Wednesday 2 September 2015

यूनिकोड के माध्यम से हिन्दी का वैश्विक प्रचार-प्रसार ।





         हिंदी भाषा को तकनीक के साथ जोड़ने की कड़ी में एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा है यूनिकोड सिस्टम” । हिंदी टंकण की तकनीकी समस्या को इसने लगभग ख़त्म ही कर दिया । अंतर्जाल और संगणक पे हिंदी में लिखना इस नई व्यवस्था के कारण काफी आसान हो गया है । वेबसाइट, ब्लाग, सोशल नेटवर्किंग इत्यादि माध्यमों से पूरी दुनियाँ में हिंदी भाषा और साहित्य का जो प्रचार-प्रसार हो रहा है, उसका श्रेय इस नई टंकण व्यवस्था को ही है ।
         यूनिकोड सिस्टम को स्पष्ट करते हुए ई-पंडित श्रीश शर्मा लिखते हैं कि,”….यूनिकोड एक कोडिंग प्रणाली है, जिसमें दुनियाभर की सभी प्रमुख भाषाओं के वर्ण-चिन्हों को एक अद्वितीय कोड दिया गया है,जो कि हर प्रकार के कम्प्यूटिंग डिवाइस,आपरेटिंग सिस्टम,प्लेटफ़ार्म तथा भाषा आदि में समान रहता है । यूनिकोड मानक को सभी सॉफ्टवेयर कंपनियों ने अपनाया है .....। “1 शर्मा जी ने बड़े सरल शब्दों में इसे समझाने का प्रयास किया है । http://www.unicode.org/announcements/quotations.html#bigelow नामक वेबसाइट पर  यूनिकोड के संदर्भ में कई विद्वानों के विचार पढ़ने को मिल जाते हैं । जैसे कि –
“The Unicode Consortium has been committed to making mathematical notation available for direct use in electronic documents. Substantial improvements to that end in the Unicode Standard make the latest release a must. Once tools have been upgraded to Unicode 5.0, they will bring this power to users in mathematics and the hard sciences.
—barbara beeton, Composition Systems Staff Specialist
American Mathematical Society
 “Over the past two decades, Unicode has become one of the most important global standards in digital typography. Unicode 5.0, with its greatly increased range, will be of tremendous benefit to software developers involved with text processing, including font designers, application developers, web browser developers, and operating system manufacturers. Computer users around the world, including scholars, librarians, and scientists, as well as general users, will likewise benefit from broad adoption of the Unicode Standard, which has become an essential component of world literacy in the digital age.”
—charles bigelow, Cary Professor of Graphic Arts
Rochester Institute of Technology.
“For teaching and research in the field of ancient Greek, Unicode is a godsend, offering truly effective communication across platforms and applications after two decades of frustrations caused by inconsistent custom encodings. Users of other historical and threatened scripts are learning that they too have much to gain from Unicode.”
—donald j. mastronarde, Melpomene Professor of Classics
University of California, Berkeley

      उपर्युक्त विद्वानों के विचारों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यूनिकोड के आगमन ने वैश्विक स्तर पर कई भाषाओं को प्रचारित- प्रसारित होने का सुनहरा मौका दिया है । अपनी मातृभाषा में अपने आप को अभिव्यक्त करने का सुख अलग ही होता है । हिंदी भाषा कई अन्य भारतीय भाषाओं के साथ यूनिकोड के माध्यम से ही देश की सीमाओं को लाँघते पूरे विश्व में आज लिखी और पढ़ी जा रही है ।

         यूनिकोड के पहले भी हिंदी टंकण के लिए अलग – अलग हिंदी फॉन्ट उपलब्ध थे जिन्हें किसी वर्ड प्रोसेसर के माध्यम से चुनकर टंकित किया जाता था । लेकिन इस तरह की टंकित सामग्री जब एक संगणक से दूसरे संगणक को  प्रेषित की जाती तो वह अपने मूल स्वरूप में नहीं दिखाई पड़ता, और जो दिखाई पड़ता वह अपठनीय एवं निरर्थक होता । एक संगणक से दूसरे संगणक को  प्रेषित ऐसी सामग्री तभी पढ़ी जा सकती थी जब दोनों ही संगणकों में वह फॉन्ट इनस्टाल हो जिसमें की सामग्री टंकित हुई है । सुशा,कृतिदेव, चाणक्य इत्यादि इसीतरह के फॉन्ट हैं जिनमें यूनिकोड से पहले भी टंकण का काम होता रहा है ।इन्हें नॉन यूनिकोड फॉन्ट भी कहा जाता है । ये नॉन यूनिकोड फॉन्ट किसी एक जगह हिंदी में सामग्री को टंकित करके उसे मुद्रित करने के लिये तो ठीक थे लेकिन वेब मीडिया या इन्टरनेट पे सूचनाओं के आदान – प्रदान के लिये अनुपयोगी थे । साथ ही साथ कीबोर्ड पे हर नॉन यूनिकोड हिंदी फॉन्ट को टंकित करने की अलग व्यवस्था थी । हर फॉन्ट के साथ उसे टंकित करने का तरीका बदल जाता था । यूनिकोड ने इससे भी निजात दिला दी ।
        यही कारण रहा कि छपाई इत्यादि के लिये नॉन यूनिकोड हिंदी फॉन्ट सहजता से उपयोग में लाये जाते रहे । लेकिन “ई युग“ की जरूरतों को पूरा करने में ये अक्षम थे ।यद्यपि देवनागरी के सभी वर्णो के मानकीकरण की प्रक्रिया अभी पूर्ण नहीं हुई है फ़िर भी  ई युग की जरूरतों को बड़े पैमाने पर यूनिकोड ने ही पूरा किया । आज यूनिकोड का उपयोग मोबाइल फोन, टैबलेट इत्यादि आधुनिक उपकरणों में भी धड़ल्ले से हो रहा है जिससे हिंदी भाषा के प्रचार को गति मिली है, यह गति ही इसके प्रौद्योगिकी सापेक्ष प्रगति का द्योतक है ।
      अब तो विंडोज़ के लगभग सभी प्रकारों में इंडिक सपोर्ट रहता ही है । विंडोज़ विस्टा, विंडोज़ सेवन, लिनिक्स, मैकिन्टोश ओस, विंडोज़ एट सभी संस्करणों में इंडिक सपोर्ट होने का अर्थ है आप हिंदी में यहाँ काम कर सकते हैं । संगणक पर हिंदी में टंकण के लिए आज कई तरह के टाइपिंग टूल या औज़ार उपलब्ध हैं । अधिकांश इंटरनेट पर मुफ़्त में उपलब्ध हैं । माइक्रोसॉफ़्ट इंडिक लैंगवेज़ इनपुट टूल “ ऐसा ही एक टूल है जिसे डाऊनलोड़ करके आप हिंदी टंकण आसानी से कर सकते हैं ।
     हमें इस बात को समझना होगा की संगणक की आंतरिक व्यवस्था वर्णो को नहीं अंकों/नंबरों के आधार पर कार्य निष्पादित करती है । इसलिए यह सुनिश्चित करना होता है कि कौन सा अंक किस वर्ण के लिए प्रयोग में लाया जाय । जैसे अ के लिए 9 या न के लिए 7 यह सुनिश्चित करना होगा । साथ ही वैश्विक स्तर पर एकरूपता के लिए इनकी व्यवस्थागत स्वीकार्यता अनिवार्य है । standard way of encoding the characters ज़रूरी है । यह विश्व की सभी भाषाओं की प्रगति के लिए अनिवार्य है । इसकी शुरुआत 1960 के दशक में The American Standards Association ने  7-bit encoding के निर्माण से की जिसे जाना गया  The American Standard Code for Information Interchange (ASCII) के नाम से । जिसके उपयोग को 1968 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन (Lyndon Johnson) ने आधिकारिक तौर पर सुनिश्चित किया । 1980 के दशक में एक नई प्रणाली विकसित करने की योजना सामने आयी । एक ऐसी व्यवस्था जिसमें निश्चित अंक/नंबर/कोड पॉइंट हो, दुनियाँ के सभी भाषाओं के सभी वर्णो के लिये । “यूनिक कोड़ पॉइंट” की इसी व्यवस्था को नाम दिया गया – यूनिकोड । यूनिकोड के 6.1 वर्जन में 110,000 से अधिक कोड़ पॉइंट निर्मित हो चुके थे ।
                http://www.unicode.org/standard/translations/hindi.html यह वेबसाइट  जानकारी देता है कि - यूनिकोड,की विशेषता यही है कि यह प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नंबर प्रदान करता है, चाहे कोई भी प्लैटफॉर्म, प्रोग्राम या भाषा हो। यूनिकोड स्टैंडर्ड को ऐपल, एच.पी., आई.बी.एम., जस्ट सिस्टम, माईक्रोसॉफ्ट, औरेकल, सैप, सन, साईबेस, यूनिसिस जैसी उद्योग की प्रमुख कम्पनियों ने अपनाया है। यूनिकोड की आवश्यकता आधुनिक मानदंडों, जैसे एक्स.एम.एल., जावा, एकमा स्क्रिप्ट (जावा स्क्रिप्ट), एल.डी.ए.पी., कोर्बा 3.0, डब्ल्यू.एम.एल. के लिए होती है और यह आई.एस.ओ./आई.ई.सी. 10646 को लागू करने का अधिकारिक तरीका है। यह कई संचालन प्रणालियों, सभी आधुनिक ब्राउजरों में आजकल उपलब्ध होता है। यूनिकोड स्टैंडर्ड की उत्पति और इसके सहायक उपकरणों की उपलब्धता, हाल ही के अति महत्वपूर्ण विश्वव्यापी सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी रुझानों में से हैं।यूनिकोड को ग्राहक-सर्वर अथवा बहु-आयामी उपकरणों और वेबसाइटों में शामिल करने से, परंपरागत उपकरणों के प्रयोग की अपेक्षा खर्च में अत्यधिक बचत होती है।   
             यूनिकोड के माध्यम से हम सभी को एक ऐसा अकेला सॉफ्टवेयर उत्पाद मिल जाता है, जिसे री-इंजीनियरिंग के बिना विभिन्न प्लैटफॉर्मों, भाषाओं और देशों में उपयोग किया जा सकता है। इससे डाटा को बिना किसी बाधा के विभिन्न प्रणालियों से होकर ले जाया जा सकता है। यूनिकोड की व्यवस्था ऐसी है कि यह भाषाओं का एकीकरण करने का प्रयत्न करता है। इसी नीति के तहत कई भाषाओं के समूह को एक ब्लॉक के अंतर्गत रखा जाता है । सभी पश्चिम यूरोपीय भाषाओं को लैटिन ब्लॉक  के अन्तर्गत समाहित किया गया है । सभी स्लाविक भाषाओं को सिरिलिक (Cyrilic) के अन्तर्गत रखा गया है; हिन्दी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, सिन्धी, कश्मीरी आदि के लिए 'देवनागरी' नाम से एक ही ब्लॉक दिया गया है ।  चीनी, जापानी, कोरियाई, वियतनामी भाषाओं को 'युनिहान्' (UniHan) नाम से एक ब्लॉक में रखा गया है; अरबी, फारसी, उर्दू आदि को एक ही ब्लॉक में रखा गया है। इस तरह हम पाते हैं कि कई भाषाओं को एक ब्लॉक या परिवार के अंतर्गत समाहित किया गया है । खूबी यह भी है कि इसमें बाएँ से दाएँ और दाएँ-से-बाएँ लिखी जाने वाली लिपियों (अरबी, हिब्रू आदि) को भी समान रूप से शामिल किया गया है। उपर से नीचे की तरफ लिखी जाने वाली लिपियों का अभी अध्ययन किया जा रहा है, संभावना है कि जल्द ही इन्हें भी यूनिकोड का हिस्सा बना लिया जाएगा ।

        अब तो Unicode 7.0 भी आ चुका है । इसमें कुल 2,834 वर्ण /कैरेक्टर, 23 नए स्क्रिप्ट, कई नए प्रतीकों और चिन्हों को भी इसमें सम्मिलित किया गया है । यूनिकोड अपने आप को लगातार परिमार्जन और परिष्कार की प्रक्रिया से आगे बढ़ा रहा है, यह विश्व की सभी भाषाओं के लिये एक सुखद स्थिति है । हिंदी भाषा के वैश्विक प्रचार-प्रसार से हम तभी जुड़ पाएंगे जब हम भाषायी तकनीक से जुड़ेंगे । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले की प्राचीर से डिजिटल इंडिया का नारा दिया है । यह बात भाषा पर भी लागू होती है । हम सभी को मिलकर आधुनिक भारत की एक नई तस्वीर बनानी होगी । तकनीक ही इसका हथियार होगा ।

डॉ मनीषकुमार सी. मिश्रा
यू.जी.सी. रिसर्च अवार्डी
हिंदी विभाग
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
manishmuntazir@gmailcom
मो. 8090100900, 8853253030



संदर्भ ग्रंथ :     
[1] यूनिकोड हिंदी टाइपिंग से एक परिचय – ई-पंडित श्रीश शर्मा
हिंदी ब्लागिंग अभिव्यक्ति की नई क्रांति – अविनाश वाचस्पति, रवीन्द्र प्रभात , पृष्ठ संख्या -16
हिंदी ब्लागिंग अभिव्यक्ति की नई क्रांति – अविनाश वाचस्पति, रवीन्द्र प्रभात
हिंदी ब्लागिंग: स्वरूप,व्याप्ति और संभावनाएं – डॉ मनीष कुमार मिश्रा
वेब मीडिया और हिंदी का वैश्विक प्रचार-प्रसार - डॉ मनीष कुमार मिश्रा
वेब मीडिया और अभिव्यक्ति के खतरे – डॉ अनिता मन्ना, डॉ मनीष कुमार मिश्रा
वैकल्पिक पत्रकारिता और सामाजिक सरोकार – डॉ अनिता मन्ना, डॉ वीरेंद्र कुमार मिश्र
भूमंडलीकरण और ग्लोबल मीडिया – जगदीश्वर चतुर्वेदी,सुधा सिंह
www.google.com

Tuesday 1 September 2015

नक़लधाम


          काश के इंटर फ़ाइनल की परीक्षा का प्रथम दिन था । वह सुबह चार बजे ही उठ गया था । पर्चा अँग्रेजी का है और वह कोई कोताही नहीं बरतना चाहता । उसने टेबल लैम्प जलाया और चुपचाप पढ़ने बैठ गया । सरकार ने परीक्षा के दिनों में बिजली आपूर्ति रात भर करने का निर्णय लिया था सो बिजली कटी नहीं थी । उत्तर प्रदेश के पूर्वान्चल का यह जिला आज भी पिछड़ा ही माना जाता है, जिला – जौनपुर ।
          उधर आसमान में अभी उषा की लाली नहीं फैली थी लेकिन अँधेरा खुद को समेट रहा था, मानो उषा के स्वागत में पूरा आसमान बहोर रहा हो । रात शीत की वजह से मार्च महीने की यह भोर हल्के कोहरे से ढकी थी । इन दिनों मौसम के चरित्र में बड़ी तेज गिरावट दर्ज हुई है । बेमौसम बारिश से गेहूँ और दाल की फ़सल को बड़ा नुकसान हुआ है । कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं और सरकार रोज़ राहत की घोषणाएँ कर रही है । लेकिन आत्महत्याएँ रुक नहीं रहीं, मानों सरकार के चरित्र पर भी इन गरीबों का विश्वास नहीं रहा ।
        फ़िर इन लोगों का भी कौन सा लोकतांत्रिक चरित्र रहा है ? चुनाव आते ही इनका जातिगत स्वाभिमान जाग जाता और ये जातियों में बटकर समाजवाद, स्वराज्य और राष्ट्रीय विकास के नीले, लाल,केसरी  और हरे रंग के झंडों के नीचे दफ़न होते रहे । अपनी पार्टी और नेता के लिए खाद बनकर उनकी राजनीतिक फ़सल को लहलहाते रहे । लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में जो हुआ वह उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी नहीं हुआ । “अच्छे दिनों” की आहट पर यहाँ की राजनीति ने नई करवट ली । इतनी सीटें तो उस पार्टी को मंदिर वाले मुद्दे पर भी नहीं मिली थीं वह भी पूरे देश से – स्पष्ट बहुमत ।
        लेकिन स्पष्ट रूप से आम आदमी के जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन अभी नहीं आया था । अस्सी साल के मुरैला दादा भी इन दिनों ठगे ठगे ही महसूस कर रहे हैं । हज़ारी की चाय गुंटी पर लड़के उन्हें छेड़ते हुए कहते –
      “ का हो मुरैला दादा, वोटवा के का दिहे रह ?.......”
मुरैला दादा कहते “ धोखा हो गया बचई । सबके बैंक खाता मा अठ-अठ दस-दस लाख डालाइ वाला रहेन । उहई कालधन वाला पईसा । लेकिन अबई केहू क मिला नाइ । अबई तो सब का खाता खुलवा रहे हैं । देखा आगे का होई ? ......”
       लेकिन जो पढे लिखे थे वो जात-पात और व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर देशहित की बात का इन्हीं चाय की दुकानों पर पूरा समर्थन करते । उन्हें पूरा भरोसा था कि वर्तमान सरकार देश में आमूल परिवर्तन लाएगी और वह कर दिखाएगी जो आज तक इस देश में कभी नहीं हुआ । आकाश के पिता राजेश जी भी इन्हीं विचारों के थे । वे पड़ोस के गाँव में ही माध्यमिक विद्यालय में मास्टर थे । सब उन्हें राजेश मास्टर या मास्टर साहब ही बुलाते ।  
       आकाश की परीक्षा जब से नज़दीक आयी है मास्टर साहब ने अपनी दिनचर्या में थोड़ा परिवर्तन कर लिया है । अब वे सुबह जल्दी ही उठ जाते और कूँचा लेकर दुआर बटोरने लगते,गाय को बाहर बाँध दाना-भूसा करते, मैदान जाते और दातून कर स्नान करते । यह सब करते हुए वे इतना शोर तो कर ही देते कि पत्नी भी उठ जाएँ और आकाश भी । लेकिन मास्टर साहब के लिए सुखद आश्चर्य यह था कि आजकल आकाश उनसे पहले ही उठा रहता । उसे इस तरह सुबह जल्दी उठकर पढ़ते हुए देख मास्टर साहब को बड़ी प्रसन्नता होती । पत्नी पुष्पा जब चाय लेकर आयी तो मास्टर साहब बोले –
                 “यह लड़का शुरू से ही बड़ा होनहार रहा है । पूरी मेहनत और लगन से पढ़ता – लिखता है । देख लेना एक दिन ज़रूर यह हमारा नाम रोशन करेगा । इसके कक्षा अध्यापक रवि बाबू भी कह रहे थे कि यह राज्य में प्रथम आने का दावेदार है । हाई स्कूल में पूरे जिले में प्रथम आया था, सिर्फ़ दो नंबर और मिले होते तो पूरे राज्य में तीसरी पोजीशन होती लड़के की ।”
              माता - पिता अपने होनहार की खूब प्रशंसा करते । ऐसे मौके पर दोनों की ही आँखों में एक ख़ास चमक होती । भविष्य के सपनों के ताने- बाने के बीच एक गर्व का भाव होता । धीरे-धीरे पूर्व दिशा में लालिमा छाने लगती और उषा की लाली धरती पर प्रकाश की किरणों के साथ नई सुबह, नए दिन के आगमन की सूचना देती । पक्षियों का कलरव मानों नए दिन की दिनचर्या हेतु किया जा रहा विचार विमर्श हो । हर तरफ नई उम्मीद, नई कोशिश और नए संघर्ष का वातावरण दिखाई पड़ने लगता है । पुष्पा ने उठते हुए मास्टर साहब से पूछा –
 “ भईया कितने बजे जायेगा परीक्षा देने ?”
 “ साढ़े दस बजे से परीक्षा है तो दस बजे तक सेंटर पहुँच जाये तो अच्छा है ।”- मास्टर साहब ने कहा ।
 “ सेंटर कहाँ है ?” – पुष्पा ने फ़िर सवाल किया
 “ यहीं गोंसाईपुर के गोकुलनाथ त्रिपाठी महाविद्यालय में । तीन किलोमीटर है यहाँ से । मैं मोटर साईकल से छोड़ दूँगा । तुम उसे नाश्ता करा के साढ़े नौं तक तैयार रहने को बोलो ।” – मास्टर साहब ने पुष्पा से कहा और उठकर सड़क की तरफ से हज़ारी की गुंटी की तरफ निकल पड़े अख़बार पढ़ने ।
       गुंटी पर पहुँचते ही जियावान नट ने मास्टर साहब को प्रणाम करते हुए तख्ते पर बैठने की जगह दी और ख़ुद उठ के खड़ा हो गया ।
“ और जियावन का हाल है ?” – मास्टर साहब ने अख़बार हांथ में लेते हुए पूछा ।
“ ठीक है सरकार, आप सब का कृपा बा ।’’ – जियावन ने हांथ जोड़कर कहा ।
“ मास्टर साहब बुरा न माने त एक ठो बात जानइ चाहत रहली ।’’- जियावन ने कहा
“ अरे बोला कि, का बात है ?”- मास्टर साहब बोले ।
“ हमार नतियवा ई बार बरही क़लास का परिक्षा देई वाला बा, क़हत रहा बाबू पढ़ाई –लिखाई क़ कौनों काम ना बा । नक़ल करउनी दू हजार रूपिया दिहले पर किताब में देख – देख लिखई के मिली । ई बतिया सच है का ?’’- जियावन ने पूछा ।
   “ अब का बताई जियावन । बतिया त सही है । कुकुरमुत्ता नीयर नया नया पराइवेट स्कूल कालेज खुलत जात बा । ई सब स्कूल क़ मान्यता पइसा खियाइ- पियाइ के मिलत बा । नियम- कानून से काम ना होत बा । परीक्षा के सेंटर लेई ख़ातिर लाखन रूपिया खियावल जात बा, फ़िर जे लडिका लोग परीक्षा देई ख़ातिर आवत हयेन, ओनसी अपने हिसाब से पइसा वसूलत बाटेन । एक लाख लगाई के पाँच लाख कमात बाटेन । अपने स्वार्थ के चक्कर में लड़िकन क़ ज़िंदगी खराब कई देत हयेन । नैतिकता अउर सदाचार से केहू के कौनों मतलबई नाइ बा ।’’ – मास्टर साहब ने कहा ।

continue.............................................

डॉ मनीषकुमार सी. मिश्रा
यूजीसी रिसर्च अवार्डी
हिंदी विभाग
बनारस हिंदू युनिवर्सिटी
वाराणसी, उत्तर प्रदेश 




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भारत में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन

International Conference

On
26 -27 October 2015
 Venue - Ravindra Bhawan ,Margao ,Goa , India

Dear Sir/Madam,

Greetings from Jabalpur Management Association !!!

It gives us great pleasure to inform you that Jabalpur Management Association & South Asia Management Association  is organizing Two day 2nd International Conference on the theme of ‘MULTIDISCIPLINARY RESEARCH FOR THE ACHIEVEMENT OF  EXCELLENCE IN HIGHER EDUCATION & INDUSTRY  ” (MRAEHEI)-2015 on 26 -27 October  2015.              

The theme is meant to enhance the multidisciplinary research for the achievement of academic excellence pertaining to higher education. The aim is to make the lives of common person easier through the application of various Sections/Disciplines by way of high quality research. Therefore, the MRAEHEI-2015 hopes to bring together academicians, scientists, researchers, specialists, managers, administrators, engineers, doctors, law experts, NGOs and students of all Sections/ Disciplines who have to their credit such achievement, to disseminate information about such achievements, and to provide a platform for discussing research with potential for applications in the service of mankind.

We count on your support for a successful Conference and looking forward your contribution and participation in the same. The Selected papers shall be published in ‘International Journal - Global Journal of Multidisciplinary Studies  ’ ( ISSN- 2348-0459) of JMA. We are herewith Indicating the Website http://mraehei2015.jabalpurmanagementassociation.co.in/ for your kind notice and information.

We request you to kindly circulate it among your professional colleagues, research scholars and students. For more details about the conference please  feel free to visit:website 

You may also write us at:

Looking forward to welcome you!

                                
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