Friday 16 March 2012

बजट की सूर्खियां


  • अगले वित्त वर्ष के दौरान बुनियादी ढांचा क्षेत्र का वित्त पोषण बढ़ाकर 60 हजार करोड़ रुपये करने के लिए सरकार कर मुक्त बांड दोगुने करेगी।
  • दो नए मेगा हथकरघा क्लस्टर आंध्र प्रदेश और झारखंड में।
  • पूर्वी भारत में हरित क्रान्ति के कारण खरीफ सत्र में 70 लाख टन से अधिक धान की उपज।
  • कृषि और सहकारिता क्षेत्र के बजट में 18 फीसदी बढ़ोतरी।
  • विदेशी एयरलाइनों को भारत में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कार्य करने की अनुमति देने के बारे में सक्रियता से हो रहा है विचार। अगले पांच साल में भारत यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा।
  • खेती के लिए कर्ज 5.75 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य, जो पिछली बार से एक लाख करोड़ रुपये अधिक।
  • किसानों को सात फीसदी ब्याज पर रियायती फसली ऋण योजना 2012-13 में भी जारी रहेगी।
  • राज्यों के साथ मिलकर खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय मिशन शुरू किया जाएगा।
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को देने के लिए नाबार्ड को सरकार मुहैया कराएगी 10 हजार करोड़ रुपये।
  • दिसंबर 2012 तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली नेटवर्क होगा कंप्यूटरीकृत। मिड डे मील योजना के लिए 11,937 करोड़ रुपये। सबला योजना के लिए 7050 करोड़ रुपये खाद्य सुरक्षा विधेयक के उददेश्य हासिल करने के लिए।
  • दिसंबर तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली आधार कार्ड के जरिए।
  • समेकित बाल विकास योजना के लिए 2012-13 में आवंटन बढ़ाकर 15,850 करोड़ रुपये।
  • ग्रामीण पेयजल और स्वच्छता योजना के लिए आवंटन बढाकर 14000 करोड़ रुपये। 2011-12 में यह 11000 करोड़ रुपये था।
  • स्वयं सहायता महिला समूह के तीन लाख रूपए तक के बैंक कर्ज सात प्रतिशत ब्याज दर पर। समय पर कर्ज लौटाने वालों को चार प्रतिशत पर कर्ज मिलेगा।
  • राष्ट्रीय पिछड़ा क्षेत्र अनुदान योजना का परिव्यय 22 प्रतिशत बढ़ाकर 12040 करोड़ रुपये किया गया।
  • ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास के लिए खर्च होंगे 20 हजार करोड़ रुपये। इसमें से पांच हजार करोड़ रुपये भंडारण सुविधाओं के लिए होंगे।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के लिए आवंटन 18115 करोड रूपए से बढाकर 20822 करोड रूपए किया गया।
  • संसद के बजट सत्र में ही काले धन पर श्वेत पत्र लाएगी सरकार।
  • 2012-13 में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम को 1000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के लिए 3,915 करोड़ रुपये। 2012-13 में रक्षा सेवाओं के लिए 1,93,407 करोड़ रुपये का प्रावधान।
  • 11वीं योजना के दौरान सकल योजनागत परिव्यय के 99 फीसदी का उपयोग।
  • अप्रैल 2012 से शुरू हो रहे वित्त वर्ष में 40 करोड लोगों को 'आधारÓ में शामिल किया जाएगा।
  • चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.9 फीसदी रहा।
  • 2012-13 में राजस्व घाटा 1,85,752 करोड रुपये।
  • व्यक्तिगत आयकर रियायत सीमा बढ़ाकर दो लाख रुपये।
  • 2011-12 में शुद्ध कर प्राप्तियां 7,71,071 करोड़ रुपये।
  • गैर योजनागत व्यय 2012-13 में 9,69,900 करोड़ रुपये रहने का अनुमान।
  • प्रत्यक्ष कर वसूली चालू वित्त वर्ष में 32000 करोड़ रुपये कम रही।
  • अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.1 प्रतिशत तक लाने के लिए प्रतिबद्ध।
  • कंपनी कर में कोई बदलाव नहीं।
  • केंद्र का कुल कर्ज जीडीपी का 45 प्रतिशत।
  • प्रतिभूति क्रय विक्रय कर (एसटीटी)की दर घटाई गई।
  • विदेश में रखी संपत्ति और दो लाख रुपये से अधिक के सोने चांदी की खरीद की जानकारी आयकर विभाग को देना अनिवार्य।
  • प्रत्यक्ष कर में रियायतों से 4500 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान।
  • कुछ गिनी चुनी सेवाओं को छोड़कर सभी प्रकार की सेवाओं को सेवा कर के दायरे में लाने का प्रस्ताव।
  • सेवा कर की दर दस से बढाकर 12 प्रतिशत करने का प्रस्ताव।
  • उत्पाद एवं सेवा कर के लिए साझा कर संहिता बनाने का विचार।
  • सेवा कर प्रस्तावों से 18660 करोड़ रुपये अतिरिक्त राजस्व वसूली का अनुमान।
  • रेल परियोजनाओं में काम आने वाली मशीनों के आयात पर शुल्क दस से घटाकर 7.5 प्रतिशत।

उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की कद्र नहीं : अमरकांत


उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की कद्र नहीं : अमरकांत   

इलाहाबाद। किसी भी रचनाकार को सम्मान मिलना सुखद अनुभव होता है, वो भी अपने शहर में अपनों के बीच सम्मानित होना और भी गौरव की बात है। वरिष्ठ कथाकार अमरकांत को यह गौरव हासिल हो रहा है। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार देने के लिए ज्ञानपीठ खुद इलाहाबाद आया है। आजादी की लडाई पर आधारित उनका उपन्यास इन्हीं हथियारों से काफी चर्चित रहा। ज्ञानपीठ मिलने पर अमरकांत उत्साहित तो हैं लेकिन साहित्यकारों की स्थिति पर चिंतित भी। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की दयनीय स्थिति के लिए सरकार जिम्मेदार है। सरकार को साहित्य के प्रति ध्यान देना चाहिए। अगर ऐसा न हुआ तो साहित्य और साहित्यकार सिर्फ किताबों तक की सीमित रह जाएंगे। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश..।
लंबे इंतजार के बाद आपको ज्ञानपीठ मिलने जा रहा है, कैसा महसूस कर रहे हैं?
अच्छा लग रहा है। पुरस्कार मिलने से लेखक का हौसला बढता है। परंतु यह आखिरी मंजिल नहीं होती, बल्कि इससे कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है। मेरे लिए ज्ञानपीठ चुनौती लेकर आया है। आगे कुछ अच्छा लिखने की कोशिश करूंगा।
लेखन व निजी जिंदगी में कैसे सामंजस्य बैठाया?
लेखन मेरे लिए मिशन और जुनून है, इसके लिए शुरू से ही काम करता रहा हूं। बीच-बीच में थोडी समस्या आई परंतु परिवार के लोगों ने मेरे हर काम में साथ दिया।
आप किसकी प्रेरणा से लेखन करते हैं?
मेरे गुरु बाबू गणेश प्रसाद ने हमेशा लेखन के लिए मुझे प्रेरित किया। मैं जो हूं उन्हीं की प्रेरणा से। इसके अलावा डॉ. राम विलास शर्मा, भैरव प्रसाद गुप्त सहित अनेक मित्रों ने हमेशा साथ दिया।
इस उम्र में लेखन कैसे संभव होता है?
लेखन से मैं औरों को प्रेरित करने का प्रयास करता हूं, साथ ही मुझे भी कुछ फायदा हो जाता है।
आपको कैसा फायदा?
मुझे या किसी दूसरे साहित्यकार को सरकार से तो कोई मदद मिलती नहीं है, किताबों से मिलने वाली रायल्टी से ही अपना काम चलाता हूं, कभी-कभी तो उसके भी लाले पड जाते हैं।
बीच में आपकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई?
[बीच में रोककर तल्खी भरे शब्दों में] इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की कोई कद्र नहीं है। हमें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती। हम मरे या जिएं, इसकी किसी को परवाह नहीं है, जबकि साहित्यकार समाज का चेहरा होता है।
क्या आपने सरकार से कभी मदद मांगी?
मैं मदद क्यों मांगू! ऐसा नहीं है कि हमारी स्थिति के बारे में किसी को पता नहीं है। फिल्मी कलाकारों और खिलाडियों पर करोडों रुपए लुटाए जाते हैं। मंत्री, सांसद, विधायक ऐशो आराम की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। वहीं साहित्यकारों को रोटी के लाले हैं।
जब उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की कद्र नहीं है तो आप कहीं और क्यों नहीं गए?
मुझे मध्य प्रदेश व दिल्ली सरकार ने वहां रहने के लिए बुलाया था। विदेशों से भी कई बार बुलावा भेजा गया। परंतु अपनी मिट्टी को छोडना मुझे गंवारा नहीं हुआ। आज भी एक कोठरी से काम चला रहा हूं।
सरकार से आप क्या मदद चाहते हैं?
सरकार को साहित्यकारों के रहने, लेखन, इलाज व पेंशन की व्यवस्था करनी चाहिए। इससे हमें काफी सहूलियत मिलेगी।
आज के साहित्यकारों को आप कैसे देखते हैं?
आज की युवा पीढी काफी अच्छा काम कर रही है। उनके पास संसाधनों की कमी नहीं है, इससे वह हमसे अच्छा काम कर सकेंगे।
आप इलाहाबाद पढाई के लिए आए थे, साहित्यकार कैसे बन गए?
मेरा लक्ष्य समाज को जगाना था, पैसा कमाना नहीं। यही कारण है कि मैं बलिया से जब यहां आया तो पढाई छोडकर आजादी की लडाई में कूद गया। बाद में पत्रकारिता के क्षेत्र में कूद गया, 40 वर्षो तक अनेक समाचार पत्र व पत्रिकाओं में संपादन किया। स्वास्थ्य खराब होने पर कहानी लेखन का कार्य शुरू कर दिया।
इतने लंबे समय में किसी से विशेष लगाव हुआ?
[थोडा असहज होकर] मुझे सबसे प्यार है, सभी अपने हैं।
आपकी कौन से पुस्तकें आने वाली हैं?
पत्रकारों के जीवन पर आधारित खबर का सूरज व सामाजिक समस्याओं पर एक थी गौरा का लेखन कर रहा हूं।

86 वर्षीय लेखक अमरकांत


और गौरवान्वित हो गया ज्ञानपीठ   
 
 

इलाहाबाद, जागरण ब्यूरो। हिंदी प्रदेश की गंगा-जमुनी तहजीब को अपने लेखन में जीवित करने वाले 86 वर्षीय लेखक अमरकांत को हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के लिए 45वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। इसका गवाह बना इलाहाबाद संग्रहालय का ऑडिटोरियम। मंगलवार शाम को संग्रहालय में भव्य समारोह में अमरकांत को शाल, श्रीफल, प्रशस्ति-पत्र व पांच लाख रुपये का चेक देकर सम्मानित किया गया।
डॉ. नामवर सिंह ने अमरकांत को अपना बडा भाई बताते हुए कहा कि यह न सिर्फ हिंदी, बल्कि हर भारतीय भाषाओं के लिए एतिहासिक क्षण है। पहली बार ऐसा हुआ है कि ज्ञानपीठ किसी को सम्मानित करने के लिए स्वयं दिल्ली से चलकर इलाहाबाद आया है। अमरकांत ऐसे लेखक हैं जिनके लिए हर पुरस्कार छोटा है। विशिष्ट अतिथि न्यायमूर्ति प्रेम शंकर गुप्त ने अमरकांत के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के समय की यादें ताजा कीं। मंडलायुक्त मुकेश मेश्राम ने अमरकांत को आंचलिकता को नया कलेवर देने वाला लेखक बताया। कहा कि उन्होंने अपनी कलम से युवाओं व मध्यमवर्ग को नई राह दिखाई। अमरकांत को ज्ञानपीठ मिलना पुरस्कार व साहित्यप्रेमियों के साथ न्याय है। सम्मान से अभिभूत अमरकांत ने कहा कि यह मेरे लिए हर्ष का क्षण है। स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं लेकिन चुनौती बढ गई है। मैं चुनौती को स्वीकार्य करता हूं, आगे और अच्छा लिखने का प्रयास करूंगा। ज्ञानपीठ के ट्रस्टी आलोक जैन ने कहा कि अमरकांत को सम्मानित कर ज्ञानपीठ गौरवान्वित है। वह न सिर्फ भारत बल्कि विश्व के सक्षम कहानीकारों में हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक रवींद्र कालिया ने अतिथियों का स्वागत किया।

Tuesday 13 March 2012

हिन्दी से जुड़े तकनीक विशेषज्ञों की सूची को बनाने मे सहयोग करें

हिन्दी से जुड़े तकनीक विशेषज्ञों की सूची को बनाने मे सहयोग करें 

1. रवि रतलामी – भोपाल 
2. रवीन्द्र प्रभात – लखनऊ 
3. अविनाश वाचस्पति – दिल्ली 
4. शैलेश भारतवासी – दिल्ली 
5. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी – लखनऊ 
6. कृष्ण कुमार यादव- इलाहाबाद 
7. डॉ. पवन अग्रवाल – लखनऊ 
8. डॉ हरीश अरोड़ा – दिल्ली 
9. केवल राम – हिमांचल प्रदेश 
10. आशीष खंडेलवाल(कोटा राजस्थान), 
11. विनय प्रजापति (लखनऊ,वर्तमान में अहमदाबाद ),
12. श्रीश शर्मा(यमुना नगर, हरियाणा ),
13. रवीन्द्र पुंज(यमुना नगर , हरियाणा),
14. शाहनवाज़ सिद्दीकी(दिल्ली),
15. बी.एस. पावला(भिलाई, छतीसगढ़),
16. नवीन प्रकाश (खरोरा, रायपुर, छतीसगढ़)
17. ,कनिष्क कश्यप (दिल्ली)
18. अनिता कुमार – मुंबई 
19. डॉ मनीष कुमार मिश्रा –मुंबई 
20. डॉ संगीता सहजवानी – मुंबई 
21. वसंत आर्य – मुंबई 
22. अनूप सेठी – मुंबई 
23. वास्तव – मुंबई 
24. मानव मिश्रा – कानपुर 
25. आशीष मोहता – कोलकता 
26. डॉ रूपेश श्रीवास्तव – मुंबई 
27. डॉ आर . बी . सिंह – मुंबई 
28. कुमार अंबुज – भोपाल 
29. गिरीश बिल्लोरी- जबलपुर 
30. डॉ भूपेन्द्र सिंह – आगरा 

Monday 12 March 2012

हिंदी तकनीक से जुड़े लोगों की सूची


  विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कुछ परिचित  academic staff college से जुड़े  लोगों को मैंने सलाह दी थी कि सिर्फ हिंदी प्राध्यापको को हिंदी तकनीक से परिचित कराने के लिए वे refresher , orientation  या short term कोर्स शुरू करें और उसकी कार्यशाला देशभर के विश्वविद्यालयों मे लगाएँ । इसपर उनकी सहमति तो है लेकिन उन्हे हिंदी तकनीक से जुड़े करीब 80 लोगों के नाम और संपर्क सूत्र चाहिए जिन्हे वे resource person के रूप मे बुला सकें । ये वो लोग हों जो बता सकें कि 
  1. कम्प्युटर कैसे शुरू करें 
  2. कम्प्युटर पे हिंदी टंकण कैसे करें 
  3. हिंदी में मेल कैसे भेजें 
  4. हिंदी से जुड़े साफ्ट व्येर की जानकारी 
  5. हिंदी में पावर पॉइंट बनाना 
  6. हिंदी ब्लाग बनाना 
हिंदी अध्ययन - अध्यापन में  तकनीक का उपयोग  और ऐसी ही बड़ी बुनियादी जानकारी दे सक्ने वाले लोग । 
 इस सूची को  पूरा करने में आप सभी का सहयोग लगेगा । 
कृपया इस शैक्षणिक कार्य में मेरी सहायता करें । 

डॉ मनीष कुमार मिश्रा 

Sunday 11 March 2012

Hindi blogging national seminar a great success





Hindi blogging national seminar a great success

KM Agrawal College in Kalyan conducts a first-ever two-day seminar on Hindi blogging that has all-India participation

Dr Sunil Sharma Kalyan
Posted On Saturday, December 17, 2011 at 02:15:37 PM
Manish Mishra is still beaming. The bespectacled, soft-spoken professor of Hindi literature and criticism working in K M Agrawal College, Kalyan west, had every reason to be extra happy these days. He was chiefly instrumental in the planning, conduct and success of a two-day national –level UGC (University Grant Commission)-sponsored seminar on Hindi blogging, the first-ever in the nation so far.

“It was the first such seminar on blogging in Hindi with pan-India character, supported by the UGC via its financial aid for it. My college management and principal provided full leadership and other help in its overall success,” claimed the baby-faced young poet and stage anchor of many soirees in Kalyan.

The event was spread out in a total of six gripping technical sessions from mornings till evenings on December 9-10 that were held in the library of the college. Many reputed bloggers from across India participated and many presented their views on the new mode of communication, its achievements and possibilities.

“The two-day event was inaugurated by the well-known poet Damodar Khadse, the working president of Hindi Sahitya Akademi of Maharashtra state. He spoke on the wonderful medium of blogging and its immense possibilities in to-day’s IT-driven age. There were addresses by other speakers from the field like Ravi Ratlami, Vijay Pandit, Vidya Bindu Singh and Ramji Tiwari, among others,” said Mishra who compered the full event in his inimitable style.

The welcome address was given by the college principal, Dr Anita Manna. The other highlights of the programme were the release of a book edited by Manish Mishra on Hindi blogging and the webcasting of all the sessions live on the internet.

The webcasts were watched by thousands of people across the countries in the world, thus making it a unique web-enabled literary programme of great intellectual value to the internet-users, general viewers and regular surfers,” believed Mishra. Buoyed by the good critical response, Mishra plans to hold more such academic exercises in coming years as well.