Monday 8 June 2020
Wednesday 3 June 2020
अकादमिक दृष्टि से करोना काल के कुछ सकारात्मक पक्ष ।
अकादमिक दृष्टि से करोनाकाल के कुछ सकारात्मक पक्ष।
सकारात्मक पक्ष :
1. जिस विश्व व्यवस्था की अंधी दौड़ में हम शामिल थे उसके प्रति एक निराशा भाव जागृत होना ।
2. ग्लोबल के बदले लोकल के महत्व को हम समझ सके । इसकी स्वीकार्यता बढ़ी ।
3. आत्मनिर्भरता को नए तरीके से समझने की पहल शुरू हुई । हमारी आत्मकेंद्रियता आत्मविस्तार के लिए प्रेरित हुई ।
4. तकनीक का शैक्षणिक क्षेत्र में बोलबाला बढ़ा । ऑनलाईन व्याख्यानों, वेबिनारों इत्यादि की बाढ़ सी आ गई ।
5. सोशल मीडिया पर गंभीर अकादमिक दखल बढ़े ।
6. अध्ययन अध्यापन से जुड़ी सामग्री बड़े पैमाने पर इंटरनेट पर उपलब्ध हो सकी ।
7. ऑनलाईन व्याख्यानों, कक्षाओं इत्यादि से जिम्मेदारी और पारदर्शिता दोनों बढ़ी ।
8. घर से कार्य / work from home अधिक व्यापक और व्यावहारिक रूप में दिखाई पड़ा ।
9. तकनीक का बाज़ार अधिक संपन्न हुआ ।
10. रचनात्मक कार्यों में रुचि बढ़ी ।
11. करोना काल को लेकर अकादमिक शोध और चिंतन की नई परिपाटी शुरू हुई ।
12. ऑनलाईन शिक्षा नए विकल्प के रूप में अधिक संभावनाशील होकर प्रस्तुत हुई ।
13. अकादमिक गुटबाज़ी और लिफाफावाद की संस्कृति क्षीण हुई ।
14. अकादमिक आयोजनों में पूंजी का हिस्सा कम हुआ ।
15. पत्र पत्रिकाओं के ई संस्करण निकले जो अधिकांश मुफ़्त में उपलब्ध कराए गए ।
16. भारतीय भाषाओं के तकनीकी प्रचार प्रसार को बल मिला ।
17. शिक्षकों के शिक्षण प्रशिक्षण का अकादमिक खर्च कम हुआ ।
18. सामाजिक भाषाविज्ञान की नई अवधारणाएं शोधपत्रों एवं आलेखों के माध्यम से प्रस्तुत हुईं ।
19. ऑनलाईन पुस्तकालयों का महत्व बढ़ा ।
20. लिखे हुए और कहे हुए के प्रति जिम्मेदारी बढ़ी ।
21. पारिवारिक मनोविज्ञान और "स्पेस सिद्धांतों" को लेकर नई अकादमिक चर्चाओं ने जोर पकड़ा ।
22. धार्मिक मान्यताओं, परम्पराओं इत्यादि को करोना काल में नए संदर्भों के माध्यम से प्रस्तुत करने की पुरजोर कोशिश लगभग सभी धर्म और पंथों के लोगों ने की ।
23. लोक कलाओं और संगीत के बड़े आयोजन ऑनलाईन किए गए ।
24. मोबाईल अपनी स्क्रीन से स्क्रीनवाद का प्रणेता बनकर उभरा ।
25. नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, ज़ी फाइव, मैक्स प्लयेर, अल्ट बालाजी और डिजनी हॉट स्टार की वेब सिरीज़ सिनेमाई जादूगरी की को दुनियां है जो लॉक डॉउन के बीच अधिक लोकप्रिय रही । सिनेमा और लोकप्रियता के अकादमिक अध्ययन को इन्होंने नई चुनौती दी ।
26. वैक्सीन / के शोध और उत्पादन की क्षमता में क्रांतिकारी बदलाव के संकेत मिले ।
27. साफ़ सफ़ाई और स्वच्छता को लेकर जागरुकता न केवल बढ़ी अपितु व्यवहार में भी परिवर्तित हुई । इस पर गंभीर लेखन कार्य भी बढ़ा ।
28. दूरस्थ शिक्षा संस्थानों एवं उनकी प्रणालियों का महत्व बढ़ा ।
29. प्रवासी भारतीय मजदूरों को लेकर भी साहित्य प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हुआ ।
30. करोना काल का पर्यावरण एवं प्रदूषण पर प्रभाव को लेकर भी कई शोध पत्र सामने आए जिनकी व्यापक चर्चा भी हुई ।
31. नए तकनीकी जुगाड इजाद होने लगे जिससे कम से कम खर्चे में अकादमिक गतिविधियों को संचालित किया जा सके या उनमें शामिल हुआ जा सके ।
32. फेसबुक, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया के लोकप्रिय माध्यम अकादमिक गतिविधियों के बड़े प्लेटफॉर्म बनकर उभरे ।
33. तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध कराने वाली बड़ी कंपनियों में स्पर्धा बढ़ी जिसका फायदा अकादमिक जगत को हुआ ।
34. ऑनलाईन लेनदेन की प्रवृति बढ़ी जिससे ऑनलाईन वित्तीय प्रबंधन और कॉमर्स को लेकर नए डेटा के साथ शोध कार्यों की अच्छी दखल देखने को मिली ।
35. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में आयुर्वेदिक नुस्खे खूब पढ़े गए और वैश्विक स्तर पर इनपर नए शोध कार्यों की संभावना को बल मिला ।
36. पारिवारिक और सामाजिक संबंधों पर करोना काल के प्रभाव को लेकर समाज विज्ञान में नई अकादमिक बहसों और मान्यताओं/ संकल्पों इत्यादि की चर्चा जोर पकड़ने लगी ।
37. कई अनुपयोगी और बोझ बन चुकी सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं का अंत हो गया जिसे साहित्य की अनेकों विधाओं के माध्यम से लेखकों, चिंतकों ने सामने भी लाया ।
38. शिक्षक और विद्यार्थी अधिक प्रयोगधर्मी हुए ।
39. तकनीक के माध्यम से "टीचिंग टूल्स" का प्रयोग बढ़ा ।
40. शिक्षण प्रशिक्षण सामग्री का "इनपुट" और "आऊट पुट" दोनों बढ़ा ।
41. मौलिकता और कॉपी राईट को लेकर भी नए सिरे से अकादमिक गतिविधियों की शुरुआत हुई ।
42. शुद्धतावाद को किनारे कर के तमाम भारतीय भाषाओं ने दूसरी भाषा के कई शब्दों को आत्मसाथ किया । फ़िर इन शब्दों का भारतीयकरण होते हुए उसके कई रूप और अर्थ विकसित होने लगे ।
43. गोपनीय समूह भाषाओं और समूह गत आपराधिक भाषाओं में करोना काल के कई शब्दों का उपयोग बढ़ा जो अध्ययन और शोध की एक नई दिशा हो सकती है ।
44. सरकारी नीतियों और योजनाओं में आमूल चूल परिवर्तन हुए जो भविष्य की राजनीति और अर्थवयवस्थाओं के परिप्रेक्ष्य में किए गए । इनकी गंभीर और व्यापक चर्चा अर्थशास्त्र और वाणिज्य के क्षेत्र में शुरू हुई है ।
45. वैश्विक राजनीति की दशा और दिशा दोनों में बड़े व्यापक बदलावों की चर्चा भी राजनीति शास्त्र के नए अकादमिक विषय बने ।
46. भविष्य में शिक्षक और शिक्षण संस्थानों की स्थिति और उनकी भूमिका को लेकर भी गंभीर चर्चाएं शुरू हुई ।
47. देश में परीक्षा प्रणाली में सुधार और बदलाव दोनों को लेकर चर्चा तेज हुई ।
48. COVID 19 के विभिन्न पक्षों पर शोध के लिए सरकारी गैर सरकारी संगठनों / संस्थानों द्वारा आवेदन मंगाए गए ।
49. बड़े स्तर पर अकादमिक संस्थानों में आपसी ताल मेल बढ़ा ।
50. अंतर्विषयी संगोष्ठियों एवं शोध कार्यों को अधिक मुखर होने का मौका मिला ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र
www.manishkumarmishra.com
manishmuntazir@gmail.com
सकारात्मक पक्ष :
1. जिस विश्व व्यवस्था की अंधी दौड़ में हम शामिल थे उसके प्रति एक निराशा भाव जागृत होना ।
2. ग्लोबल के बदले लोकल के महत्व को हम समझ सके । इसकी स्वीकार्यता बढ़ी ।
3. आत्मनिर्भरता को नए तरीके से समझने की पहल शुरू हुई । हमारी आत्मकेंद्रियता आत्मविस्तार के लिए प्रेरित हुई ।
4. तकनीक का शैक्षणिक क्षेत्र में बोलबाला बढ़ा । ऑनलाईन व्याख्यानों, वेबिनारों इत्यादि की बाढ़ सी आ गई ।
5. सोशल मीडिया पर गंभीर अकादमिक दखल बढ़े ।
6. अध्ययन अध्यापन से जुड़ी सामग्री बड़े पैमाने पर इंटरनेट पर उपलब्ध हो सकी ।
7. ऑनलाईन व्याख्यानों, कक्षाओं इत्यादि से जिम्मेदारी और पारदर्शिता दोनों बढ़ी ।
8. घर से कार्य / work from home अधिक व्यापक और व्यावहारिक रूप में दिखाई पड़ा ।
9. तकनीक का बाज़ार अधिक संपन्न हुआ ।
10. रचनात्मक कार्यों में रुचि बढ़ी ।
11. करोना काल को लेकर अकादमिक शोध और चिंतन की नई परिपाटी शुरू हुई ।
12. ऑनलाईन शिक्षा नए विकल्प के रूप में अधिक संभावनाशील होकर प्रस्तुत हुई ।
13. अकादमिक गुटबाज़ी और लिफाफावाद की संस्कृति क्षीण हुई ।
14. अकादमिक आयोजनों में पूंजी का हिस्सा कम हुआ ।
15. पत्र पत्रिकाओं के ई संस्करण निकले जो अधिकांश मुफ़्त में उपलब्ध कराए गए ।
16. भारतीय भाषाओं के तकनीकी प्रचार प्रसार को बल मिला ।
17. शिक्षकों के शिक्षण प्रशिक्षण का अकादमिक खर्च कम हुआ ।
18. सामाजिक भाषाविज्ञान की नई अवधारणाएं शोधपत्रों एवं आलेखों के माध्यम से प्रस्तुत हुईं ।
19. ऑनलाईन पुस्तकालयों का महत्व बढ़ा ।
20. लिखे हुए और कहे हुए के प्रति जिम्मेदारी बढ़ी ।
21. पारिवारिक मनोविज्ञान और "स्पेस सिद्धांतों" को लेकर नई अकादमिक चर्चाओं ने जोर पकड़ा ।
22. धार्मिक मान्यताओं, परम्पराओं इत्यादि को करोना काल में नए संदर्भों के माध्यम से प्रस्तुत करने की पुरजोर कोशिश लगभग सभी धर्म और पंथों के लोगों ने की ।
23. लोक कलाओं और संगीत के बड़े आयोजन ऑनलाईन किए गए ।
24. मोबाईल अपनी स्क्रीन से स्क्रीनवाद का प्रणेता बनकर उभरा ।
25. नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, ज़ी फाइव, मैक्स प्लयेर, अल्ट बालाजी और डिजनी हॉट स्टार की वेब सिरीज़ सिनेमाई जादूगरी की को दुनियां है जो लॉक डॉउन के बीच अधिक लोकप्रिय रही । सिनेमा और लोकप्रियता के अकादमिक अध्ययन को इन्होंने नई चुनौती दी ।
26. वैक्सीन / के शोध और उत्पादन की क्षमता में क्रांतिकारी बदलाव के संकेत मिले ।
27. साफ़ सफ़ाई और स्वच्छता को लेकर जागरुकता न केवल बढ़ी अपितु व्यवहार में भी परिवर्तित हुई । इस पर गंभीर लेखन कार्य भी बढ़ा ।
28. दूरस्थ शिक्षा संस्थानों एवं उनकी प्रणालियों का महत्व बढ़ा ।
29. प्रवासी भारतीय मजदूरों को लेकर भी साहित्य प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हुआ ।
30. करोना काल का पर्यावरण एवं प्रदूषण पर प्रभाव को लेकर भी कई शोध पत्र सामने आए जिनकी व्यापक चर्चा भी हुई ।
31. नए तकनीकी जुगाड इजाद होने लगे जिससे कम से कम खर्चे में अकादमिक गतिविधियों को संचालित किया जा सके या उनमें शामिल हुआ जा सके ।
32. फेसबुक, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया के लोकप्रिय माध्यम अकादमिक गतिविधियों के बड़े प्लेटफॉर्म बनकर उभरे ।
33. तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध कराने वाली बड़ी कंपनियों में स्पर्धा बढ़ी जिसका फायदा अकादमिक जगत को हुआ ।
34. ऑनलाईन लेनदेन की प्रवृति बढ़ी जिससे ऑनलाईन वित्तीय प्रबंधन और कॉमर्स को लेकर नए डेटा के साथ शोध कार्यों की अच्छी दखल देखने को मिली ।
35. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में आयुर्वेदिक नुस्खे खूब पढ़े गए और वैश्विक स्तर पर इनपर नए शोध कार्यों की संभावना को बल मिला ।
36. पारिवारिक और सामाजिक संबंधों पर करोना काल के प्रभाव को लेकर समाज विज्ञान में नई अकादमिक बहसों और मान्यताओं/ संकल्पों इत्यादि की चर्चा जोर पकड़ने लगी ।
37. कई अनुपयोगी और बोझ बन चुकी सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं का अंत हो गया जिसे साहित्य की अनेकों विधाओं के माध्यम से लेखकों, चिंतकों ने सामने भी लाया ।
38. शिक्षक और विद्यार्थी अधिक प्रयोगधर्मी हुए ।
39. तकनीक के माध्यम से "टीचिंग टूल्स" का प्रयोग बढ़ा ।
40. शिक्षण प्रशिक्षण सामग्री का "इनपुट" और "आऊट पुट" दोनों बढ़ा ।
41. मौलिकता और कॉपी राईट को लेकर भी नए सिरे से अकादमिक गतिविधियों की शुरुआत हुई ।
42. शुद्धतावाद को किनारे कर के तमाम भारतीय भाषाओं ने दूसरी भाषा के कई शब्दों को आत्मसाथ किया । फ़िर इन शब्दों का भारतीयकरण होते हुए उसके कई रूप और अर्थ विकसित होने लगे ।
43. गोपनीय समूह भाषाओं और समूह गत आपराधिक भाषाओं में करोना काल के कई शब्दों का उपयोग बढ़ा जो अध्ययन और शोध की एक नई दिशा हो सकती है ।
44. सरकारी नीतियों और योजनाओं में आमूल चूल परिवर्तन हुए जो भविष्य की राजनीति और अर्थवयवस्थाओं के परिप्रेक्ष्य में किए गए । इनकी गंभीर और व्यापक चर्चा अर्थशास्त्र और वाणिज्य के क्षेत्र में शुरू हुई है ।
45. वैश्विक राजनीति की दशा और दिशा दोनों में बड़े व्यापक बदलावों की चर्चा भी राजनीति शास्त्र के नए अकादमिक विषय बने ।
46. भविष्य में शिक्षक और शिक्षण संस्थानों की स्थिति और उनकी भूमिका को लेकर भी गंभीर चर्चाएं शुरू हुई ।
47. देश में परीक्षा प्रणाली में सुधार और बदलाव दोनों को लेकर चर्चा तेज हुई ।
48. COVID 19 के विभिन्न पक्षों पर शोध के लिए सरकारी गैर सरकारी संगठनों / संस्थानों द्वारा आवेदन मंगाए गए ।
49. बड़े स्तर पर अकादमिक संस्थानों में आपसी ताल मेल बढ़ा ।
50. अंतर्विषयी संगोष्ठियों एवं शोध कार्यों को अधिक मुखर होने का मौका मिला ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र
www.manishkumarmishra.com
manishmuntazir@gmail.com
Monday 18 May 2020
कोरोना काल में कविता
9. वे जा रहे हैं ।
मजबूर, असहाय और साधनहीन
हजारों स्त्री,पुरष, वृद्ध और बच्चे
सब चले जा रहे हैं
जाने की सबसे त्रासद
क्रिया के रूप में
जीवन व्याकरण की
जटिल संरचना के रूप में ।
भाषा के पास
उनके संबोधन के लिए
सिर्फ़ कुछ सर्वनाम हैं
जो अभागे विशेषणों से
त्राहि त्राहि कर रहे हैं
और संवेदनाएं
शिलाधर्मी होकर
आकाशधर्मिता का
स्वांग रच रही हैं ।
मनुष्यता की पूरी संकल्पना
कितनी खोखली निकली
सारी शिक्षा, सारा ज्ञान
सिर्फ़ और सिर्फ़
कूड़े का कागज़ी ढेर
और विकास के सारे वादे
कागज़ की नाव ।
ऐसे समय में
बचे रहने की संभावनाओं को
ग्रहण लगा हुआ है
किसी कोरोना वायरस के कारण ही नहीं
मरते सपनों
हारते संकल्पों
और निकम्मी व्यस्थाओं के
खूनी पंजों में
आत्मविश्वास हारते
सर्वहारा के
टूटकर बिखर जाने से
बचे रहने की संभावनाओं को
ग्रहण लगा हुआ है ।
--------------- डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण ।
मजबूर, असहाय और साधनहीन
हजारों स्त्री,पुरष, वृद्ध और बच्चे
सब चले जा रहे हैं
जाने की सबसे त्रासद
क्रिया के रूप में
जीवन व्याकरण की
जटिल संरचना के रूप में ।
भाषा के पास
उनके संबोधन के लिए
सिर्फ़ कुछ सर्वनाम हैं
जो अभागे विशेषणों से
त्राहि त्राहि कर रहे हैं
और संवेदनाएं
शिलाधर्मी होकर
आकाशधर्मिता का
स्वांग रच रही हैं ।
मनुष्यता की पूरी संकल्पना
कितनी खोखली निकली
सारी शिक्षा, सारा ज्ञान
सिर्फ़ और सिर्फ़
कूड़े का कागज़ी ढेर
और विकास के सारे वादे
कागज़ की नाव ।
ऐसे समय में
बचे रहने की संभावनाओं को
ग्रहण लगा हुआ है
किसी कोरोना वायरस के कारण ही नहीं
मरते सपनों
हारते संकल्पों
और निकम्मी व्यस्थाओं के
खूनी पंजों में
आत्मविश्वास हारते
सर्वहारा के
टूटकर बिखर जाने से
बचे रहने की संभावनाओं को
ग्रहण लगा हुआ है ।
--------------- डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण ।
Friday 8 May 2020
Thursday 30 April 2020
Webinar on Sufism and Qawali in Indian Subcontinent
Wednesday, 29 April 2020
अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संबंधी पूर्ण जानकारी
हिन्दी विभाग
के एम अग्रवाल महाविद्यालय,कल्यण - महाराष्ट्र
अंतरराष्ट्रीय वेबिनार
भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीवाद और क़व्वाली की संस्कृति ।
( दिनांक : 15 मई 2020 )
प्रस्तावना :
भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीवाद की जड़ें उस इस्लामिक परमानंद प्राप्ति की उस शास्त्रीय परंपरा में है जो अरब और फ़ारस में 09 वीं से 11 वीं सदी के बीच विकसित हुई और धीरे-धीरे 12 वीं शताब्दी के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में आयी । “तरीक़ा” और “तौहीद” के माध्यम से ईश्वर से एकाकार होने की सूफ़ी पद्धति लोकप्रिय हुई । “मकाम” इसका चरम स्थल है । भारतीय उपमहाद्वीप में चिश्तिया परंपरा बड़ी महत्वपूर्ण रही । सूफ़ी संत मोईनुद्दीन चिश्ती जो कि हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से जाने जाते हैं वे अजमेर में सन 1236 के आस-पास आये । इसी परंपरा में काकी, बाबा फ़रीद और निज़ामुद्दीन औलिया जैसे अनेकों सूफ़ी संत हुए जिनसे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीयाना संस्कृति को बढ़ावा मिला ।
सूफ़ीवाद सीखने से अधिक अनुभूति का विषय मानी गयी । “जीकर” और “समा” संगीत के माध्यम से सूफ़ी ईश्वर से एकाकार होने की राह में आगे बढ़ते हैं । “समा” के आयोजन में समय, स्थान और लोग इत्यादि को लेकर नियम रहे हैं । पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ी कलाओं की संगीतमय प्रस्तुति क़व्वाली की पहचान बन गयी । नृत्य का सूफियों के यहाँ कोई बुनियादी स्वरूप नहीं मिलता । “समा” के समय पागलों की तरह नाचना, चिल्लाना इत्यादि आत्मा की छटपटाहट मानी गयी है । ऐसी अवस्था को “हाल” कहते हैं । ऐसी अनुभूतियों के लिए तैयार होने में क़व्वाली सहायक होती है । क़व्वाली की भाषा आत्मा की भाषा मानी जाती रही है ।
समय के साथ पूरी सूफ़ी परंपरा में बड़े बदलाव हुए । क़व्वाली भी दरगाहों और ख़ानकाहों से निकलकर एक व्यवसाय के रूप में बढ्ने लगी । इन्हीं सब स्थितियों, परिस्थितियों का गंभीर अकादमिक अध्ययन व विवेचना इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का मुख्य उद्देश्य है ।
शोधपत्र के लिए उप विषय :
1. सूफ़ी परंपरा का इतिहास और क़व्वाली
2. सूफ़ी संप्रदायों का इतिहास
3. सूफ़ी परंपरा में स्त्रियाँ
4. सूफ़ी दर्शन
5. सूफियों पर इस्लाम का प्रभाव
6. भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ी परंपरा
7. सूफियों पर भारतीय दर्शन का प्रभाव
8. सूफियों पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव
9. भक्तिकाल और सूफ़ी
10. भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ी संगीत
11. क़व्वाली का इतिहास
12. अमीर खुसरो और क़व्वाली
13. भारतीय उपमहाद्वीप के प्रमुख क़व्वाल
14. ख़ानकाहों के क़व्वाल बनाम व्यावसायिक क़व्वाल
15. क़व्वाली का व्यवसायीकरण
16. कव्वालों की वर्तमान दशा
17. फिल्मों में क़व्वाली का रूप
18. भारतीय उपमहाद्वीप की विभिन्न भाषाओं में क़व्वाली
19. क़व्वाली के विभिन्न रूप
20. क़व्वाली से जुड़े शोध कार्य
21. क़व्वाली और सूफ़ीवाद का भविष्य
22. क़व्वाली का आर्थिक पक्ष
23. क़व्वाली गायकी और महिला क़व्वाल
24. क़व्वाली के घराने
25. उर्स और क़व्वाली
ऐसे ही किसी अन्य विषय पर शोधपत्र पूर्व अनुमति के साथ तैयार किया जा सकता है । शोध आलेख हिन्दी और अँग्रेजी में भेजे जा सकते हैं । शोध आलेख 2000 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिए । हिन्दी के शोध आलेख यूनिकोड मंगल में ही होने चाहिए । अँग्रेजी के आलेख टाइम्स रोमन में ही हो । फॉन्ट साइज 12 ही रखें । आलेख की वर्ड फाइल ईमेल द्वारा भेजें । आलेख के अंत में अपना नाम, पद नाम और संपर्क की अन्य जानकारी अवश्य लिखें । आलेख निम्नलिखित ईमेल पर ही भेजें : sufismwebinar@gmail.com
चुने गये शोध आलेखों को ISBN पुस्तक के रूप में यथासमय प्रकाशित किया जायेगा । फ़िर भी इस संदर्भ में अंतिम निर्णय का पूरा अधिकार महाविद्यालय को होगा ।
इस वेबिनार के लिए किसी प्रकार का कोई पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जायेगा । लेकिन पंजीकरण पत्र भरना अनिवार्य है । पंजीकरण पत्र भरने के लिए निम्नलिखित लिंक पर जायें : https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdMfsKfTny0Mr9ruSM6OZBdJwSI2lNqfPpCSo5KTM6aLpTllQ/viewform?usp=sf_link
इस वेबिनार से संबंधित सारी जानकारी निम्नलिखित ब्लॉग पर उपलब्ध रहेगी ।
संयोजक प्राचार्या
डॉ मनीष कुमार मिश्रा डॉ अनिता मन्ना
Wednesday 29 April 2020
Sunday 22 March 2020
किताबों का गाँव : भिलार ।
किताबों का गाँव : भिलार ।
( बौद्धिक,
सांस्कृतिक और जैविक खाद की त्रिवेणी । )
महाराष्ट्र
के सतारा जिले के महाबलेश्वर तालुके अंतर्गत आने वाले भिलार गाँव को किताबों के
गाँव के रूप में एक नई पहचान मिली है । 04 मई 2017 को यह नई पहचान इस गाँव
को मिली । तत्कालीन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फड्नविस एवं
शिक्षा मंत्री श्री विनोद तावड़े जी ने इसे सरकारी रूप से प्रोत्साहित किया । राज्य
मराठी विकास संस्था एवं महाराष्ट्र शासन मराठी भाषा विभाग ने इसके कार्यान्वयन की
ज़िम्मेदारी ली । 02 से 03 किलो मीटर के बीच फैला हुआ यह गाँव मशहूर हिल स्टेशन
पंचगनी और महाबलेश्वर के बीच में है । पंचगनी / पांचगणी से 05 किलो मीटर ऊपर
की तरफ और महाबलेश्वर से 14 किलो मीटर नीचे की तरफ ।
गाँव में ऐसे 30 केंद्र बनाये
गये हैं जहां बैठकर पुस्तक प्रेमी किताबें पढ़ सकते हैं । इतिहास, दर्शन, साहित्य, कवितायें, आत्मकथाएँ, जीवनी इत्यादि से संबंधित किताबें यहाँ
उपलब्ध हैं । सरकार ने अपनी तरफ से कुर्सियाँ,
टेबल, सजावटी छाते, काँच की आलमारी समेत कई सुविधायें सरकार की तरफ से गाँव वालों को उपलब्ध कराई गयी हैं
जिससे वे पुस्तक प्रेमियों को बेहतर सुविधा प्रदान कर सकें । शुरुआत में सरकार की
तरफ से पंद्रह हजार पुस्तकें गाँव में उपलब्ध कराई गईं थी जो की तीन सालों में
बढ़कर क़रीब चालीस हजार के क़रीब पहुँच रही है ।
( यह नक्शा पुस्तकांच
गाँव वर्ष पूर्ती सोहड़ा नामक पत्रिका से लिया गया है । जो कि राज्य मराठी
संस्था द्वारा ही 04 मई 2018 को प्रकाशित हुई । )
किताबों के इस गाँव
का बोध चिन्ह नीचे दिया गया है । संत तुकाराम के अभंग की एक पंक्ति को इसके
ऊपर लिखा गया है । पंक्ति है - आम्हां घरीं धन शब्दांचींच रत्ने | अर्थात – हमारे घर जो धन है वो शब्द रूपी रत्नों
के रूप में ही है । साथ ही किताब के बीच में
स्ट्राबेरी को बनाया गया है जो इस गाँव की दूसरी बड़ी पहचान है ।
वैसे इस गाँव में गूलर के भी कई पेड़ हैं जो कि अपने आप में खास बात है ।
यहाँ मराठी की पुस्तकें बहुतायत में हैं लेकिन
अब हिन्दी और अँग्रेजी की भी किताबें उपलब्ध कराई जा रही हैं । फ़िलहाल
अँग्रेजी की चार हज़ार के क़रीब और हिन्दी की 200 से 300 पुस्तकें उपलब्ध हैं । किताबों
की संख्या यहाँ लगातार बढ़ रही है । कार्यालय संयोजक बालाजी नारायण हड़दे जी
ने व्यक्तिगत बात चीत के दौरान बताया कि हाल ही में महाराष्ट्र के कद्दावर नेता
श्री शरद पवार जी ने दस लाख रुपये मूल्य की किताबें दान दीं । कोल्हापुर
विद्यापीठ की तरफ से भी पाँच सौ से अधिक किताबें उपहार रूप में मिली हैं । यहाँ के कार्यालय की पूर्व अनुमति लेकर कोई भी व्यक्ति
या संस्था यहाँ किताबें दे सकता है । कार्यालय में संपर्क का पता निम्नलिखित है –
प्रकल्प कार्यालय
द्वारा- श्री.
शशिकांत भिलारे
कृषीकांचन, मु.
पो. भिलारे,
ता.महाबळेश्वर, जि.सातारा
संपर्क-
02168-250111
श्री. व्यंकट-
08888230551
राज्य मराठी
विकास संस्था, मुंबई
(महाराष्ट्र
शासन पुरस्कृत)
एलफिन्स्टन
तांत्रिक विद्यालय,
३, महापालिका
मार्ग,
धोबीतलाव,मुंबई
४०० ००१
दूरध्वनी -
२२६३१३२५ / २२६५३९६६
इस योजना को शुरू करने के पीछे सरकार
के कुछ मुख्य उद्देश्य थे । जैसे कि -
1. वाचन संस्कृति को बढ़ावा देना ।
2.
मराठी भाषा के प्रचार – प्रसार
में योगदान देना ।
3.
पर्यटन को बढ़ावा देना ।
4.
गाँव में ही रोज़गार के नये अवसर
उपलब्ध कराना ।
5.
गाँव से पलायन को रोकना ।
( यह नक्शा पुस्तकांच
गाँव वर्ष पूर्ती सोहड़ा नामक पत्रिका से लिया गया है । जो कि राज्य मराठी
संस्था द्वारा ही 04 मई 2018 को प्रकाशित हुई । )
तीन दिवसीय पेंटिंग कैंप लगाकर गाँव के स्वरूप
को 75 कलाकारों की मदद से इस तरह बनाया गया कि गाँव की मुख्य सड़क से ही सभी
पुस्तक उप केन्द्रों तक पहुँचा जा सके । रंगीन और आकर्षक बोर्ड बनाये गये । जिन
घरों को पुस्तक उप केंद्र के रूप में चुना गया उनके दालान को भी आकर्षक रूप से
सजाया गया । स्वत्व नामक NGO का इस
कलात्मक कार्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा । अब तो गाँव की मुख्य सड़क भी सीमेंट की
बना दी गयी है । गाँव के इन घरों के चयन के लिए गाँव वालों से आवेदन मंगाये गये और
उनमें से अधिकांश उन घरों को चुना गया जिनके घर के दालान या अहाते में किताबें
रखने की पर्याप्त जगह हो । गाँव के घरों के अतिरिक्त विद्यालय और मंदिर
जैसे स्थल पर भी उप केंद्र बनाये गये ।
यह
गाँव विश्व का दूसरा और एशिया का पहला किताब गाँव है । पहला
स्थान ब्रिटेन के हे-ओन-वे गाँव का है । लेकिन गाँव वालों की सीधी भागीदारी
के साथ सरकारी सहयोग से चलने वाला यह इकलौता प्रकल्प है । ब्रिटेन के हे-ओन-वे गाँव
में प्रकाशकों की भागीदारी बहुत बड़ी है । भिलार गाँव की सरपंच श्रीमती वंदना
प्रवीण भिलार के पति प्रवीण जी , गाँव अन्य रहिवासियों तथा
कार्यालय संयोजक श्री बालाजी भिलार से बातचीत के माध्यम गाँव को लेकर जो भावी
योजनाएँ चर्चा में हैं उनकी जानकारी मिली । ये भावी योजनाएँ निम्नलिखित हो सकती हैं
–
1. किताबों
का डिजिटलीकरण करते हुए उन्हें उपलब्ध कराना ।
2. अडियो
बुक की व्यवस्था करना ।
3. साहित्यिक
गोष्ठियों, परिसंवादों के लिए जगह उपलब्ध
कराना ।
4. किताबों
के लोकार्पण, साहित्यिक उत्सवों, व्याख्यानों की व्यवस्था करना ।
5. अन्य
भारतीय एवं विश्व साहित्य को जगह देना ।
6. वेब
पोर्टल, डेटाबेस, मोबाईल एप
इत्यादि तकनीकी साधनों की व्यवस्था ।
7. गाँव
की अन्य विशेषताओं से लोगों को अवगत कराना ।
8. स्कूल
/ कालेज के विद्यार्थियों के लिए गाँव में ही रहने की किफ़ायती दर पर व्यवस्था करना
।
9. ज्ञानपीठ
और साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकारों के साहित्य के लिए विशेष
वीथिकाओं का प्रबंधन ।
10. एक बड़े पुस्तकालय भवन की संभावना पर काम ।
11. देश विदेश के सभी प्रकाशकों की भागीदारी पर रूप
रेखा तैयार करना ।
गाँव का सम्पूर्ण
विद्युतीकरण हो चुका है । घर-घर में पीने के साफ पानी सप्लाई की
व्यवस्था है । गाँव की अधिकांश आबादी मराठा समाज से जुड़ी है । बोरवेल और
कुएं भी पर्याप्त संख्या में हैं । गाँव में ही तीन विद्यालय हैं ।
महाविद्यालय पांचगनी / पंचगनी में है । गाँव के अंदर ही करीब 150 से 200 लोगों के
रहने की व्यवस्था छोटे – छोटे होटलों के माध्यम से हो गई है । कई गाँव वाले अपने
घरों में भी रहने खाने की सुविधा प्रदान करते हैं । इससे उन्हें रोजगार का नया
साधन भी मिल गया है ।
पुस्तक गाँव क्रे रूप में प्रसिद्ध होने से पहले
यह गाँव अपनी स्ट्राबेरी की खेती के लिए भी जाना जाता रहा है । पूरे महाबलेश्वर
क्षेत्र से जितनी स्ट्राबेरी बाहर भेजी जाती है, उसका एक
बड़ा हिस्सा इसी भिलार गाँव से आता है । ओर्गेनिक खाद्य पदार्थों की सप्लाई और गोरमा / Gourmet
फूड
विशेषज्ञ श्री सुनील सिंह जी ने बताया कि भिलार गाँव की स्ट्राबेरी की
गुणवत्ता अच्छी है । यहाँ प्रति वर्ष लगभग तीन हजार मैट्रीक टन स्ट्राबेरी
पैदा होती है जिसकी बाजार में क़ीमत 50 से 60 करोड़ रुपये की है । स्ट्राबेरी
की खेती का समय अगस्त से मार्च तक रहता है । नाभिया, आर वन और स्वीट चार्ली यहाँ की
स्ट्राबेरी के मुख्य प्रकार हैं । रिलायंस, मोर, स्टार बजार, बिग बजार, बिग बास्केट और फ्युचर ग्रुप जैसी बड़ी कंपनिया
यहाँ से स्ट्राबेरी ख़रीदती हैं । गाँव के ही अक्षय भिलार के खेत में हमें जाने का
मौका मिला । वहाँ मंचिंग से लेकर ड्रिप इरिगेशन की पूरो जानकारी
उन्होने दी । मिक्स क्ल्टीवेशन के माध्यम से ये किसान गोभी, मिर्च, बैगन, टमाटर, लहसुन, प्याज, मटर, हल्दी, गाजर इत्यादि
भी उगा लेते हैं । धान और गेहूं की भी यहाँ अच्छी पैदावार है । एग्ज़ोटिक (
EXOTIC ) सब्जियों की पैदावार को लेकर भी
ये लोग अब सक्रिय हो रहे हैं ।
( खुद की
यात्रा के दौरान ली गई तस्वीरें । दिनांक 14 मार्च 2020 – भिलार ,महाबलेश्वर )
जिन एग्ज़ोटिक
( EXOTIC )
सब्जियों
की पैदावार को लेकर यहाँ संभावनाएं हैं, उनकी सूची इस
प्रकार है –
1. लेक्टस
(Lettuce)
2.
आईस बर्ग ( IceBerge )
3.
ब्रोकोली
4.
चेरी टोमॅटो
5.
चायनीज़ कैबेज
6.
सेलरी ( Celery)
7.
रोज़मेरी
8.
ओरिगेनो
9.
केल ( Baby Kale)
10. बेबी
कैरेट
11. अस्परागस
( Asparagus)
12. नालकोल
13. बेजिल
14. जुगनी
15. बेबी
बीट रूट
16. ओर्गेनिक
टर्मरिक
17. मलबेरी
18. गूसबेरी
इन उपर्युक्त
सब्जियों,सलाद पत्तियों और मसालों
में कुछ तो ऐसे हैं हमारे यहाँ भोजन में पहले से शामिल रहे हैं तो कई ऐसे भी हैं
जो मुख्य रूप से हमारे यहाँ पैदा नहीं होते थे । एग्ज़ोटिक (
EXOTIC ) सब्जियों के उत्पादन से सुनील जी
का यही अभिप्राय था कि तमाम देशी-विदेशी सब्ज़ियों,सलादों और
मसालों में से जिन्हें यहाँ पैदा किया जा सके और जिनकी बाजार में अच्छी माँग और
कीमत है उसकी खेती को प्रोत्साहित करना । अपनी बात का प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाने के
लिए वे हमें भिलार से महाबलेश्वर लेकर गये जहां उन्होने हमारी मुलाक़ात श्रीमती
रूपल तेजानी जी से कराई । रूपल जी ड्रीम फार्म की मालकिन हैं और अपने पाँच
एकड़ के फार्म में एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों की खेती बड़ी लगन से
करवाती हैं ।
श्रीमती
रूपल तेजानी से मिलकर और इन तमाम एग्ज़ोटिक (
EXOTIC ) सब्जियों की खेती को देखकर इतना तो
समझ में आ ही गया कि किताबों के गाँव भिलार में इको और एग्रो टूरिजम की
भी अपार संभावनाएं हैं । बाकी साहित्यिक और अकादमिक गतिविधियां इसमें सहायक ही होंगी
। इस बात को गाँव वाले भी अच्छी तरह समझ रहे हैं । किताबों का गाँव घोषित होने के बाद
से ही गाँव में आवास और भोजन जैसी सुविधाओं का विकास हुआ । दस से बीस हजार रुपये
की नौकरी के लिए मुंबई – पुणे का रुख करनेवाले लोग अब गाँव में ही रोज़गार की संभावनाएं
देखने लगे हैं । पहाड़ी इलाकों के लिए यह बहुत बड़ी बात है ।
पहाड़ों की बंद किवाड़ों पर उम्मीद
इन अभिनव प्रयोगों के माध्यम से दस्तक दे रही है । आवश्यकता इस तरह के प्रयोग लगातार
करने की है । इनमें सरकार और जन भागीदारी दोनों ज़रूरी है । किताबों का गाँव एक कामयाब
प्रयोग लग रहा है । आशा है दिन ब दिन किताबों का गाँव समृद्ध और संपन्न होते हुए अपनी
पहचान को वैश्विक स्तर पर कई संदर्भों में दर्ज़ करायेगा । स्ट्राबेरी, इको और एग्रो टूरिजम,
एग्ज़ोटिक( EXOTIC ) सब्जियां, होटल व्यवसाय और खूब सारी किताबें इसके संभावित
क्षेत्र हो सकते हैं । आज यह गाँव बौद्धिक, सांस्कृतिक एवं जैविक खाद की त्रिवेणी बनकर उभरा है ।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
सहायक अध्यापक – हिन्दी विभाग
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
पड्घा रोड़, गांधारे गाँव
कल्याण-पश्चिम 421301
महाराष्ट्र ।
8090100900 / 9082556682
संदर्भ ग्रंथ सूची :
1. पुस्तकांच
गाँव भिलार : वर्ष पूर्ति सोहड़ा, 04 मई 2018 ।
संपादक – डा. आनंद काटीकर । प्रकाशक – संचालक,राज्य मराठी
विकास संस्था, मुंबई ।
4.
BHILAR- A VILLAGE OF BOOKS- : CHALLENGES AND OPPORTUNITIES -Mangesh S. Talmale, eISSN No. 2394-2479, http://www.klibjlis.com.“Knowledge
Librarian” An International Peer Reviewed Bilingual E-Journal of Library and
Information Science Volume: 04, Issue: 06, Nov. – Dec. 2017 Pg. No. 127-131
6.
SOCIO-ECONOMIC DEVELOPMENT IN MAHABALESHWAR
AND JAOLI TAHSIL OF SATARA DISTRICT MAHARASHTRA STATE INDIA - Dr. Rajendra S. Suryawanshi, Mr.
Jitendra M. Godase. International Journal of Research in Social Sciences Vol. 7
Issue 12, December 2017, ISSN: 2249-2496 Impact Factor: 7.081 Journal Homepage:
http://www.ijmra.us, Email: editorijmie@gmail.com
7.
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