बोध कथा-1 : गुजरे मगर जिस राह से हम
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किसी गाँव में सज्जन कुमार नामक एक संत स्वाभाव का व्यक्ति रहता था.उसकी दिनचर्या में एक ख़ास बात यह थी क़ि वह सुबह -शाम समुद्र के किनारे जा कर,वंहा किनारे पर छटपटाती मछलियों को वापस समुद्र में ड़ाल देता था. सज्जन कुमार क़ी इस आदत का कई लोग मजाक भी उड़ाते थे. घर पे भी कई बार उन्हें ताने सुनने पड़ते थे. लेकिन सज्जन कुमार ने कभी भी किसी क़ी परवाह नहीं क़ी.वह सुबह उठकर भगवान् को प्रणाम करते,और समुद्र क़ी तरफ निकल पड़ते.वंहा से वापस आ कर अपने खेतों पे काम करने चले जाते.शाम को खेतों पर से वापस आने के बाद,हल्का जलपान करते और फिर मछलियों क़ी मदद के लिए समुद्र के किनारे क़ी तरफ निकल पड़ते.वंहा से वापस आ कर भगवान को संध्या वंदन कर ,भोजन करने के बाद सो जाते.
एक दिन नित्य क़ी तरह सुबह-सुबह जब वे समुद्र के किनारे तड़प रही मछलियों को वापस समुद्र में ड़ाल रहे थे,तो वंहा एक साधू आये.वे काफी देर तक सज्जन कुमार के कार्य को चुप-चाप देखते रहे.फिर वे सज्जन कुमार के पास आ कर बोले ,''हे बालक ,यह तुम क्या कर रहे हो ?'' इस प्रश्न से सज्जन कुमार क़ी एकाग्रता भंग हुई .अपने पास एक साधू को खड़ा देख सज्जन कुमार ने पहले उन्हें प्रणाम किया फिर विनम्रता पूर्वक बोले ,''हे महात्मा,समुद्र क़ी तेज लहरों के साथ कई मछलियाँ किनारे आ जाती हैं और जल विहीन होकर तड़पने लगती हैं.उनका जीवन संकट में आ जाता है. मैं अपनी यथा शक्ति उन मछलियों को वापस समुद्र क़ी धारा में प्रवाहित कर उन्हें जीवन दान देता हूँ.''
सज्जन कुमार क़ी बाते सुन साधू प्रश्न हुए और उन्होंने कहा,'' यह तो बड़ा ही अच्छा काम है.लेकिन समुद्र के किनारे तो ऐसी लाखों मछलियाँ हैं.तुम कितनों को बचा सकोगे ?'' साधू क़ी बात का जवाब देते हुए सज्जन कुमार ने कहा,''हे महात्मा ,मैं सभी मछलियों को तो नहीं बचा सकता लेकिन जितनों को बचा सकता हूँ ,उनके लिए मैं रोज ही यह काम करता हूँ .'' यह बात सुन साधू अति प्रसन्न हुए. उन्होंने सज्जन कुमार को आशीर्वाद देते हुए कहा ,''हे सज्जन,तुम धन्य हो.तुम्हारी इच्छाशक्ति धन्य है.हम सभी को अपनी यथाशक्ति कार्य करना चाहिए.कार्य के स्वरूप या परिणाम क़ी चिंता हमे कमजोर बना देती है. सुखी रहो .''
इस तरह साधू महाराज वंहा से चले गए और सज्जन कुमार फिर से अपने काम में लग गए.काम करते हुए अनायास ही सज्जन कुमार के मुख से ये पंक्तियाँ निकल पड़ीं --
'' माना क़ी ना कर सके , गुलजार हम इस चमन को
मगर जिस राह से गुजरे ,खारे तो कम हुए .''
१- खारे-कांटे
Wednesday 10 March 2010
Tuesday 9 March 2010
खुबसूरत इरादों से शिकायत क्यूँ है ,
खुबसूरत इरादों से शिकायत क्यूँ है ,
हसीन प्यार के लम्हों से अदावत क्यूँ है ;
गले ना लगे तुम तो कोई बात नहीं ,
मेरी मोहब्बत से तुझको बगावत क्यूँ है ?
मेरे सपनों से तुझे अदावत क्यूँ है ,
मेरी वफ़ा की राहों से शिकायत क्यूँ है ;
नहीं रक्खा मुझे अपनी यादों में कोई बात नहीं ;
मुझे हँसता देख तेरे चेहरे पे राहत क्यूँ है /
हसीन प्यार के लम्हों से अदावत क्यूँ है ;
गले ना लगे तुम तो कोई बात नहीं ,
मेरी मोहब्बत से तुझको बगावत क्यूँ है ?
तेरी जफा की राहों से कब मैंने सवाल पूंछे ,
तेरे पीछे चलते सायों पे कब मैंने जवाब पूंछे ।
तू निभा न सकी कसमे कोई बात नहीं ,
पूरे हुए वादों से तू आहत क्यूँ है ,
मेरे सपनों से तुझे अदावत क्यूँ है ,
मेरी वफ़ा की राहों से शिकायत क्यूँ है ;
नहीं रक्खा मुझे अपनी यादों में कोई बात नहीं ;
मुझे हँसता देख तेरे चेहरे पे राहत क्यूँ है /
Monday 8 March 2010
क़त्ल न कर मुझे जरा जी लेने दे ,
क़त्ल न कर मुझे जरा जी लेने दे ,
दिल के जख्मों को जरा सी लेने दे ;
तेरे चेहरे की घटाओं को छू लेने दे ,
तेरी आखों के कतरों को पी लेने दे ;
क़त्ल न कर मुझे जरा जी लेने दे ,
इतनी बेरुखी भी क्या मेरे दिलबर ,
तेरे लबों को जी भर के पी लेने दे ,
दुआ देगा मेरे दिल का हर टुकड़ा तेरी जफ़ाओं को ,
तेरी अदाओं पे मुझे मर लेने दे;
क़त्ल न कर मुझे जरा जी लेने दे ,
तेरी बेवफाई का लुत्फ़ जरा ले लूँ कुछ पल ,
तेरी बिखरी हंसी को जरा सी लेने दे ,
यादों को कुछ पल जी लेने दे ,
कातिल तेरी तकलीफों को पी लेने दे ,
आ तू अपने अरमान हसीन कर ले ,
मेरी चाहों को अतीत कर ले ,
जान निकालना जरा धीमे धीमे ,
तू अपने सपनों को रंगीन कर ले /
आज विश्व महिला दिवस पर
आज विश्व महिला दिवस पर भारत सरकार भारतीय महिलाओं को एक उपहार देना चाहती थी.वह उपहार था-३३% आरक्षण का. लेकिन राज्यसभा में यह काम हो नहीं पाया. कई लोग इस बिल के विरोध में खड़े हो गए.संसद क़ी गरिमा को भी शर्मशार किया गया.लेकिन प्रश्न यह उठता है क़ि यह विरोध कुछ संदर्भों में सही तो नहीं है ?
इस देश में आरक्षण की राजनीति शुरू ही हुई है ''वोट बैंक पालिसी '' के नाम पर. जो लोग औरतों के सशक्ति करण के नाम पर आरक्षण की बात कर रहे हैं,उनसे मैं यह पूछना चाहूँगा क़ि अपनी-अपनी पार्टी का टिकट बाटते वक्त वे क्यों महिलाओं को भूल जाते हैं. उस समय तो बस बाहुबली और पूंजीपति ही नजर आते हैं.साथ ही साथ संगठन में भी क्यों नहीं महत्वपूर्ण जगहों पर महिलाओं को नहीं रखा जाता. खाली ''रबर स्टंप' या ''सम्मान पूर्ण पद'' के ही योग्य महिलाओं को सीमित क्यों किया जा रहा है.एक और बात क़ि आखिर यह आरक्षण क़ी बैसाखी क्यों ? और अगर दी भी जा रही है तो आदिवाशी और पिछड़े वर्ग क़ी महिलाओं को तो इस आरक्षण में भी आरक्षण मिलना ही चाहिए.
मैं इस देश क़ी तमाम माताओं ,बहनों से हाथ जोडकर यही निवेदन करना चाहता हूँ क़ि ३३ नहीं ५० % संसद क़ि सीटों पर आपका ही अधिकार है,यह अधिकार आप को मिलना भी चाहिए.लेकिन आजादी के इतने सालों बाद भी यदि अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है तो कही ना कही इसके लिए आप लोग भी जिम्मेदार हैं.एक औरत होकर एक औरत के लिए अभी तक आपने क्या किया ? क्या सचमुच आप कुछ कर सकती हैं ?क्या आपको कुछ करने दिया जाएगा ?इस देश क़ी मध्यम वर्गीय महिलाएं आज भी इतनी संकुचित क्यों हैं ? पढ़ी-लिखी होने के बावजूद अपने निर्णय अपने तरीके से क्यों नहीं ले पा रही हैं ? अपने ही कमाए पैसे को अपनी इच्छा से खर्च क्यों नहीं कर पा रही हैं ? सारे अधिकारों से परिचित होने के बावजूद भी इस तरह घुट-घुट कर जीने को क्यों अपना प्रारब्ध मान बैठी हैं ?और अगर यही हालत रही तो ,यह आरक्षण मिल भी गया तो क्या लाभ होगा ? पहले आप लोगों को पर्दे में रखा जाता था ,अब तैयारी है क़ि आप को आगे कर परदे के पीछे से शासन चलाया जाए.क्या यह और भयानक स्थिति नहीं होगी ?
इन सभी षड्यंत्रों को समझना भी जरूरी है. आशा है आप लोग कुछ तो समझ ही रही होंगी.इस देश की सभी महिलाओं को यह ''सम्मान दिवस ''मुबारक हो.
इस देश में आरक्षण की राजनीति शुरू ही हुई है ''वोट बैंक पालिसी '' के नाम पर. जो लोग औरतों के सशक्ति करण के नाम पर आरक्षण की बात कर रहे हैं,उनसे मैं यह पूछना चाहूँगा क़ि अपनी-अपनी पार्टी का टिकट बाटते वक्त वे क्यों महिलाओं को भूल जाते हैं. उस समय तो बस बाहुबली और पूंजीपति ही नजर आते हैं.साथ ही साथ संगठन में भी क्यों नहीं महत्वपूर्ण जगहों पर महिलाओं को नहीं रखा जाता. खाली ''रबर स्टंप' या ''सम्मान पूर्ण पद'' के ही योग्य महिलाओं को सीमित क्यों किया जा रहा है.एक और बात क़ि आखिर यह आरक्षण क़ी बैसाखी क्यों ? और अगर दी भी जा रही है तो आदिवाशी और पिछड़े वर्ग क़ी महिलाओं को तो इस आरक्षण में भी आरक्षण मिलना ही चाहिए.
मैं इस देश क़ी तमाम माताओं ,बहनों से हाथ जोडकर यही निवेदन करना चाहता हूँ क़ि ३३ नहीं ५० % संसद क़ि सीटों पर आपका ही अधिकार है,यह अधिकार आप को मिलना भी चाहिए.लेकिन आजादी के इतने सालों बाद भी यदि अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है तो कही ना कही इसके लिए आप लोग भी जिम्मेदार हैं.एक औरत होकर एक औरत के लिए अभी तक आपने क्या किया ? क्या सचमुच आप कुछ कर सकती हैं ?क्या आपको कुछ करने दिया जाएगा ?इस देश क़ी मध्यम वर्गीय महिलाएं आज भी इतनी संकुचित क्यों हैं ? पढ़ी-लिखी होने के बावजूद अपने निर्णय अपने तरीके से क्यों नहीं ले पा रही हैं ? अपने ही कमाए पैसे को अपनी इच्छा से खर्च क्यों नहीं कर पा रही हैं ? सारे अधिकारों से परिचित होने के बावजूद भी इस तरह घुट-घुट कर जीने को क्यों अपना प्रारब्ध मान बैठी हैं ?और अगर यही हालत रही तो ,यह आरक्षण मिल भी गया तो क्या लाभ होगा ? पहले आप लोगों को पर्दे में रखा जाता था ,अब तैयारी है क़ि आप को आगे कर परदे के पीछे से शासन चलाया जाए.क्या यह और भयानक स्थिति नहीं होगी ?
इन सभी षड्यंत्रों को समझना भी जरूरी है. आशा है आप लोग कुछ तो समझ ही रही होंगी.इस देश की सभी महिलाओं को यह ''सम्मान दिवस ''मुबारक हो.
Sunday 7 March 2010
दो दिन का राष्ट्रीय सेमिनार :नई कविता पर
दो दिन का राष्ट्रीय सेमिनार :नई कविता पर **************
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मुंबई के यस.आई.ई.यस. महाविद्यालय सायन में आगामी १० और ११ मार्च २०१० को हिंदी विभाग क़ी तरफ से दो दिन का राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया जा रहा है. नई सदी के पहले दशक क़ी कविताओं पे पूरा सेमिनार केन्द्रित रहेगा.इस सेमिनार में देश-विदेश के कई जाने -माने विद्वान सहभागी हो रहे हैं.
यदि आप भी इस सेमिनार में सहभागी होना चाहते हैं तो महाविद्यालय के हिंदी विभाग प्रमुख डॉ.संजीव दुबे से संपर्क कर सकते हैं.सम्पर्क के लिए फ़ोन नंबर और महाविद्यालय का पता इस प्रकार है
डॉ.संजीव दुबे -९३२०५२७९११,९८६९८४७३६६
SIES College of Arts, Science & Commerce
Jain Society, Sion (West),
Mumbai - 400 022. (India).
Telephone: 2407 27 29 (Office)
Fax: 2409 6633
Email: siesascs@siesascs.net
Website: www.siesascs.नेट
यदि आप महाविद्यालय तक जाने के लिए नक्शा चाहते हैं तो आप गूगल मैप क़ी सहायता ले सकते हैं.
गूगल मैप के लिए इस लिंकhttp://maps.google.com/maps?client=gmail&ie=UTF8&q=s.i.e.s.+college,mumbai&fb=1&hq=s.i.e.s.+college&hnear=,mumbai&cid=0,0,7572555737468622329&ei=WVeTS-LwIc_GrAe--cy4Cw&ved=0CAcQnwIwAA&ll=19.030842,73.017969&spn=0.007688,0.01929&t=h&z=१६ पे क्लिक कर सही रास्ता भी जान सकते हैं.
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मुंबई के यस.आई.ई.यस. महाविद्यालय सायन में आगामी १० और ११ मार्च २०१० को हिंदी विभाग क़ी तरफ से दो दिन का राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया जा रहा है. नई सदी के पहले दशक क़ी कविताओं पे पूरा सेमिनार केन्द्रित रहेगा.इस सेमिनार में देश-विदेश के कई जाने -माने विद्वान सहभागी हो रहे हैं.
यदि आप भी इस सेमिनार में सहभागी होना चाहते हैं तो महाविद्यालय के हिंदी विभाग प्रमुख डॉ.संजीव दुबे से संपर्क कर सकते हैं.सम्पर्क के लिए फ़ोन नंबर और महाविद्यालय का पता इस प्रकार है
डॉ.संजीव दुबे -९३२०५२७९११,९८६९८४७३६६
SIES College of Arts, Science & Commerce
Jain Society, Sion (West),
Mumbai - 400 022. (India).
Telephone: 2407 27 29 (Office)
Fax: 2409 6633
Email: siesascs@siesascs.net
Website: www.siesascs.नेट
यदि आप महाविद्यालय तक जाने के लिए नक्शा चाहते हैं तो आप गूगल मैप क़ी सहायता ले सकते हैं.
गूगल मैप के लिए इस लिंकhttp://maps.google.com/maps?client=gmail&ie=UTF8&q=s.i.e.s.+college,mumbai&fb=1&hq=s.i.e.s.+college&hnear=,mumbai&cid=0,0,7572555737468622329&ei=WVeTS-LwIc_GrAe--cy4Cw&ved=0CAcQnwIwAA&ll=19.030842,73.017969&spn=0.007688,0.01929&t=h&z=१६ पे क्लिक कर सही रास्ता भी जान सकते हैं.
पर दिल में ना रह पाए .
जो कहना था पहले ,
वो अब तक ना कह पाए .
संग-संग रहते थे घर में,
पर दिल में ना रह पाए .
सात जन्म का वादा करके,
सात कदम ना चल पाए .
प्यार बना समझौता कैसे ?
ये बात समझ ना पाए.
साथ सफ़र में दोनों थे पर ,
साथी ना बन पाए .
अंदर ही अंदर घुट कर,
दो-चार कदम चल पाए.
जिसके बिन जीना मुश्किल था,
साथ उसी के ना जी पाए .
इश्क क़ी राह पे चल के भी,
हम इश्क समझ ना पाए .
जो कहना था ----------------------------
(इस गीत क़ी पहली कड़ी भाई सुनील सावरा ने डी थी. वो इसे पूरा करना चाहते थे. मैंने अपनी तरफ से एक कोसिस क़ी है.शायद उन्हें पसंद आये.)
वो अब तक ना कह पाए .
संग-संग रहते थे घर में,
पर दिल में ना रह पाए .
सात जन्म का वादा करके,
सात कदम ना चल पाए .
प्यार बना समझौता कैसे ?
ये बात समझ ना पाए.
साथ सफ़र में दोनों थे पर ,
साथी ना बन पाए .
अंदर ही अंदर घुट कर,
दो-चार कदम चल पाए.
जिसके बिन जीना मुश्किल था,
साथ उसी के ना जी पाए .
इश्क क़ी राह पे चल के भी,
हम इश्क समझ ना पाए .
जो कहना था ----------------------------
(इस गीत क़ी पहली कड़ी भाई सुनील सावरा ने डी थी. वो इसे पूरा करना चाहते थे. मैंने अपनी तरफ से एक कोसिस क़ी है.शायद उन्हें पसंद आये.)
कोई मेरी है दीवानी.
वही प्यार क़ी कहानी ,
हमे भी है दुहरानी .
मैं दीवाना किसी का,
कोई मेरी है दीवानी.
वही प्यार क़ी ---------------------------
थोड़ी जानी-पहचानी ,
थोड़ी सी है अनजानी .
रब ने मिलाया है तो ,
जोड़ी हमको है बनानी .
वही प्यार क़ी ---------------------------------
ना मैं कोई राजा,नाही वो है कोई रानी ,
लगती थोड़ी भोली,थोड़ी सी है वो सयानी .
जिन्दगी के इस सफ़र में,
हमसफ़र है वो दीवानी .
वही प्यार क़ी -----------------------------------
हमे भी है दुहरानी .
मैं दीवाना किसी का,
कोई मेरी है दीवानी.
वही प्यार क़ी ---------------------------
थोड़ी जानी-पहचानी ,
थोड़ी सी है अनजानी .
रब ने मिलाया है तो ,
जोड़ी हमको है बनानी .
वही प्यार क़ी ---------------------------------
ना मैं कोई राजा,नाही वो है कोई रानी ,
लगती थोड़ी भोली,थोड़ी सी है वो सयानी .
जिन्दगी के इस सफ़र में,
हमसफ़र है वो दीवानी .
वही प्यार क़ी -----------------------------------
यादों के फूलों में चेहरा तेरा , 2
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
गुलाबी गालों की रंगत ,
आखों में सपना मेरा ;
निगाहों में रंगीनियों के डेरे ,
अभिलाषा रंगीन है मेरी ,
आशाओं के महीन से फेरे ,
फागुनी अंदाज में डूबे,
इरादे संगीन है मेरे ,
मोहब्बत और प्यास के सूबे ,
आ नए प्यार सा खेले,
समर्पण चाह के घेरे ,
इच्छाएं हसीन है मेरी,
वो पहली मुलाकात के डेरे ,
वो पहली रात की बातें,
उलझे बाल के फेरे ,
वो प्यास में डूबे ,
विश्वास के घेरे ;
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
Friday 5 March 2010
जितनी शरारत है,नजाकत भी है उतनी ही
उलझी हुई थोड़ी ,
थोड़ी सी सुलझी है.
वो लड़की जो ,मेरे दिल को ,चुरा के ले गयी यारों
पगली सी है थोड़ी,
थोड़ी सयानी है .
तितली सी है चंचल
फूलों सी कोमल है .
वो बोलती है जब,तो मुझको यूं लगता है
मन क़ी मेरी बगिया में
कोयल कूक भरती है .
ख़ामोशी में उसके
बादल उमड़ते हैं.
जितनी शरारत है,नजाकत भी है उतनी ही
बड़ी तो खूब है लेकिन,
वो गुडिया छोटी लगती है .
अदाएं चाँद क़ी सारी ,
लेकर निकलती है .
साँसों में बसा चंदन,खजाना रूप का लेकर
वो राहें भी महकती हैं,
जंहा से वो गुजरती है .
राधा सी लगती है,
कभी सीता सी लगती है .
जिसका प्यार मैं चाहूँ, सारी जिन्दगी भर को
वही प्रियतम वो लगती है
वही साथी वो लगती है .
थोड़ी सी सुलझी है.
वो लड़की जो ,मेरे दिल को ,चुरा के ले गयी यारों
पगली सी है थोड़ी,
थोड़ी सयानी है .
तितली सी है चंचल
फूलों सी कोमल है .
वो बोलती है जब,तो मुझको यूं लगता है
मन क़ी मेरी बगिया में
कोयल कूक भरती है .
ख़ामोशी में उसके
बादल उमड़ते हैं.
जितनी शरारत है,नजाकत भी है उतनी ही
बड़ी तो खूब है लेकिन,
वो गुडिया छोटी लगती है .
अदाएं चाँद क़ी सारी ,
लेकर निकलती है .
साँसों में बसा चंदन,खजाना रूप का लेकर
वो राहें भी महकती हैं,
जंहा से वो गुजरती है .
राधा सी लगती है,
कभी सीता सी लगती है .
जिसका प्यार मैं चाहूँ, सारी जिन्दगी भर को
वही प्रियतम वो लगती है
वही साथी वो लगती है .
Wednesday 3 March 2010
रामदरश मिश्र
राम दरश मिश्र तो वैसे किसी परिचय के मोहताज नहीं है । फिर भी मै उनका परिचय देना चाहूँगी । मिश्र जी प्रेमचंदोत्तर युग के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कलाकार है ।
वे श्रमशक्ति के प्रतिक है । उनकी रचनाए आसाधरण पुरुषार्थ के मनोबल एवम अनुशासित कार्य प्रणाली का परिणाम है । एक मान्यता प्राप्त कवि होने के साथ - साथ एक बहुत अच्छे लेखक भी है ।
उनकी कहानिया और उपन्यास मै इतनी सचाई है कि उसे पढ़नेके बाद किसी भी इंशान का हिर्दय द्रवित हो जाय। उनका उपन्यास पानी के प्राचीर , जल टूटता हुआ और उनके कई उपन्यास है जिसे पढ़ने पर व्यक्ति मजबुर हो जाय सोचने पर कि हमारी गाँव की क्या हालत है। गाँव मे सुधार करने बहुत ही जरुरत है। मिश्र जी ने इतनी गंभीर समस्याओ को पाठको के समक्ष रखा है की शायद ही किसी का ध्यान उन समस्याओं पर जाय ।
वे श्रमशक्ति के प्रतिक है । उनकी रचनाए आसाधरण पुरुषार्थ के मनोबल एवम अनुशासित कार्य प्रणाली का परिणाम है । एक मान्यता प्राप्त कवि होने के साथ - साथ एक बहुत अच्छे लेखक भी है ।
उनकी कहानिया और उपन्यास मै इतनी सचाई है कि उसे पढ़नेके बाद किसी भी इंशान का हिर्दय द्रवित हो जाय। उनका उपन्यास पानी के प्राचीर , जल टूटता हुआ और उनके कई उपन्यास है जिसे पढ़ने पर व्यक्ति मजबुर हो जाय सोचने पर कि हमारी गाँव की क्या हालत है। गाँव मे सुधार करने बहुत ही जरुरत है। मिश्र जी ने इतनी गंभीर समस्याओ को पाठको के समक्ष रखा है की शायद ही किसी का ध्यान उन समस्याओं पर जाय ।
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