Thursday 23 May 2013
Tuesday 21 May 2013
आवारगी - 10
कोई शिकवा ना कोई
गिला है
क्या कहूँ तुमसे क्या-क्या मिला है
याद तुझको बहुत यूं तो करता हूँ लेकिन,
तुझसे कभी भी , कुछ ना कहा है
मुझको अभी भी तु चाहता है
इसी बात से ख़ुद को बहला लिया है
तेरे सवालों में उलझा हूँ ऐसे
जैसे कि कोई, ब्रम्ह दर्शन बड़ा है
मेरा होकर भी तु मेरा नहीं है
क़िस्मत का कैसा अजब फैसला है
तुझसे मिलके मेरी आँखें नम हैं मगर
तुझसे मिलने का, फ़िर इरादा मेरा है
Sunday 19 May 2013
आवारगी -08
दरमियाँ हमारे कुछ
बचा सा है
कुछ सुना, कुछ अनसुना सा है
है मोहब्बत या मोहब्बत कि कसक
दिल में कोई तूफ़ान, रुका सा है
ये जो इतनी याद आती हो तुम
चाहतों में दिल कुछ बहका सा है
मेरे ख़्वाबों से हो के गुज़री हो
तुम
जागती आखों में एक नशा सा है
जिस तरह मैं चाहता हूँ तुम्हें अब
भी
यक़ीनन कोई अजीब फलसफ़ा सा है
कई सालों से हम दोनों के बीच में
बेनाम से रिश्ते का सिलसिला सा है
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