Saturday, 31 January 2009

हंगामा है क्यों बरपा -----------

पब कल्चर का विरोध अब चुनाव का मुद्दा बन रहा है । वो भी मुंबई और बंगलोर जैसे शहरो के नाम पे । हम तरक्की तो चाहते है लेकिन सडी गली विचार धारा को भी नही छोडना चाहते । जब भारत मे पूजी आती है ,विदेशी आते हैं तो हमे अच्छा लगता है ,लेकिन इनके साथ आने वाली संस्कृति को हम बरदास नही कर पाते ।
ये दो तरफी चाल बड़ी भयानक है । हमे इस पे सोचना ही होगा ।

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Wednesday, 28 January 2009

अभिलाषा

मेरे मन की एक अभिलाषा
पलती इसमे है एक आशा
उस आशा मे प्यार भरा
प्यार भरा संसार बसा

नही जरूरत किसी की इसको
इसमे अजब विस्वास भरा
उतना ही यह है गहरा
जितना नभ है तारों भरा
तुम जो हो अभिलाषा -----
और किसी की करूँ क्या आशा \
तुम ---तुम वो जो --------
कहना मुस्किल है ------
कोई क्या कह सके गा तुम्हे ---सिवा की
तुम हो एक आशा -------------------






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Sunday, 25 January 2009

कैसे ग़लत हैं राज ठाकरे ?

मीडिया जो चाहे लिखे,कहे,दिखाये और बताये उसको पूरी आजादी है । फ़िर देश की आम जनता की औकात ही क्या है ? यह बात राज ठाकरे वाले मामले से आसानी से समझा जा सकता है ।
अपनी राजनीतिक जमीन तलास कर रहे राज ठाकरे ने ऐसा कुछ नही किया जो इस देश की राजनीत के लिये नया हो । उन्होने बस अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढाया । अब अगर राज को आप ग़लत कहेंगे तो आप को इस देश की राजनीतिक और संवैधानिक स्थितियों को भी ग़लत कहना पड़ेगा । इस देश मे कानून कब राजनेतावो पर नकेल कसने मे कामयाब हुवा है ? शायद तभी जब उसकी राजनीतिक गोटियाँ राजनीति की बिसाद पे सही नही बैठी । हाल ही मे सत्यम का घोटाला उजागर हुआ ,क्योंकि सत्यम का राजनीतिक मडर सुनिश्चित किया गया ।
राज ठाकरे राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं । आगे बढ़ने के शोर्ट -कट को जानते है । आज अगर आप राज को ग़लत मानते हैं तो कृपया एक ऐसा नाम बता दीजिये जो आप की नजरो मे सही हो । आजादी के बाद का मोह भंग और उसके बाद की अवसरवादिता ही आज की राजनीति का एक मात्र सच है ।
मै राज ठाकरे को ग़लत नही मानता ,लेकिन उनका समर्थन भी नही करता .सही-ग़लत के बीच न फसकर मै बस इतना कहना चाहता हूँ की इस देश को आज सबसे अधिक खतरा अगर किसी से है तो निरंकुश मीडिया से है । इस लिये हमारा -आपका सीधा संवाद जरूरी है । आप क्या सोचते हैं ?

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