Saturday 8 August 2015

लड्डू



लड्डू सिर्फ़ मिठाई नहीं
मीठे रिश्तों की सौगात
ढ़ेर सारा दुलार
और प्यार भी है ।

माँ के हाँथों का जादू
आतिथ्य का भोग
श्री गणेश का मोह
और बचपन की याद भी है ।

मुझे लगता है
जैसे प्रेम में पगे
ख़ुशी में रंगे
अपनेपन से भरे
और सादगी से सजे
हर एक रिश्ते को
लड्डू ही कहूँ ।

उस दिन
पहली बार
जब कहा तुम्हें लड्डू तो
तुमने अपनी छरहरी काया को निहारा
और बोली -
मैं लड्डू नहीं हूँ
तुम हो ।

तब से आज तक
मैं लट्टू हूँ
तुम पर
और चाहता हूँ कि
तुम हो जाओ
लड्डू ।

ताकि सोच सकूँ
दुनियाँ को
कुछ और
बेहतर बनकर
जिसकी कि शर्त है
मेरी आँखों में
तुम्हारा
लड्डू हो जाना ।

Thursday 6 August 2015

जब कहता हूँ तुम्हें चुड़ैल तो

15. जब कहता हूँ तुम्हें चुड़ैल तो

जब कहता हूँ तुम्हें
चुड़ैल तो
यह मानता हूँ कि
तुम हँसोगी
क्योंकि
तुम जानती हो
तुम हो मेरे लिये
दुनियाँ की सबसे सुंदर लड़की
जिसकी आलोचना
किसी भी तारीफ़ से
कहीं जादा अच्छी लगती है ।
जिसकी शिकायत
इनायत सी लगती है
जिसका गुस्सा
प्रेम की किसी भी
कविता कहानी से
अधिक पसंद करता हूँ ।
कभी कभी
तो लगता है कि
जीता हूँ इसीलिये ताकि
तुम्हारी कोई उलाहना
सुन सकूँ
और जी सकूँ
तुम्हें सुनते -देखते
और
बुनता रहूँ
हर आती -जाती
साँस के साथ
एक रिश्ता
अनाम
तुम्हारा और मेरा ।
तुम जानती हो
की तुम हो
मेरे लिये
एक ऐसी पहेली
जिसमें उलझना
सुलझने की शर्त है ।
तुम जितना दिखाती हो
उतना नाराज
दरअसल होती नहीं हो
होती हो
प्रेम में पगी
और चाहती हो
हो तुम्हारा
मनुहार ।
मैं भी
कैसे कह सकता हूँ क़ि
तुम सुंदर नहीं हो
वो भी तब जबकि
तुमसे बेहतर
सुंदरता के लिये
मेरे पास
कोई परिभाषा ही नहीं ।
तुम्हें ताना देकर
बुनता हूँ
प्रेम का
ताना - बाना
और जीता हूँ
तुम्हें
तुम्हारी निजता के साथ ।
तुम तृष्णा की
तृषिता
भावों की
आराध्या
जीवन की
उष्मा और गति ।
और इन सब के साथ
मेरी चुड़ैल भी
क्योंकि
एक जादू सा
असर करता है
तुम्हारा खयाल भी ।
तुम्हारा जादू
मेरे सर चढ़कर बोलता है
और मुझमें
मुझसे अधिक
तुमको बसा देता है ।
मुझमें
यूँ तुम्हारा
रचना बसना
वैसा ही है
जैसे कि
वशीभूत हो जाना ।
अब तुम्हीं कहो
कि मेरा तुम्हें
यूँ चुड़ैल कहना
तुम्हें
परी या गुड़िया कहने से
बेहतर
है कि नहीं ?



बारिश में भीगना

16. बारिश में भीगना

बारिश में भीगना
आलोचना है
सख्त और तर्कहीन
सामाजिक रूढ़ियों की ।
खिलते, मचलते
और गुनगुनाते गीतों की
गुंजाइश
और है गुजारिश भी ।
आवारगी की ख्वाइश
अनजान रास्ते
और मंजिल के नाम पर
बस सफ़र ही सफ़र ।
उजाले की दहलीज पर
अँधेरे का दम तोड़ना
क्या नहीं होता
तृप्त होने के जैसा ?
बारिश की बूँदें
किसी की रहमत सी
जब बरसती हैं
तब तरसती आँखों में
कुछ पूर्ण सा होता है ।
अधूरा वह रास्ता
जो किस्सों से भरा है
दरअसल जीने की
कठिन पर ज़रूरी शर्त है ।
एक गुमराह पैग़म्बर
और प्रेम में पगी
कोई दो जोड़ी आँखें
मलंग न हों
तो क्या हों ?
एक मासूम लड़की
नंगे पाँव
निकल पड़े चुपचाप
बूंदों से लिपटने
ज़िन्दगी इतनी सुंदर
सहज,सरल
और प्यार से भरी
आख़िर क्यों न हो ?


जब भी तुमसे बात होती है

जब भी तुमसे बात होती है
कुछ टूट जाता है
कुछ छूट जाता है
और फ़िर
अगले मनुहार तक 
कोई रूठ जाता है ।
याद है पिछली बार
जब तुमसे बात हुई थी
तुम फूट पड़ी थी
किसी निर्झर सी
और बह गया
कितना कुछ
जिसका बहजाना ज़रूरी था ।
दरअसल
ये जो टूटना है
और जोड़ता है
टुकड़ों में बटी
किसी कहानी को ।
जैसे दूर होने पर
किसी के करीब होना
महसूस होता है
वैसे ही
हमारे बीच का
यह अनमनापन
बताता है
कि हमारे बीच
कुछ बाकी है ।
हमारी रिक्तता
हमारी पूर्णता के प्रति
प्रेम से अनुप्राणित
एक प्रतिबद्धता है ।
अब तुम ही कहो
क़ि जो कहा मैंने
उसमें कुछ टूटा
या कि
फ़िर कुछ और
थोड़ा और
जुड़ गया ।

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