Saturday 6 February 2010

वेलेंटाइन डे

वेलेंटाइन डे 
 
अंधेरों  के नाम  रौशनी का पैगाम है वेलेंटाइन डे
सपनो के लिए उम्मीदों की सौगात है वेलेंटाइन डे 

सफ़र में किसी अकेले थके हुए  राही के लिए,
हमसफ़र की तरह बहुत खास है वेलेंटाइन डे .

किसी जलजले के बाद की ख़ामोशी के लिए,
फिर से जीवन का हंसी पैगाम है वेलेंटाइन डे .

मासूम बच्चों की किलकारी के लिए ,
किसी भी माँ का दुलार है वेलेंटाइन डे .

प्यार के लिए  तडपे किसी दिल के लिए ,  
सावन की फुहार सा  है वेलेंटाइन डे . 

बहन की  राखी के लिए तरसती हुई ,
कलाई के लिए सबसे खास है वेलेंटाइन डे .
  
किसी की जुल्फों तले सुंकुं पाने के लिए,
दिल की कहने का बहाना है वेलेंटाइन डे .

 आप ने जाने क्या सोचा -समझा है,
मेरे लिए इंसानियत का सबब है वेलेंटाइन डे . 
                                                       ----------------
{हमारे यंहा वेलेंटाइन डे का विरोध करना  एक फैशन हो गया है, जबकि सैंट वेलेंटाइन की याद में मनाया जाने वाला यह दिन हमे प्यार का सन्देश देता है. जिन्दगी के सभी रिश्तों में प्यार का रंग जरुरी है. }
    

इस वेलेंटाइन डे पर

इस वेलेंटाइन डे पर 
 मिलना तुम मुझसे  लेकिन,
किसी उपहार के साथ नहीं .
बल्कि खुद आना मेरे जीवन का उपहार बन के .
लाल गुलाबों का  गुलदस्ता नहीं,
अपनी ही बांहों का हार लेकर .
प्यार के शब्दों वाला कोई ग्रीटिंग कार्ड नहीं,
प्यार का नयनों में भाव भरकर .
इस वेलेंटाइन डे पर ,
मेरी सबसे खूबसूरत कल्पना का,
तुम यथार्थ बन कर आना .
खामोश हैं सालों से जो भाव,
उनके लिए कुछ गहरे ,सच्चे  शब्द भी लाना .
इस वेलेंटाइन डे पर ,
कुछ मीठा भी हो इसी लिए ,
दे देना  यदि चाहो तो -
अपने अधरों का चुम्बन .
जिसके बंधन में फिर जीवन ,
बंधा रहे जन्मों -जन्मों तक . 
इस वेलेंटाइन डे पर ,
आना जब भी तुम चाहो 
कहना जो भी तुम चाहो 
 लेना जो भी तुम चाहो 

 पर कह देना वो भी जो , अब तक नहीं कहा .
इस वेलेंटाइन डे पर ,
 आना ----------------------------.

Friday 5 February 2010

खांसता बुडापा कांपता शरीर ,

खांसता बुडापा कांपता शरीर ,
इस जर्जर तन में उर्जा अंतहीन ,
लालशाओं में बहुधा जवानी कौंधती ,
अनायास ही माया रगों में रौन्धती ,
वर्षों का अनुभव उम्र को तकती ,
पोते की आवाज सहजता आती ,
बेटा उलझा बीबी के ताने बाने में ,
अपने ही अरमानो में ,
बहु सुशील पर उसे,
सिर्फ अपने बच्चे की जिम्मेदारी कबूल है ,
पत्नी खो चुका वर्षों पहले ,
वो चन्द अच्छे शब्दों औ आत्मीयता की मजबूर है ,
जीवन की ललक खो गयी ,
पोते के अंगुली पकड़ते ही हिम्मत बाजुओं में भर आई ,

कुछ तो आप भी समझ ही गए होंगे श्रीमान खान ---------------------

इस देश के एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में,
मै उतना ही  स्वतंत्र हूँ
  जितना खूटे से बंधी गाय. 
एक निश्चित दायरे में,
एक आम आदमी के दायरे तक स्वतंत्र .
जैसे ही कोई आम
  किसी  खास के बारे में कुछ कहता है, 
वो खटकने लगता है ,व्यवस्था के ठेकेदारों को .
नेता,अफसर ,सरकार  और हर किसी खास को. 
 उसे तुरंत दबा दिया जाता है जो ,
 लोकतंत्र  को लोकतंत्र  समझने   की   भूल  करता  है. 

 लोक  तन्त्र  की  बपौती  तो  खास  लोंगो  के लिए  है.
 आप  और हमारे  लिए  नहीं  मिस्टर    खान  .
 और आप   सच  कहना  चाहते  है,
 बस   इस मुगालते   में की  -    MY NAME IS KHAN
 कुछ  तो  आप   भी  समझ  ही गए  होंगे  श्रीमान  खान ,
 कई  कारणों  से ये  देश है महान  .
आप  ने  माफ़ी नहीं मांगी लेकिन,
इस  एहसास के नीचे दबा दिए गए की ,
 आप से गलती हुई है .
 ये तो आप की हालत है,
 हम जैसों  का क्या ?

 जिनका  नाम क्या है ,
 यह सिवाय उनके किसी को भी नहीं मालूम .
 इतना हंगामा बरपा ,
 इतनी लाचारी झेली ,
 फिर भी चुप हो अब क्योंकि ,
 वही बचने का अंतिम उपाय है,

सहना ही इस देश में  बचना है .
 वो भी चुप चाप ,एक दम चुप
समझे  ना ?



Thursday 4 February 2010

ले लेगी तृष्णा प्राण प्रिये ./abhilasha

सहना जब भी मुश्किल होगा,
दिल का कोई  दर्द पुराना .
तो फिर गीतों के शब्दों से,
सहलाऊंगा उसे प्रिये .
  
इसीलिए तो रचता हूँ,
ताकी बचना संभव हो.
वरना त्रिषिता में तेरी,
ले लेगी  तृष्णा  प्राण प्रिये .
                           -----------------अभिलाषा  

मधुर प्रेम की गलियों में,/abhilasha

वर्ण माला प्रेम की ,
जाने कब से सीख रहा .
करते-करते पुनर्पाठ ,
हो जाऊंगा अभ्यस्त प्रिये .

छू के तेरे आँचल को,
 गुजर गई है शोख हवा.
इसी हवा के झोके ने,
किया मुझे मदहोश प्रिये .

  







                                                                       मधुर प्रेम की गलियों में,
                                                                       ना जाने कितनी सखियाँ छूटी.
                                                                       कोई रूठी -कोई टूटी ,
                                                                      तो किया किसी ने माफ़ प्रिये . 



                                                                  मैंने भी कब चाहा था पर,
                                                                  प्रारब्ध में मेरे यही रहा .
                                                                  जीवन की मजबूरी में,
                                                                  यायावर ही रहा प्रिये .  
                                                                                        ------------------अभिलाषा
                                                                  
                                                                  

लाली चाहिए ऊषा की ./abhilasha

मेरी गहरी उदासी को,
लाली चाहिए ऊषा की .
राह में केवल प्राची के,
मेरा तो है ध्यान प्रिये . 

नया सवेरा आएगा,
इसका है विश्वाश मुझे.
छट जायेगा घोर अँधेरा,
पल-दो-पल की बात प्रिये . 
  
                ---------अभिलाषा  

हल्का-हल्का जाने कैसा,/abhilasha

छुई-मुई सी सिमट गई,
तुम जब मेरी बांहों में 
तपन से तेरी सांसों की,
बना दिसम्बर मई प्रिये .

हल्का-हल्का जाने कैसा,
दर्द उठा था मीठा सा .
एक दूजे से मिलकर ही,
हम तो हुए थे पूर्ण प्रिये . 
                                -----------अभिलाषा  

घोर अँधेरी सर्द रात में .\abhilasha

किसी पहाड़ी के मंदिर पे, 
घोर अँधेरी सर्द रात में .
दर्द प्रेम का लेकर मन में,
यादों का करता जाप प्रिये . 

 मेरे इस एकांत वास पे,
नभ के सारे तारे हसते.
लेकिन सारा सन्नाटा,
देता मेरा  साथ प्रिये .   
 

हिंदी के राष्ट्रिय सेमिनार :

हिंदी के राष्ट्रिय सेमिनार :
                    यु.जी.सी. द्वारा प्रायोजित इनदिनों महाराष्ट्र में दो राष्ट्रिय सेमिनारों की जानकारी मेरे पास  आयी है .जिनमे  आप सहभागी हो सकते हैं. 
 १-पहला सेमिनार साठे महाविद्यालय ,विले पार्ले,मुंबई  में दिनांक ५ फरवरी और ६ फरवरी २०१० को आयोजित किया गया है.सेमिनार  का मुख्य विषय है ''सूफी साहित्य का मूल्यांकन '' 
इस सेमिनार के लिए डॉ.प्रदीप सिंह जी से सम्पर्क किया जा सकता है . या इसी ब्लॉग पे भी आप सम्पर्क कर सकते हैं .
२-दूसरा  सेमिनार आबा  साहेब मराठे आर्ट्स ,साइंस कालेज ,राजापुर ,जिला-रतनागिरी,महाराष्ट्र में १८ फरवरी को आयोजित किया गया है.इस सेमिनार का मुख्य विषय है-आधुनिक हिंदी उपन्यासों में नारी चित्रण 
इस सेमिनार में सहभागी होने के लिए श्री.एम्.डी.नायकू से ९८६०१७६०५९ पर सम्पर्क किया जा सकता है . या इसी ब्लॉग पे .  

Wednesday 3 February 2010

तुझसे दुरी क्या मजबूरी ,

गहराती सांसे नमित मन की आखें ,
तुझसे दुरी क्या मजबूरी ,
थकी हैं नजरें सपनों से दुरी ,
चित भीगा तस्वीर अधूरी ,
व्यथा भाव मोहब्बत ले आई ,
दिल का क्रंदन और जुदाई ,
रूह है प्यासी पास उदासी ,
धड़कन को तू क्या दे आई ,
किस जीवन की राह दिखाई ,
शिकवा नहीं ह्रदय है कम्पित ,
क्यूँ हूँ तुझसे मै अचंभित ,
कांटा चुना राह के तेरी ,
आहें भरे रात संग मेरी ,
टीस भरी है भाव भाव में ,
दिल का बांध टूटता राह में ,
गहराती सांसे नमित मन की आखें ,
तुझसे दुरी क्या मजबूरी ,