Saturday 22 June 2013

दो कोयल

फोन पे ,
बातों ही बातों में
उसने कहा -
ध्यान से सुनो ,
 कोयल बोल रही है ।
सुनाई दिया ?
मैंने कहा -
हाँ ,
 दो कोयल बोल रही हैं ।
 एक मुझसे
और एक सब से ।

Friday 21 June 2013

नहीं रहे डॉ शिव कुमार मिश्र जी



मार्क्सवादी आलोचक शिवकुमार मिश्र

हिन्दी के प्रख्यात मार्क्सवादी आलोचक शिवकुमार मिश्र का आज सुबह निधन हो गया। विनम्र श्रद्धांजलि .मि‍श्रजी का जन्‍म 3 सि‍तम्‍बर 1930 को कानपुर के महोली नामक गांव में हुआ था . मि‍श्रजी ने आलोचना की तकरीबन 15 कि‍ताबें लि‍खी हैं और 10 से ज्‍यादा कि‍ताबें संपादि‍त की हैं।

Thursday 20 June 2013

तुम चले जाओगे --रचनाकार: अशोक वाजपेयी

तुम चले जाओगे

पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे

जैसे रह जाती है

पहली बारिश के बाद 

हवा में धरती की सोंधी-सी गंध 

भोर के उजास में 

थोड़ा-सा चंद्रमा 


खंडहर हो रहे मंदिर में


अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार|

तुम चले जाओगे


पर थोड़ी-सी हँसी


आँखों की थोड़ी-सी चमक


हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी


यहीं रह जाएँगे


प्रेम के इस सुनसान में|

तुम चले जाओगे 


पर मेरे पास 


रह जाएगी


प्रार्थना की तरह पवित्र 


और अदम्य


तुम्हारी उपस्थिति,


छंद की तरह गूँजता


तुम्हारे पास होने का अहसास|

तुम चले जाओगे


और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे|

--रचनाकार: अशोक वाजपेयी 

Tuesday 18 June 2013

कनेक्टिविटी

              उनसे फोन पे बात हो रही थी
          मैंने पूछा – कहाँ  हो
          जवाब आया - छत पे 
          मैंने फ़िर पूछा –
          छत पे क्या कर रही हो ?
          यहाँ कनेक्टिविटी मिल जाती है – उनका जवाब
          मैंने कहा –
          अभी भी छत पे  कनेक्टिविटी खोजती हो ?
          उसने कहा –

          हाँ, मोबाईल की कनेक्टिविटी यहीं मिलती है ।   

Tuesday 21 May 2013

आवारगी - 10


              









               कोई शिकवा ना कोई गिला है
               क्या कहूँ तुमसे क्या-क्या मिला है

               याद तुझको बहुत यूं तो करता हूँ लेकिन,
               तुझसे कभी भी , कुछ ना कहा है
  
               मुझको अभी भी तु चाहता है
               इसी बात से ख़ुद को बहला लिया है

               तेरे सवालों में उलझा हूँ ऐसे
               जैसे कि कोई, ब्रम्ह दर्शन बड़ा है

               मेरा होकर भी तु मेरा नहीं है
               क़िस्मत का कैसा अजब फैसला है

               तुझसे मिलके मेरी आँखें नम हैं मगर
               तुझसे मिलने का, फ़िर इरादा मेरा है