ही साथ कल आप ने इन्हें १०० स्वर्ण मुद्राएँ देने का वचन भी दिया है.लेकिन महाराज कल किसने देखा है ? कल का क्या भरोसा है ? कोन जाने कल तक आप या मैं रहूँ या ना रहूँ ? लेकिन आप को कल का विश्वाश है,तो आप महाकाल हुवे क़ी नहीं ?''
राजा को अपनी गलती समझ में आ गयी. उन्होंने ब्राह्मण से क्षमा मांगते हुवे उन्हें तुरंत १०० स्वर्ण मुद्राएँ दिलाई .सब राजा और महामंत्री क़ी जय-जयकार करने लगे.
इस कहानी से हमे सीख मिलती है क़ी हमे कभी भी आज का काम कल पे नहीं डालना चाहिए .किसी ने लिखा भी है क़ि------------------------------
'' काल करे सो आज कर,आज करे सो अब
पल में प्रलय होयगी ,बहुरी करोगे कब ''
Sunday 4 April 2010
बिन प्यासा पानी चाहूँ , बिन तरसे प्यार /
बिन प्यासा पानी चाहूँ , बिन तरसे प्यार ;
राई के पर्वत पे बैठा , कैसे जायु पार;
.
इक तरफ है आइना , इक तरफ तस्वीर पुरानी ,
कुछ यादें हैं और चलती जिंदगानी ;
ना शौक है आइना देखूं , न चाहता हूँ पुरानी कहानी ;
ना जोर है दिले मोहब्बत पे , ना मांगूं तेरी मेहरबानी /
.
बिन प्यासा पानी चाहूँ , बिन तरसे प्यार ;
राई के पर्वत पे बैठा , कैसे जायु पार /
राई के पर्वत पे बैठा , कैसे जायु पार /
.
तेरे चेहरे के नूर , तेरे व्यंगों का तीर ;
खिलाता ह्रदय , बेध जाता जिगर ;
मोहब्बत के मजमून , सदायें रंगीन ;
वो उलझे इरादे , वो जफ़ाएं हसीन ;
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इक ओर दिल है , इक ओर अच्छाई ;
बिना भावों की , क्या कोई सच्चाई ;
वो मान्यताओं की सांकल , ये प्यार का खुला हुआ आँचल ;
उधर है ज़माने की रीती , इधर है मोहब्बत और प्रीती ;
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बिन प्यासा पानी चाहूँ , बिन तरसे प्यार ;
राई के पर्वत पे बैठा , कैसे जायु पार /
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अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
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मै बार -बार university grant commission के उस फैसले के ख़िलाफ़ आवाज उठा रहा हूँ ,जिसमे वे एक बार M.PHIL/Ph.D वालो को योग्य तो कभी अयोग्य बता...