Thursday 3 October 2013

वर्धा में उठा प्रश्न - सोशल मीडिया : विधा बनाम माध्यम

                           
             
  हाल ही में (20-21 सितंबर 2013 ) महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी ब्लागिंग और सोशल मीडिया को लेकर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कार्यशाला आयोजित हुई । मैं भी इस संगोष्ठी में आमंत्रित था । भाई सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी के भागीरथ प्रयास से संयोजन सुव्यवस्थित ढंग से हुआ । करीब 30 ब्लागर आमंत्रित अतिथि के रूप में पूरे भारत से आए हुए थे, जिनके आवास,भोजन इत्यादि कि सुंदर व्यवस्था की गयी थी । आयोजन के संयोजन और इसकी सफलता के लिए मेरी तरफ भाई सिद्धार्थ जी को 100 में से 100 अंक ।
आयोजन का जो सबसे सुंदर पक्ष मुझे लगा वो था विद्यार्थियों की बड़ी संख्या में सक्रिय सहभागिता । विद्यार्थियों ने जिस तरह सवाल- जवाब किये वो अब कम संस्थानों में देखने को मिलता है । अध्यापक होने के नाते मैं इस सक्रियता को सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानता हूँ ।
दो दिन की संगोष्ठी में कई सवाल उठाए गए । मुझे जो एक सवाल सबसे दिलचस्प लगा वो ये कि कई विद्वान ब्लागिंग को हिंदी साहित्य की एक विधा के रूप में प्रतिष्ठित कराने में तुले हुए थे । सोच रहा हूँ थोड़ा इसी विषय पे बात कर लूँ । मुझे लगता है कि इस तरह के आग्रह घातक हैं । इसे गंभीरता से समझना होगा । यह तो ठीक है कि हिंदी प्रेमी हिंदी का आग्रह रखें लेकिन दुराग्रहों से हमें बचना भी चाहिए । जनसंचार माध्यम, सोशल मीडिया,न्यु मीडिया,वैकल्पिक पत्रकारिता तथा ब्लाग इत्यादि पे बात करते हुए अक्सर इस तरह की बातें सामने आ ही जाती हैं । लेकिन यह हिंदी के प्रति अत्यधिक प्रेम और अति उत्साह का परिचायक अधिक लगता है । मैं बड़ी विनम्रता से इस संदर्भ में अपना मंतव्य प्रस्तुत करना चाहता हूँ ।
             इसमें तो कोई विवाद नहीं है कि आज ब्लाग के माध्यम से हिंदी साहित्य की अधिकांश विधाओं में लेखन कार्य किया जा रहा है । कहानी,कविता,उपन्यास,संस्मरण,नाटक,रिपोर्ट और शेरो शायरी खूब जम के लिखी जा रही है । कई लोग व्यक्तिगत डायरी के रूप में भी ब्लाग का उपयोग कर रहे हैं । मेरे जैसे कई प्राध्यापक अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में इसे वेबसाईट के विकल्प के रूप में भी उपयोग में ला रहे हैं । संगीत ब्लाग और चित्र ब्लाग की भी अपनी विधाएँ हैं । कुल मिलाजुलाकर हिंदी की अधिकांश साहित्यिक विधाओं को वैश्विक स्तर पे प्रचारित-प्रसारित करने में ब्लाग एक माध्यम के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है ।
            आवश्यकता इस बात की है कि हम इस तकनीकी माध्यम का अधिक से अधिक उपयोग करते हुए हिंदी भाषा में हिंदी की सभी साहित्यिक विधाओं से जुड़ी अधिकतम सामग्री अंतर्जाल / इंटरनेट पे उपलोड करें ताकी पूरी दुनियाँ में हमारी भाषा और साहित्य का अधिक से अधिक प्रचार प्रससर हो, हिंदी में सामग्री खोजने वालों को अधिक से अधिक सामग्री हिंदी में उपलब्ध हो और इन्टरनेट पर भी हिंदी सब से बड़े बाजार की भाषा के रूप में जानी जाय । यह काम ज़िम्मेदारी,धैर्य,संयम और साहस का है । भाई आलोक कुमार(हिंदी के प्रथम ब्लागर, जिन्हें भाई शैलेश भारतवासी हिंदी के आदि ब्लागर भी कहते हैं ) के शब्दों में कहूँ तो आज के सूचना और प्रौद्योगिकी के युग में बड़े पुण्य का कार्य है । हम सभी को इस पुण्य कार्य से जुड़ना चाहिए और अपनी हिंदी को वैश्विक स्तर पे प्रचारित- प्रसारित करते हुए इससे रोजगार की नई संभावनाओं को बल प्रदान करना चाहिए ।
             अब सवाल यह है कि ब्लाग हिंदी के प्रचार-प्रसार का माध्यम है या ख़ुद हिंदी साहित्य की एक नई विधा के रूप में सामने आया है । मैं व्यक्तिगत तौर पे यह मानता हूँ कि ब्लाग लेखन विधा तब मानी जा सकती है जब इसे लिखने के कुछ मानक निर्धारित हो सकें । लेकिन कतिपय मानकों में ब्लाग को बांधना इसकी सब से बड़ी शक्ति को इससे दूर करने जैसा ही है । और फ़िर माध्यम के रूप में इस स्वीकार करने में परेशानी क्या है ? आज सूचना और प्रौद्योगिकी ने जिस तेजी से विकास करते हुए हमें अपना आदी बना दिया है ऐसे में इन माध्यमों को मैं भी शरीर का विस्तार ही मानता हूँ । हांथ में मोबईल ना हो तो लगता है कुछ कमी सी है । यही बात इन्टरनेट को लेकर भी है । ये माध्यम अब शरीर के एक अंग की ही तरह हो गए हैं जिनके बिना हम ख़ुद को अधूरा महसूस करने लगे हैं । ये माध्यम अब एक तरह से हमारे लिए अनिवार्य से हो गए हैं । आने वाले दिनों में इनका दखल और अधिक बढ़ेगा । शायद तब यह कहना पड़े कि ये माध्यम हमारे शरीर ही नहीं अपितु हमारी आत्मा का भी विस्तार हैं ।
           साहित्यिक विधाओं का निर्माण प्रायोजित रूप में नहीं होता । यह परितोष(fulfillment),परिष्कार और परिमार्जन की एक लंबी प्रक्रिया है । इसलिए इसतरह के आग्रहों से बचना चाहिए । ब्लाग साहित्य साधना के लिए कारगर आधुनिक साधन है । ब्लागिंग साधन का उपयोग है और इसकी उपयोगिता भी यही है । इसमें भ्रम नहीं होना चाहिए । यह ब्लाग ही है जो पूरे विश्व के हिंदी प्रेमियों को न केवल जोड़ रहा है अपितु उन्हें अपनी बात हिंदी में दुनिया के साथ साझा करने का अवसर भी प्रदान कर रहा है ।
          प्रवासी हिंदी ब्लागर इसका एक जीवंत उदाहरण हैं । वे लगातार ब्लाग के माध्यम से हमारे बीच बने रहते हैं ।  भाई रवि रतलामी ने ब्लागिंग और प्रवासी भारतियों के योगदान को लेकर बात-चीत के दौरान  बताया था कि, ‘‘ हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास को देखें तो इसके शुरूआती पग को जमाने में प्रवासी भारतीयों का अच्छा खासा योगदान रहा है. दरअसल अपने अंग्रेज़ी ब्लॉग हिंदीमें ,हिंदी भाषा  में प्रथम प्रविष्टि लिखने का श्रेय प्रवासी विनय जैन को है. चूंकि कंप्यूटरों के लिहाज से हिंदी कॉम्प्लैक्स भाषा है, अतः शुरूआती चरणों में हिंदी में ब्लॉग लिखने व बनाने के लिए अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ती थी. इनके लिए बहुत सारे तकनीकी जुगाड़ प्रवासी भारतीयों ने किए. पंकज नरूला, जितेन्द्र चौधरी, ईस्वामी इत्यादि ने अपना ढेर सारा समय, धन व अन्य ऊर्जा हिंदी ब्लॉगों हेतु विविध किस्म के प्लेटफ़ॉर्मों जैसे नारद नामक हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर को बनाने व कई वर्षों तक नियमित चलाने में दिया, और हिंदी ब्लॉग बनाने के ऑनलाइन सहायता, ट्यूटोरियल प्लेटफ़ॉर्म जैसे कि अक्षरग्राम, हिंदिनी हग टूल  इत्यादि बनाए. एक अन्य प्रवासी भारतीय समीर लाल ने तमाम नए हिंदी ब्लॉगरों के ब्लॉग पोस्टों पर जाकर टिप्पणियों के माध्यम से हौसला आफजाई की और नियमित लेखन हेतु संबल प्रदान किया.
     प्रवासी भारतीयों के ब्लॉग पोस्टों में अकसर भारत और अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और उससे बिछुड़ने का दर्द दिखाई देता है. यह दर्द खासतौर पर वार-त्यौहार के समय और अधिक परिलक्षित होता है. राज भाटिया अपने ब्लॉग पोस्टों में जहाँ अपने विदेशी परिवेश के बारे में लिखते हैं, तो साथ ही साथ उतनी ही फ्रिक्वेंसी से अपने भारत, भारतीय संबंधों के बारे में भी संस्मरण लिखते हैं. डॉ. सुनील अपने फोटो-ब्लॉग छायाचित्रकार में बड़े ही खूबसूरत चित्रों को पेश करते हैं जिनमें बहुधा तो विदेशी होते हैं, मगर वे अपनी भारत यात्रा के समय लिए गए विशेष चित्र भी प्रकाशित करते हैं. प्रवासी ब्लॉगरों के साहित्य सृजन में भी देश प्रेम व देश से बिछुड़ने का दर्द अकसर बयाँ होता है। इसतरह हम देखते हैं कि प्रवासी ब्लागरों ने वेब तकनीक से अपने आप को जोड़ते हुवे अपनों से जुड़े रहने का नायाब रास्ता खोज निकाला। 
     ब्लागिंग एक ऐसी व्यवस्था है जहां आप स्वतंत्र भी हैं और स्वछंद भी, लेकिन लिखे हुए शब्दों की ज़िम्मेदारी से आप बच नहीं सकते । यहाँ आप अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के कहने के लिए जितने स्वतंत्र हैं उतने ही जिम्मेदार भी । किसी ब्लाग पर मैंने पढ़ा था कि “ ----- ब्लागिंग एक ऐसा धोबी घाट है, जहां आप जिसे चाहें उसे धो सकते हैं ।’’ बात सच है लेकिन आप जिसे धोयेंगे वह भी धोबिया पछाड़ से आप को दिन में ही तारे दिखा सकता है, इस बात का भी ख्याल रखें । नकारात्मक लोकप्रियता बड़ी घातक हो सकती है । हिंदी के वरिष्ठ ब्लागर श्री रवि रतलामी जी का स्पष्ट मानना है कि  भविष्य के सूर और तुलसी इसी ब्लागिंग जगत से ही निकलेगें । ’’ रतलामी जी की बात बड़ी गंभीर है और महत्वपूर्ण है । हमें ब्लाग जगत और वेब मीडिया पर पैनी नजर बनाए रखनी होगी । एक सिरे से इसे ख़ारिज करने से अब काम नहीं चलेगा । ब्लागिंग को बड़े ही सकारात्मक नजरिए से देखने की जरूरत है। प्रवासी हिंदी ब्लागरों के ब्लाग उनके वैचारिक धरातल का आईना हैं । इन ब्लागों पर दी जानेवाली जानकारी उनके सोचने-समझने के नजरिए को बड़े ही विस्तार के साथ हमारे सामने प्रस्तुत कर देती हैं ।
           अंत में इतना ही कहूँगा कि ब्लाग और सोशल मीडिया का जम के उपयोग कीजिये और हिंदी के वैश्विक प्रचार-प्रसार में अपना योगदान सुनिश्चित कीजिये । हिंदी का वैश्विक प्रचार-प्रसार भगवान जगन्नाथ के रथ को खीचने जैसा है , इसमें सभी का हांथ लगना जरूरी है । इस प्रक्रिया ये में वर्धा का यह परिसंवाद एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा । मैंने बहुत कुछ सीखा । कई नए दोस्त भी बनाये । भाई सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी को सच्चे मन से धन्यवाद । डॉ. मनीषकुमार मिश्रा

असोसिएट भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला
एवं
प्रभारी हिंदी विभाग
के.एम. अग्रवाल महाविद्यालय,कल्याण
manishmuntazir@gmail.com
मो. – 8080303132


                                   


Monday 30 September 2013

अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिसंवाद 2014

मित्रों सादर प्रणाम,
               अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिसंवाद 2014 की तैयारी शुरू हो गयी है ।वैकल्पिक पत्रकारिता  और सामाजिक सरोकार इस विषय पे आयोजित होने वाला यह दो दिवसीय परिसंवाद 07 -08 फरवरी 2014 की तारीख़ में प्रस्तावित है। इस संदर्भ में यूजीसीमहाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमीआईसीसीआर एवं आईसीएसएसआर को प्रस्ताव भेजा जा चुका है । इस बार भी शोध आलेखों का संकलन पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जाएगा । आप के आलेखों का स्वागत है । आलेख UNICODE MANGAL में ही स्वीकार किये जायेंगे । आलेख WORD FILE में ही होने चाहिए । आलेख अधिकतम 2500 शब्दों में हों ।आलेख  30 अक्टूबर 2013तक भेज दें ।
आलेख भेजने के लिए उप- विषय इस प्रकार हैं । वेब मीडिया और सामाजिक सरोकारवेब मीडिया - अर्थपरिभाषा और स्वरूप , वेब मीडिया और लोकतंत्रवेब मीडिया -भारतीय समाज के परिप्रेक्ष में,वेब मीडिया और सामाजिक आंदोलन,वेब मीडिया और सरकारी नियंत्रणवेब मीडिया और राजनैतिक आंदोलन,वेब मीडिया और धार्मिक आंदोलन, वेब मीडिया और व्यक्तिगत पत्रकारितावेब मीडिया और मनोविज्ञानवेब मीडिया और हिंदी, वेब मीडिया और हिंदी का प्रचार – प्रसारवेब मीडिया और शोध कार्यवेब मीडियाऔर सांस्कृतिक चेतनावेब मीडिया और युवा वर्गवेब मीडिया और स्त्रीवेब मीडिया और दलित विमर्श,वेब मीडिया और बाल साहित्य,  वेब मीडिया और आदिवासीवेब मीडिया और भाषावेब मीडिया और प्रवासी भारतीय, वेब मीडिया और साहित्य, वेब मीडिया और भारतीय संस्कृति,वेब मीडिया और सिद्धान्तसमाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष में वेब मीडिया,वेब मीडिया और सेक्स,वेब मीडिया और बाजारीकरण,वेब मीडिया और नैतिक मूल्य, वेब मीडिया और विज्ञापनवेब मीडिया की नई भाषा दृष्टि,वेब मीडिया और उपभोगतावादवेब मीडिया और पत्रकारिता का नया दौर,वेब मीडिया और अभिव्यक्ति का अधिकारवेब मीडिया और नए क़ानूनों की आवश्यकता,वेब मीडिया और अल्पसंख्यक भारतीय समाज,वेब मीडिया और हाशिये का समाज,वेब मीडिया और भारतीय गाँव, गेट कीपिंग और वेब मीडिया, राजभाषा और वेब मीडिया, बैंकिंग क्षेत्र में हिंदी वेब मीडिया, हिंदी वेब मीडिया के माध्यम से आर्थिक और वित्तीय शिक्षा,वेब मीडिया और वैकल्पिक पत्रकारिता, वेब मीडिया और पत्रकारिता का नया स्वरूप, हिंदी की साहित्यिक विधाएँ और वेब मीडिया, वेब मीडिया के माध्यम से हिंदी का बढ़ता अंतर्विषयी स्वरूप ।

                 इन उप विषयों के अतिरिक्त भी आप अन्य विषयों पे संपादक की अनुमति से आलेख भेज सकते हैं । आलेख manishmuntazir@gmail.com पे भेजें । अधिक जानकारी के लिए http://internationalhindiconfrence.blogspot.in/ इस लिंक पे क्लिक करें । 

                                                                 डॉ मनीषकुमार मिश्रा
                                                                 प्रभारी - हिंदी विभाग 
                                                                 के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय, कल्याण 
                                                                 मो- 8080303132  




Tuesday 10 September 2013

साहित्यिक सारणी

दगा लोटन पाटील 
एम.ए.(हिंदी ) 
(मु.वनावल पो. जातोडे ता.शिरपुर
 जि.धुळे(४२५४०५)महाराष्ट्र.
मो.९६८९५९९५५६

अनुक्रमांक
साहित्यिक का नाम
जन्म
मृत्यु
जेनेन्द्रकुमार
२ जनवरी १९०५
२४ दिसंबर १९८८
कमलेश्वर
६ जनवरी १९३२
२७ जनवरी २००७
मोहन राकेश
८ जनवरी १९२५
३ जनवरी १९७२
वृंदावनलाल वर्मा
९ जनवरी १८८९
२३ फरवरी १९६९
श्रीधर पाठक
 ११ जनवरी १८५८
१३ सितम्बर १९२८
रांगेय राघव
     १७ जनवरी १९२३
 १२ सितम्बर १९६२
जयशंकर प्रसाद
     ३० जनवरी १८८९
१४ जनवरी १९३७
सोहनलाल द्विवेदी
 २२ फरवरी १९०६
  ०१  मार्च १९८८
रामनरेश त्रीपाठी
     ०४ मार्च १८८१
  १६ जनवरी १९६२
१०
स.ही. वात्स्यायन अज्ञेय
०७ मार्च १९११
०४ अप्रैल१९८७
११
महादेवी वर्मा
२६ मार्च १९०७
 ११ सितम्बर१९८७
१२
केदारनाथ अग्रवाल
०१ अप्रैल१९११
२२ जुन २०००
१३
माखनलाल चतुर्वेदी
०४ अप्रैल१८८९
  ३० जनवरी१९६८
१४
राहुल सांकृत्यायन
०९ अप्रैल १८९३
१४ अप्रैल १९६३
१५
अयोध्यासिंह उपाध्याय
 १५ अप्रैल १८६५
१९४५
१६
सुमित्रानंदन पंत
२० मई१९००
 २८ सितम्बर१९७७
१७
देवेंद्र सत्यार्थी
     २८ मई १९०८
१९७४
१८
कन्हैयालाल मित्र प्रभाकर
२९ मई १९०६
०९ मई १९९५
१९
विष्णु प्रभाकर
     २१ जुन १९१२
  ११ अप्रैल २००९
२०
देवकीनंदन खत्री
     २९ जुन १८६१
१ अगस्त १९१३
२१
नागार्जुन
     30 जुन १९११
५ नवंबर१९९८
२२
प्रेमचंद
 ३१ जुलाई १८८०
८ अक्तूबर१९३६
२३
पुरुषोत्तम दास टंडन
      १ अगस्त १८८२
  १ जुलाई १९६२
२४
मैथिलीशरण गुप्त
३ अगस्त१८८६
१२ दिसंबर १९६४
२५
भीष्म साहनी
८ अगस्त १९१५
११ जुलाई २००३
२६
सुभद्राकुमारी चौहान
 १६ अगस्त १९०४
१५ फरवरी १९४८
२७
अमृतलाल नागर  
 १७ अगस्त १९१६
  २३ फरवरी १९९०
२८
हजारीप्रसाद द्विवेदी
१९ अगस्त १९०७
१९७९
२९
दुष्यंतकुमार
     ०१ सितम्बर १९३३
    २२ जुन २०००
३०
सियारामशरण गुप्त
     ०४ सितम्बर १९३३
  २९ मार्च १९६३
३१
भारतेंदू हरिश्चंद्र
९ सितम्बर १८५०
०६ जनवरी १८८५
३२
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
१५ सितम्बर १९२७
२३ दिसंबर १९८३
३३
प्रभुनाथ गर्ग (काका हाथरसी )
१८ सितम्बर १९०६
१८ सितम्बर १९९५
३४
रामधारीसिंह दिनकर
२३ सितम्बर १९०८
२४ अप्रैल१९७४
३५
मुकुटधर पाण्डेय
३० सितम्बर १८९५
१९८८
३६
आ. रामचन्द्र शुक्ल
०४ अक्तूबर १८८४
२ फरवरी १९४१
३७
गजानन माधव मुक्तिबोध
१३ नवम्बर १९१७
 ११ सितम्बर १९६४
३८
हरिवंशराय बच्चन
२७ नवम्बर १९०७
१८ जनवरी २००३
३९
काका कालेलकर
०१ दिसंबर १८८५
२१ अगस्त १९८१
४०
यशपाल
०३ दिसंबर१९०३
२६ दिसंबर १९७६
४१
बालकृष्ण शर्मा नविन
    ८ दिसंबर १८९७
२९ अप्रैल १९६०
४२
इलाचन्द्र जोशी
    १३ दिसंबर १९०३
१९८२
४३
रामवृक्ष बेनीपुरी
२३ दिसंबर१८९९
 ९ सितम्बर १९६८
४४
धर्मवीर भारती
२५ दिसंबर१९२६
४ सितम्बर १९९७
४५
महावीर प्रसाद द्विवेदी
१८६४
२१ दिसंबर १९३८
४६
उपेन्द्रनाथ अश्क
१९१०
१९ जनवरी १९९६
४७
जगन्नाथदास रत्नाकर
भाद्रपद शुक्लपंचमी(१८६६)
    २१ जुन १९३२