Tuesday 28 February 2012

VIJAY BHAI PANDIT


vijay narayan pandit

BIO-DATA
Name : VIJAYNARAYAN RAMCHARAN PANDIT
Address : 101, Matrukripa Apartment, Joshibaug,
Kalyan (W) – 421301.
Tel. No.: (0251) 2314980 Mobile : 9820622436
Date of Birth : 2nd March, 1959
Occupation : Business
Business : Managing Patner, M/s. Matrukripa Dal & Flour Mills,
Organization : Manufacture of Double Trishul & Panchratna
(Regd. Trademarks) gram four.
Factory Address : A – 58, Additioanl Ambernath M.I.D.C.,
Anandnagar M.I.D.C., Ambernath,
Tel. No. (0251) 2620118
Office Address : M/s. Matrukripa Trading Co.
New Zunzarrao Nagar, New Station Road,
Kalyan (W) – 421301.
Tel. No. (0251) 2213178 / 368, 2320968
Fax : (0251) 2204713
Email : saiadvertising@rediffmail.com / vijayanarayanpandit@gmail.com
Blog : vijaynarayanpanditl.blogspot.com
Special interest : Social Service
Social Institution :
· Director, Kalyan Agriculture Produce Market Committee
· General Secretary - The Kalyan Wholesale Merchants Association
· General Secretary – Kalyan Vypari Mahamandal.
· General Secretary – Kalyan Wholesale Merchants Education society (Regd.), Kalyan
· General Secretary – College Governing Council, K. M. Agrawal College of Arts, Science & Commerce, Kalyan (W), (Degree College with about 5000 students)
· General secretary – College Governing Council, L.D.Sonawane College of Arts, Commerce & Science, Kalyan (W)
· President Anubandh Sanstha working in slum area.
· President – Kalyan Bharat Scout Guide Sthanik Sanstha.
· General Secretary – College Governing Council, L. D. Sonawane Jr. College Arts, Science & Commerce, Kalyan (W)
· General Secretary – College Governing Council, L. D. Sonawane Institute of Management (B.M.S. Degree), Kalyan (W)
· General Secretary – College Governing Council, L. D. Sonawane College of Law (First Law Degree College in Kalyan Dombivli Area) (Total strength of L. D. Sonawane Group of College more than 1500)
· Founder Trustee, Bholanath Mishra Degree College, Dhaniyamau Jaunpur, (Uttar Pradesh)
· Patron, Prabhuram Vidya Mandir Hindi High School, Kolsewadi, Kalyan (E)
· General Secretary, Hindi Bhashi Jankalyan Shikshan Sanstha (Regd.), Kalyan (E)
· Trustee Uttar Bhartiya Samaj Kalyan Parishad, Kalyan
· Trustee, Uttar Bhartiya Sangh, Mumbai.
· Vice President – Giants Group of Kalyan, Kalyan
· Chairman, Yashoda Charitable Trust, Kalyan
· Trustee, Vitthalwadi Hanuman Mandir Trust, Vitthalwadi, Tal. Kalyan
· Trustee, OM Kabaddi Sangh, Kalyan
· Trustee, Shiv Mandir Jirnoddar Trust, Kalyan
· Member, Friends of Trees, Kalyan
· Vice president, Gyaneshwar Parayan Samiti, Kalyan
· President, Brahmin Samaj Kalyan, Parishad, Kalyan
· Patron, Uttar Darshan (Hindi Fortnightly Magazine), Kalyan
· President, Yog Vedanta Seva Samiti, Kalyan
· President, Sanskrit Sangam, Kalyan
· President, Hare Krishna Satsang Mandal, Kalyan
· Patron, Kalyan Sanskrit Manch, Kalyan
· Patron, Prajaraj, (Gujarathi Weekly Newspaper), Kalyan
· Patron, Kewal EK (Hindi monthly Magazine), Kalyan
Special Honours
· “UTTAR SAMAJ SHREE” Felicitated by Abhiyan Sanstha, Mumbai, By the Hand of Hon’ble Shree Rajnath Singh, in the presence of former Union Minister Hon’ble Shree Shatrughna Sinha & Other dignitaries in the presence of about 15,000 to 20,000 audiences.
· “UTTAR PRADESH RATNA” Felicitated by Uttar Pradeshiya Maha Sangh, Mumbai, by the hand of union Minister Hon’ble Shri Arjun Singh Witnessed by more than 1 Lakh people.
· “Samaj Ratna” Felicitated by Bolibarkha Sanstha, Dombivli.
· “Manav Ratna” Felicitated by Uttar Bhartiya Janta Parishad, Mumbai, by the hand of former Union Home Minister for State Hon’ble Shri Swami Chinmayanand.
· “Vyapar Ratna” Feliciated by The Kalyan Wholesale Merchants Association, Kalyan.
Hobbies : Playing Badminton, Reading, Speech, Long Driving, Music
Books : 1) Sanskriti Sangam
2) Mann ke Sanche Ki Mitti
3) Fir Kisi Mod Par
4) Bodh Katha

vijay bhai pandit programme



vijay bhai birthday card


Friday 24 February 2012

international seminar on international economic and cultural relations of india

on 30-31 March 2012 k.m.agrawal college ,kalyan is organising TWO DAYS INTERDISCIPLINARY INTERNATIONAL SEMINAR on INTERNATIONAL ECONOMIC AND CULTURAL RELATIONS OF INDIA .
 for detail contact
manish mishra- 08080303132

Monday 20 February 2012

'पत्रकारिता का बदलता स्वरुप और न्यू मीडिया'. अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी (21 मार्च 2012)

 'पत्रकारिता का बदलता स्वरुप और न्यू मीडिया'. अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी (21 मार्च 2012)



मित्रों, दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है. यह गोष्ठी 21 मार्च 2012 को होगी.

इस गोष्ठी का विषय है --- 'पत्रकारिता का बदलता स्वरुप और न्यू मीडिया'. 

आप सभी से इस संगोष्ठी के लिए आलेख आमंत्रित हैं.  'सोशल मीडिया, वैकल्पिक मीडिया, ब्लॉग और न्यू मीडिया से सम्बंधित अन्य विषयों पर अपने आलेख 29 फरवरी 2012 तक हमें भेज सकते हैं. आलेखों का प्रकाशन पुस्तक रूप में किया जायेगा. अध्यापकों के अतिरिक्त शोधार्थी, पत्रकार और ब्लॉगर भी इस संगोष्ठी के लिए अपने आलेख प्रेषित कर सकते हैं. कुछ चयनित आलेखों के सार को संगोष्ठी के दौरान पदने का अवसर भी दिया जायेगा जिसके उपरांत विशेषज्ञ विद्वान अपने विचार रखेंगे. स्वीकृत आलेखों पर लेखकों को आलेख प्रस्तुतिकरण का प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा.

संगोष्ठी के संभावित वक्ताओं में डॉ. अमरनाथ अमर (दूरदर्शन), डॉ. वर्तिका नंदा (मीडिया लेखिका), दिलीप मंडल (न्यू मीडिया विशेषज्ञ), अनीता कपूर (चर्चित ब्लॉगर), प्रो. अशोक मिश्र आदि हैं.

इस संगोष्ठी की सूचना के प्रकाशन के साथ ही हमें कैलिफोर्निया, न्यूजीलैंड और मोरिशस से कुछ मित्रों का आगमन सुनिश्चित हुआ है. 

संगोष्ठी में भाग लेने वाले प्रतिभागियों से किसी भी प्रकार का पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जायेगा. प्रतिभागियों को अपने रहने और रात्रि भोजन की व्यवस्था स्वयं करनी होगी तथा उन्हें किसी भी प्रकार का मार्गव्यय प्रदान नहीं किया जायेगा.

आपके आलेख drharisharora@gmail.com, davseminar@gmail.com पर भेजे जा सकते हैं. 29 फरवरी, 2012 तक प्राप्त होने वाले आलेखों को पुस्तक में स्थान मिलना संभव हो पायेगा. शेष आलेखों के लिए पुस्तक के पुनर्प्रकाशन पर विचार किया जायेगा.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :-
drharisharora@gmail.com
+919811687144

डॉ हरीश अरोड़ा
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य)
दिल्ली विश्वविद्यालय
नेहरु नगर, नयी दिल्ली-११००६५

Sunday 19 February 2012

जगन्नाथ जी के दर्शन और कोणार्क सूर्य मंदिर


जगन्नाथ जी के दर्शन और कोणार्क सूर्य मंदिर देखने के लिए मैं डॉ कमलनी पाणिग्रही और उनके पिता जी के साथ सुबह करीब 9 बजे सैंट्रो कार से निकले । कार देवाशीष जी चला रहे थे , जो पाणिग्रही परिवार के मित्र थे । हम लोग करीब 55 – 60 किलो मीटर की यात्रा करके कोणार्क मंदिर पहुंचे । वहाँ पहुँच के सबसे पहले हमने नारियल का पानी पिया और फिर कोणार्क मंदिर में जाने के लिए टिकिट लिया । प्रति व्यक्ति शायद 10 रुपए का टिकिट था । मंदिर का प्रवेशद्वार साफ-सुथरा था । रास्ते के दोनों तरफ बगीचे लगाए गए थे, जिनमे सुंदर फूल थे । कई गाइड हमारे पास आए लेकिन हमें गाइड की जरूरत नहीं थी । कमलनी मैडम के 88 वर्षीय पिता मुझे सब बता रहे थे । हम मंदिर के करीब थे और पुलिश वाले सब की जांच सुरक्षा की दृष्टि से कर रहे थे । हमारी भी जांच हुई और हमें मंदिर परिसर में छोड़ दिया गया । मंदिर का वह दर्शन बड़ा ही मनमोहक था । वो प्राचीन इमारत अपने आप में बोलता हुआ इतिहास लगी । इमारत में की गयी नक्कासी और हर नक्कासी दार मूर्ति का सौंदर्य अप्रतिम था । सूर्य मंदिर के मुख्य गर्भ को तो रेत डालकर और पत्थरों की साहायता से बंद कर दिया गया है । ऐसा सुरक्षा की दृष्टि से किया गया है । मंदिर के एकदम ऊपरी हिस्से पर बड़े ताकतवर चुंबक थे जिसे कहते हैं कि अंग्रेज़ निकालकर अपने साथ ले गये । मंदिर के बाहरी भाग में भी मरम्मत का काम हो रहा है । मंदिर को लेकर जो नई बात मुझे ज्ञात हुई वो थी इसकी दीवारों पर खजुराहो जैसी मूर्ति कलाएं । इन मूर्तियों की भाव –भंगिमाएँ काम रत जोड़ियों द्वारा काम की विभिन्न मुद्राओं पर अधिक केन्द्रित हैं । पूरा मंदिर एक रथ का रूप है जिसमें कई पहिये भी बने हुवे हैं । रथ के आगे कई घोड़े हैं जो इस रथ को खीचने की मुद्रा में हैं ।

 मैं ने इस मंदिर की मूर्तियों की कई तस्वीरें ली और साथ ही पत्थर का छोटा सा कोणार्क पहिया भी जो इस मंदिर का प्रतीक है । उड़ीसा के कई घरों और होटलों के प्रवेश द्वार पे आप को यह पहिया दिख जाएगा , मानो यह पहिया उनके इतिहास के साथ-साथ उनके भविष्य को भी गति प्रदान करता है । उनका विश्वाश तो कम से कम  यही बताता था । कोणार्क की यादों को मन में सजोएं हमने भी अपनी गाड़ी के पहिये के साथ पुरी की तरफ रवाना हुवे । रास्ते में पिपली करके एक जगह भी पड़ा जो अपने विशेष प्रकार की कलाकृतियों और कपड़ों पर नक्काशी और कढ़ाई के काम के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है । उड़ीसा की कलात्मक पहचान में पिपली का महत्वपूर्ण योगदान है । वहाँ सड़क के दोनों किनारों पर सजी दुकानों को देखकर आप बिना रुके नहीं रह सकते । हम भी रुके और थोड़ी ख़रीदारी के बाद आगे बढ़ गए ।

आगे का नजारा था और भी मोहक , मरीन ड्राइव का नजारा । जी हाँ , अभी मुंबई का ही मरीन ड्राइव देखा था लेकिन कोणार्क से पुरी आते हुवे लंबा मरीन ड्राइव का इलाका देख मन प्रसन्न हो गया । समुद्र इस पूरे किनारे पर बहुत गहरा है इसलिए कोई यहा नहाता नहीं लेकिन यहाँ शाम को चहल कदमी करने कई लोग आते है । यह इलाका और पास के जंगल यहाँ के मुख्य पिकनिक स्पाट हैं । प्रेमी जोड़ों का भी यह प्रिय स्थल था । कई जोड़े दुनिया से बेखबर एक-दूसरे की आँखों में यहाँ डूबे हुवे मिले । क्मलनी मैडम ने मज़ाक करते हुवे कहा- ये पहले एक-दूसरे की आँखों में डूबते है और जब प्यार में कुछ गड़बड़ हो जाता है तो समुद्र में डूबकर मरने भी यही आते हैं । वहाँ थोड़ी देर रुकने के बाद हम पुरी के लिए चल दिये ।

हम पुरी पहुंचे और नन्दा बाबू ( कमलनी जी के जीजाजी ) के आदेशानुसार भाई रमेश हमारे इंतजार में खड़े थे । रमेश जो पुलिश विभाग में हैं और मंदिर मे ही तैनात थे , इसलिए उनका साथ रहना हमारे लिए बड़ा फायदेमंद रहा । जगन्नाथ पुरी देश का एक मात्र मंदिर है जिसके अंदर के प्रशासन में भारत सरकार का दखल नहीं चलता । अंदर की सारी व्यवस्था मंदिर ट्रस्ट और मंदिर के पुजारियों और पंडों द्वारा की जाती है । लेकिन रमेश जी स्थानिक थे और पुलिश में थे इसलिए उन्हे सभी पहचानते थे । हम लोग मोबाईल, कैमरा, लेदर का पर्स , बेल्ट और जूते गाड़ी में ही छोडकर मंदिर की तरफ चल पड़े । ये व्स्तुए मंदिर परिसर में वर्जित हैं , वैसे हम नियम से कार भी मंदिर के उतने करीब नहीं ले जा सकते थे लेकिन रमेश जी के कारण किसी ने हमारी गाड़ी रोकी नहीं ।

 मंदिर में प्रवेश मन को आल्हादित करने वाला था । भव्य और दिव्य मंदिर । मंदिर के अंदर आते ही सीढ़ियों पर बैठा एक पुजारी बास की एक छड़ी से धीरे से सर पर मारते हैं , जिसके बारे में माना जाता है की इस छड़ी की मार से ही आप के सारे दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं । मेरे भी सर पे पुजारी ने मारा , बदले में वो अपेक्षा कर रहे थे कि मैं उन्हे कुछ दक्षिणा भी दूँ लेकिन रमेश जी ने कुछ भी देने से इशारे में ही मना किया । दरअसल उस मंदिर में इतने पंडे –पुजारी हैं कि जेब से कुछ निकालना मतलब मुसीबत में फसना ही था । मुख्य मंदिर में जाने से पहले हमने कई मंदिरों के दर्शन किए । वहाँ दीप जलाकर प्रार्थना भी की । फिर हम जगन्नाथ जी के मुख्य मंदिर में गए, भीड़ बहुत थी लेकिन रमेश जी ऐसी जगह ले गए जहां से जगन्नाथ जी की मूर्ति साफ दिखाई पड़ रही थी । बलराम, सुभद्रा और जगन्नाथ जी की मूर्ति एक विशेष आकर्षण से भरी थी । मुझे बताया गया की ये लकड़ी की मूर्तियाँ हर 14 साल में नई बनाई जाती है । नीम के जिस पेड़ में शंख , गदा और चक्र एक साथ दिखाई पड़ते हैं उस पेड़ को मूर्ति के लिए चुना जाता है । ऐसे पेड़ की खोज लगातार की जाती रहती है । पिछली बार ऐसा पेड़ उड़ीसा के ही खुर्दा नामक जगह में मिला था ।

जगन्नाथ जी के दर्शन के बाद हम मंदिर परिसर के ही कुछ और मंदिरों के दर्शन मे लग गए, जिनमे प्रमुख थे महालक्ष्मी माँ का मंदिर, कानपटा हनुमान जी के दर्शन और शनि देव के दर्शन । दर्शन के बाद हम मंदिर परिसर के ही आनंद बाजार नामक स्थल पे प्रसाद लेने आए, पर रमेश जी बोले की शुद्ध प्रसाद कंही और मंदिर परिसर में ही मिलता है जो मुख्य रूप से देशी घी का खाझा जैसा होता है । हमने प्रसाद वही से लिया और मंदिर परिसर से बाहर आ गए । बाहर सड़क के दोनों तरफ बाजार है, जहाँ से मैंने अपने लिए सम्भ्ल्पुरिया कुर्ते और कुछ मूर्तियाँ ली । फिर हम सभी ने शाकाहारी भोजन किया और पूरी समुद्र बीच पे आ गए । यह बीच भी बड़ा मोहक था । यहाँ लोग स्नान भी कर रहे थे , कई विदेशी पर्यटक भी यहाँ दिखे । यहाँ हम लोग थोड़ी देर बैठे रहे फिर सड़क के उस किनारे बने बिरला गेस्ट हाऊस में गए जिसका निर्माण कमलनी मैडम के पिताजी ने स्वयं करवाया था बिड़ला ग्रुप के कर्मचारी के रूप में । हमने वहाँ चाय पी। पाणिग्रही बाबू जी ने अपनी कई पुरानी यादें ताजा की और तन-मन की ताजगी के साथ हम भुवनेश्वर की तरफ लौट पड़े । रास्ते में रमेश जी उतर गए , हमने उनका आभार माना और फिर चल पड़े । काफी आगे आने पर रास्ते में बाटदेवी के मंदिर के पास रुके और उनके दर्शन कर वापस चल दिये । करीब 7.30 बजे हम घर वापस आ गए । मन में जगन्नाथ जी की छवि और कभी न भूलने वाली स्मृतिया लेकर ।

रात के खाने में बड़ी दीदी ने बाँस की चटनी खिलाई जो मैंने पहले कभी नहीं खाई थी । दीदी थी तो क्राइम ब्रांच फोरेंसिक विभाग में लेकिन धर्म और क्लाकृतियों में उनकी बहुत रुचि थी । उन्होने मुझे जगन्नाथ जी की मूर्ति भी उपहार में दी । दूसरे दिन जब सुबह मुझे स्टेशन छोडने आयी तो भाऊक हो उठी , मैं पाणिग्रही परिवार से पहली बार मिला था , लेकिन अब यह परिवार अपना ही लग रहा है । उड़ीसा की यह पहली यात्रा हमेशा याद रहेगी ।