Saturday, 14 September 2024
हम अगर कोई भाषा हो पाते
हम
अगर कोई भाषा हो पाते
भाषाओं
के इतिहास में
भाषाओं
का ही
परिमल, विमल प्रवाह है ।
वह
ख़ुद
को माँजती
ख़ुद
से ही जूझती
तमाम
साँचों को
झुठलाती
और तोड़ती है ।
वह
इस
रूप में शुद्ध रही कि
शुद्धताओं
के आग्रहों को
धता
बताती हुई
बस
नदी सी
बहती
रही
बिगड़ते
हुए बनती रही है
और
बनते
हुए बिगड़ती भी है ।
दरअसल
वह
कुछ
होने न होने से परे
रहती
है
अपनी
शर्तों पर
अपने
समय, समाज और संस्कृति की
थाती
बनकर ।
उसकी
अनवरत यात्रा में
शब्द
ईंधन हैं
और
अर्थ बोध ऊर्जा
हम
अगर
कोई
भाषा हो पाते
तो
हम
बहुद
हद तक
मानवीय
होते ।
डॉ.
मनीष कुमार मिश्रा
विजिटिंग प्रोफ़ेसर
ICCR
हिन्दी चेयर
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान
।
संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में सहभागी
शुक्रवार, दिनांक 13 सितंबर 2024 को पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, आईटीएम विश्वविद्यालय, ग्वालियर द्वारा "हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य और रोज़गार की संभावनाएँ" विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संवाद का आयोजन किया गया। इस संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में सहभागी हुआ । अपने वक्तव्य में हिन्दी भाषा के वैश्विक परिदृश्य पर गहनता से प्रकाश डाला। मैंने कहा कि हिन्दी भाषा का न केवल सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्व है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर अपनी पहचान भी बना रही है। इसके साथ ही, हिन्दी के बढ़ते प्रसार के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभरती रोजगार की नई संभावनाओं के बारे में भी चर्चा की, जैसे कि अनुवाद, पत्रकारिता, लेखन, पर्यटन, और शिक्षा के क्षेत्र में हिन्दी के पेशेवरों की बढ़ती मांग। हिन्दी भाषा के माध्यम से डिजिटल मीडिया, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, और सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी में भी अनेक अवसर उपलब्ध हैं। इस आयोजन ने हिन्दी भाषा के महत्व और इसके माध्यम से उपलब्ध विविध रोजगार अवसरों के प्रति नई सोच विकसित करने का अवसर प्रदान किया।