Wednesday, 25 October 2023

महीना वही पर मौसम अलग सा है

 महीना वही पर मौसम अलग सा है

यह नवंबर कहां तुम्हारी महक सा है। 


सबकुछ तो है मगर जैसे फीका सा है 

जिंदगी के जायके में तू  नमक सा है।


जिसे गुनगुनाना चाहता हूं हरदम मैं

हमदम तू बिलकुल उस ग़ज़ल सा है। 


निहारता हूं अकेले में अक्सर चांद को

यकीनन वह तेरी किसी झलक सा है।


मैं अब तुम्हें पाऊं  तो भला पाऊं कैसे 

एक कतरा हूं मैं और तू फलक सा है। 



                         मनीष कुमार मिश्रा