बोध कथा २१ : अनोखी प्रतियोगिता **************************************************
बहुत पुरानी बात है. एक नगर में एक ज्ञानरंजन नामक राजा राज करता था . वह हमेशा अपने राज्य में अनोखी स्पर्धाएं आयोजित करता था. वह दूर-दूर तक अपने इसी स्वभाव के लिए जाना जाता था एक बार राजा ने निर्णय लिया क़ी वह शांति पे एक चित्र काला स्पर्धा का आयोजन कराये गा.शान्ति पर सर्वोत्तम चित्र बनाने वाले कलाकार को पुरस्कार देने की घोषणा की .
अनेक कलाकारों ने प्रयास किया .सभी ने अपनी छमता के अनरूप कड़ी मेहनत क़ी. राजा ने सबके चित्रों को देखा परन्तु उसे केवल दो ही चित्र पसंद आए और उसे उनमे से एक को चुनना था ।एक चित्र था शांत झील का .चारों ओर के शांत ऊंचे पर्वतों के लिए वह झील एक दर्पण के सामान थी .ऊपर आकाश में श्वेत कोमल बादलों के पुंज थे .जिन्होंने भी इस चित्र को देखा उन्हें लगा कि यह शान्ति का सर्वोत्तम चित्रण है । दूसरे चित्र में भी पर्वत थे परन्तु ये उबड़ -खाबड़ एवं वृक्ष रहित थे .ऊपर रूद्र आकाश था जिससे वृष्टिपात हो रहा था और बिजली कड़क रही थी .पर्वत के निचले भाग से फेन उठाता हुआ जलप्रपात प्रवाहित हो रहा था ,यह सर्वथाशान्ति का चित्र नही था ।
परन्तु जब राजा ने ध्यान से देखा ,तो पाया कि जलप्रपात के पीछे की चट्टान की दरार में एक छोटी सी झाड़ी उगी हुई है .झाडी पर एक मादा पक्षी ने अपना घोसला बनाया हुआ था .वहाँ ,प्रचंड गति से बहते पानी के बीच भी वह मादा पक्षी अपने घोसले पर बैठी थी -पूर्णतया शांत अवस्था में !राजा ने दूसरे चित्र को चुना .उसने स्पष्ट किया ,शान्ति का अभिप्राय किसी ऐसे स्थान पर होना नही है ,जहाँ कोईकोलाहल ,संकट या परिश्रम न हो ,शान्ति का अर्थ है इन सब के मध्य रहते हुए भी ह्रदय शांत रखना । शान्ति का सच्चा अर्थ यही है .हमे अपनी स्थितियों के बीच से ही समाधान भी निकालना चाहिए.
किसी ने लिखा भी है क़ि-------------------------------
'' जितना भी हो कठिन समय, राह वही से निकलेगी
जब घोर अँधेरा होता है, तब भोर पास ही होती है ''
(यह कहानी योग मंजरी से ली गई है. इस पर उन्ही का कॉपी राईट है. हमारा नहीं. )
बोध कथा २०: आराम और प्रगति
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घनश्यामपुर नामक एक गाँव में सोहन कुमार नामक एक युवक रहता था. वह एक व्यापारी पुत्र था.लेकिन उसे बहुत अधिक धन का लालच नहीं था .वह जितना है उसी में संतोष करनेवाला व्यक्ति था. वह सुबह जल्दी उठता ,नहा-धो कर भगवान् के मंदिर जाता.मंदिर से आने के बाद अपनी दुकान खोलता और शाम को दुकान बंद कर सारा समय परिवार के साथ बिताता था .उसकी यह नियमित दिनचर्या थी.अपने परिवार भर का कमाकर वह आराम क़ि जिंदगी बिता रहा था.
सोहन के एक चाचा थे रामनारायण .रामनारायण सुबह उठते ही जल्दी से दुकान खोलने क़ी फिराक में रहते. शाम को भी देर तक दुकान चालू रखते. २ का ४ कैसे बनाया जाय ,इसी चिंता में हमेशा डूबे रहते. वे कमाते तो सोहन से जादा लेकिन परिवार के साथ सुकून के दो पल बिता नहीं पाते.
एक दिन अचानक जब उनकी और सोहन क़ी मुलाक़ात हुई तो वे सोहन से नाराजगी व्यक्त करते हुवे बोले,''तुम बड़े आलसी हो. सुबह दुकान भी देर से खोलते हो.शाम को जल्दी बंद कर देते हो. फ़ालतू घर पे समय बिताते हो. अगर जादा देर काम करोगे तो जादा कमाओगे .घर पे रह कर क्या करोगे ?'' चाचा क़ी बातें सुन कर सोहन ने पहले तो उनका हाँथ पकडकर उन्हें खाट पर बिठाया. फिर बड़ी ही शांति से पूछा ,''अच्छा चाचा ,एक बात तो बताओ.जादा पैसा कमा कर हम क्या करेंगे ?'' उसके इस सवाल पे भड़कते हुवे रामनारायण ने कहा ,''बड़े बेवकूफ हो भाई. अरे जादा कमाओगे तो जादा पैसा मिले गा.जादा पैसा मिले गा तो एक क़ी दो दुकान कर सकते हो,फिर दो क़ी चार और चार क़ी दस.देहते ही देखते तुम इतने अमीर बन जाओगे क़ी कुछ करने क़ी जरूरत ही नहीं पड़ेगी ,मजे से बीबी-बच्चों के बीच आराम करना .'' जब चाचा क़ी बात ख़त्म हुई तो सोहन मुस्कुराते हुवे बोला,''तो चाचा ,ले -दे कर नतीजा तो यही निकला ना क़ि हम जादा कमाकर अपने बीबी-बच्चों के साथ आराम से रहेंगे ,तो वही काम तो हम आज भी कर रहे हैं .फिर आप हमसे नाराज किस बात पर हैं ?'' सोहन क़ी बात सुनकर ,उसके चाचा का मुंह खुला का खुला रह गया. फिर सोहन ने ही उन्हें समझाते हुवे कहा ,''देखो चाचा, पैसे के पीछे अँधा होकर भागते रहना जिन्दगी नहीं है. पैसा हमारे लिए होता है,हम पैसे के लिए नहीं हैं. जिस इच्छा का कोई अंत नहीं है ,उससे कोई खुशी नहीं मिल सकती. अपना परिवार,अपने सम्बन्ध इन सब को डॉ किनार कर पैसे के पीछे अपना सुख-चैन नहीं खोना चाहिए. हम अपनी जरूरत पूरी कर सकें और अपनी छमता के अनुसार किसी क़ी थोड़ी बहुत मदद कर सकें,बस धन इतने के लिए ही है .'' किसी ने इसीलिए लिखा भी है क़ि----------------------- '' साईं इतना दीजिये ,जामे कुटुंब समाय मैं भी भूखा ना रहूँ ,साधू ना भूखा जाय ''
बोध कथा १९ : बहेलिया आएगा ,जाल बिछाएगा ------------------------------- ********************************************************** एक बार क़ि बात है, नीलगिरी के जंगलों के पास के गाँव में एक बहेलिया रहता था. पक्षियों को पकडकर उन्हें बेचना ही उसका काम था. वह अपने काम में बड़ा निपुण था. जाल लगाने और पक्षियों को फसाने में वह माहिर था. एक दिन जब वह जाल बिछा कर बैठा था तो जाने कंहा से एक तोता जाल पर बिखेरे दानों के लालच में वंहा आ गया और जाल में फंस गया. जब वह बहेलिया उस तोते को लेकर अपने घर क़ि तरफ जा रहा था,तभी एक साधू उसे मिले.तोते को तडपता हुआ देख कर उन्होंने बहेलिये से कहा क़ि ,''अरे बहेलिये, कई दिनों से मुझे एक तोते कई तलह थी.मैं उसे पालना चाहता था.क्या तुम यह प्यारा सा तोता मुझे दोगे ? मैं मुफ्त में नहीं लूँगा .तुम्हे इसके बदले उचित मूल्य भी दूंगा .'' साधू क़ी बात सुनकर बहेलिया बड़ा खुश हुआ .उसे तो तोता बेचना ही था. सो उसने उचित मूल्य लेकर तोता साधू को दे दिया.तोता लेकर साधू बाबा अपने आश्रम पहुंचे. और उन्होंने निर्णय लिया क़ी वे तोते को शिक्षित करेंगे ,जिससे यह तोता जंगल के अन्य पक्षियों को भी जागरूक कर सके. फिर क्या था !,साधू जी ने उस तोते को रटाना शुरू किया क़ि-बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
अब तोता रोज यही वाक्य सुन-सुन कर उसे बोलने लगा .वह हमेशा यही बोलता रहता क़ि -- बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे - बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
साधू को यकीन हो गया क़ि अब तोता पूरी बात सीख गया है. उन्होंने तोते को जंगल में वापस छोड़ने का निर्णय लिया. तोता जंगल में जा कर खुश था. उसने लगभग जंगल के सभी पक्षियों को यह रटा दिया क़ि - बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे जब यह बात बहेलिये को पता चली तो वह बड़ा निराश हुआ. उसे लगा क़ि अब कोई भी पक्षी उसके जाल में नहीं फसेंगे. लेकिन फिर भी वह जंगल में गया और उसने पहले क़ी ही तरह जाल बिछाकर उसपर दाने ड़ाल दिए. थोड़ी देर में ह एक तोता आकर दाने खाने लगा.उसके पीछे पूरा का पूरा झुण्ड चला आया. बहेलिया बड़ा खुश हुआ. वह जल्द ही सभी तोतों को समेटकर ले जाने लगा.वह मस्ती से चला जा रहा था और सभी तोते वही रट लगाये हुवे थे क़ि- बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ि हमे सिर्फ किसी बात को तोते कीतरह रटना ही नहीं चाहिए अपितु उसका अर्थ भी समझना चाहिए. ज्ञान वही है जो समझ लिया जाय ,रटी हुई विद्या जादा उपयोगी नहीं होती . किसी ने लिखा भी है क़ि ----- '' समझ -बूझकर ज्ञान को ,करना आत्मसाथ वरना वक्त पड़ेगा जब,तब मलोगे केवल हाथ ''
बोध कथा १८ : संत
******************************** एक बार कबीर नगर मैं एक बहुत ही पहुंचे हुवे महात्मा आये. वे रोज शाम को २ घंटे का प्रवचन करते. काफी दूर-दूर से लोग महात्मा जी का प्रवचन सुनने के लिए आते थे. लोग अपनी जिज्ञासा के अनुसार सवाल करते और महात्मा जी उसका जवाब दे कर प्रश्नकर्ता को संतुस्ट करने क़ि कोशिस करते थे. कभी-कभी तो महात्मा जी के जवाब से लोग चकित रह जाते ,पर जब महात्मा जी अपनी कही हुई बात का विश्लेष्ण करते तब लोग तालियों क़ि गूँज के साथ उनकी जयजयकार भी करने लगते. ऐसी ही एक शाम जब महात्मा जी का प्रवचन चल रहा था तो एक भक्त ने प्रश्न किया ,''महाराज, संत किसे कहते हैं ?'' इसके पहले क़ि महात्मा जी कुछ जवाब देते ,गाँव के पंडित ने खड़े हो कर कहा,''अरे ,ये कोन सा प्रश्न है ? जब मिला तो खा लिया,और ना मिला तो भगवान् भजन करने वाले को ही संत कहते है. क्यों महाराज ?सही कहा ना मैंने ?'' पुजारी क़ि बात सुनकर महात्मा जी मुस्कुराए और बोले,''नहीं ,ऐसे आदमी को संत नहीं कुत्ता कहते हैं . संत तो वो होता है जिसे मिले तो सब के साथ बांटकर खा ले और ना मिले तो भी ईश्वर में अपनी आस्था कम ना होने दे .'' महात्मा जी क़ी बात सुनकर सभी लोग उनकी जयजयकार करने लगे .इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ी हमे सब के साथ मिल बाँट कर ही भौतिक वस्तुओं का उपभोग करना चाहिए.किसे ने लिखा भी है क़ि------------------------------------------------------------------------------------- '' मिलजुलकर एक साथ रहें सब, जीवन इसी का नाम जाना एक दिन सब को है,मिटना तन का काम ''
पूंछ रहा है कौन हो तुम क्या तेरा मुझसे नाता है ; क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ? . कभी भाव जुड़े थे ,मन मंदिर के द्वार जुड़े थे , साथ हँसे थे कितने ही किस्सों पे , साथ चलें थे कुछ रास्तों पे ; हाथों का वो स्पर्श अनोखा ,दिल का वो हर्ष अनोखा ; छुप छुप के के तुम देखा करते थे ,अनजाने बन छुआ करते थे ; बातों में में एक उष्मा होती , आखों में इक आकर्षण ; पास रहो ये चाह थी होती ,बदन में होता था आमंत्रण ; मन नहीं भरता था बातों से ,तन पिघला करता आभासों से ; वो पहले चुम्बन की अनुभूति अजब थी ,तेरी खुशियों की चीख गजब थी ; वो सिने से लग जाना शरमाके ,बाँहों में भर लेना इठलाके ; तेरे जोबन की प्यास गजब थी ;मेरे इश्क की आस गजब थी ; तेरा सीना महका उफानो से, मेरे हाथ बहकाता अरमानो को ; सिने में मेरे खिल के सो जाना , वो हंस हंस के के वो मुसकाना ; चैन न मिलता बिन देखे इक दूजे को , एक पल न जाता बिन तेरी सोचों के ; . आज पूंछ रहा है रिश्ता क्या है , क्या जानू मै नाता क्या है ? भावों से पूंछुंगा , दिल के तारों से पूंछुंगा , तन के अभिषारों से पूंछुंगा ,वक़्त के मारों से पूंछुंगा ; पूंछुंगा मै तेरी बाँहों से ; तेरी आहों से पूंछुंगा ; पूंछुंगा मै आखों से ,सपनों की रातों से पूंछुंगा ; सुबह की तन्हाई से पूंछुंगा ,हवा की ऊँचाई से पूंछुंगा ; पून्छुगा उस कमरे की दीवारों से, मौसम की बहारों से ; पूंछुंगा मै नयनो के आंसूं से , तेरे सिने की नर्म उदासी से ; . पूंछ रहा है कौन हो तुम क्या तेरा मुझसे नाता है ;
क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
मन के कोलाहल से अविचल , देख रहा था खिला कँवल ; पत्तों पे निर्मल ओस की बुँदे , डंठल के चहुँ ओर दल दल ; .
. माँ की ममता याद आई , देख रहा था खिला कँवल ; गर्भ में कितनी आग लिए , कितना जीवन का संताप लिए , हर मुश्किल से वो लड़ लेती, पर ममता का रहता खुला अंचल ; मन के कोलाहल से अविचल , देख रहा था खिला कँवल ; .
. जंगल का कलरव , धुप का संबल , मृदु ह्रदय की वीणा ; भावों की पीड़ा , अश्रु स्पंदन , खुशियों का क्रंदन , त्याग सभी रिश्तों का बंधन ; मन के कोलाहल से अविचल , देख रहा था खिला कँवल , पत्तों पे निर्मल ओस की बुँदे ,
डंठल के चहुँ ओर दल दल /
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बोध कथा १७ : नमकहराम
******************************* राजा तेजबहादुर सिंह को शिकार का बड़ा शौख था. वे न्यायप्रिय भी थे. जनता का ख़याल अपने परिवार से भी बढ़ कर रखते थे. वे अन्याय और अत्याचार के घोर विरोधी थे. उनके सारे मंत्री किसी भी गलत काम को करने से डरते थे. राज्य पूरी तरह से संपन्न था. राजा एक बार हमेशा क़ी तरह ही जंगल में शिकार खेलने के लिए गए.दिन भर जंगल में कड़ी मेहनत करने के बाद वे एक हिरन का शिकार करने में कामयाब हुवे. सैनिक जब हिरन को पकाने क़ी तैयारी कर रहे थे,तभी उनको ज्ञात हुवा क़ि वे अपने साथ नमक लाना तो भूल ही गए हैं. एक सैनिक राजा के पास आकर इस बात क़ी सूचना देता है. राजा दो पल चुप रहे ,फिर जेब से एक सोने क़ी अशर्फी निकाल कर सैनिक को देते हुवे बोले,''कोई बात नहीं.तुम पास के गाँव में जाओ और किसी भी भी घर से नमक मांग लाओ .याद रहे ,जिसके पास से भी नमक लेना उसे नमक के मूल्य स्वरूप ये एक सोने क़ी अशर्फी दे देना .'' राजा क़ी बात सुनकर साथ आये मंत्री को आश्चर्य हुवा. वे बोले ,''महाराज,आस -पास के गाँव भी हमारी सत्ता के ही अंदर हैं. थोड़े से नमक के लिए मूल्य चुकाने क़ी क्या जरूरत है.? कोई भी गाँव वासी खुशी-ख़ुशी नमक यूं ही दे देगा.फिर ये अशर्फी क्यों ?'' मंत्री क़ी बात सुन कर राजा मुस्कुराये,फिर बोले ,''मंत्री जी, बात समझने क़ी कोशिस कीजिये .हम यंहा के राजा हैं. अगर हम अपनी प्रजा का नामक यूं ही खा लेंगे तो हमारे लोगों को नमकहराम बनने में कितना समय लगेगा ? हम अपने लोगों के लिए कोई गलत उदाहरण नहीं बनना चाहते .'' राजा क़ी बात मंत्री जी की समझ में आ गयी. और वे राजा क़ी जयजयकार करने लगे. इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ि- ''हमे सिर्फ आदर्शों क़ी बात नहीं बल्कि अपने जीवन में उसे उतारना भी चाहिए.सिर्फ व्यवस्था को दोष देने से काम नहीं चलेगा,हमे अपने अस्तर पर उसे बदलने की कोशिस भी करनी चाहिए.''
किसी ने लिखा भी है क़ि --------------------------------- '' सिर्फ उपदेश नहीं ,आचरण भी वैसा चाहिए हमे खुद अपनी बातों का,मिसाल होना चाहिए ''