Saturday 22 May 2010

ओम प्रकश पांडे''नमन'' जी अब हिंदी ब्लागिंग क़ी दुनिया से जोड़े जा चुके हैं .



हिंदी ब्लागिंग करने के साथ-साथ हमारी एक कोशिस यह भी रहती है क़ि हम हिंदी से जुड़े अच्छे और सजग रचनाकारों को भी इस प्रक्रिया से जोड़ें .
 इसी कड़ी में भाई ओम प्रकश पांडे''नमन''  जी अब हिंदी ब्लागिंग क़ी दुनिया से जोड़े जा चुके हैं . आप उनके ब्लॉग http://namanbatkahi.blogspot.com/2010/05/blog-post.हटमल पर जाकर उनके विचारो से अवगत हो सकते हैं. 
   मुझे पूरा विश्वाश है क़ि आप को उनका ब्लॉग जरूर पसंद आएगा . नमन क़ी बतकही में सहमति का साहस और असहमति का विवेक आप को हमेशा दिखाई देगा .
 उन्ही क़ी एक कविता आप लोगों के लिए 
 
भले बाँट दो तुम हमें सरहदों में
    भले बाँट दो तुम हमें मजहबों में
    भले खीँच दो तुम लकीरें जमीं पर
    नहीं बाँट पाओगे दिल को हदों में !

    नहीं बाँट पाओगे तुम इन गुलों को 
    यहाँ भी खिलेंगे वहां भी खिलेंगे
    नहीं बाँट पाओगे तुम चाँद तारे
    ये यहाँ भी उगेंगे वहां भी उगेंगे !

     जहाँ तक चलेंगी ये ठंडी हवाएं
     जहाँ तक घिरेंगी ये काली घटायें
    जहाँ तक मोहब्बत का पैगाम जाये
    जहाँ तक पहुंचती हैं मेरी सदायें !

    वहां तक न धरती गगन ये बंटेगा
    वहां तक न अपना चमन ये बंटेगा
    न तुम बाँट पाओगे  मेरी मोहब्बत
    न तुम बाँट पाओगे ये दिलकी दौलत!
              भले बाँट दो तुम जमीं ये हमारी
              नहीं बंट सकेंगी हमारी दुवायें !

     कभी देश बांटे, कभी प्रान्त   बांटे
     कभी बांटी नदियाँ, कभी खेत बांटे 
     खुदा ने बनाया था सिर्फ एक इन्सान 
     मगर मजहबों ने है इंसान बांटे !
               मेरी प्रार्थना है न बांटो दिलों को
               न बोवो दिलों में ए नफरत के कांटे!!      

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