Saturday 2 July 2011

ब्रूउट्स यू टू


थोडे आसू ,थोडे सपने और ढेर से सवालो के साथ्
तेरी नीमकश निगाहो मे जब् देखता हू 
रो नही पाता लेकिन बहुत तड़पता हू ।

इस पर तेरा हल्के से मुस्कुराना  ,
 मुझे अंदर -ही अंदर सालता है. 
 तेरा ख़ामोशी भरा इंतकाम ,
मेरे झूठे बनावटी और मतलबी चरित्र के आवरण को 
मेरे अंदर ही खोल के रख देता है. 

मैं सचमुच कभी भी नहीं था 
 तुम्हारे उतने सच्चे प्यार के काबिल 
जितने के बारे में मैंने सिर्फ 
 फरिस्तों और परियों की कहानियों  में पढ़ा था .

मैं तुम्हे सिवा धोखे के 
 नहीं दे पाया कुछ भी. 
और तुम देती रही हर बार माफ़ी क्योंकि 
 तुम प्यार करना जानती थी. 

मैं बस सिमटा रहा अपने तक और  तुम 
खुद को समेटती रही मेरे लिए. 
 कभी कुछ भी नहीं माँगा तुमने,

सिवाय मेरी हो जाने की हसरत के . 

याद है वो दिन भी जब ,
तुमने मुझसे दूर जाते हुए 
नम आखों और मुस्कुराते लबों के साथ 
कागज़ का एक टुकड़ा चुपके से पकडाया  
 जिसमे लिखा था-" ब्रूउट्स यू  टू .''

उसने जो लिखा था वो,
शेक्स्पीअर के नाटक की एक पंक्ति मात्र थी लेकिन ,
मैं बता नहीं सकता क़ि
वह मेरे लिए कितना मुश्किल सवाल था .
आज भी वो एक पंक्ति 
 कपा देती है पूरा जिस्म 
 रुला देती है पूरी रात. 

खुद की  इस बेबसी को 
 घृणा की अन्नंत सीमाओ तक 
जिंदगी की आखरी सांस तक 
जीने के लिए अभिशप्त हूँ. 
 उसके इन शब्दों /सवालों के साथ कि
ब्रूउट्स यू  टू !
ब्रूउट्स यू  टू ! 
ब्रूउट्स यू  टू !



    






  

Thursday 30 June 2011

तुम ने भी अगर दोखा दिया तो

तुमसे हर मुलाक़ात के साथ 
फिर न मिल पाने का डर जुड़ा रहता है. 
तेरी बांहों में सिमटने के साथ,
तेरे बाद बिखरने का डर लगा रहता है. 
तेरी मोहब्बत में सब कुछ लुटाने के साथ, 
खुद के कुछ होने न होने का डर लगा रहता है.
बर्फ सी जम गयी इच्छाओं को, 
तेरे प्यार की रौशनी में पिघलाने से डर लगता है.  
लेकिन 
मन बहुत करता है कि-
 अपनी जिन्दगी अपने तरीके से जी लूं 
 दुनिया कि सारी रस्मों -कसमों से दूर 
 सफेद घोड़े पे चले आ रहे अपने प्यार को ,
वो सब दूं जो सिर्फ मेरा है और जो ,
मैं सिर्फ उसे ही देना चाहती हूँ /थी .
 इतना सब कुछ सोचते हुवे भी ,
यह सोच कर सहम जाती हूँ कि ,
 - सारी दुनिया के धोखे   सह सकती हूँ लेकिन ,
 तुम ने भी अगर धोखा  दिया तो ----- 
इस ख़याल से भी डर लगता है .
तेरा होने के साथ-साथ , 
तेरे  साथ न होने का भी डर लगता है. 
      

Tuesday 28 June 2011

वह क्या है हरा-हरा-सा

वह क्या है हरा-हरा-सा जिसके आगे
हैं उलझ गए जीने के सारे धागे

                            -----केदारनाथ सिंह 
  

Monday 27 June 2011

काश तुम मिलती तो बताता



यूं ही तुम्हे सोचते हुवे
 सोचता  हूँ क़ि चंद लकीरों से तेरा चेहरा बना दूं 
 फिर उस चेहरे में ,
खूबसूरती  के सारे रंग भर दूं . 
तुझे इसतरह बनाते और सवारते हुवे,
शायद  खुद को बिखरने से रोक पाऊंगा . 
 पर जब भी कोशिश की,
 हर बार नाकाम रहा . 
 कोई भी रंग,
 कोई भी तस्वीर,
 तेरे मुकाबले में टिक ही नहीं पाते .

तुझसा ,हू-ब-हू तुझ सा ,
 तो बस तू है या  फिर 
 तेरा अक्स है जो मेरी आँखों में बसा है . 
 वो अक्स जिसमे 
 प्यार के रंग हैं 
 रिश्तों की रंगोली है 
 कुछ जागते -बुझते सपने हैं 
दबी हुई सी कुछ बेचैनी है  
और इन सब के साथ ,
 थोड़ी हवस भी है . 
इन आँखों में ही 
 तू है 
तेरा ख़्वाब है 
 तेरी उम्मीद है 
 तेरा जिस्म है 
और हैं वो ख्वाहीशें ,
जो  तेरे बाद 
 तेरी अमानत के तौर पे 
मेरे पास ही रह गयी हैं .

मैं जानता हूँ की मेरी ख्वाहिशें ,
 अब किसी और की जिन्दगी है. 
 इस कारण अब इन ख्वाहिशों के दायरे से 
 मेरा बाहर रहना ही बेहतर है . 

लेकिन ,कभी-कभी 
 मैं यूं भी सोच लेता हूँ क़ि-
काश 
 -कोई मुलाक़ात 
 -कोई बात 
 -कोई जज्बात  
-कोई एक रात  
-या क़ि कोई दिन ही 
बीत जाए तेरे पहलू में फिर 
 वैसे ही जैसे कभी बीते थे 
 तेरी जुल्फों क़ी छाँव के नीचे 
 तेरे सुर्ख लबों के साथ 
तेरे जिस्म के ताजमहल के साथ .
 इंसान तो हूँ पर क्या करूं 
 दरिंदगी का भी थोडा सा ख़्वाब रखता हूँ  
कुछ हसीन गुनाह ऐसे हैं,
 जिनका अपने सर पे इल्जाम रखता हूँ .
 और यह सब इस लिए क्योंकि ,
 हर आती-जाती सांस के बीच   
मैं आज भी 
तेरी उम्मीद रखता हूँ . 
 इन सब के बावजूद ,
 मैं यह जानता हूँ क़ि
 मोहब्बत निभाने क़ी सारी रस्मे ,सारी कसमे 
 बगावत के सारे हथियार छीन लेती हैं .
 और छोड़ देती हैं हम जैसों को 
 अस्वथ्थामा क़ी तरह 
 जिन्दगी भर 
 मरते हुवे जीने के लिए .
 प्यार क़ी कीमत ,
 चुकाने के लिए .
ताश के बावन पत्तों में,
जोकर क़ी तरह मुस्कुराने के लिए .
 काश तुम मिलती तो बताता ,
 क़ि मैं किस तरह खो चुका हूँ खुद को ,
 तुम्हारे ही अंदर .