Tuesday 25 January 2011

दीवानगी है , पागलपन है  मोहब्बत या आवारापन ;
चाहे जों तू नाम दे तू इश्क ही मेरा जीवन है :



गम ही दे पर दे इन्तहा वो भी ,

गम  ही  दे पर दे इन्तहा वो भी ,
खुशियों  पे तेरा अब बस नहीं
चाहा है टूट कर जिसको
 मिटा दे हस्ती गम दे तू ही

दर्द  का मेला चाहूं तुझसे
तकलीफों का झोला चाहूं तुझसे
चाहत का क्या है वो तू कब का भूली
ग़मों का लम्हा चाहूं अब तुझसे


Tuesday 18 January 2011

आपके आलेख आमंत्रित हैं.

आपके आलेख आमंत्रित हैं
                               ''  हिंदी ब्लॉग्गिंग ''  पर  फरवरी २०१२ में आयोजित होनेवाली राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए आप के आलेख सादर आमंत्रित हैं.इस संगोष्ठी में देश-विदेश के कई विद्वान सहभागी हो रहे हैं.
             आये हुवे सभी आलेखों को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करने क़ी योजना है. आपसे अनुरोध है क़ी आप अपने आलेख जल्द से जल्द भेजने क़ी कृपा करें.
         इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें --------------
 डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
 के.एम्. अग्रवाल कॉलेज
 पडघा रोड,गांधारी विलेज
 कल्याण-पश्चिम ,४२१३०१
 जिला-ठाणे
 महाराष्ट्र ,इण्डिया
 mailto:manishmuntazir@gmail.com
 wwww.onlinehindijournal.blogspot.कॉम
 ०९३२४७९०७२६

Thursday 13 January 2011

national seminar on hindi blogging in february 2012

हिंदी ब्लॉग्गिंग : स्वरूप,व्याप्ति और संभावनाएं
                                     इस विषय पर फरवरी २०१२ में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी अपने महाविद्यालय और विश्विद्यालय अनुदान आयोग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित करने जा रहा हूँ.
                                    सभी हिंदी ब्लॉग्गिंग परिवार से जुड़े लोगों से निवेदन है क़ी अपनी सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करते हुवे अपने सुझाव भी प्रेषित करें .

 डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
 प्रभारी -हिंदी विभाग
 के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय
 कल्याण-पश्चिम ४२१३०१
 जिला-ठाणे
महाराष्ट्र
  manishmuntazir@gmail.कॉम

 

Monday 10 January 2011

महफ़िल तो सजी हुई है पर हर बंदा यहाँ उदास है

महफिले पुरजोर है जामों का यहाँ जोर है
मुस्करा रहा कोई किसी का अटठाहँसों पे जोर है ;
महफ़िल तो सजी हुई है
 पर हर बंदा यहाँ उदास है
 किसी को रिश्तोंकी है उलझने
कोई business का यहाँ दास है
नौकरी जों कर रहा वो ना करी कैसे करे
कहता फिरे कुछ भी मगर उसका भी कोई boss है
औरतें उलझी हुई किस राह तक पति का साथ दे
कैसे समेटे जिंदगी कैसे खुशियों को राह दें

बचपन का मेला याद अब भी
अल्ल्हड़पन की मस्ती साथ अब भी
यौवन का भावों का घेरा 
आज कहाँ है उसका बसेरा


महफ़िल तो सजी हुई है
 पर हर बंदा यहाँ उदास है

उल्लास तो बिखरा पड़ा
हर मन में दबी कोई प्यास है
कहीं परिवार का उलझाव है
कहीं कैरियर का जंजाल है
कहीं पतली होती रिश्ते की डोर है
कहीं सिमटते विश्वास का छोर है

मुस्काते चेहरे खिले भाव
दिल के कोनों में उदासी की छावं

मिल रहे गले यार से यार यहाँ
मिला रहे एक दूजे से हाथ अनजान यहाँ
कोई पीने का शौक़ीन कोई जुटा खाने पे
कोई बतियाये खुल के कोई चुपचाप यहाँ
कोई थिरके है गाने पे
कोई दे रहा थाप यहाँ


गम दर्द तकलीफों से भाग रहा हर कोई है
हर्ष खुशियाँ उल्लास चाह रहा हर कोई है
शाम बिना सुबह कब आये
खुशियों का रंग तकलीफों पे ही आये है


महफ़िल तो सजी हुई है
 पर हर बंदा यहाँ उदास है
भागती हुई ये जिंदगी
ठहरा हुआ अहसास है
वक़्त से खेल रहा हर कोई
पर वक़्त ही सरताज है


महफ़िल तो सजी हुई है
 पर हर बंदा यहाँ उदास है /

Tuesday 4 January 2011

हकीकते जिंदगी स्वीकार कर तू खुल के

हकीकते  जिंदगी  स्वीकार  कर  तू  खुल  के  ,

मुश्किलों  की  बारिश  में  तू  मुस्करा   खुल  के ,
वक़्त  का ये  खेल  है  कर्मे  जिंदगी  ,

हार  हो  या  जीत  हो  तू  खिलखिला  खुल  के  !

Monday 27 December 2010

पति पत्नी का रिश्ता हो मिनट का पल का या हो दिन महीने साल का

पति पत्नी का रिश्ता हो मिनट का पल का या हो दिन महीने साल का
मिटा सके ये इतना बस नहीं है काल का ;
शिव की भभूती औ  माता का सिंदूर भरा था औ भाव अटूट प्यार का
तब मांग भरी थी तेरी मैंने इश्वर स्वयम गवाह था ,
कैसे भूलूं वो घड़ियाँ मैं आंसूं से सींचा था रिश्ता प्यार का ,
झूठ कहे या भूले तू पर ये रिश्ता मेरे हर जनम हर सांस का ;

भाव से बड़कर क्या दुनिया में
प्यार से अच्छा क्या इन्सा में

सही गलत उंच नीच का फैसला कोई कैसे करे है
है मोहब्बत खुदा का जज्बा उसे बुरा कैसे कहे है /
राधा कृष्ण भजते सभी हैं
द्रौपदी को कहते सती हैं  
रीती में उलझे है क्यूँकर
प्रीती बिन जीना हो क्यूँ कर

प्यार से बड़कर पूजा नहीं कोई इस जगत इस संसार में
क्यूँ झिझक कैसी ये दुविधा क्या मैं नहीं तेरे दिल की छाँव में
सरल नहीं  है राह  प्रीती की पर सरल कहाँ जीना संसार में
क्यूँ हो अब तक तू उलझी क्या कमी रही मेरे  प्यार में ;

प्यार को रब समझा और तुझको जिंदगी
मेरे जीने का उद्देश्य तू ही है तेरी करूँ मै बंदगी /

नाम ले मेरा या पति कह ले या कुछ भी कह के पुकार ले
मेरा जीवन तेरा साँसे तेरी क़त्ल करे या साथ ले

करे बहस इनकार करे या बचपने का नाम दे
समझे भावुकता पागलपन या अर्थहीन कह टाल दे
चाहे समझे कोरी बातें या मुर्खता का नाम दे
 मेरा जीवन तुझको अर्पण तू खुशियों दे या आंसुओं की सौगात दे  /

Sunday 26 December 2010

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
                    शहरीकरण का प्रभाव - इस विषय पर  दिनांक-२४-२५ जनवरी को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित क़ी जा रही है. इस  संगोष्ठी में देश भर से  करीब  ३०० विद्वान शामिल होंगे. यदि आप इसमें भाग लेना चाहते हैं तो कृपया संपर्क करें .