Sunday 22 March 2020

किताबों का गाँव : भिलार ।


किताबों का गाँव : भिलार 
( बौद्धिक, सांस्कृतिक और जैविक खाद की त्रिवेणी ।  )

         हाराष्ट्र के सतारा जिले के महाबलेश्वर तालुके अंतर्गत आने वाले भिलार गाँव को किताबों के गाँव के रूप में एक नई पहचान मिली है । 04 मई 2017 को यह नई पहचान इस गाँव को मिली । तत्कालीन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फड्नविस एवं शिक्षा मंत्री श्री विनोद तावड़े जी ने इसे सरकारी रूप से प्रोत्साहित किया । राज्य मराठी विकास संस्था एवं महाराष्ट्र शासन मराठी भाषा विभाग ने इसके कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी ली । 02 से 03 किलो मीटर के बीच फैला हुआ यह गाँव मशहूर हिल स्टेशन पंचगनी और महाबलेश्वर के बीच में है । पंचगनी / पांचगणी से 05 किलो मीटर ऊपर की तरफ और महाबलेश्वर से 14 किलो मीटर नीचे की तरफ ।  

            गाँव में ऐसे 30 केंद्र बनाये गये हैं जहां बैठकर पुस्तक प्रेमी किताबें पढ़ सकते हैं । इतिहास, दर्शन, साहित्य, कवितायें, आत्मकथाएँ, जीवनी इत्यादि से संबंधित किताबें यहाँ उपलब्ध हैं । सरकार ने अपनी तरफ से कुर्सियाँ, टेबल, सजावटी छाते, काँच की आलमारी समेत कई सुविधायें सरकार की तरफ से गाँव वालों को उपलब्ध कराई गयी हैं जिससे वे पुस्तक प्रेमियों को बेहतर सुविधा प्रदान कर सकें । शुरुआत में सरकार की तरफ से पंद्रह हजार पुस्तकें गाँव में उपलब्ध कराई गईं थी जो की तीन सालों में बढ़कर क़रीब चालीस हजार के क़रीब पहुँच रही है ।

( यह नक्शा पुस्तकांच गाँव वर्ष पूर्ती सोहड़ा नामक पत्रिका से लिया गया है । जो कि राज्य मराठी संस्था द्वारा ही 04 मई 2018 को प्रकाशित हुई । )
        किताबों के इस गाँव का बोध चिन्ह नीचे दिया गया है । संत तुकाराम के अभंग की एक पंक्ति को इसके ऊपर लिखा गया है । पंक्ति है - आम्हां घरीं धन शब्दांचींच रत्ने | अर्थात – हमारे घर जो धन है वो शब्द रूपी रत्नों के रूप में ही है । साथ ही किताब के बीच में



स्ट्राबेरी को बनाया गया है जो इस गाँव की दूसरी बड़ी पहचान है । वैसे इस गाँव में गूलर के भी कई पेड़ हैं जो कि अपने आप में खास बात है ।



            यहाँ मराठी की पुस्तकें बहुतायत में हैं लेकिन अब हिन्दी और अँग्रेजी की भी किताबें उपलब्ध कराई जा रही हैं । फ़िलहाल अँग्रेजी की चार हज़ार के क़रीब और हिन्दी की 200 से 300 पुस्तकें उपलब्ध हैं । किताबों की संख्या यहाँ लगातार बढ़ रही है । कार्यालय संयोजक बालाजी नारायण हड़दे जी ने व्यक्तिगत बात चीत के दौरान बताया कि हाल ही में महाराष्ट्र के कद्दावर नेता श्री शरद पवार जी ने दस लाख रुपये मूल्य की किताबें दान दीं । कोल्हापुर विद्यापीठ की तरफ से भी पाँच सौ से अधिक किताबें उपहार रूप में मिली हैं ।  यहाँ के कार्यालय की पूर्व अनुमति लेकर कोई भी व्यक्ति या संस्था यहाँ किताबें दे सकता है । कार्यालय में संपर्क का पता निम्नलिखित है –
 प्रकल्प कार्यालय
द्वारा- श्री. शशिकांत भिलारे
कृषीकांचन, मु. पो. भिलारे,
ता.महाबळेश्वर, जि.सातारा
संपर्क- 02168-250111
श्री. व्यंकट- 08888230551

राज्य मराठी विकास संस्था, मुंबई
(महाराष्ट्र शासन पुरस्कृत)
एलफिन्स्टन तांत्रिक विद्यालय,
, महापालिका मार्ग,
धोबीतलाव,मुंबई ४०० ००१
दूरध्वनी - २२६३१३२५ / २२६५३९६६
इ-मेल - rmvs_mumbai@yahoo.com
          इस योजना को शुरू करने के पीछे सरकार के कुछ मुख्य उद्देश्य थे । जैसे कि -  
1.      वाचन संस्कृति को बढ़ावा देना ।    
2.      मराठी भाषा के प्रचार – प्रसार में योगदान देना ।
3.      पर्यटन को बढ़ावा देना ।
4.      गाँव में ही रोज़गार के नये अवसर उपलब्ध कराना ।
5.      गाँव से पलायन को रोकना ।

            
( यह नक्शा पुस्तकांच गाँव वर्ष पूर्ती सोहड़ा नामक पत्रिका से लिया गया है । जो कि राज्य मराठी संस्था द्वारा ही 04 मई 2018 को प्रकाशित हुई । )
 तीन दिवसीय पेंटिंग कैंप लगाकर गाँव के स्वरूप को 75 कलाकारों की मदद से इस तरह बनाया गया कि गाँव की मुख्य सड़क से ही सभी पुस्तक उप केन्द्रों तक पहुँचा जा सके । रंगीन और आकर्षक बोर्ड बनाये गये । जिन घरों को पुस्तक उप केंद्र के रूप में चुना गया उनके दालान को भी आकर्षक रूप से सजाया गया । स्वत्व नामक NGO का इस कलात्मक कार्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा ।  अब तो गाँव की मुख्य सड़क भी सीमेंट की बना दी गयी है । गाँव के इन घरों के चयन के लिए गाँव वालों से आवेदन मंगाये गये और उनमें से अधिकांश उन घरों को चुना गया जिनके घर के दालान या अहाते में किताबें रखने की पर्याप्त जगह हो । गाँव के घरों के अतिरिक्त विद्यालय और मंदिर जैसे स्थल पर भी उप केंद्र बनाये गये ।

       यह गाँव विश्व का दूसरा और एशिया का पहला किताब गाँव है । पहला स्थान ब्रिटेन के हे-ओन-वे गाँव का है । लेकिन गाँव वालों की सीधी भागीदारी के साथ सरकारी सहयोग से चलने वाला यह इकलौता प्रकल्प है । ब्रिटेन के हे-ओन-वे गाँव में प्रकाशकों की भागीदारी बहुत बड़ी है । भिलार गाँव की सरपंच श्रीमती वंदना प्रवीण भिलार के पति प्रवीण जी , गाँव अन्य रहिवासियों तथा कार्यालय संयोजक श्री बालाजी भिलार से बातचीत के माध्यम गाँव को लेकर जो भावी योजनाएँ चर्चा में हैं उनकी जानकारी मिली । ये भावी योजनाएँ निम्नलिखित हो सकती हैं –
1.  किताबों का डिजिटलीकरण करते हुए उन्हें उपलब्ध कराना ।
2.  अडियो बुक की व्यवस्था करना ।
3.  साहित्यिक गोष्ठियों, परिसंवादों के लिए जगह उपलब्ध कराना ।
4.  किताबों के लोकार्पण, साहित्यिक उत्सवों, व्याख्यानों की व्यवस्था करना ।
5.  अन्य भारतीय एवं विश्व साहित्य को जगह देना ।
6.  वेब पोर्टल, डेटाबेस, मोबाईल एप इत्यादि तकनीकी साधनों की व्यवस्था ।
7.  गाँव की अन्य विशेषताओं से लोगों को अवगत कराना ।
8.  स्कूल / कालेज के विद्यार्थियों के लिए गाँव में ही रहने की किफ़ायती दर पर व्यवस्था करना ।
9.  ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकारों के साहित्य के लिए विशेष वीथिकाओं का प्रबंधन ।
10.  एक बड़े पुस्तकालय भवन की संभावना पर काम ।
11.  देश विदेश के सभी प्रकाशकों की भागीदारी पर रूप रेखा तैयार करना ।

               गाँव का सम्पूर्ण विद्युतीकरण हो चुका है । घर-घर में पीने के साफ पानी सप्लाई की व्यवस्था है । गाँव की अधिकांश आबादी मराठा समाज से जुड़ी है । बोरवेल और कुएं भी पर्याप्त संख्या में हैं । गाँव में ही तीन विद्यालय हैं । महाविद्यालय पांचगनी / पंचगनी में है । गाँव के अंदर ही करीब 150 से 200 लोगों के रहने की व्यवस्था छोटे – छोटे होटलों के माध्यम से हो गई है । कई गाँव वाले अपने घरों में भी रहने खाने की सुविधा प्रदान करते हैं । इससे उन्हें रोजगार का नया साधन भी मिल गया है ।

            पुस्तक गाँव क्रे रूप में प्रसिद्ध होने से पहले यह गाँव अपनी स्ट्राबेरी की खेती के लिए भी जाना जाता रहा है । पूरे महाबलेश्वर क्षेत्र से जितनी स्ट्राबेरी बाहर भेजी जाती है, उसका एक बड़ा हिस्सा इसी भिलार गाँव से आता है । ओर्गेनिक खाद्य पदार्थों की सप्लाई और गोरमा / Gourmet फूड विशेषज्ञ श्री सुनील सिंह जी ने बताया कि भिलार गाँव की स्ट्राबेरी की गुणवत्ता अच्छी है । यहाँ प्रति वर्ष लगभग तीन हजार मैट्रीक टन स्ट्राबेरी पैदा होती है जिसकी बाजार में क़ीमत 50 से 60 करोड़ रुपये की है । स्ट्राबेरी की खेती का समय अगस्त से मार्च तक रहता है । नाभिया, आर वन और स्वीट चार्ली यहाँ की स्ट्राबेरी के मुख्य प्रकार हैं । रिलायंस, मोर, स्टार बजार, बिग बजार, बिग बास्केट और फ्युचर ग्रुप जैसी बड़ी कंपनिया यहाँ से स्ट्राबेरी ख़रीदती हैं । गाँव के ही अक्षय भिलार के खेत में हमें जाने का मौका मिला । वहाँ मंचिंग से लेकर ड्रिप इरिगेशन की पूरो जानकारी उन्होने दी । मिक्स क्ल्टीवेशन के माध्यम से ये किसान गोभी, मिर्च, बैगन, टमाटर, लहसुन, प्याज, मटर, हल्दी, गाजर इत्यादि भी उगा लेते हैं । धान और गेहूं की भी यहाँ अच्छी पैदावार है । एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों की पैदावार को लेकर भी ये लोग अब सक्रिय हो रहे हैं ।

           ( खुद की यात्रा के दौरान ली गई तस्वीरें । दिनांक 14 मार्च 2020 – भिलार ,महाबलेश्वर  )   

           जिन एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों की पैदावार को लेकर यहाँ संभावनाएं हैं, उनकी सूची इस प्रकार है –
1.      लेक्टस (Lettuce)          
2.      आईस बर्ग ( IceBerge )
3.      ब्रोकोली
4.      चेरी टोमॅटो
5.      चायनीज़ कैबेज
6.      सेलरी ( Celery)
7.      रोज़मेरी
8.      ओरिगेनो
9.      केल ( Baby Kale)
10.  बेबी कैरेट
11.  अस्परागस ( Asparagus)
12.  नालकोल
13.  बेजिल
14.  जुगनी
15.  बेबी बीट रूट
16.  ओर्गेनिक टर्मरिक
17.   मलबेरी
18.  गूसबेरी
                   इन उपर्युक्त सब्जियों,सलाद पत्तियों और मसालों में कुछ तो ऐसे हैं हमारे यहाँ भोजन में पहले से शामिल रहे हैं तो कई ऐसे भी हैं जो मुख्य रूप से हमारे यहाँ पैदा नहीं होते थे । एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों के उत्पादन से सुनील जी का यही अभिप्राय था कि तमाम देशी-विदेशी सब्ज़ियों,सलादों और मसालों में से जिन्हें यहाँ पैदा किया जा सके और जिनकी बाजार में अच्छी माँग और कीमत है उसकी खेती को प्रोत्साहित करना । अपनी बात का प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाने के लिए वे हमें भिलार से महाबलेश्वर लेकर गये जहां उन्होने हमारी मुलाक़ात श्रीमती रूपल तेजानी जी से कराई । रूपल जी ड्रीम फार्म की मालकिन हैं और अपने पाँच एकड़ के फार्म में एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों की खेती बड़ी लगन से करवाती हैं ।


                श्रीमती रूपल तेजानी से मिलकर और इन तमाम एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों की खेती को देखकर इतना तो समझ में आ ही गया कि किताबों के गाँव भिलार में इको और एग्रो टूरिजम की भी अपार संभावनाएं हैं । बाकी साहित्यिक और अकादमिक गतिविधियां इसमें सहायक ही होंगी । इस बात को गाँव वाले भी अच्छी तरह समझ रहे हैं । किताबों का गाँव घोषित होने के बाद से ही गाँव में आवास और भोजन जैसी सुविधाओं का विकास हुआ । दस से बीस हजार रुपये की नौकरी के लिए मुंबई – पुणे का रुख करनेवाले लोग अब गाँव में ही रोज़गार की संभावनाएं देखने लगे हैं । पहाड़ी इलाकों के लिए यह बहुत बड़ी बात है ।

                पहाड़ों की बंद किवाड़ों पर उम्मीद इन अभिनव प्रयोगों के माध्यम से दस्तक दे रही है । आवश्यकता इस तरह के प्रयोग लगातार करने की है । इनमें सरकार और जन भागीदारी दोनों ज़रूरी है । किताबों का गाँव एक कामयाब प्रयोग लग रहा है । आशा है दिन ब दिन किताबों का गाँव समृद्ध और संपन्न होते हुए अपनी पहचान को वैश्विक स्तर पर कई संदर्भों में दर्ज़ करायेगा । स्ट्राबेरी, इको और एग्रो टूरिजम, एग्ज़ोटिक( EXOTIC ) सब्जियां, होटल व्यवसाय और खूब सारी किताबें इसके संभावित क्षेत्र हो सकते हैं । आज यह गाँव बौद्धिक, सांस्कृतिक एवं जैविक खाद की त्रिवेणी बनकर उभरा है ।






डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
सहायक अध्यापक – हिन्दी विभाग
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
पड्घा रोड़, गांधारे गाँव
कल्याण-पश्चिम 421301
महाराष्ट्र ।
8090100900 / 9082556682














                                            
संदर्भ ग्रंथ सूची :

1.       पुस्तकांच गाँव भिलार : वर्ष पूर्ति सोहड़ा, 04 मई 2018 । संपादक – डा. आनंद काटीकर । प्रकाशक – संचालक,राज्य मराठी विकास संस्था, मुंबई ।
4.       BHILAR- A VILLAGE OF BOOKS- : CHALLENGES AND OPPORTUNITIES -Mangesh S. Talmale, eISSN No. 2394-2479, http://www.klibjlis.com.“Knowledge Librarian” An International Peer Reviewed Bilingual E-Journal of Library and Information Science Volume: 04, Issue: 06, Nov. – Dec. 2017 Pg. No. 127-131
6.       SOCIO-ECONOMIC DEVELOPMENT IN MAHABALESHWAR AND JAOLI TAHSIL OF SATARA DISTRICT MAHARASHTRA STATE INDIA - Dr. Rajendra S. Suryawanshi, Mr. Jitendra M. Godase. International Journal of Research in Social Sciences Vol. 7 Issue 12, December 2017, ISSN: 2249-2496 Impact Factor: 7.081 Journal Homepage: http://www.ijmra.us, Email: editorijmie@gmail.com
7.        

Thursday 27 February 2020

Collected Poems of “October Us Sal.”: An Overview

Collected Poems of “October Us Sal.”: An Overview

“The Secret of a poem, no less than a jests prosperity, lies in the ear of him that hears it. Yield to its spell, accept the poets’ mood: This after all is what the sages’ answers. When you ask them of its value. Eve the poet himself in his other mood, tell you that his art is but sleight of hand, his food enchanter’s food, and offer to show you the trick of it- believe him not. Wait for his prophetic hour then give yourself to his passion, his joy or pain.”  (P.01, The Raven)
Poetry is also a means for expressing emotions. It is a form of literature where aesthetic and rhythmic language is used to provide a certain emotions of humans. Poems not only deal with human emotions but also deal with current social issues of that particular time. It also deals with different object of the universe.
As Deeb Says, “Poetry is a white magic.” (P.16, What is Poetry?)
Poetry is a white magic – a magic can convert humans from one imagination to other, from one emotion to other emotions. This is the power of poem and Dr. Mishra has used this power in his collection of poem in “October Us Sal.” He uses the power of magic in his poems. He has written many poem like, ‘Aatmiyta”, “Jab koi kisi ko yad karta he,” “ Jab tumhe likhta hu” , ‘Tumhari ek muskan ke liye”, ‘ Jab tum sath hoti ho’ , ‘ Jab tham leta hu.’  ‘Kab hota he prem’, ‘Range ishk me’, ‘Ma’, ‘Tum se Prem.”, ‘Jo lautkar aa gaya’, ‘Bachana Chahta hu.”
These are very emotional poems. ‘Aatmiyta’ is very soul touching poem where poet talks about ‘Dhokha and Fareb’ where a person has to face cheating in life but still he is ready to support others and decided to be a part of social gathering. He talks about religion, language and society, state and nation in this poem. He has seen many problems in his life but still he is ready to be with others. Here in this poem the poet is highly positive and talks about present condition of human where he is not happy always suffering but still hopes to live happy life. He finds happy and peaceful life in “ Aatmiyta” which means connection of soul with other souls. This poem is highly touching and depicts the present situation. Psychologically perspective is also working as one should always see positivity in everything. The poet Manish is really great in depicting present social and mental status of human with wonderful choice of words and rhyming. Jab koi kisi ko yad karta he,” the poem shows connection between yad karna and tara tutna. Poem is short but effective in presenting the human emotion when you want to meet a person and shows how much you love that person.
“ Ab tak sare tare tutkar jamin par aa gaye hote
Akhir itna to yad tumhe kiya hi he.”

“ Jab tumhe likhta hu” , ‘Tumhari ek muskan ke liye”, ‘ Jab tum sath hoti ho’ , ‘ Jab tham leta hu. These poems are also full of emotions of love where the poet express his love towards his beloved. “ Jab tumhe likhta hu’ is a wonder combination of words as –
“Jab tumhe likhta hu, to khushi likhta hu,
Aankh ki nami ko teri kami likhta hu.”
Poet Manish has not only written his poem on emotions but also he has taken the challenge by using different objects as ‘Vo Santra.’ ‘Raktchap’, ‘ Gathoo ki Gathari.’ ‘ Do Aankho me ataki.’ ‘ Adarak wali chai.’ ‘ Vah gili chidiya.’  It is difficult to take an object and then connect with emotions with proper rhythm and beautiful expression. But here poet shows his mastery on his poetry writing skill by writing ‘Vo Santra’. The poet expresses that an orange is given by someone to him that shows a sharing of love between two humans. An orange symbolises love even a person is not with him then an orange reminds her love to him. This is highly creative poem.

“Or yah sab kabhi kabhi to us ek santre se bhi mil jata he.’
Jo tum de deti ho, apne hisse he bachakar chupchap.”

‘Adarak Vali Chai’ is also wonderful poem can be called masterpiece of the poet. He tries to connect Adarak tea with his love. He is missing ginger tea prepared by his beloved years ago. Now after many years it is expected by him that one day she will come and again she is going to prepare ginger tea for him without asking. He is literary waiting for this day and dreaming for her coming after many years also. It is highly positive and hoping poem.
“Muje yaking he tum banaogi salo bad bhi vaisi hi
Adarak wali chai phir ek bar milne par or shayad bina mere kahe.”

The poet has not only written emotional or objective poem. He has also written about the dark side of the life. He has written sad poems also as, “ Girti hui Baraf.’, ‘Avasad’, ‘Kachhe se Ishq me’, ‘Chuppi ki panah me’ ‘ Muje aadat thi’ ‘Kratgna Yatna’, ‘Vifalta ke swapan’, ‘Gambhir Chintao ki Paridhi’, ‘Me nahi chahta tha,’ etc. These poems show the other side of life which is painful and everybody has to face in their life. ‘Avasad’ the poem deals with darkness where he wants to hide himself. He does not want to be in contact with others as he has already left ‘Roshni’ which symbolize happy life and ‘Pahad’ symbolizes confidence and progress in life.  He just wants to be in silent dark place. Almost all the above poem deals with sad emotions of life.
“ Aaj samja hu tab jab ki utar chukka hu roshni or pahado ki
Us duniya se bahut dur kahi kisi virane me gahre bahut gahre kisi andhere me.”


Manish has also written some philosophical poem as “Is Saal ka yah October.’ , ‘ Bahut Kathin hota he’, ‘Jivan Yatra’, ‘Matwala Karunamay Pawas’, ‘Bhasa ke Libas me,’ ‘Chandani Pite Hue’, ‘Pratiksha ki Sthapatya Kala’, ‘Itihas mere Sath’, ‘ Jaise hoti he.’ and ‘Sthagit Savedanao’. These poems have philosophical aspect as ‘It is difficult to say Good Bye’ The another aspect of life is also brilliant resented by him. The poet doesn’t want to say good bye to his beloved and want to spend more time with her.
“In sabke bich hi ab jabki tum ja rahi ho to
tumhe good bye kehna bahut kathin he.”

Manish is a brilliant poet, has touched almost all aspect of life. He has the power to collect all feeling in one bunch. The title of the collected poem is also appropriate “October Us Sal.”  As it is believed that October is a month of romance, emotions and feelings as the atmosphere is also romantic. So October is a month of different feelings as romance, sadness, loneliness, sadness as per the situations of human’s life. Manish also discussed about social, psychological and philosophical aspect of humans. His poetry covers almost all social condition of humans where he is sometime in love, sometime waiting for love, failure in love, to be in depression, and to be in hope, clear vision of life, unclear vision of life, to live with history, and all his expectation and habit of human life. Manish has a wonderful vision and understanding towards life. His experience of life can be clearly seen in his collection of poems. The choice of words and the title of the poem itself attract readers to read and feel the love and pain of a poet. To read this collected poem is a joy and will be a wonderful experience for the future readers. He dedicated his poem to his mother, reading his poems make us feel that he is blessed by his mother. He has also written “ Is Bar Tumhare Shahar Me.’ – a collection of Hindi Poems.

Dr Swati Joshi
Gujrat

Saturday 11 January 2020

Sports Conference 2020


Dear All,
K.M.Agrawal College, Kalyan west, Maharashtra in association with Sports Stars Foundation, S.E.W.A. Kalyan & Taekwondo Education University of India is organizing Two Day International conference cum Open Taekwondo Championship on 25th-26th January 2020.
 One can submit his research paper on following topics :
1. Importance of Indoor Sports in our life.
2. Role of Educational Institutions in promoting Sports.
3. Role of Sports in Health and Culture of Society.
4. Comparative study of  indigenous & Foreign Sports.
5. Sports & Technology
6. Effect of Sports on Thoughts & ways of human life.
7. Promotion of Sports by NGO and Sports Bodies in our Country.
8. Role of Government to promote sports in the country for achieving excellence in Sports at International level.

Paper is acceptable in Hindi and English Language.
Paper must be submitted in Times Roman /Font size 12 on
kmagrawalsports@gmail.com before 23-01-2020.
Registration fees is Rs 1000/ per delegate.

No accommodation facility from our side.
For any other information
Contact
Dr Manish Kumar Mishra
08090100900
09082556682

Saturday 4 January 2020

कवि मनीष : हिंदी कविता के कैनवास का नया रंगरेज़ ।


      
                डॉ. गजेन्द्र भारद्वाज
हिंदी सहायक प्राचार्य

                  काव्य संग्रह ‘अक्टूबर उस साल’ साल 2019 में प्रकाशित मनीष मिश्रा जी के कृतित्व का वह इतिहास है जो उनके उत्तरोत्तर मँझते हुए लेखन और उनकी कविताओं के भाव गांभीर्य की विकास यात्रा को न केवल संकलित कविताओं के शीर्षक अपितु उनकी भाव संपदा की तन्मयता की गाथा सुनाता है। आज अभिव्यक्ति के विभिन्न माध्यमों से जो भी कविताएँ पढ़ने को मिलती हैं उनमें से अधिकां को पढ़कर ऐसा लगता है मानो उन्हें एक ढाँचा निर्मित करके सायास लिखा गया है ऐसी कविताओं के लेखन के बीच से ऐसी कविता जो अनायास बन जाए इस संग्रह में दिखाई दी हैं जिन्हें पढ़कर यह लगता है कि आज भी कविता शब्दों और भावनाओं के परे जाकर हमारी चैतन्यता से जुड़ी है। मनीष इस संग्रह और इसमें संकलित कविताओं के प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई के पात्र हैं जिनका प्रयास इतने कम समय में भी परिपक्वता की ओर अग्रसर दिखाई पड़ रहा है।
               इस संग्रह में कुल 56 कविताएँ संकलित हैं जिनमें पहली कविता ‘आत्मीयता’ से लेकर संग्रह की अंतिम कविता ‘बचाना चाहता हू’ तक की विभिन्न कविताओं में कवि की जिस वैचारिक चिंतनशीलता को महसूस किया जा सकता है उसको संप्रेषित करने के लिए यदि स्वयं कि शब्दों का प्रयोग किया जाए तो एक अन्य ग्रंथ लिखा जा सकता है। फिर भी संग्रह में संग्रहित कविताओं के आलोक में यदि कवि के ही शब्दों में यदि कवि की चिंतनधारा को समझने का प्रयास किया जाए तो उसके लिए इस संग्रह   की विभिन्न कविताओं के शीर्षकों को संयोजित करने पर कवि की विचार संपदा का थोड़ा परिचय मिल सकता है। यथा ‘जब कोई याद किसी को कारता है/बहुत कठिन होता है/  उसके संकल्पों का संगीत / पिछलती चेतना और तापमान से / अनजाने अपराधों की पीड़ा / गंभीर चिंताओं की परिधि / दो आँखों में अटकी / मैं नहीं चाहता था / इतिहास मेरे साथ / पिछली ऋतुओं की वह साथी / जैसे कि तुम / तुम से प्रेम / जाहिर था कि / लंबे अंतराल के बाद / आगत की अगवानी में / स्थगित संवेदनाएँ / बचाना चाहता हूँ।’ उपरोक्त कविताओं की परोक्ष गहनता की ओर संकेत करता है। जिसके कई गहरे अर्थ निकलकर सामने आते हैं जैसे केवल कविताओं के शीर्षकों को मिलाकर ही कवि के उस भाव का पता चलता है जिसमें वह अपनी मीठी यादों से जुड़े किसी भी अविस्मरणीय प्रसंग को इतिहास बनते देखना नहीं चाहता। कवि मानता है कि उसका मन किसी याद को चिरजीवित रखना चाहता है, उस प्रेम और प्रेम से जुड़ी वे सभी संवेदनाएँ जो उसने वर्तमान व्यतताओं के कारण स्थगित कर रखी हैं उन्हें बचाते हुए अपने भीतर के उस राग तत्व को सदा बनाए रखना चाहता है जिसके कारण इस सृष्टि में और स्वयं उसके जीवन में सृजन की प्रक्रिया निरंतर चल रही है।


            हिन्दी कविता में फैण्टेसी के महारथी गजानन माधव मुक्तिबोध की कविताओं में जो अप्रस्तुत का प्रस्तुत उनकी कविताओं के अंतस में छिपा दिखाई देता है, उसी परोक्ष की प्रत्यक्षता  मनीष मिश्र के इस संग्रह की कविताओं में भी परिलक्षित होती है। इनकी कविता सरल होते हुए भी एकाधिक बार पढ़े जाने की मांग करती है। इन कविताओं को पहली बार पढ़ने से लगता है कि यह एक प्रेमी के द्वारा अपनी प्रेमिका के लिए उद्भाषित होते उद्गार हैं पर ध्यान देकर दोबारा पढ़ने पर लगता है कि ये कवि की एक भावना का दूसरे भाव से आत्म संवाद है, चिंतन करते हुए तीसरी बार पढ़ते हुए महसूस होता है कि ये तो प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में बसने वाले एक नादान बालक की अपने भीतर बसने वाले समझदार व्यक्ति से बातचीत है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि इस संग्रह की कविताएँ जितनी बार पढ़ी जाएँ उतनी बार नया और आह्लादकारी अर्थ देती हुई मन को रोमांचित करती हैं।
                 मुझे मनीष जी की कविताओं में उनका वही शालीन, सौम्य और शांत व्यक्तित्व दिखाई देता है जो उनको नितांत सरल और आत्मीय बना देता है। इस संग्रह की कविताओं को एक बार पढ़ने के बाद बरबस ही दोबारा अध्ययन करते हुए पढ़ने की इच्छा हुई। अध्ययन के दौरान इन कविताओं से जो आनंद प्राप्त हुआ उससे पढ़कर कवि की वह सूक्ष्म दृष्टि पता चलती है जो आज के व्यस्ततम जीवन में भी मन की ओझल प्रतीत होने वाली गतिविधियों को भी देख लेती है। जब कवि कहता है कि ‘सुनन में/थोड़ा अजीब लग सकता है/लेकिन/सच कह रहा हूँ/यदि आप/धोखा देना पसंद करते हैं/या यह/आपकी फितरत में शामिल है/तो आप/मुझे अपना/निशाना बना सकते हैं/यकीन मानिए/मैं/आपको/निराष नहीं करूँगा/सहयोग करूँगा।’ इसी से मिलती जुलती एक अन्य कविता ‘जैसे कि तुम’ भी है जिसमें धोखे के एक अन्य प्रकार से पाठकों को रूबरू कराया गया है। इस कविता की प्रारंभिक पंक्तियाँ पाठकों को एक मजबूत भावनात्मक बंधन में बाँधने की क्षमता रखती है । जब कवि कहते हैं कि ‘ऐसा बहुत कुछ था/जो चाहा/पर मिला नहीं/वैसे ही/जैसे कि तुम।’ पाठक इन पंक्तियों के साथ कवि के साथ आत्मीय संबंध स्थापित कर लेता है और फिर कवि लिखता है ‘धोखा/बड़ा आम सा/किस्सा है लेकिन/मेरे हिस्से में/किसके बदले में/दे गई तुम।’
                   यह कविता स्वयं में व्यष्टि से समष्टि और वैयक्तिकता से सामाजिकता का वह पूरा ऐतिहासिक लेखा जोखा प्रस्तुत कर देती है ।  जिसमें समाज की उस विचारधारा पर व्यंग्य की चोट की गई है जिसे अनगिनत कवियों ने प्रस्तुत करने के लिए वर्षों साधना करते हुए अनेक ग्रंथ रच डाले हैं , पर फिर भी खुलकर उस बात पर चोट नहीं कर पाए । जिसके सम्मोहन में आकर हम इस नश्वर देह और अस्थायी संबंधों को ही अपने जीवन का लक्ष्य मानकर मोहपाष में बँधे हुए जीवन व्यतीत करते चले जा रहे हैं। इस भवसागर के प्रपंच में फँसे मानव को जीवन दर्शन का कठिन फलसफा बताते हुए कवि संकेत भी करता है कि ‘‘शिक्षित होने की/करने की/पूरी यात्रा/धोखे के अतिरिक्त/कुछ भी नहीं।/मित्रता, शत्रुता।/लाभ-हानि/पुण्य-पाप/मोक्ष और अमरता/सिर्फ और सिर्फ/धोखाधड़ी है।’’ वह लिखता है ‘‘आत्मीय संबंधो का/भ्रमजाल/धोखे के/सबसे घातक/हथियारों में से एक हैं।’’
                         इस कविता में अनुभूति और अभिव्यक्ति की जो तीखी धार पाठक को महसूस होती है, उसे स्वयं अज्ञेय ने भी महसूस किया था । जिसे उन्होंने अपनी एक कविता में बताते हुए लिखा था कि ‘‘साँप तुम सभ्य तो हुए नहीं/हर में रहना भी तुम्हें नहीं आया/एक बात पूछूँ उत्तर दोगे/फिर कैसे सीखा डसना/विष कहाँ से पाया।’’ अज्ञेय द्वारा प्रयुक्त ‘डसना’ और कवि मनीष मिश्र द्वारा प्रयुक्त ‘धारदार हथियार’ दोनों ही उस धोखे की ओर संकेत करते हैं। जिसका अनुभव पाठक को अपने जीवन के प्रारंभ से ही हो जाता है। यही कारण अज्ञेय और मनीष मिश्र जी में साम्य के रूप में उभरकर आता है। इतना ही नहीं कवि इस कविता में सांकेतिक रूप से इस समस्या का एक हल भी प्रस्तुत करता है ।  जिसको समझने के लिए इस कविता को पूरा पढ़े बिना मन नहीं मानता। इस हल को ढूँढने की जिज्ञासा पाठक को कविता पूरी पढ़ने के लिए बाध्य करती है। पाठक की यह बाध्यता कवि की उस परिपक्वता को इंगित करती है जो उसने इस अल्पवय में अपने लेखन की अवस्था में ही प्राप्त कर ली है।
                  मनीष मिश्र जी के ‘अक्टूबर उस साल’ की कविताओं को पढ़कर लगता है कि वे जानते हैं कि पाठक को अपनी भावनाओं के ज्वार में किस प्रकार ओतप्रोत करना है। जिसके कारण वे पाठकों को कविता दर कविता अपने साथ बहाए लिए जाते हैं। संग्रह की दूसरी ही कविता ‘जब कोई किसी को याद करता है’ भी एक ऐसी प्रस्तुति है जो प्रत्येक पाठक को उसकी गहरी संवेदनाओं के पा में बाँधकर पाठक को अपने इतिहास की एक मानसयात्रा के लिए बाध्य कर देती है। पाठक कविता के शीर्षक मात्र से अपने जीवन के सर्वाधिक प्रिय व्यक्ति को अनायास ही याद कर बैठता है ।  फिर आगे की कविता पाठक और पाठक के प्रिय के साथ पढ़ी जाती है। अपने प्रिय के साथ मानसयात्रा के दौरान पाठक स्वयं को और अपने प्रिय को यह याद दिलाने का प्रयास करता है कि उसने अपने प्रिय को अपने हृदय की गहराइयों में एक विषिष्ट स्थान दिया है। वह शीर्षक में लिखी मान्यता को झुठलाना चाहता है और कह उठता है कि ‘‘अगर सच में/ ऐसा होता तो/अब तक/सारे तारे टूटकर/जमीन पर आ गए होते/आखिर/इतना तो याद/मैंने/तुम्हें किया ही है।’’ इस संग्रह की कविता ‘रक्तचाप’ भी अपने प्रिय की याद करने और उसके साथ बिताये नितांत निजी और ऐसे अनुभूतिपूर्ण क्षणों से मिली गरमाहट की बात करता है जिससे आज भी पाठक भूल नहीं पाया है। मनीष जी की यह कविता भी उनकी अन्य कविताओं की तरह इतनी छोटी तो है किंतु गहरी भी इतनी है कि पाठक अपने प्रिय के सानिध्य को कविता की चंद पंक्तियों को एक साँस में पढ़ तो जाता है पर एक क्षण में पढ़ ली गई इन लाइनों के बाद बाहर निकलने वाली साँस वर्षों के इतिहास को प्रत्यक्ष कर जाती है। एक बात और है जो मनीष जी की कवितओं को विषेष बनाती है वह यह कि पाठक मनीष जी की कविताओं को स्वयं के जीवन में निभाई जिस भूमिका की भावभूमि में पढ़ता है वे उसे उसी के अनुरूप झँकृत कर देती हैं। यदि पाठक एक बार प्रेमी की तरह इन कविताओं को पढ़ता है तो उसे अपनी प्रेमिका की निकटता का अहसास होता है। यदि पाठक एक पुत्र की तरह इन कविताओं को पढ़ता है तो उसे अपनी माँ के ममत्व की गरमाहट भरी निकटता महसूस होती है, यदि मित्र की तरह पढ़ता है तो उसे एक अन्यतम मित्र की निकटता का आभास होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसी बात को इंगित करके लिखा था कि ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन्ह देखी तैंसी।’ मनीष मिश्र जी की कविताएँ भी पाठक को बार-बार पढ़ने के लिए प्रेरित करेंगी और प्रत्येक बार पाठक को एक नये रस का आस्वादन प्राप्त होगा ऐसा मेरा मानना है।
तुम्हारी एक मुस्कान के लिए’ कविता भी कुछ ऐसी ही तासीर की कविता है जिसमें पाठक देकाल के बंधनों से परे जाकर जीवन के प्रत्येक क्षण में अपने प्रिय के साथ बिताए पलों को उसी ताजगी से याद करता है, जिस ताजगी से वे घटित हुए थे। इस कविता में जब कवि कहता है कि ‘तुम्हारी एक मुस्कान के लिए/जनवरी में भी/हुई झमाझम बारि/और अक्टूबर में ही/खेला गया फाग।’ तब वह वर्तमान में होते हुए भी अपने प्रिय के साथ समययात्रा करता हुआ सूक्ष्म समायांतराल में एक पुनर्जीवन को जी लेता है। मनीष जी की कविताएँ पाठक की संवेदनाओं को भी संबोधित करती हैं। ‘जब तुम साथ होती हो’ में ऐसा ही संबोधन सुनाई पड़ता है मानो व्यक्ति अपनी आशा को संबोधित करते हुए कह रहा हो कि ‘तुम जब साथ होती हो/तो होता है वह सब/कुछ जिसके होने से/खुद के होने का/एहसास बढ़ जाता है।’ इस कविता का पहला भाव नायक द्वारा नायिका के प्रति उद्गार के रूप में सामने आता है पर एक अन्य अर्थ में ऐसा प्रतीत होता है कि कवि अपनी आशा के होने के महत्व का वर्णन करते हुए कह रहा है कि आशा के कारण ही कवि का अस्तित्व और पहचान है।
              



वह साल, वह अक्टूबर’ कविता इस संग्रह की मुख्य कविता प्रतीत होती है । जिसके इर्दगिर्द इस संग्रह का तानाबाना रचा गया लगता है। इस कविता में कवि ने अपने और प्रिय के व्यक्तिगत अनुभवों को शब्दबद्ध करने का प्रयास किया है। जब वह कहता है कि ‘इस/साल का/यह अक्टूबर/याद रहेगा/साल दर साल/यादों का/एक सिलसिला बनकर।’ तो इन पंक्तियों में कवि की नितांत व्यक्तिगत किंतु महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षणों की एक श्रृंखला ध्वनित होती दिखाई देती है। ‘बहुत कठिन होता है’, ‘अवसाद’, ‘कच्चे से इष्क में’, ‘विफलता के स्वप्न’ ‘भाषा के लिबास में’, ‘इतिहास मेरे साथ’, ‘पिछली ऋतुओं की वह साथी’ आदि इसी श्रेणी की कविताएँ है। इन कविताओं में बीते जीवन की जो सुखद अनुभूतियों की गूँज है उसी का इतिहास इस संग्रह में दिखाई देता है जिसके कारण इस संग्रह का शीर्षक ‘अक्टूबर उस साल’ बहुत उपर्युक्त प्रतीत होता है। इस संग्रह की कविता ‘जीवन यात्रा’ की निम्न पंक्तियाँ इसी तथ्य का साक्ष्य भी देती हैं ‘ऐसी यात्राएँ ही/जीवन हैं/जीवन ऐसी ही/यात्राओं का नाम है।’ एक अन्य कविता ‘चाँदनी पीते हुए’ में भी कवि प्रिय के अनुराग को व्यक्त करते हुए न जाने कितनी ही बिसरी बातें याद कर जाता है वह कहता है ’याद आता है/मुझे वह साल/जिसमें मिटी थी/दृगों की/चिर-प्यास।’ इस कविता की इन प्रारंभिक पंक्तियों को पढ़ते ही पाठक की अपनी बीती अनुरक्ति की यादें ताजा हो जाती हैं उसकी आँखों के झरने में एक-एक करके अनगिनत मीठे लम्हे भीग जाते हैं। इस कविता में जब कवि लिखता है कि ‘यह/तुम्हारे भरोसे/और/मेरे बढ़ते अधिकारों की/एक सहज/यात्रा थी।’ तब तक पाठक इस कविता के शब्दों के साथ अपना तादात्म्य स्थापित कर लेता है और कवि के शब्दों के अनुरूप अपने बीते जीवन को एक बार फिर से अपने भावदेष में जीने लगता है और तब कवि पाठक की अनुभूतियों को कुरेदता हुआ उन बातों की तह तक पहुँच जाता है जिसमें कवि और पाठक एक-दूसरे से अपनी अंतरंग बातें साझा करते हैं कवि लिखता है ‘तुम्हारे बालों में/घूमती/मेरी उंगलियाँ/निकल जाती/सम्मोहन की/किसी लंबी यात्रा पर।’ कवि की इस कविता के साथ पाठक अपने मन की गइराइयों में छुपे उस अनुराग की तान छेड़ देता है जिसके कारण उसे प्रेम का उदात्त आभास हुआ है। इस भाव को शब्द देते हुए कवि लिखता है ‘जहाँ से तुम/मेरी सर्जनात्मक शक्ति की/आराध्या बन/रिसती रहोगी/मिलती रहोगी/उसी लालिमा/और आत्मीयता के साथ।’ कवि की कविता इन शब्दांे के साथ पूरी हो जाती है किंतु इस तरह की कविताओं के पाठ से पाठक के हृदय में जो स्पंदन शुरु हो जाता है वह पाठक को न केवल पूरी कविता को दोबारा पढ़ने के लिए विवष करता है बल्कि वह पाठक को प्रेरित करता है कि इसी प्रकार उसके मन की उन सभी बातों को इस संग्रह की अन्य कविताओं में ढूँढे जिनको पाठक ने स्वयं से भी साझा नहीं किया है। पाठक उत्प्रेरित होता है और इस संग्रह की अन्य कविताओं में अपने निजी क्षणों की तलाष करता है।
                          हर व्यक्ति के जीवन में कोई ऐसा प्रिय व्यक्ति अवष्य होता है जिसके प्रति उसका व्यवहार एक अतिरिक्त सावधानी या सुरक्षा के चलते कुछ ऐसा हो जाता है कि उस प्रिय व्यक्ति के कुछ निजी पलों का हमसे अतिक्रमण हो जाता है। ‘मुझे आदत थी’ कविता की पंक्तियाँ ‘मुझे आदत थी/तुम्हें रोकने की/टोकने की/बताने और/समझाने की।’ ऐसे ही प्रिय व्यक्ति के प्रति पाठक द्वारा किए गए अतिक्रमण की क्षमायाचना करती है तथा प्रायष्चित स्वरूप पाठक को ‘अब/जब नहीं हो तुम/तो इन आदतों को/बदल देना चाहता हूँ/ताकि/षामिल हो सकूँ/तुम्हारे साथ/हर जगह/तुम्हारी आदत बनकर।’ के माध्यम से समाधान करने का प्रयास करती है जिससे उसके मन की टीस समाप्त हो सके। ‘कब होता है प्रेम’, ‘रंग-ए-इष्क में’ कविता की निम्न पंक्तियाँ भी पाठक को अपने रंग मंे रंगने में सफल हो जाती है ‘जहाँ बार-बार/लौटकर जाना चाहूँ/वह प्यार वाली/ऐसी कोई गली लगती।’
                    इस संग्रह में कुछ अन्य कविताएँ जैसे ‘चुप्पी की पनाह में’, ‘कुछ उदास परंपराएँ’, ‘इन फकीर निगाहों के मुकद्दर में’, ‘प्रतीक्षा की स्थापत्य कला’, ‘पिघलती चेतना और तापमान से’, ‘गंभीर चिंताओं की परिधि’ आदि पाठक को अपने स्वप्नलोक से वापस लाकर यथार्थ का आभास कराती हैं और बताती हैं कि वह जिस भावभूमि में था वह उसको नास्टेल्जिया मात्र है पर ‘दो आँखों मंे अटकी’ जैसी कविता पाठक को आष्वस्त भी करती है कि उसके मन की गइराइयों में जो निष्छल और निर्मल प्रेम छुपा है वही उसकी अनमोल निधि है जो उसे उसके संबंधों के निर्माण के लिए प्रेरित करती है। जब कवि लिखता है ‘यकीन मानों/मेरे पास/और कुछ भी नहीं/मेरे कुछ होने की/अब तक कि/पूरी प्रक्रिया में।’
                 एक अन्य कविता ‘यूँ तो संकीर्णताओं को’ भी उस सामाजिक एकता की ओर संकेत करती है जिसकी मजबूती से आज हम अपनी जी जाति को विनाष की ओर ढकेल रहे हैं। कवि लिखता है ‘हम/आसमान की/ओर बढ़ तो रहे हैं/पर अपनी/जड़ों का हवन कर रहे हैं।’ मेरे विचार से कवि मनीष की यह कविता इनके इस संग्रह की सबसे सषक्त कविता है जो तीखे शब्दों में हमारे समाज के यथार्थ और सामाजिक संबंधों की वर्तमान स्थिति की दयनीयता को स्पष्ट रूप से न केवल सामने रखती है बल्कि पाठक को सोचने यह सोचने के लिए विवष करती है कि क्या मनुष्य जाति के विकास का लक्ष्य यही था जो कवि मनीष जी ने लिख दिया है। पाठक कवि से सहमत भी होता है तथा सृष्टि और समाज मंे अपनी भूमिका की समीक्षा पर मनन भी करता है। इस कविता के अंतिम पद की पंक्तियाँ ‘भगौड़े/भाग रहे हैं विदे, दे को लूटकर/हमारे रहनुमा हैं कि/भाषण भजन कर रहे हैं।’ कवि को दुष्यंत कुमार जैसे उन शीर्ष कवियों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर देती हैं जो हमारे समाज की बुराइयों को अपनी कलम की तलवार से काटने के लिए किये जाने वाले युद्धघोष की प्रथम पंक्ति में रहते हुए यह कहते हैं कि ‘हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोषिष है कि यह सूरत बदलनी चाहिए। ‘दौर-ए-निजाम’ कविता की ये पंक्तियाँ ‘विष्व के सबसे बड़े/सियासी लोकतंत्र में/आवाम की कोई भी मजबूरी/सिर्फ एक मौका है।’ अनायास ही हिंदी के हस्ताक्षर गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ की याद दिला देती हैं।
                 कवि मनीष की कविताओं में यथा स्थान बिम्ब, प्रतीक एवं मिथकों को प्रयोग भी किया गया है जो युवा कवि होने पर भी अपने कार्य में दक्षता को दर्षाता है। इसी कविता में उनका यह लिखना कि ‘रावण के पक्ष में/खुद को/खड़ा करके/ये हर साल/किसका दहन कर रहे हैं?’ मनीष जी की कविता मंे इसी कलात्मकता की ओर संकेत करता है। इस संग्रह में मनीष जी की अनुभूतियों का सबसे सषक्त रूप उनकी ‘माँ’ कविता में उभरकर सामने आता है। शायद यह कविता इस संग्रह की सबसे लंबी कविता भी है। हो भी क्यों न, व्यक्ति के समस्त जीवन की एकमात्र संभावना इस कविता के शीर्षक में छिपी हुई है। यदि इस कविता की भाव संपदा की व्याख्या की गई तो शायद अन्य किसी कविता के लिए अवकाष ही न मिले। कवि मनीष जी द्वारा अपनी माँ को समर्पित यह कविता उनके सहज, सरल और शांत व्यक्तित्व के निर्माण कर कहानी कहती है। इस कविता के तुरंत बाद की कविता में अपने पर हावी हो जाने के द्वंद्व में पददलित की हुई इच्छाओं का जैसा संक्षिप्त और सटीक प्रस्तुतिकरण कवि ने किया है उससे ‘तुम से प्रेम’ कविता कवि की प्रस्तुति का अंदाज ही बदल देती है। जो कवि अभी तक सरल शब्दों में अपनी बात रखता जा रहा था इस कविता से उसके शब्द अचानक अत्यंत गंभीर और गहरे अर्थों वाले दार्षनिक हो जाते हैं जिससे ऐसा लगता है मानो कवि वर्षों की काव्य साधना की चिर समाधि का अनुभव साथ लिए हुए धीरे-धीरे अपना पद्यकोष खोल रहा है।
                     इस संग्रह में इस कविता से आगे की लगभग समस्त कविताएँ तीक्ष्ण कटाक्ष और पैनी दृष्टि के साथ एक ऐसे विद्वान पाठक का आग्रह करती हैं जिन्हें पढ़ने वाले के पास अपना स्वयं के अनुभव का एक इतिहास हो। ‘तुमने कहा’ कविता की पंक्तियाँ ‘मैं वही हूँ/जिसे तुमने/अपनी सुविधा समझा/बिना किसी/दुविधा के।’ बताती हैं कि केवल दान करना ही प्रेम की इति नहीं होती, प्रतिदान का भी प्रेम के व्यापक संसार में बहुत गहरा महत्व है। प्रतिदान के अभाव में प्रेम के दूषित भाव का भी जन्म हो सकता है जिसके कारण प्रेम के दीर्घायु होने में संषय उत्पन्न हो जाता है। ‘लंबे अंतराल के बाद’ कविता की ये पंक्तियाँ इसी की ओर संकेत करती हैं ‘सालते दुःख से/आजि़्ाज आकर/वह मौन संधि/ग़्ौरवाजि़्ाब मानकर/मैंने तोड़ दी’। इस कविता में मनीष जी ने अत्याधुनिक और तकनीकी युग में जीवन को यथार्थ की कसौटी पर परखते हुए जीने वाले आज के युग के लोगों के उस तनाव को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जो प्रतिदान के अभाव में उत्पन्न हो जाता है। इस अभाव को दूर करने का प्रयास संग्रह की अगली कविता ‘कुछ कहो तुम भी’ की निम्न प्रारंभिक पंक्तियों में ही दिखाई दे जाता है ‘यूँ खामोषी भरा/मुझसे/इंतकाम न लो/तुम/ऐसा भी नहीं कि/तुम्हें/किसी बात का/कोई/मलाल न हो/दूरियाँ कब नहीं थीं/हमारे बीच?/लेकिन/ये तनाव/ये कष्मकष न थी’ मनीष जी के इस संग्रह में प्रेम का जो रूप दिखाई देता है वह एक के बाद एक आने वाली कविताओं में व्यक्तिगत से समष्टिगत विस्तार तो पाता ही है उसमें आलंबन का तिरोभाव भी होता चला जाता है। ‘जैसे होती है’ कविता की निम्न पंक्तियाँ एक प्रेमी में दूसरे प्रेमी के इसी विलय की ओर संकेत करती हैं ‘जैसे होती है/मंदिर/में आरती/सागर/में लहरें/आँखों/में रोषनी/फूल/में खुषबू/षरीर/में ऊष्मा/षराब/में नषा/और किसी मकान/में घर/वैसे ही/क्यों रहती हो?/मेरी हर साँस/में तुम।’ मनीष जी की यह कविता कबीर के उस दोहे की बरबस ही याद दिला देती है जिसमें उन्होंने भी आलंबन के तिरोभाव का उल्लेख किया है। कबीर कहते हैं ‘जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं हम नाय, प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाय।’ प्रेम के विस्तार में स्वयं का विलय कर देने का यह भाव कबीर और मनीष जी के भाव में नितांत समानता दर्षाता है।
                         प्रेम ओर समर्पण’ कविता प्रथमदृष्टया इस संग्रह के प्रतिकूल दिखाई देने पर भी इस संग्रह के लिए निहायत ही अनुकूल है पर इस कविता को इस संग्रह में जो स्थान दिया गया है वह अनुकूल जान नहीं पड़ता। इस कविता को इस संग्रह की कविताओं ‘अवसाद’ और ‘मतवाला करुणामय पावस’ के बीच कहीं होना चाहिए था। इसी तरह ‘आगत की अगवानी में’, ‘स्थगित संवेदनाएँ’, ‘जो लौटकर आ गया’ इस संग्रह की ऐसी कविताएँ हैं जिनकी गहराई को समझने के लिए वांछित परिपक्वता अभी मुझमें नहीं है ऐसा मुझे प्रतीत होता है। इस संग्रह की अंतिम कविता ‘बचाना चाहता हूँ’ को पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि लेखक ने इस संग्रह की अंतिम कविता के रूप में इसको बहुत पहले ही लिख लिया होगा क्योंकि यह कविता हर लिहाज़्ा से संग्रह की अंतिम कविता के रूप मंे ही फिट बैठती है। इस संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए पाठक अपने बीते हुए नितांत व्यक्तिगत और सुखदायी वैचारिक जगत् मंे विचरण करता है उससे पाठक को यह समाधान हो जाता है कि उसके प्रेम के ये ही निजी क्षण उसकी ऐसी अक्षय निधि हैं जो उसके अकेलेपन को भावों के परिवार से भर देती हैं और पाठक विवष हो जाता है कि यदि उसे अपने अस्तित्व और अपने व्यक्तित्व की रक्षा करनी है तो उसे इन सुखद स्मृतियों को बचाना ही होगा। ऐसे निष्चय के साथ यह अंतिम कविता पाठक को अपने इस निर्णय पर अटल होने के लिए प्रेरित करती हैं जिसमें कवि कहता है ‘मैं/बचाना चाहता हूँ/दरकता हुआ/टूटता हुआ/वह सब/जो बचा सकूँगा/किसी भी कीमत पर’ कवि ने बचाने वाली इस संपत्ति के कोष में जिस टूटते हुए मन, भरोसे की ऊष्मा, आँखों में बसे सपने की बात की है उनके लिए पाठक को लगता है कि ये तो स्वयं पाठक के मन में उठने वाले विचार हैं। इस प्रकार कवि मनीष की यह कविता भी पाठक के साथ तारतम्य स्थापित कर लेती है।
                            इस अंतिम कविता को पढ़ने के बाद इस बात की तसल्ली होती है कि अपने दूसरे ही संग्रह की कविताओं में कवि मनीष ने पाठक की रुचि के अनुरूप ऐसी कविताओं की रचना की है जो पहली कविता से लेकर अंतिम कविता तक पाठक को बाँधे रखने में सफल होती है। यद्यपि इन कविताओं में ध्यानस्थ पाठक की चेतना भंग नहीं होती तथापि कुछ कविताओं का स्थान यदि इधर-उधर कर दिया जाता तो मेरे जैसे अल्पज्ञ किंतु भावुक पाठक को और भी अधिक आनंद आता। फिर भी कम शब्दों में रची हुई छोटी छोटी कविताएँ होने के बावजूद कवि ने अपनी अनुभूति की अभिव्यक्ति जिस प्रकार से की है उसका रसास्वादन करते हुए साहित्य के बड़े-बड़े कवियों का अनायास स्मरण हो जाना कवि की कवितओं की सफलता और काव्य चेतना की गहराई की ओर संकेत करता है। इन कविताओं को पढ़कर ऐसा लगता है कि यह कवि केवल लिखने लिए ही कविताएँ नहीं लिखता बल्कि इसकी सूक्ष्म चैतन्य दृष्टि आज के आपाधापी भरे समय में भी मनुष्य को विश्राम देकर स्वयं के बारे में विचार करने के लिए बाध्य करती है। डाॅ. मनीष मिश्रा जी को उनके काव्य संग्रह ‘अक्टूबर उस साल’ की छोटी, सुंदर और गहरी कविताओं की रचना के लिए बहुत बधाई।


डॉ गजेन्द्र भारद्वाज,
 हिंदी
सहायक प्राचार्य
सी.एम.बी. कालेज डेवढ़
(ललित नारायण मिथिला विष्वविद्यालय
दरभंगा का अंगीभूत महाविद्यालय)
घोघरडीहा, जिला- मधुबनी, बिहार
ईमेल- हंददन9483/हउंपसण्बवउ
संपर्क- 7898227839