Sunday 5 August 2018

जगत पियासो जाय ............



डॉ. मनीष कुमार सी. मिश्रा
हिंदी-विभाग
के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण-पश्चिम, महाराष्ट्र


                  नीति आयोग, भारत सरकार ने जून 2018 में Composite Water Resources Management Report को पेश किया । यह रिपोर्ट साफ़ बताती है कि भारत अपने अब तक के सबसे बड़े जल संकट से जूझ रहा है ।1 रिपोर्ट बताती है कि भारत की 600 मिलियन (60 करोड़) आबादी पीने के साफ़ पानी की उपलब्धता से वंचित है ।2 देश के लगभग दो लाख नागरिक प्रतिवर्ष पीने के साफ़ पानी की उपलब्धता न होने के कारण मारे जा रहे हैं । एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक पीने के साफ़ पानी की माँग वर्तमान आपूर्ति क्षमता की दोगुनी होने का अनुमान है, ऐसे में हालात और ख़राब हो सकते हैं । देश के भूजल राशि का बेहिसाब दोहन भी चिंता का विषय है । देश की 40% आबादी पीने के पानी के लिए आज भी इसी भूजल पर निर्भर है ।3 देश के 84% ग्रामीण इलाक़ों में पाईप लाईन द्वारा अभी भी पानी सप्लाई नहीं हो रहा है ।4 मोटे तौर पर ये आंकड़ें आने वाले विकट समय की तरफ़ एक इशारा है । अगर समय रहते हम नहीं चेते तो आनेवाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ़ नहीं करेंगे ।
                सरकार इस समस्या से निपटने के लिए जो भी क़दम उठा रही है वह बिना बड़ी जन भागीदारी के सफ़ल नहीं होगी । हाल ही में भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत योज़ना और गंगा सफ़ाई जैसी जो योजनाएँ शुरू की हैं, उनमें सफलता का आधार ही जन आधार है । स्वच्छ गंगा परियोजना का आधिकारिक नाम एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना या 'नमामि गंगे' है। नमामि गंगे परियोजना के तहत जनवरी 2016 से ही गंगा की सफाई तीन चरणों में होनी है जिसमें अल्पकालिक योजना व पांच वर्ष की दीर्घावधि योजना शामिल है।नमामि गंगे योजना, महज गंगा की सफाई की ही नहीं सरंक्षण की भी योजना है।
             सरकार की गंगा नदी के किनारे बसे 30 शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना है । गंगा सफाई पर केंद्र सरकार की कार्य योजना से असंतुष्ट उच्चतम न्यायालय ने कड़े लहजे में कहा कि इससे तो 200 साल में भी यह कार्य पूरा नहीं हो सकता ।  नमामि गंगे योजना के क्रियान्वयन में कैग रिपोर्ट में खामियां उजागर होने के बाद मोदी सरकार ने गंगा नदी की सफाई को लेकर खास प्रगति नहीं होने पर एक नई कार्यान्वयन योजना बनाई है। इस योजना के तहत अब सरकार कॉरपोरेट और आम जनता को गंगा नदी की सफाई के लिए आगे आने को कहेगी । इससे साफ़ है कि इस तरह की योजनाओं की सफलता में जन भागीदारी का कोई विकल्प नहीं है ।






(मानचित्र सौजन्य : नीति आयोग,Composite Water Resources Management Report, may 2018.)

          उपर्युक्त चित्र के आधार पर यह साफ़ हो जाता है कि पूरे देश में जल प्रबंधन की स्थिति उत्साह वर्धक नहीं है ।5 ऐसे में सरकारों को भी इस विषय पर अधिक गंभीर होकर कार्य करने की आवश्यकता है । इन सब स्थितियों के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं । बढ़ते शहरीकरण ने पानी से हमारे ताने – बाने को प्रभावित किया है ।

           हम जानते हैं कि पूरी दुनियाँ में मानवीय सभ्यता का विकास किसी न किसी नदी के किनारे ही हुआ है । जल हमेशा से ही जीवन का आधार है और रहेगा । जल ही जीवन है जैसी बातें हम लगातार सुनते रहे हैं । लेकिन बढ़ते शहरीकरण और स्थांतरण की स्थितियों ने एक नई समस्या हमारे सामने लाकर खड़ी कर दी है । वह है जल से हमारे तादाम्य और सामंजस्य की । नल की टोटी खोलते ही गिरनेवाला पानी दरअसल जल से हमारा वह रिश्ता नहीं बना सकता जो कूओं,तालाबों,नहरों और नदियों के सानिध्य में बनता है । यही कारण है कि आज़ हम गंभीर जल संकट की दहलीज़ पर हैं ।

          बढ़ते औद्योगीकरण और विषैले रसायनों को सीधे प्राणदायनी नदियों में छोडकर हमने नदियों के जीवन को ही संकट में डाल दिया है । आज़ देश की अधिकांश नदियाँ प्रदूषित हो चुकी हैं । कई सूख चुकी हैं तो कई सूखने की कगार पर हैं । सरकारें समय-समय पर नदियों के संरक्षण की योजनाएँ बनाती रही हैं पर जब तक बड़े पैमाने पर जन भागीदारी सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक तस्वीर बदलना मुश्किल है । नदियों में डाले जा रहे कूड़े- कचरे से पानी की स्व:पुनर्चक्रण क्षमता के घटने के परिणाम स्वरूप जल प्रदूषण बढ़ता है । केन्द्रिय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गंगा सबसे प्रदूषित नदी है । इस प्रदूषण का कारण यह है कि कई चमड़ा बनाने के कारखाने, कपड़ा मिलें और बूचड़ खाने  से नदी में सीधे अपना कूड़ा - कचरा जिसमें भारी कार्बनिक कचरा और सड़ा सामान शामिल है, उसे   छोड़ते हैं। एक अनुमान के अनुसार, गंगा नदी में रोज लगभग 1,400 मिलियन लीटर सीवेज़ और 200 मिलियन लीटर औद्योगिक कचरा अभी भी चोरी – छुपे छोड़ा जा रहा है।यही हाल देश की अन्य महत्वपूर्ण नदियों का भी है । यद्यपि सरकार इनको नियंत्रण में लाने का प्रयास कर रही है पर कोई सकारात्मक असर दिखाई नहीं पड़ रहा । 

             कई दूसरे उद्योग भी हैं जिनसे जल प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है । मांस से जुड़े काम,खाद,चीनी मिलें, भट्टी, ग्लिस्रिन, टिन, पेंट, साबुन, सिल्क, सूत आदि से जो जहरीले कचरे निकालती हैं। पिछले कई  दशकों में ये स्थिति और भी भयावह हो चुकी है। जल प्रदूषण से बचने के लिये सभी उद्योगों को मानक नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिये, सरकार को भी सख्त कानून बनाने चाहिये । पूरे देश में  सीवेज़ लाईन और जल उपचार/ शुद्धिकरण संयंत्र की स्थापना, सुलभ शौचालयों आदि का निर्माण बड़े पैमाने पर करना चाहिये। भारत की वर्तमान सरकार इस दिशा में गंभीर भी है ।

           सर्वव्यापी स्वच्छता प्रयासों में तेजी लाने के लिए और स्वच्छता पर बल देने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने दिनांक 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की। मिशन का उद्देश्य महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगाँठ को सही रूप में श्रद्धांजलि देते हुए वर्ष 2019 तक स्वच्छ भारत की प्राप्ति करना है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय,भारत सरकार की वेबसाइट हमें यह जानकारी देती है कि दिनांक 2 अक्टूबर, 2014 से अब तक स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से पूरे देश में 790.32 लाख शौचालय बनाये जा चुके हैं । ये आंकड़ें उत्साह वर्धक हैं । लेकिन अभी इस दिशा में एक लंबा रास्ता तय करना है ।

                 भारत देश एक कृषि प्रधान देश है । खेती-किसानी और पानी का नाता अटूट है । अपने इस देश को हम सुजलाम कहते हैं लेकिन इसका जल अब सुजल नहीं रहा । किसी एक सभ्यता के विकास में कई संस्कृतियाँ पनपती हैं । जब हम जल संस्कृति की बात करते हैं तो हमारा आशय जीवन के संदर्भ में जल को देखने से होता है । इसका एक आशय यह भी है कि हमारी जीवन शैली में जल के साथ संबंधों के ताने-बाने की पड़ताल । यही वह ताना-बाना है जिससे शहरीकरण और आधुनिक जीवन शैली ने हमें दूर कर दिया है । इसी दूरी का ही परिणाम है कि न केवल भारत अपितु पूरा विश्व आज़ जल संकट से जूझ रहा है ।

                वह समाज जो जल के केंद्र में विकसित होता है उसकी संस्कृति का मुख्य आधार जल ही होता है । हमारी पृथ्वी पर पानी की कोई कमी नहीं है । क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाय तो पृथ्वी के 30% भाग पर जमीन और 70% भू भाग पर पानी है । पानी के स्रोतों को जैसे-जैसे मानव समाज विकसित करते गया वैसे-वैसे उसके जीवन में स्थिरता आने लगी । इन जल स्रोतों के आधार पर ही सिंचाई व्यवस्था का विकास हुआ । भारत ने बहुत पहले से ही जल राशि को अपने जीवन का आधार बनाया । हमारा शरीर जिन पाँच तत्वों से मिलकर बना है उनमें जल भी एक है ।

                यह प्रकृति का एक सुंदर चक्र है जिससे ऋतुओं का आगमन होता है । वर्षा ऋतु में समुद्र का जल वाष्पीकरण द्वारा मेघों में बदलते हैं । ये मेंघ फ़िर वर्षा करते हैं । इस वर्षा से पहाड़ों से नदियाँ और झरने फूट पड़ते हैं । तालाब लबालब भर जाते हैं । जमीन में जल स्तर बढ़ता है । यह सब प्रकृति का वरदान उसकी कृपा है । लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में हम अपने ही किये हुए कृत्यों का दुष्परिणाम भुगतने को अभिशप्त हैं । हमनें प्रकृति की चिंता नहीं की, उसके प्रवाह को प्रभावित करने का पाप किया और खुद ही इतनी बड़ी मुसीबत में पड़ गये ।

                भारत के संदर्भ में बात करें तो हिमालय की पूरी श्रेणियों से एक अनुमान के अनुसार 1.25 लाख जल स्रोत निकलते हैं ।6 यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में हिमालय का महत्वपूर्ण स्थान है । गंगा जैसी कई नदियों का उद्गम हिमालय क्षेत्र से ही होता है । इन जल स्रोतों का उपयोग मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिये कैसे किया जाय ? यही वह प्रश्न था, जिसने हमारे पूर्वजों को जल से जुड़ी तकनीक विकसित करने के लिये प्रेरित किया होगा । यह तमाम तकनीक पीढ़ी दर पीढ़ी संचित अनुभव के आधार पर धीरे-धीरे विकसित हुई होगी । इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि बाँध बनाने कला लगभग 2000 वर्षों पुरानी है । तमिल ग्रन्थों में “अनिकट” शब्द मिलता है जिसका अर्थ है बाँध ।7 लद्दाख जैसे बर्फ से आच्छादित रहने वाले भाग में जल संचय की प्राचीन तकनीक झिंग नाम से जानी जाती है ।8 कर्नाटक में ऐसी ही पद्धति को केरे कहते हैं ।9 जिन इलाकों में लंबे समय तक पानी भरा रहता था या बाढ़ अधिक आती थी वहाँ पर भी पानी को निकालने एवं पानी में डूबे इलाकों में रोग का प्रसार न हो इसलिए ऐसे जलाशयों में बड़े पैमाने पर मछ्ली पालन किया जाता था । बंगाल में तालाबों में मछली पालन दरअसल एक महत्वपूर्ण योजना थी । इससे जल शुद्ध भी रहता, रोगों की रोकथाम में मदद मिलती और आहार के रूप में पर्याप्त मछली भी मिलती ।

             भारत में जल संचय और इसके उपयोग की अनेकों पद्धतियाँ प्राचीन काल से ही प्रचलन में थी । भू जल स्तर कैसे बढ़ाया जाय इसका भी अच्छा ज्ञान हमारे पूर्वजों को था । राजस्थान में जिस तरह के तालाब और कुऐं बने हैं उन्हें देखकर लोग आज़ भी आश्चर्य करते हैं । मिज़ोरम जैसे राज्यों में वर्षा तो बहुत होती है लेकिन पहाड़ों का सारा पानी नीचे आ जाता है । इसलिए घर की छतों से गिरने वाले जल को बगल में ही कुंड बनाकर संचित रखने की प्राचीन परंपरा उनके यहाँ रही है । गुजरात के सौराष्ट्र में भी ऐसी ही परंपरा देखी जाती है । इन सबसे स्पष्ट है कि हमारे यहाँ जल संचय की प्राचीन परंपरा रही है ।

           सिंधु नदी के किनारे सिंधु संस्कृति का विकास होता है, जो की विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है । इसी तरह वोल्गा और नील नदी के किनारे भी विश्व की अनेक संस्कृतियाँ विकसित हुई । आर्यों को शुरू से इस बात का पता था कि नदियों के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है । गंगा भारत की सबसे लंबी नदी है, जिसके किनारों पर प्राचीन काल से ही नगर बसते रहे हैं । हिमालय से बंगाल तक गंगा के किनारे बने लगभग 40 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में गंगा पर निर्भर हैं ।  इसीलिए गंगा को भारत में मां का दर्जा प्राप्त है ।  इतनी बड़ी जनसंख्या को पालने- पोसने वाली दुनियां की कोई दूसरी नदी नहीं है ।  भारत की लगभग एक तिहाई जनसंख्या गंगा से ही जुड़ी हुई है । गंगा की सहायक नदियों में यमुना, सरयू का विशेष महत्व है । सरयू किनारे बसे अयोध्या का राज्य वैभव पूरी दुनियां में अनोखा था । यमुना के किनारे बसे हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ महाभारत काल के साक्षी रहे हैं । गंगा किनारे बसी काशी नगरी महादेव की नगरी मानी जाती है ।
                हमारे यहां जीवन से लेकर मृत्यु तक हर तरह के धार्मिक कार्यों में जल का महत्वपूर्ण योगदान है । जल के बिना हमारे यहां किसी धार्मिक अनुष्ठान की कल्पना तक नहीं की जा सकती । भारत में 10,00,000/ से अधिक तालाबों के होने के प्रमाण मिलते हैं ।10  इन तालाबों का उपयोग सिंचाई और पीने के पानी के लिए किया जाता रहा है । सन 1955-56 तक आंध्र प्रदेश में 60,000/ तालाब थे ।11 कर्नाटक में 45,000/ और तमिलनाडु में 55,000/ तालाबों पर आश्चर्य होता है ।12 आज इन तालाबों की अधिकांश स्थिति सोचनीय है । इनमें से अधिकांश का अस्तित्व ही दिखाई नहीं पड़ता । शहरों में कुओं की संख्या भी बड़े पैमाने पर खत्म हो चुकी है, जो है वह निरुपयोगी होने से उनकी देखभाल नहीं हो रही । इस कारण जो कुएं बचे हैं उनकी भी कोई उपयोगिता नहीं है । हमारे देश में 70,00,00/ से अधिक गांव हैं । इन गावों का भरण-पोषण मुख्य रूप से कृषि पर अवलंबित है । कृषि निर्भर है पानी की उपलब्धता पर ।
                देश के अधिकांश इलाके कृषि के लिए वर्षा पर निर्भर करते हैं लेकिन बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऋतु चक्रों में जिस तरह का बदलाव परिलक्षित हो रहा है, वह सोचनीय है । यह परिस्थितियां आने वाले दिनों में विकराल रुप धारण कर सकती हैं । आज की हमारी औद्योगिक संस्कृति हमारी जल संस्कृति के लिए नकारात्मक साबित हो रही हैं । आर्थिक और औद्योगिक विकास के इस युग में युद्धों का स्वरुप बदल गया है । अब सीधे - सीधे तो बंदूक और गोली से लड़ाई नहीं लड़ी जाती अपितु वैश्विक व्यापार का खेल खेला जाता है ।
               जल, जंगल और जमीन की पूरी लड़ाई प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे की लड़ाई है ।  चीन जैसे विस्तारवादी देश इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । भविष्य में जल संकट इतना विकराल रूप लेने वाला है कि यह महायुद्ध का भी कारण बन सकता है । ब्रम्हपुत्र नदी पर चीन द्वारा बांध बनाया जाना भारत द्वारा पाकिस्तान को पानी न छोड़ने की धमकी जैसी जो बातें हम अखबारों में पढ़ते हैं, उससे जल संकट के भावी स्वरूप का अंदाजा लगाया जा सकता है । वर्तमान जल संकट के लिए जो कारण जिम्मेदार हैं उनमें वर्षा पर निर्भरता, जल संचय की योजनाओं की कमी, बढ़ता जल प्रदूषण और बढ़ती जनसंख्या जिम्मेदार है । भूगर्भ में उपलब्ध जल राशि का अत्यधिक दोहन भी इस समस्या का कारण है हमारे देश में जमीन से कितना जल निकाला जा सकता है इस पर कोई व्यावहारिक केंद्रीय कानून नहीं है । लोग बिजली का मोटर लगाकर मनमाना दोहन कर रहे हैं, जबकि विदेशों में कई देशों ने इस संबंध में कानून बनाए हैं ।
            आवश्यकता से अधिक जल राशि भूगर्भ से निकाले जाने पर वहां पर सजा का प्रावधान है । ऐसी सख्त कानून की व्यवस्था हमारे यहां भी होनी चाहिए । नदियों के प्रवाह को रोकने वाले बांध भी बड़ी संख्या में बनाए जा रहे हैं ।  इससे नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है और जल समस्या बढ़ रही है । हरित क्रांति से जहां देश में खाद्यान की कमी पूरी हुई और हमारे अन्न भंडार भर गए, वहीं इसकी वजह से अत्यधिक मात्रा में यूरिया और अन्य रासायनिक खादों के उपयोग से जल प्रदूषण बढ़ा है । अनाज विषैले हुए हैं । राजनीतिक दूरदृष्टि और इच्छाशक्ति की कमी भी वर्तमान के जल संकट के लिए जिम्मेदार है । यह जानते हुए भी कि हमारे जीवन में जल का कोई विकल्प नहीं है, हम लगातार गलतियां कर रहे हैं ।  इसका भयानक परिणाम हमें और हमारी आनेवाली पीढ़ियों को भोगना होगा ।
                 जब भी हम जल संस्कृति के अध्ययन की बात करेंगे तो हमें जिन साधनों पर आश्रित होना होगा, वे हैं नदियां, झरने, पोखर, तालाब, झरने, कुंड, उद्गम स्थल, इतिहास और  इनके साथ ही पानी और भाषा साहित्य ग्रंथ, शिलालेख, सिक्के, धार्मिक स्थल, उत्खनन से प्राप्त जानकारी इत्यादि ।  इन्हीं के आधार पर हम जल संस्कृति का व्यापक अध्ययन कर सकेंगे । भारत में जल संरक्षण और इसके नियोजन से जुड़े जो प्रमाण प्राप्त होते हैं वे ईसा पूर्व 2750 से ईसा पूर्व 1650 के हड़प्पा सिंधु संस्कृत से ही दिखाई पड़ने लगते हैं । घुमंतू कृषकों की बस्तियों इत्यादि में ईसा पूर्व 1650 से ईसा पूर्व 600 तक में भी जल से जुड़े कई प्रमाण मिलते हैं । ईसा पूर्व 600 से ईसा पूर्व 400 में बहुत से राजघरानों एवं साम्राज्यों के अंतर्गत इस तरह के प्रमाण दिखाई पड़ते हैं । जैसे कि नंद वंश, मौर्य वंश, सातवाहन, पल्लव इत्यादि ।
              इस समय अवधि में आचार्य चाणक्य जैसे विद्वान हुए जिन्होंने जल संरक्षण और उसके महत्व को प्रतिपादित किया ।  ईसवी सन 400 से ईसवी सन 600 तक का समय जनकल्याणकारी योजनाओं का समय माना जाता है । अनेक शिलालेखों में इसका उल्लेख भी मिलता है । इस समय के सिक्कों में जल प्रतीक दिखाई पड़ते हैं । गुप्तकालीन शिल्प कला में भी जल के महत्व एवं उनके संरक्षण इत्यादि को प्रमाण रूप में देखा जा सकता है । ईसवी सन 680 से ईसवी सन 1200 तक का समय जनसंख्या में वृद्धि और शहरीकरण / नगरी सभ्यता के विकास का समय था । मंदिरों, धर्मशाला इत्यादि का निर्माण इस कालखंड में अधिक  हुआ ।  वर्धन,चालुक्य, यादव, सोलंकी , पल्लव राजवंश इसी समय में हुए । इन तमाम राजवंशों द्वारा जल के संदर्भ में किए हुए कार्यों का उल्लेख इस समय के शिलालेखों में मिलता है ।
                 ईसवी सन 1200 से ईसवी सन 1800 तक का समय मुगल शासन, इस्लाम के आक्रमण और तलवार के जोर पर धर्म प्रचार का समय था । दिल्ली में आगे चलकर मुगलों का शासन हो गया । सन 1750 तक मुगलों का शासन रहा, लेकिन सन 1646 के आसपास से देश के कई भागों में मुगलों का विरोध शुरू हो गया था और छोटी-छोटी रियासतें अस्तित्व में आने लगीं थी । महाराष्ट्र में शिवाजी ने भी आदिल और निजामशाही के कुछ किलों पर कब्ज़ा करके स्वराज्य का तोरण बांधा । बाद में अंग्रेजों की सत्ता धीरे-धीरे पूरे भारत पर कब्जा करने में कामयाब हो गई । मोटे तौर पर ईसवी सन 1800 से ईसवी सन 1947 तक हमारा यह देश अंग्रेज़ों का गुलाम रहा ।  अंग्रेजों ने भी अपने समय में जल व्यवस्थापन के कई महत्वपूर्ण काम किए । लेकिन जनता के साथ इन जल राशियों का जो सीधा संबंध था वह खत्म हो चुका था । इस जलाशयों पर अंग्रेजों का या अंग्रेजी शासन का कब्जा हो गया । इस तरह जनमानस का जो व्यक्तिगत ताना - बाना  इन जल राशियों के साथ था,  वह खत्म हो गया । फिर भी राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे कई इलाकों में जन सहयोग से जल संरक्षण के काम होते रहे ।
                      हमारे वेदों, पुराणों में भी कई कथाएं ऐसी मिल जाती हैं जो जल के महत्व को प्रतिपादित करती हैं ।  परुष्णी नदी के जल बंटवारे को लेकर वेदों में युद्ध का उल्लेख है तो भगीरथ के प्रयासों से गंगा का धरती पर अवतरण की कथा सभी को पता है । प्राचीन काल में यातायात के साधन के रुप में जल मार्ग का उपयोग होता रहा है । ऋग्वेद में दाशराज्ञ युद्ध का वर्णन है, जिसके मूल में जल को ही माना जाता है । महाभारत  और रामायण काल की बहुत सारी कथाओं में इस तरह के उदाहरण मिलते हैं । उस समय में सिंचाई की योग्य व्यवस्था करना प्रजापालक राजा का कर्तव्य माना जाता था । दान की अपेक्षा जल दान का महत्व अधिक था । जलदान को ही जीवनदान कहा गया है । जलाशय सबके  शांति के स्थल माने गए हैं । उनमें मनुष्य देव, दानव, पशु, पक्षी सभी को विश्रांति मिलती है ।
                 महाभारत में कहा गया है कि जलदान से कुल का उद्धार होता है ।  पुरातत्व विभाग द्वारा कई बर्तनों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं, जिनमें धान्य और जल संचित करने की व्यवस्था उस समय से दिखाई पड़ती है । जानवरों के पीने के पानी की अलग से व्यवस्था के प्रमाण मिलते हैं । गंगा, सिंधु, भागीरथी, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, ताप्ती, भीमा, कृष्णा और कावेरी जैसे नदियों का भारत देश की खुशहाली में महत्वपूर्ण योगदान है । इन्होंने ही हमारी सांस्कृतिक पहचान को आकार दिया है । जब हम प्राचीन जल ज्ञान को लेकर बात करते हैं तो हमारे सामने जो नाम प्रमुखता से आते हैं वह है वराह मिहिर और कृषि पराशर का ।  आचार्य चाणक्य / कौटिल्य ने भी जल नियोजन की महत्वपूर्ण बातें की हैं ।  तालाबों के निर्माण से जुड़े पुश्तैनी लोग होते थे जो इस काम में निपुण माने जाते थे ।
                देश के अलग-अलग भागों में इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता रहा है । गजधर, सिलावट, चुनकर, दुसाद, भील, गोंड, सहरिया, मीना और सुनपुरा, महापात्रा मुसहर, नवनिया और  गोवंडी जैसी कई जातियों का उल्लेख पूरे भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से मिलता है । इतनी अपार जलराशि और इसके संचयन समर्थन की इतनी प्राचीन परंपरा के बाद भी आज हम बोतलबंद पानी पीने के लिए मजबूर हैं ।  हम अपनी गलतियों की कीमत चुका रहे हैं लेकिन आने वाला समय और भयानक हो सकता है । जल को लेकर विश्व युद्ध तक की चेतावनी आने वाले जल संकट की तरफ इशारा कर रही है । हम समय रहते अगर नहीं चेते तो परिणाम बहुत भयंकर होंगे ।
                पृथ्वी का एक नाम जलनी अर्थात जल से निकली हुई है । जल से निकली हुई अर्थात इसका पालन पोषण जल से ही हुआ है तो, उस जल के बिना इस धरती की हालत बिना जल की मछली की तरह है । जिस गंगा का पानी औषधि के रूप में माना जाता था आज वह गंगा प्रदूषित हो चुकी है । सरस्वती जैसी नदी विलुप्त हो चुकी है । लाखों तालाब सूख चुके हैं । पानी के स्रोतों बंद हो रहे हैं । ऐसे में हमारा भविष्य क्या होगा ? भारतीय जल संस्कृति ने हमारे जीवन के हर हिस्से को प्रभावित किया है ।
               हमारे लोकगीतों में वर्षा और पानी को लेकर कई गीत हैं जो हमारे जीवन में जल के साथ हमारे संबंधों को बताते हैं । ऐसे ही एक लोकगीत का वर्णन करते हुए श्यामसुंदर दुबे जी अपनी पुस्तक लोक में जल में लिखते हैं कि , “मेवाड़ की एक नारी मेवाड़ नाथ जी से कहती है कि मुझे सोना चांदी और गले में पहनने के नवलड़ी हार की चाह नहीं है ।  मैं तो केवल मीठे पानी पर बलिहारी जाती हूं । जिसके कारण मैंने उदयपुर में बसने का निर्णय लिया है ।’’13
“राणाजी  म्है तो कइयन मांगू
सोनो नी मांगू रूपो नी मांगू
नी मांगू नवसर हार
पिछोला रो पाणी मांगू
उदियापुर रो वास ”
बिना पानी के जीवन में कैसा हाहाकार मचा है उसे बतलाने के लिए श्याम सुंदर जी ने एक और गीत का उल्लेख उदाहरण के रूप में किया है ।14 इस गीत की बानगी देखिए  -
“हाली हाली बरसहू इन्नर देवता
पानी बिनु परल हुई अकाल हो रामा
चावल सूखल चांचर सूखल
सूखी गइले भईया के जिरात हो रामा  
परल हे हाहाकार रे देवा
रे पानी बिनु रे
हर ले ले रोए हरवहवा रे देवा
रे पानी  बिनु रे ........ ”

            इसी तरह मराठी भाषा में एक गीत बड़ा मशहूर है जिसे बच्चे बारिश की शुरुआत पर गाते हैं ।
“ये रे ये रे पावसा
तुला देतो पैसा
पैसा झाला खोटा
पाऊस आला मोठा”
               जिसका अर्थ हिंदी में यह होगा कि -  वर्षा तुम आओ, आओ तुम्हें पैसा दूंगा ।  पैसा हो गया झूठा और बारिश जोर से या बड़ी बारिश आयी ।  हिंदी की बात करें तो मिरां,सूरदास और जायसी ने जल को लेकर काफी कुछ लिखा है । रहीम की यह पंक्तियां तो अक्सर सुनी जाती हैं –
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून ।
               ठीक इसी तरह मीरा की ये पंक्तियां भी बहुत प्रचलित रही हैं –
सारी बदरिया सावन की मनभावन की
सावन में उमंगों मारो मंगरी भड़क सोनिया हरि आवन की ।

                  जल संरक्षण हमारी अपनी जिंदगी से जुड़ा हुआ मुद्दा है । हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते । आने वाले दिनों में परिस्थितियां और ना बिगड़े, उसके लिए यह जरूरी है कि हम लगातार इसके लिए काम करें । जितना काम करेंगे उतने  ही बेहतर परिणाम मिलेंगे ।



संदर्भ सूची :
1.   नीति आयोग, Composite Water Resources Management Report, may 2018 -http://www.niti.gov.in/hi .
2.   वही ।
3.   वही ।
4.   वही ।
5.   वही ।
6.   भारतीय जल संस्कृति: स्वरूप आणि व्याप्ती – डॉ. रा. श्री. मोरवंचीकर, सुमेरु प्रकाशन डोंबिवली, प्रथम संस्करण 2006 । पृष्ठ संख्या – 06
7.    वही । पृष्ठ संख्या – 07
8.    वही । पृष्ठ संख्या – 07
9.    वही । पृष्ठ संख्या – 07
10.   वही । पृष्ठ संख्या – 12
11.   वही । पृष्ठ संख्या – 12
12.   वही । पृष्ठ संख्या – 12
13.   लोक में जल - श्यामसुंदर दुबे, प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार.  प्रथम संस्करण 2008 । पृष्ठ संख्या – 102
14.   वही । पृष्ठ संख्या – 106
संदर्भ ग्रंथ :
 1.  भारतीय जल संस्कृति: स्वरूप आणि व्याप्ती – डॉ. रा. श्री. मोरवंचीकर, सुमेरु प्रकाशन डोंबिवली, प्रथम संस्करण 2006
 2. लोक में जल - श्यामसुंदर दुबे, प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार.  प्रथम संस्करण 2008
 3. आज भी खरे हैं तालाब - अनुपम मिश्र, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली । प्रथम संस्करण – 2009 ।  
 4. नया ज्ञानोदय – फरवरी 2017, अंक – 168 ।
  
           



Thursday 19 July 2018

सरकारी नियमानुसार ।




               राकेश कुमार कानपुर में तीन सालों से फ़ूड सप्लाई इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे बड़ी मेहनत के बाद नौकरी मिली थी सो नौकरी करने से अधिक नौकरी बचाने में विश्वास करते थे ऐसा इसलिए क्योंकि उनके नौकरी सिद्धांत के अनुसार नौकरी करने की नहीं अपितु बचाने की वस्तु है । समय के पाबंद और अधिकारियों के प्रिय बँधी - बंधाई  अतरिक्त आय की पूरी श्रृंखला से अच्छी तरह वाक़िफ़ पर किसी तरह के विरोध में दिलचस्पी नहीं अपना हिस्सा चुपचाप ले लेते पहली बार जब धर्मपरायण  पत्नी राधिका ने टोका तो उसे समझाते हुए बोले
               देखो राधिका, इस तरह की पाप की कमाई में मुझे भी दिलचस्पी नहीं है मैं खुद नहीं चाहता ऐसे पैसे लेक़िन क्या करूँ? ऊपर से नीचे तक पूरी श्रृंखला बनी है सब का हिस्सा निश्चित है बिना कहे सुने सब के पास ये पैसे हर महीने पहुँच जाते हैं सब ले लेते हैं और जो ना ले वह सब की आँख की किरकिरी बन जाता है अधिकारी और साथी उसे परेशान करने लगते हैं फ़र्ज़ी मामलों में फ़साने लगते हैं अब तुम ही कहो चुपचाप नौकरी करूँ या अकेले पूरी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ूँ ? 
          इसपर सहमी पत्नी पूछती है
           तो क्या ईमानदारी से काम करना पाप है ? क्या कहीं कोई सुनवाई नहीं ?
           राकेश उसे फ़िर समझते हुए कहते
           अरे राधिका, तुम पढ़ी लिखी हो और ऐसी बातें करती हो? ईमानदारी कोई अतरिक्त गुण नहीं है अगर कोई कहे कि मैं ईमानदारी से काम करता हूँ तो उस महानुभाव को यह समझाना चाहिये कि भाई जिसने तुम्हें नौकरी दी है उसने ईमानदारी से काम करने के लिये ही दी है यह आप का कोई विशेष गुण नहीं है इसलिए बात करते समय ईमानदारी को विशेषण के रूप में प्रस्तुत करना ही बहुत बड़ी बेईमानी है मैं नियमों से बंधा हुआ एक मामूली प्रशासनिक कर्मचारी हूँ इतना मामूली कि मामूली शब्द भी हमसे अधिक ताकतवर है व्यवहार और नियम के बीच एक संतुलन बनाना पड़ता है पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं रख सकता बाकि जैसा कहो, कल नौकरी चली जाये या मेरे साथ कोई ऊँच-नीच हो जाये तो....
        राकेश ने अपनी बात पूरी नहीं की थी कि राधिका ने उसके मुँह पर अपना हाँथ रख दिया राधिका की आंखें छलक आयीं थीं वह कुछ नहीं बोली और इन दो तीन सालों में फ़िर कभी इस बात पर कोई चर्चा भी नहीं की इस तरह उसने भी राकेश की प्रशासनिक ईमानदारी के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया था
       सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन राकेश ने राधिका को बताया कि वह यू.पी., पी.सी. एस. की परीक्षा फ़िर से देना चाह रहा है फ़ूड सप्लाई इंस्पेक्टर की पोस्ट क्लॉस वन की नहीं थी, और अब राकेश क्लास वन की नौकरी चाहता था उसके कई दोस्त क्लास वन के अधिकारी थे, उनसे मिलने पर राकेश हीनता के भाव से भर जाता था यह हीनता उसे अंदर ही अंदर कचोटती, अतः उसने निर्णय लिया कि वह एक बार फिर मेहनत करेगा और अपनी क़िस्मत आजमायेगा राधिका को भला इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी लेकिन थोड़ी आशंका के साथ उसने पूछा
             सुबह से शाम तक तो आप फील्ड में रहते हैं, पढ़ाई कब करेंगे ? सिर्फ पाँच महीनें हैं हाँथ में नौकरी और पढ़ाई दोनों कैसे मैनेज करेंगे ? 
राधिका की बात सुनकर राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा-
           “मेरी भोली बीबी, मैं ऑफिस में छुट्टी की अर्जी डाल दूँगा लीव विदाउट पे की अर्जी अर्थात बिना वेतन की छुट्टी ।ऐसी छुट्टी मिल जायेगी और फ़िर परीक्षा खत्म होते ही ऑफिस वापस ज्वाइन कर लूँगा ’’ 
राधिका बोली
             तब ठीक है, आप चिंता करें ये पाँच महीने मैं घर खर्च बचत के पैसों से चला लूँगी आप अच्छे विद्यार्थी की तरह सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान देना घूमना-फिरना सब बिलकुल बंद और दोनों खिलखिला पड़ते हैं ।”
           अगले दिन ऑफ़िस जाने से पहले ही राकेश ने छुट्टी का आवेदन पत्र तैयार कर लिया था जल्दी- जल्दी नाश्ता खत्म करके वह ऑफ़िस के लिये निकल पड़ा लेकिन देर रात जब वह वापस आया तो उदास लग रहा था मानों उसके अरमानों के पंख क़तर दिये गये हों । राधिका उसका चेहरा देखते ही समझ गई कि कोई बात है जिसने राकेश को परेशान कर रखा है पानी का ग्लास आगे बढ़ाते हुए वह बोली
            आप कपड़े बदल लीजिये मैं चाय बना देती हूँ ।” और बिना राकेश के जबाब की प्रतीक्षा किये वह रसोंई घर की तरफ़ बढ़ गई ।थोड़ी देर में जब वह चाय की प्याली लेकर वापस आयी तो देखती है कि राकेश वैसे ही सोफ़े पर बैठा है बिलकुल चुप और उदास  उसकी उदासी राधिका के लिए गर्मियों के उमस भरे दिनों की तरह बेचैन करने वाली थी ।
राधिका ने चाय की प्याली पकड़ाते हुए पूछा
            क्या बात है ? आप कुछ परेशान लग रहे हैं ’’
         राकेश मानों इस प्रतीक्षा में ही था कि कब राधिक उससे पूछे और वह अपनी परेशानी उसे बताये । वैसे ही जैसे उमड़ते बादल बरसने को बेचैन रहते हैं । राधिका को अपने पास बिठाकर  उसने कहा -
          “तुम्हें तो पता ही है कि आज सुबह ही मैंने छुट्टी के लिये आवेदन तैयार कर लिया था रस्तोगी साहब जब ऑफ़िस आये तो मैंने उन्हें सारी बात बताकर आवेदन पत्र उनके सामने रख दिया उन्होंने कहा कि इतनी लंबी छुट्टी नहीं मिल सकेगी दस-बीस दिन की छुट्टी वो दे सकेंगें, इससे अधिक नहीं अब तुम ही बताओ मूड़ खराब होगा कि नहीं ऊपर से मैं बिना वेतन की छुट्टी माँग रहा था, इसमें किसी को क्या समस्या हो सकती है ? कहते हैं स्टाफ़ कम है मैंने जब इनसिस्ट किया तो वो साला रस्तोगी, कहता है क्लॉस वन की नौकरी का इतना मन हो तो ये नौकरी छोड़ दो , फिर छुट्टी ही छुट्टी इतना मन खराब हुआ कि वहीं साले को दो हाँथ लगाऊँ
               इतना कहते - कहते राकेश का चेहरा आक्रोश से तमतमाने लगा राधिका ने राकेश का हाँथ अपने हाँथों में लेकर कहा
                 आप गुस्सा हों वो रस्तोगी जी तो शुरू से आप से जलते हैं आप जिंदगी में आगे बढ़े, नाम कमायें, यह तो वे कभी नहीं चाहेंगे आप शांति से सोचिये कोई रास्ता जरूर निकल आयेगा ऊपर के किसी अधिकारी से बात कीजिये, सब ठीक हो जायेगा ।जो कीजिये सोच समझ कर कीजिये और सरकारी नियमानुसार कीजिये ।”
               राधिका के प्रेम में पगे इन शब्दों को सुनकर राकेश का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ चाय की प्याली से एक घूँट हलक के नीचे उतारकर  उसने कहा
                तुम ठीक कहती हो सरकारी नियमानुसार ही कुछ करूँगा ।” 
            यह कहते हुए राकेश किसी गहरी सोच में डूबा हुआ लगा मानों मन ही मन वह कोई तरक़ीब भिड़ा रहा था ।उसे यूँ सोच में डूबा देखकर राधिका ने पूछा
             “तो क्या कोई तरकीब सोच रखी है आपने ? 
राकेश मुस्कुराते हुए बोला
               तरक़ीब तो है राधिका, थोड़ी टेढ़ी है पर है सरकारी नियमानुसार ही वो तुमनें सुना है ना कि जब घी सीधी ऊँगली से निकले तो ऊँगली टेढ़ी कर लेनी चाहिए मैं तो ऊँगली भी टेढ़ी नहीं करूँगा बल्कि घी को ही गरम कर दूँगा , वो भी सरकारी नियमानुसार ।”
इतना कहते ही राकेश हँसने लगा राधिका को कुछ समझ नहीं आया उसने पूछा
              आप क्या करने वाले हो ? मुझे बताइये ।”
            लेकिन राकेश ने राधिका की बात को अनसुना करते हुए कहा –
            चलो अब कपड़े बदल लेता हूँ, तुम खाना लगा दो ।”
            इतना कहकर वह बेड रूम में चला गया राधिका का मन अंजान आशंकाओं से भरा हुआ था लेकिन वह असहाय थी मन मार के वह खाना लाने किचन में चली गई उसने उस दिन कई बार  राकेश की भावी योजना का पता लगाने का प्रयास किया  लेक़िन राकेश एकदम घाघ था राधिका अंत में ऊबकर सो गई
           अगली सुबह राधिका ठीक वक्त पर उठ गई लेकिन उसे सिर भारी लग रहा था । फ़िर भी उसने रोज की तरह चाय बनाई और राकेश को उठाने के बाद खुद नाश्ता बनाने किचन में चली गयी । नहा धोकर जब राकेश नाश्ता करने के बाद ऑफिस जाने  के लिए तैयार हुआ तो राधिका उसके पास आकर बोली -       
           देखिये कोई लड़ाई-झगड़ा मत करना और...... ।”
        राधिका अपनी बात कर ही रही थी कि राकेश ने उसके मुँह पर हाँथ रखते हुए कहा -
“तुम बिलकुल परेशान मत हो मैं कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं करने वाला सिर्फ़ अपना काम करूँगा वो भी सरकारी नियमानुसार ’’
           इतना कहते हुए उसने राधिका को चूम लिया राधिका शर्म से लाल हो गई अपने आप को राकेश से अलग करते हुए राधिक बोली
            “सुबह -सुबह बदमाशी मत करो ।जाओ ऑफिस जाओ ।”
         राकेश भी बैग उठाकर बाहर निकल गया बाहर खड़ी अपनी मोटरसाइकिल को किक मारते हुए राकेश ने कहा
            “शाम को थोड़ी देर से आऊँगा, परेशान मत होना ।”
           इतना कहकर वह अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो राधिका की आँखों से ओझल हो गया राधिका के मन में कई सवाल थे, अपनी बेचैनी वो व्यक्त नहीं कर पा रही थी उसे समझ नहीं रहा था कि राकेश के मन में क्या चल रहा है जब आशंकाएँ बढ़ती हैं तो विश्वास दरकने लगता है राधिका आज भी रोज की ही तरह सारे काम निपटा रही थी, बस आज पूजा घर में आधे घंटे की जगह पूरे दो घंटे बिताये  
          दोपहर को सोचते-सोचते ही कब आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला जब आँख खुली तो शाम के पाँच बज चुके थे मन अनमना सा था फ़िर भी अपने लिये चाय बनाकर डायनिंग टेबल पर बैठी ही थी कि दरवाज़े की घंटी बजी राधिका ने दरवाज़ा खोला तो सामने अपने बड़े भाई हेमंत को खड़ा पाया हेमंत को देख राधिका की ख़ुशी का ठिकाना रहा
         हेमंत पेशे से सरकारी वकील थे इलाहाबाद हाईकोर्ट में लेकिन कोर्ट- कचहरी के काम से जब भी कानपुर आते तो अपनी बहन से मिलना नहीं भूलते हेमंत को चाय नाश्ता देने के बाद राधिका ने राकेश के ऑफिस वाली परेशानी बतायी और अपनी आशंकाओं से अवगत कराया
         हेमंत ने अपनी बहन की बात ध्यान से सुनी और फ़िर उसे ढाढ़स बंधाते हुए बोले
          “तुम बिलकुल चिंता मत करो सरकारी नौकरी बड़े मुश्किल से मिलती है और जितने मुश्किल से मिलती है उसके लाख गुना अधिक मुश्किल से जाती है कोई राकेश का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता तुम नाहक परेशान  हो, फ़िर हम सब हैं तुम लोगों के साथ क़ानून कर्मचारियों के हक में मजबूती से खड़ा है ।सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को उसके खिलाफ आरोप पत्र के अभाव में 90 दिन से अधिक निलंबित भी नहीं रखा जा सकता और इस निलंबन की अवधि में भी उसे एक निर्धारित वेतन राशि मिलती रहती है यह सब व्यवस्था इसीलिए है ताकि किसी कर्मचारी के साथ कोई अन्याय हो पाए  सूचना का अधिकार जैसा कानून है जो एक निश्चित अवधि में सरकारी विभागों को माँगी गई सूचना प्रदान करने के लिए बाध्य करता है तुम कोई चिंता मत करो किसी ने राकेश की तरफ़ आँख भी उठाई तो मैं उसे कोर्ट में नंगा कर दूँगा जब तक तेरा भाई है तुझे कोई चिंता करने की ज़रूरत नहीं राकेश ख़ुद समझदार है वह जो करेगा सोच समझ कर ही करेगा चाणक्य है वह चाणक्य ।”

               हेमंत की बातों से राधिक का तनाव कुछ कम हुआ हेमंत को 8 बजे की ट्रेन से इलाहाबाद वापस जाना था इसलिए वह जाने के लिये निकल पड़ा उसे लक्ष्मण बाग ऑफिसर्स कालोनी में किसी से मिलना भी था उसके जाने के बाद राधिका रात के खाने की तैयारी में लग गई
रात के साढ़े नौ बजे चुके थे पर राकेश अभी तक लौटा नहीं था राधिका का मन घबरा रहा था और उल्टे-सीधे ख़्याल मन में रहे थे इसीबीच राकेश की मोटरसाइकिल की आवाज उसके कानों में पड़ी वह दौड़कर बाहर पहुँची तो राकेश मोटरसाईकिल खड़ी कर रहा था उसे देख राधिका बहुत खुश हुई उसका बैग लेकर वह बोली
                “ आज़ इतनी देर क्यों ? आप ने सुबह कहा था कि देर होगी फिर भी मुझे लगा था पाँच बजे तक आप आ जायेंगे । हेमंत भाई साहब भी आये थे, आप का इंतजार करके चले गये।”
             राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा
              “चलो अंदर चलकर बात करते हैं  देर से आने पर घर में नहीं घुसने दोगी क्या ?”
             दोनों अंदर आये राकेश ने नहाकर कपड़े बदले और खाने से पहले चाय बनाने के लिए कहा राधिक झट से चाय बनाकर ले आयी फ़िर राकेश के बगल बैठकर बोली
              “ अब बताओ इतनी देर क्यों हुई ?
           राकेश राधिका के गालों को चूमते हुए बोला
              “आज कुछ व्यापारियों के यहाँ छापे मारे खाद्य वस्तुओं के नमूने लिये इन्हीं सब में देर हो गई कई दिनों से शिकायत मिल रही थी मावे और दूध में मिलावट की बात थी हद है राधिक, ये व्यापारी भी ना मिठाईयों की मोटी क़ीमत लेते हैं उसके बावजूद मावे और दूध में हानिकारक यूरिया और सेन्थटिक मिलाते हैं नैतिकता और ईमानदारी तो जैसे किस्से कहानियों की बात हो गई हो आज जब छापा डाला तो घिघियाने लगे, लेकिन मैंने किसी की एक सुनी रस्तोगी तो मुझे धमकाने और परिणाम भुगतने की धमकी देने से भी पीछे नहीं हटा लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी सच्चाई और धर्म की लड़ाई में जो होगा अब देखा जायेगा ।” 
            राकेश की बातें और उसके इरादे राधिक कुछ -कुछ समझने लगी थी वह बोली
             “यह मिलावट कोई एक दिन में शुरू तो नहीं हुई होगी तीन साल में पहले तो कभी आप ने कोई छापेमारी नहीं की और ही नैतिकता और धर्म की कोई दुहाई दी  फ़िर हर महीने इन्हीं व्यापारियों से मिलनेवाली मोटी रकम भी आप को लेने में कोई गुरेज़ नहीं रहा बल्कि आप ने ही तो बताया था कि पूरी श्रृंखला है ऊपर से नीचे तक अगर यह सच है तो आज आप की अंतरात्मा धर्म और नैतिकता की तरफ़ कैसे और क्यों मुड़ गई ? मुझे यह पहेली यह व्यवहार समझ नहीं रहा आप मुझे सब कुछ साफ़-साफ़ बताइये कि आप के दिमाग में क्या चल रहा है पत्नी हूँ आप की, मुझसे कुछ छुपाने की ज़रूरत नहीं है आप को बोलिये क्या है आप के मन में ?
                   राकेश ने राधिका को अपनी बाहों में कसते हुए कहा
                “तुम तो जानती ही हो कि अवकाश वाले आवेदन पर कैसा तमाशा ऑफ़िस में हुआ अब रस्तोगी जैसे लोगों को सही तरीके से ठीक तो किया नहीं जा सकता, इसलिए मैंने एक प्लान बनाया शहर के कुछ व्यापारियों के यहाँ आज छापा मार करके खाद्य पदार्थों के नमूने जाँच के लिये भेज दिया व्यापारियों में हड़कंप मच गया क्योंकि ये लोग अपने संगठन के माध्यम से हर महीने एक मोटी रकम नियमित रूप से पहुंचाते रहते हैं इस तरह की कार्यवाही की इनको कोई अंदेशा ही नहीं था अब ये व्यापारी रस्तोगी की ऐसी की तैसी कर देंगे उन्होंने हंगामा किया भी, इसीलिये शाम को रस्तोगी मुझे परिणाम भुगतने की धमकी भी देने लगा था मैनें भी उसे सच्चाई और ईमानदारी का ऐसा लेक्चर झाड़ा कि महाराज किचकिचा के रह गये फ़िर मैंने गाड़ी निकाली और घर चला आया आज सभी लोग अभी तक आफ़िस में ही थे, किसी को काटो तो खून नहीं बस यही हुआ आज ।”
                 राकेश की बातें सुनकर राधिका उठकर बैठ गई और बोली
                 “सब आप से नाराज़ हो गये होंगे अब कहीं उन्होंने आप को नौकरी से निकाल दिया या आप के खिलाफ़ ऊपर शिकायत की तो  क्या होगा ?
राधिका ने आशंका भरी नजरों से पूछा
                 राकेश ने उसका हाँथ पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया और उसे फ़िर अपनी बाहों में कसते हुए बोला
                “मेरी बीबी जी, मुझे नौकरी से निकालना उनके बूते का नहीं है मैंने जो किया है वह सरकारी नियमों के अनुसार ही किया है हाँ वे मुझे परेशान और व्यापारियों को संतुष्ट करने के लिए मुझे सस्पेंड कर जाँच करवा सकते हैं जाँच में यह साफ हो जायेगा कि जो नमूने मैंने जमा किये थे उनमें मिलावट थी और मैं बाइज्जत दुबारा आफ़िस ज्वाइन कर लूँगा मुझे पूरा भरोसा है । मैंने सबकुछ बहुत सोच समझकर किया है । यह सब मेरी प्लानिंग का हिस्सा है, कुछ समझी ?
            राधिका को कुछ समझ नहीं आया उसने फ़िर पूछा
             “तो ये सब करके आप को क्या मिलेगा ?
               राकेश ने राधिका के आठों को जोर से काटा और बोला
             “जब तक सस्पेंड रहूँगा तब तक आफ़िस नहीं जाना होगा आधी से ज़्यादा सैलरी भी मिलती रहेगी पुनः बहाली में पाँच से महीने लग ही जायेंगे मैं कोई वकील कर लूँगा और कोशिश करूँगा की बहाली की प्रक्रिया जितनी लंबी हो सके उतना अच्छा इस बीच मैं यू.पी., पी.सी.एस. औऱ आई. . एसका अपना लास्ट अटेम्ट भी दे ही लूँगा बाक़ी किस्मत जाने कुल मिलाकर यह समझो कि सीधे - सीधे छुट्टी माँग रहा था वो भी बिना वेतन के तो इन लोगों ने अपनी धौंस में मना कर दिया अब  छुट्टी भी देंगें और आधे से ज़्यादा वेतन भी और यह सब कुछ होगा सरकारी नियमानुसार ।” 

          इतना कहकर राकेश राधिका को बेतहाशा चूमने लगा एक - दूसरे की बाहों में वे देर रात कब सो गये पता ही चला अगले दिन सुबह रोज की तरह राधिका उठी और चाय बनाकर लायी राकेश को आज सुस्ती छायी थी, उसे आफ़िस की जल्दी नहीं थी राधिका के बहुत कहने पर वह बिस्तर छोड़ डायनिंग रूम में आया और चाय के साथ अख़बार की सुर्खियों में कुछ खोजने लगा अचानक उसकी नज़र एक ख़बर पर रुक गई खबर थी - मावा के थोक व्यापारी के यहाँ खाद्य विभाग का छापा
              राकेश ने पूरी खबर ध्यान से पढ़ी और एक कुटिल मुस्कान उसके चेहरे पर छा गई राधिका ने फिर टोका
              अरे आज आफ़िस नहीं जाना क्या? लाट साहब की तरह बैठे अख़बार पढ़ रहे हो । आख़िर जानबूझकर देर क्यों कर रहे हो ? नहा लो मैं नाश्ता तैयार कर देती हूँ ।” 
          इतना कहकर राधिका किचन में चली गई । राकेश नहाने जाने ही वाला था कि दरवाज़े की घंटी बजी राकेश ने दरवाज़ा खोला तो सामने ऑफिस का चपरासी नर्मदा खड़ा था
राकेश ने नर्मदा को देखते ही कहा
             “अरे नर्मदा, इतनी सुबह ? क्या बात है ?
              नर्मदा ने अभिवादन के बाद कहा -  
             “साहब कल आप के ऑफिस से आने के बाद भी ख़ूब मिटिंग हुआ रात दस बजे तक फ़िर चिट्ठी हमें दिया रस्तोगी जी ने और बोला कि आप को तुरंत पहुंचा दूं अब इतनी रात क्या आता साहेब इसलिये अभी गया ।”
          यह कहते हुए नर्मदा ने सरकारी पत्र राकेश को पकड़ा दिया और किसी कागज़ पर उसके हस्ताक्षर लेकर वहाँ से चला गया
             राकेश लिफ़ाफ़ा लेकर घर के अंदर आता है और दरवाज़ा बंद करके लिफ़ाफ़ा खोलकर पढ़ने लगता है पत्र पढ़ते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान छाने लगी इतने में राधिका किचन से आयी और बोली
            “ अरे,आप अभी यहीं हैं हद है, आज तो आफ़िस देर से ही पहुँचोगे और ये क्या है आप के  हाँथ में ? कौन आया था इतनी सुबह ?
            राकेश मुस्कुराते हुए राधिका के पास आया और उसे अपनी गोंद में उठाकर बोला -  
           “ बीबी जी प्लान कामयाब हुआ ऑफिस से चपरासी नर्मदा आया था वही यह पत्र देकर गया यह मेरा सस्पेंशन लेटर है आज से आफ़िस जाने की ज़रूरत नहीं सिर्फ पढ़ाई और बीबी को प्यार । बस,दो ही काम हैं मेरे लिए ।”
          राधिका ने राकेश से ख़ुद को नीचे उतारने को कहा फ़िर वह लेटर लेकर पढ़ने लगी औऱ बोली
            हे भगवान, आप इस दुनियाँ के पहले आदमी होंगें जो अपने सस्पेंड होने पर इतना खुश हो रहा है ।बाहर हमारी कितनी बदनामी होगी, यह तो सोचिये ।”
           राकेश सोफ़े पर बैठते हुए बोला -  
             “ अरे यार, कोई बदनामी-वामी नहीं होगी कल से सारे अख़बार लिखेंगे कि ईमानदार अफ़सर को मिली अपनी ईमानदारी की सज़ा बेईमान व्यापारी  पर छापा मारने के कारण किये गए सस्पेंड और ऐसा ही बहुत कुछ राधिका, यह दुनियाँ अजीब है यहाँ ईमानदारी से कुछ नहीं मिलता लेकिन ईमानदारी का ढोल पीटने पर सब मिल जाता है मैंने भी ईमानदारी से छुट्टी माँगी तो नहीं मिली और जब ढोल पीट दिया तो छुट्टी भी मिली और लोगों की सहानुभूति भी घर बैठे मुफ़्त की आधी तनख्वाह ऊपर से ।
            राधिका राकेश के पास आयी और बोली
               मैं अब सब समझ गई हेमंत भईया तुम्हें चाणक्य ऐसे ही नहीं कहते हैं अब जाओ नहा लो और नाश्ता कर के पढ़ाई में जुट जाओ जिसके लिये यह सब किया अब उसपर ध्यान दो ।”
              आज्ञाकारी पति की तरह राकेश ने भी उठते हुए कहा
                “ठीक कहती हो मैं नहाने जा रहा हूँ तुम हेमंत भाई साहब से बात करके कह देना कि हमें एक अच्छे वकील की ज़रूरत है सो हो सके तो वे दो- चार दिन में कानपुर जायें ।”
इतना कहकर राकेश नहाने चला गया और राधिका रसोईं घर में  
                  राकेश का सस्पेंशन लेटर वहीं डाइनिंग टेबल पर एक खाली गिलास के नीचे फड़फड़ाता रहा ।मानो वह कागज़ ही अपने अस्तित्व की गवाही देना चाहता हो, पर उसे सुनना कोई भी नहीं चाहता । षडयंत्रों की पूरी व्यवस्था में उस कागज़ की स्थिति बड़ी अजीब सी थी, ठीक सरकारी नियमों की तरह ।

                                              डॉ. मनीष कुमार सी. मिश्रा
                                                  हिंदी विभाग
                                                  के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय
                                                  कल्याण- पश्चिम, महाराष्ट्र