Saturday 24 October 2009

छठ मैया को श्रद्धा अर्पण

अस्ताचलगामी और उदयमान सूर्य को प्रणाम करने के लिए सदियोंसे चली आ रही परम्परा को आगे बढ़ाने की तैयारियां चल रही हैं । बस चंद क़दमों की दूरी पर पुण्यसलिला गंगा के किनारे सूर्य जब अस्त हो रहे होंगे तो हम सब उन्हें अर्पण कर रहे होंगे अपनी श्रद्धा , अपना सबकुछ । दिन भर व्रत रखकर महिलाएं भगवान भास्कर को जल आराध्य करती है। राजधानिओमें इसकी तैयारियां शुरू हो चुकी है। जैसे डेल्ही , पटना , यहाँ तक की महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में भी हम यह पर्व देख सकते है।


महाकाव्यात्मक गरिमा का उपन्यास -इन्ही हथियारों से :अमरकांत


महाकाव्यात्मक गरिमा का उपन्यास -इन्ही हथियारों से :अमरकांत


Thursday 22 October 2009

गुम हूँ कहीं ,खोया हूँ कहीं ;

गुम हूँ कहीं ,खोया हूँ कहीं ;

हूँ उसकी तलाश में ,

निकला हूँ कहीं ,पहुँचा हूँ कहीं ;

मदहोश नही हूँ , बेहोश नही हूँ ;

उलझा हूँ तेरी सोच में ;

अफ़सोस नही हूँ , सरफ़रोश नही हूँ ;

ढुढता हूँ ख्वाबों में , भटकता हूँ राहों में ;

नीद आये हुए वर्षों ;

सोया कहीं हूँ , जागा कहीं हूँ ;

तेरा अहसास नही हूँ , तेरा आकाश नही हूँ ;

हूँ हवा में शामिल ;

तेरा आभाष नही हूँ ,तेरी साँस नही हूँ ;

होयुं कोहरे में शामिल ऐसा खामोश नही हूँ /

Wednesday 21 October 2009

नाराज मत हो ,प्यार कर ,अंहकार मत हो /

मोहब्बत की दूरियों पे ,अपनी मजबूरियों पे ;

नाराज मत हो ,विश्वास कर ,इंकार मत हो /

तकलीफों की मुस्कराहट पे ,मुसीबतों की आहटों पे ;

नाराज मत हो ,विचार कर , तकरार मत हो /

आंसुओं की कोशिश पे ,भावों की कशिश पे ;

नाराज मत हो ,स्वीकार कर ,दुस्वार मत हो /

अपनो के तानो पे ,रिश्तों के बानो पे ;

नाराज मत हो , ख़याल कर उदास मत हो /

प्यार के धोखे पे ; मोहब्बत की उलझनों पे ;

नाराज मत हो , इश्क कर ,बदहवास मत हो /

नसीब की डोरियों पे ,तिरस्कार की बोलियों पे ;

नाराज मत हो ,सम्मान कर , अविश्वास मत हो /

बिखरे सपनों पे , छुटे अपनो पे ;

नाराज मत हो ,आगाज कर , इतिहास मत हो ;

सपने खिल जायेंगे , अपने मिल जायेंगे ;

प्यार भर भावों में ;सहजता ला मुलाकातों में ;

नम्र कर सोचों को ;सब्र भर बातों में ;

हारी बाजी जीतेगा तू ,अहसास ला मुलाकातों में ;

व्यवहार में स्वार्थ मत ला , मन में दुराव मत ला ;

नाराज मत हो ,प्यार कर ,अंहकार मत हो /

Monday 19 October 2009

लूट लूट लूट ,

लूट लूट लूट ,
लूट रहा है हर कोई जो सकता है लूट ;
लूट लूट लूट ;
नेता लुटे है वादों से ;
अफसर लुटे हैं इरादों से ;
पत्रकार लूटता है शब्दों से ;
कवी लूटता है अर्थों से ;
अपने लुटे है जज्बों से ;
रिश्तेदार लूटता है कर्मों से ;
लूट लूट लूट ;
लूट रहा है हर कोई जो सकता है लूट ;
समाज लूटता है दिखावे से ;
सम्बन्ध लूटता है भावों से ;
दोस्तों ने यारी से लूटा ;
चालाकों ने तीमारदारी से लूटा ;
प्यार लूटता है अरमानो से ;
परिवार लूटता है अहसानों से ;
किस किस से कब तक है बचना ;
ये कैसा है है जीवन अपना ;
आ ख़ुद को लूटें इच्छावों से ;
भगवन को लुटे कामनावों से ;
लूट लूट लूट ,
लूट रहा है हर कोई जो सकता है लूट ;