Thursday 13 January 2011

national seminar on hindi blogging in february 2012

हिंदी ब्लॉग्गिंग : स्वरूप,व्याप्ति और संभावनाएं
                                     इस विषय पर फरवरी २०१२ में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी अपने महाविद्यालय और विश्विद्यालय अनुदान आयोग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित करने जा रहा हूँ.
                                    सभी हिंदी ब्लॉग्गिंग परिवार से जुड़े लोगों से निवेदन है क़ी अपनी सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करते हुवे अपने सुझाव भी प्रेषित करें .

 डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
 प्रभारी -हिंदी विभाग
 के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय
 कल्याण-पश्चिम ४२१३०१
 जिला-ठाणे
महाराष्ट्र
  manishmuntazir@gmail.कॉम

 

Monday 10 January 2011

महफ़िल तो सजी हुई है पर हर बंदा यहाँ उदास है

महफिले पुरजोर है जामों का यहाँ जोर है
मुस्करा रहा कोई किसी का अटठाहँसों पे जोर है ;
महफ़िल तो सजी हुई है
 पर हर बंदा यहाँ उदास है
 किसी को रिश्तोंकी है उलझने
कोई business का यहाँ दास है
नौकरी जों कर रहा वो ना करी कैसे करे
कहता फिरे कुछ भी मगर उसका भी कोई boss है
औरतें उलझी हुई किस राह तक पति का साथ दे
कैसे समेटे जिंदगी कैसे खुशियों को राह दें

बचपन का मेला याद अब भी
अल्ल्हड़पन की मस्ती साथ अब भी
यौवन का भावों का घेरा 
आज कहाँ है उसका बसेरा


महफ़िल तो सजी हुई है
 पर हर बंदा यहाँ उदास है

उल्लास तो बिखरा पड़ा
हर मन में दबी कोई प्यास है
कहीं परिवार का उलझाव है
कहीं कैरियर का जंजाल है
कहीं पतली होती रिश्ते की डोर है
कहीं सिमटते विश्वास का छोर है

मुस्काते चेहरे खिले भाव
दिल के कोनों में उदासी की छावं

मिल रहे गले यार से यार यहाँ
मिला रहे एक दूजे से हाथ अनजान यहाँ
कोई पीने का शौक़ीन कोई जुटा खाने पे
कोई बतियाये खुल के कोई चुपचाप यहाँ
कोई थिरके है गाने पे
कोई दे रहा थाप यहाँ


गम दर्द तकलीफों से भाग रहा हर कोई है
हर्ष खुशियाँ उल्लास चाह रहा हर कोई है
शाम बिना सुबह कब आये
खुशियों का रंग तकलीफों पे ही आये है


महफ़िल तो सजी हुई है
 पर हर बंदा यहाँ उदास है
भागती हुई ये जिंदगी
ठहरा हुआ अहसास है
वक़्त से खेल रहा हर कोई
पर वक़्त ही सरताज है


महफ़िल तो सजी हुई है
 पर हर बंदा यहाँ उदास है /