लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय : उज़्बेकिस्तान
में हिन्दी अध्यापन
अपने समय और
परिस्थितियों की विशेषता और विलक्षणता को समझना हमेशा ही भविष्य की राह आसान बनाता
है । ऐसे में वे राष्ट्र जो जनतांत्रिक
मूल्यों वाले समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा जो अपनी राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संप्रभुता के प्रति दृढ़संकल्प होते, हुए
वैश्विक अर्थव्यवस्था और प्रगति के लिए निरंतर प्रयासरत है ;
उनमें भारत और उज्बेकिस्तान प्रमुखता से शामिल हैं । दोनों राष्ट्रो के साहित्यिक
मूल्यों में आपसदारी की बात करें तो उज़्बेकिस्तान में सन 1925 के आसपास रविंद्रनाथ
टैगोर की कहानियों एवं कविताओं का उज़्बेकी एवं रूसी भाषा में अनुवाद के माध्यम से
परिचय हुआ । सन 1940
से 1960 के बीच प्रेमचंद, मोहम्मद इकबाल, मिर्जा गालिब, अमृता प्रीतम और यशपाल की
रचनाएं यहां की भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित की गयीं ।
अब तक अनुमानतः 30 से 35 भारतीय साहित्यकारों का
साहित्य उज़्बेकी भाषा में अनुवाद के माध्यम से पहुंच चुका है । अमृता प्रीतम ने कई
बार उज़्बेकिस्तान की यात्रा की । अमृता प्रीतम ने अपनी उज़्बेकिस्तान की यात्राओं
से संबंधित कुछ निबंध भी लिखे जो सन 1962
में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘अतीत की परछाइयां’ में संकलित हैं । सन 1978
में भारत के 30
लेखकों की कहानियों को उज़्बेकी में अनुवाद करके
पुस्तक के रूप में ताशकंद से प्रकाशित किया गया । भारत के संदर्भ में साहित्य रचनेवाले उज़्बेकी
साहित्यकारों में गफूर गुलाम, हमीद
गुलाम, अस्काद मुहतार, हमीद अलीमजान, मिरतेमीर, सईदा जुनुनोवा, एरकीन वहीदोवा और तमारा
खोदजाएवा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है ।
ताशकंद के
लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा के आधार पर हिंदी पढ़ाई
जाती
है
जिसकी
शुरूआत 1955 के आसपास हुई । पाठशाला क्रमांक 24/ मकतब 24 प्रसिद्ध लेखक दिमित्रोव के नाम से ताशकंद में शुरू
हुआ ।
सन
1972 में इसका नाम बदलकर लाल
बहादुर
शास्त्री विद्यालय किया गया। यहाँ
कक्षा 5 से ही हिन्दी का अध्यापन होता है । इस विद्यालय में लगभग 1400 विद्यार्थी
हैं जिनमें से लगभग 800 विद्यार्थी यहाँ
हिन्दी सीखते हैं । सिर्फ हिन्दी पढ़ाने के लिए यहाँ वर्तमान में 07
शिक्षक कार्यरत हैं । इस विद्यालय की वर्तमान डायरेक्टर नोसिरोवा दिलदोरा यहाँ की
हिन्दी शिक्षिका भी हैं । अन्य शिक्षकों में जोराइयेवा मोहब्बत, अब्दुर्राहमनोवा निगोरा, तोजीमुरुदोवा सुरइयो, तुर्दीओहूननोबा, कुरबानोवा ओजोदा और मिर्ज़ायूरादोवा मफ़ूजा शामिल हैं । लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय, ताशकंद संभवतः न केवल उज़्बेकिस्तान अपितु पूरे मध्य एशिया में
हिंदी अध्ययन अध्यापन का सबसे बड़ा केंद्र है ।
इस विद्यालय
के हिन्दी छात्रों
को हिंदी भाषा रुचिपुर्ण तरीके से सिखाने के लिए पाठ्य सामग्री को लगातार नए
स्वरूप में तैयार करने का कार्य चलता रहता है। नवीनतम
बदलाव वर्ष 2͏021 में किया गया ।
सभी कक्षाओं की (कक्षा 5 से 11 तक ) किताबों को बदलने͏ का का͏म स्कूल के͏ शिक्षकों
तथा ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीस्ज के वरिष्ठ इंडोलजिस्ट की मदद व
सुझाव से पाठ्य͏
पुस्तक समिति ने ͏कि͏या। इन
किताबों के प्रकाशन के लिए भी भारतीय दूतावास आर्थिक सहायता देता रहता है ।
विद्यालय के बायीं तरफ़ शास्त्री जी की विशाल
प्रतिमा लगी हुई है । इस प्रतिमा का अनावरण प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता राज कपूर ने 70
के दशक में की थी । उन दिनों हिन्दी के 35 से अधिक अध्यापक यहाँ कार्यरत थे । लाल
बहादुर शास्त्री संस्कृति केंद्र, भारतीय दूतावास की तरफ़
से यहाँ एक संग्रहालय कक्ष भी बनाया गया है । इस कक्ष में पुस्तकों, पत्रिकाओं
के साथ साथ भारतीय संस्कृति के प्रतीक चिन्हों के रूप में कई वस्तुओं को सँजोकर
रक्खा गया है । शास्त्री जी की एक प्रतिमा इस कक्ष में भी लगाई गयी है । इस
संग्रहालय कक्ष के लिए समय – समय पर कई भेंट वस्तुएं भारतीय दूतावास के माध्यम से
उपलब्ध कराई जाती है ।
स्वर्गीय लाल
बहादुर शास्त्री जी के पुत्र अनिल शास्त्री जी अपनी पत्नी के साथ इस विद्यालय में
आ चुके हैं । वे विद्यालय की व्यवस्था से बड़े प्रभावित भी हुए । विजिटर बुक में
उन्होने अपने हस्ताक्षर के साथ संदेश भी लिखा है । वे लिखते हैं कि ,’’मैं अपनी पत्नी मंजू के साथ लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय आया और बहुत
अच्छा लगा । स्कूल में बहुत सुधार है और मैं प्रधानाचार्य एवं प्रबंध समिति को
बधाई देता हूँ । यहाँ पर संग्रहालय से बहुत प्रभावित हूँ । आप ने शास्त्री जी की
स्मृति को बनाए रखने का बहुत अच्छा कार्य किया है । शास्त्री परिवार से किसी
प्रकार की सहायता चाहें तो बेझिझक मुझे या मंजू को बताएं ।“
समग्र रूप से हम यह कह
सकते हैं कि भारत और उज्बेकिस्तान विश्व के दो महान गणतंत्र हैं । 21वीं शती के
विश्वव्यापी मानवीय मूल्यों, शांति, स्थिरता, प्रगति और स्वतंत्रता के स्वप्न को साकार
करने में इन दोनों राष्ट्रों की भाषायी साझेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी । पूरे मध्य एशिया में हिंदी अध्ययन अध्यापन के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में लाल
बहादुर शास्त्री विद्यालय के अवदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा ।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
विजिटिंग प्रोफ़ेसर – ICCR हिन्दी चेयर
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान