Thursday 9 July 2009

वर्जनाओं से थम गया ;आशाओं से थम गया ;

वर्जनाओं से थम गया ;आशाओं से थम गया ;
कठनायियाँ ना रोक सकी ;
दृढ़ता के अभावों से थम गया ;
दौड़ सका न चंद कदम ; भावनाओं से थम गया /
दोष नही सपनों का ,द्वेष नही अपनो का ;
परिश्थीतियाँ जीत गई ,अपने कर्मों से थम गया ;
दौड़ सका न चंद कदम ;अपनी धारनावोंसे थम गया /

बच्चों के मुख पे प्रश्न छिपे ;बीबी के मन में मर्म छिपे ;

माँ के ह्रदय में अविश्वास छिपे ;लोंगों के चेहरे पे हास्य छिपे ;

इस हालत में कैसे आया ;क्यूँ राहों में मन ललचाया ?

क्यूँ पग फिसले कठिनाई में ,क्यूँ मन बहका तन्हाई में ?

लड़ न सका जज्बातों से अपने ;

जीत सका न मन को अपने ;

जीती बाजी हार रहा मै ;

क्यूँ हिम्मत हार रहा मै ?

अपने विकारों से थम गया ,अपने अहंकारों से थम गया ;

अपनो के बंधन से थम गया, अपने विचारों से थम गया ;

दौड़ सका ना चंद कदम ,अधूरे धर्मों से थम गया /

दिल के दर्पों से थम गया ;

दौड़ सका ना चंद कदम ,

औरों की खुशियों पे थम गया /

Tuesday 7 July 2009

आदमी हूँ आदमी से प्यार करना -----------------------------

एक अनुमान के मुताबिक पूरे विश्व मे इस समय ४०००००० से जादा gay और २५००००० से जादा lesbian हैं । ऐसे मे दिल्ली हाई कोर्ट का एक निर्णय आता है जो समलैंगिकता को अपराध ना मानने की वकालत करता है ।
यह खबर क्या आई पूरी की पूरी मीडिया जैसे पागल सी हो गई । आप कोई भी समाचार चैनल खोल कर देख लीजिये ,हर जगह एक ही चर्चा -क्या भारत जैसे देश मे समलैंगिकता को सामजिक मान्यता दी जा सकती है ?
सवाल यह है की इसे अभी स्वीकार ही किसने किया ? कानून का अपना एक अलग नजरिया होता है । वह अपनी जगह सही भी है । अगर दो वयस्क आपस मे समलैंगिक रिश्ता आपसी सहमती से बनाते हैं तो उसे कोई भी लोकतांत्रिक कानून आपराधिक गतिविधि नही मान सकता । इस लिए कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है ।

लेकिन इस बात को पकड़कर मीडिया ने जो निष्कर्ष निकाला वो एक दम हास्यास्पद है । कोर्ट ने समलैंगिकता को आपराधिक कृत्य नही माना है ,पर इसका यह कत्तई अर्थ नही निकालना चाहिये की कोर्ट समलैंगिकता के पक्ष मे खड़ा है ।
जन्हा तक भारतीय समाज का प्रश्न है तो मुझे नही लगता की इस विश्विक सत्य को स्वीकार करने मे भारतीय जनमानस को कोई कष्ट होगा। भारत देश पूरे विश्व मे एक ऐसी बीच की जमीन के रूप मे जाना जाता है जन्हा सभी के लिए स्थान है । विविधता मे एकता यंहा की विशेषता है ।
अब अगर व्यवहारिक रूप मे समलैंगिकता को स्वीकार या अस्वीकार करने की बात करे तो मेरा मानना यह है की इस तेरह के सम्बन्ध भावनात्मक और कुछ हद तक कामुक स्थितियों को ले केर बन तो जरूर सकते हैं,लेकिन ये पारिवारिक इकाई का विकल्प नही बन सकते । और एक स्वस्थ समृद्ध नई पीढी परिवार नामक परम्परागत ढांचे मे ही विकसित हो सकती है ।

Sunday 5 July 2009

आ गया मानसून

काफी इंतजार के बाद आख़िर मुंबई में मानसून आ ही गया । मुंबई वासियों को इसका बहुत इंतजार था , मुंबई पुणे में महानगर पालिका ने पानी की कमी को देखते हुए १० से २० % water supply deduction , की घोषणा की थी ।
लकिन लगता है अब इसकी जरुरत नही पड़ेगी । उत्तर भारत को अब भी मानसून का इंतजार है ।
आशा है पुरे भारत में भी मानसून जल्द ही आएगा ।