Thursday 19 March 2009

अपनी राह बनाने को ---------------

अपनी राह बनाने को
मैं तो अकेला चल निकला
मंजिल का कहना मुस्किल है ,
पर साथ है मेरे राह प्रिये ।


आयेंगे जितने भी सब का
द्वार पे मेरे स्वागत होगा
जाना जो भी चाहेगा,
हर वक्त है वो आजाद प्रिये ।



इतनी अगर सजा दी है
तो फ़िर थोड़ा प्यार भी दो
आँचल की थोड़ी हवा सही ,
या बाँहों का हार प्रिये ।


तेरे-मरे रिश्ते जितना
उम्मीद से मेरा रिश्ता है ।
कितनी लम्बी प्यास है मेरी ,
पनघट बन तू देख प्रिये ।

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