Thursday 11 May 2023

लफ्ज़ लफ्ज़ जो लिखा वो तेरा खयाल है

 














लफ्ज़ लफ्ज़ जो लिखा वो तेरा खयाल है 

क्या करूंगा बिन तेरे यही बड़ा सवाल है । 


ख़्वाब कोई है नहीं बढ़ के मुझसे भी बुरा 

तुम नहीं तो क्या कहूं ये जिंदगी मुहाल है ।


जाने किस गुनाह की जिंदगी सज़ा रही 

नशा रहा तो ठीक था होश पर मलाल है ।


सर्द रात की हवा मुझे लिपट के रो पड़ी 

तरह तरह के हादसों में जिंदगी निहाल है ।


रंज और जुनून का जुलूस ले निकल पड़ा 

शब्द शब्द उड़ रहा तेरे गालों का गुलाल है ।


                  डॉ मनीष कुमार मिश्रा

                  के एम अग्रवाल महाविद्यालय

                  कल्याण पश्चिम

                   महाराष्ट्र।















3 comments:

  1. शानदार गज़ल।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ मई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बहुत उम्दा हृदय स्पर्शी सृजन।

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