भरपूर विश्वसनीयता और गहरा आत्मविश्वास
प्रियवर मिश्र जी,
मैंने आपकी कुछेक स्मृतियाँ पढ़ीं।वैसे तो स्मृतियों की भी अपनी एक कहानी होती है पर यहाँ दोनों गलबहियाँ सी कर रही हैं।अवध की ग्रामीण पृष्ठभूमि से लबरेज ये कथाएँ बहुधा चरित्र केन्द्रित हैं ।और चरित्र भी अविराम संघर्ष का जीवट लिए हुए।
इन चरित्रों में भरपूर विश्वसनीयता और गहरा आत्मविश्वास
है।इन्हीं के गर्भ से अँकुर सा फूटा वह परदेशी अवध है जिसे उसका अंचलअपनी स्मृतियों से सींच कर निरंतर हराभरा रखता है।माई हो या जहरी ,या बड़े भइया -सबके सब हमारी यादों का एक ऐसा संसार बनाते हैं जो हमें हमारी जड़ों की ही नहीं,इंसानी वजूद की भी याद दिलाता रहता है।हमें जीवन जीने की उन अदाओं और कलाओं की भी याद दिलाता रहता है जो हमें संस्कार रूप में मिले हैं।
आपने इन्हें तदनुकूल भाषा में लिपिबद्ध कर जीवंतता दे दी है।
निश्चय हीयह एक ऐसी दुनिया की याद है जो बीत कर भी बीती नहीं है और हमारी चेतना की पृष्ठभूमि पर किसी पार्श्व संगीत सी गूँज रही है।
विजय बहादुर सिंह, भोपाल।
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