Friday, 16 July 2010
अकेलापन और रिश्ता
किसी कि याद भी आई
न ये मोहब्बत न अपनेपन कि निशानी है
ये बस खाली लम्हों की कहानी है
न काम से हो फुरसत खुशियाँ हो और हो रौनक
सोचो किसी को तुम याद आये कोई हरपल
ये है अपनापन है इस रिश्ते में तेरा मन
इसमे मोहब्बत है और इस रिश्ते को है नमन /

Thursday, 15 July 2010
मोहब्बत जवानी
महकती फली
बरसती बुँदे
सुलगती यादें
गरजती लिप्सा
दहकती आशा
बदलती सीमायें
बहकती निष्ठाएं
प्यार या पिपासा
रिश्ते औ निराशा
अधीर कामनाएं
लरजती वासनाएँ
उलझा भाव
अधुरा लगाव
चंचल मन
प्यासा तन
सामाजिक सरोकार
रोकता संस्कार
मंजिल व गंतव्य
झूलता मंतव्य
बड़ती चेष्टाए
ढहती मान्यताएं
लगन दीवानी
मोहब्बत जवानी
काम प्रबल
भावों में बल
टूटता बंधन
आल्हादित आलिंगन

Wednesday, 14 July 2010
अपनो की नाप तोल में दिल को ना तोड़ना
हो सके तो झूठ की अच्छाई तलाशना
भविष्य की राह में भूत न भूलना कभी
दूर दृष्टि ठीक है पर आज भी संभालना
रिश्तों की खीचतान में अपनो को सहेजना
मुश्किलों के खौफ में मोहब्बत ना छोड़ना
कोई कहे कुछ भी प्यार एक खुदायी है
जिंदगी की नाप तोल में दिल को ना तोड़ना

होली न खेला दिवाली न मनायी ,बस ढूढता रहा अधेरों में परछाई
बस ढूढता रहा अधेरों में परछाई
बारिश हुई जम के ठंडी का भी जोर
तू नहीं तो हर मंजर कठोर
चाँद ताकता अमावास कि रात में
तारे गिनता मै बरसात में
दोस्तों कि महफिलों में न लगी कोई जान
तू ही मेरी धड़कन तू ही मेरी जान
चूल्हा नहीं जला न इस घर को कोई चैन
सन्नाटा है पसरा हर कमरा एकदम मौन
अलमारी के तेरे कपडे रखता हूँ घर में साथ
रहती है तेरी खुसबू तू लगती है मेरे पास
घर का आइना रहता बड़ा उदास
तेरी खुबसूरत आखों का वो भी है दास
घर कि टी. वी. भी तबसे ना चली
उसको लगती है तेरी संगत भली
अब इस घर में मिलती नहीं राहत
इस दरो दीवार को तेरी छाया कि है चाहत
तेरे लबों कि चाह में मै हो रहा पागल
इस नशेमन का शौक तू तू ही मेरी आदत
त्राहि त्राहि कर रहा रोम रोम प्यास से
व्याकुल तड़पता मन मेरा तेरे इक आभास को
जल्द आ अब तू कटते नहीं ये पल
तड़प रही है जिंदगी वक़्त करने लगा है छल

Tuesday, 13 July 2010
फ़ैली है आग हार तरफ धधक रहा शहर
गलती है ये किसकी चल रही बहस
नेता पत्रकार टी.वी वालों का हुजूम है
जानो कि परवा किसे दोषारोपण का दौर है
चीख रहे हैं लोग अरफा तरफी है हर तरफ
कहीं तड़प रहा बुडापा कहीं कहरता हुआ बचपन
चित्कारती आवाजें झुलसते हुए बदन
किसपे लादे दोष ये चल रहा मंथन
बह रही हवा अपने पूरे शान से
अग्नि देवता हैं अपनी आन पे
लोंगों कि तू तू मै मै है या मधुमख्खिओं का शोर है
हो रहा न फैसला ये किसका दोष है
कलेजे से चिपकाये अपने लाल को
चीख रही है माँ उसकी जान को
जलते हुए मकाँ में कितने ही लोग हैं
कोशिशे अथाह पर दावानल तेज है
धूँये से भरा पूरा आकाश है
पूरा प्रशासन व्यस्त कि इसमे किसका हाथ है
आया किसी को होश कि लोग जल रहे
तब जुटे सभी ये आग तो बुझे
आग तो बुझी हर तरफ लाशों का ढेर है
पर अभी तक हो सका है ना फैसला इसमे किसका दोष है
हाय इन्सान कि फितरत या हमारा कसूर है
हर कुर्सी पे है वो जों कामचोर हैं
बिठाया वहां हमने जिन्हें बड़े धूम धाम से
वो लूट रहे हैं जान बड़े आन बान से

Monday, 12 July 2010
इनायत खुदा की कि प्यार का जज्बा दिया
न बदन की कोई प्यास
मोहब्बत की पूरे दिल से
ये जज्बा खुदा का खास
मेरी आखों के पानी को न देखो
मेरी बरबादिओं की रवानी को न देखो
देखो इश्क का जूनून जों दौड़े है रग रग में
मेरे हंसी यार की बेवफाई को न देखो
गम का नहीं है गम मुझे
ये मोहब्बत की तासीर हो
तेरा सच तो कह देता
भले ये मेरी आखिरी तारीख हो
इनायत खुदा की कि प्यार का जज्बा दिया
मेहरबानी तेरी तुने प्यार को रुसवा किया
सच ये है कि तू है मेरी जिंदगी
क़त्ल कर या कर हलाल ये दिल तुझे सजदा किया

मंदिरों की घंटियाँ चीत्कार सी लगी /
सुबह में बोझिलता थी
मौसम में आकुलता
दिल में तड़प थी
दिखती न मंजिल न सड़क थी
सोया था मै हार के
जागा था मन मार के
उगता सूरज मौसम साफ़
दिल था पर उदास
कोकिला की कूक भी काक सी लगी
मंदिरों की घंटियाँ चीत्कार सी लगी
मृत जवानों का ढेर था
नक्सालियों का ये खेल था
खूं से जमीं लाल थी
दरिंदगी खूंखार थी
गृहमंत्री को खेद था
उनका खूं सफ़ेद था
भोपाल का फैसला न्याय की हार थी
दोष थे खूब बंट रहे इन्साफ की न राह थी
कश्मीर सुलग रहा
अलगाववाद फिर पनप रहा
लोग यहाँ मर रहे
नेता बहस कर रहे
चैनल सेक रहे T.R.P. नेता अपना स्वार्थ
लोग मरे या मरे शहर पैसा यहाँ यथार्थ
वोट की नीति ही सबसे बड़ी है नीति
वोट ही प्रीती है वोट की ही है रीती
वोट है धंधा कुर्सी पैसे की खान
देश से क्या लेना देना सबको चाहिए बड़ा मकान

Sunday, 11 July 2010
तुझमे दुविधाओं का मंजर पाया

कातिल अदा है सादगी ,
कातिल अदा है सादगी ,
हुस्न का दिव्यास्त्र ये जों रखता है वो संभाल ,
चलता ये वहां भी जहाँ कोई अंदाज न चले ,
जीतता है ये ही कैसे भी वो चले
कातिल अदा है सादगी ,
चलता है वो सादगी जब सूझे न कोई चाल
होता है हसीं का हर वार जब बेकार ,
आशिक को फिर हौले हौले वो छले
चाहता है वो जब जीतना हार हाल में
करता है तब सादगी जों करता है दिल पे वार

Saturday, 10 July 2010
न राह है न मुकद्दर ,

Friday, 9 July 2010
न की इतनी गैरत की मुलाकात कर लेती ,

चाह के भी न कह सका प्यार मै ,
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.
चाह के भी न कह सका प्यार मै ,
तेरी आखों ने रोक लिया कैसे करता इजहार मै ;
बाहें मचल रही थी तुझे बाँहों में भरने को ,
तेरी हया को करता कैसे यूँ ही पार मै /
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Thursday, 8 July 2010
हिंदी से अरुचि ये हिंदी भाषी ही करते हैं ,
हिंदी से अरुचि ये हिंदी भाषी ही करते हैं ,
हमें अंगरेजी आती कह खुद की पीठ ठोकते है ,
हीन भाव से निकलो यारों ;
अंगरेजी आने से विद्वान नहीं कोई बनता है ,
सिर्फ भाषा के ज्ञान से कोई इन्सान नहीं बनता है ;
निज भाषा से प्रेम नहीं ,
इससे बड़ा विद्वेष नहीं ;

न महकते बागों के मंजर का शौक रखा ,
न तूफानी समंदर का शौक रखा ,
शौक तो बस इतना था तुझे जी भर के देखूं ,
तुने की शिकायत तो बंद आखों का शौक रखा /

Wednesday, 7 July 2010
रूह जलती रही मेरी सर शैया पे

Tuesday, 6 July 2010
सोच सोच के सोच रहा था ,
सोच सोच के सोच रहा था ,
क्या मै सोचूं सोच रहा था ;
.
सोच न पाया सोचूं कैसे ,
सोच सोच के सोचूं कैसे ;
सोच सोच किस सोच को सोचूं ,
क्या मै सोचूं कैसे सोचूं ;
.
सोच सोच के सोच रहा था ,
सोच है क्या मै सोच रहा था ;
.
सोच को सोचा सोचा सोच ,
सोच न पाया सोचा सोच ;
सोचा सोच न समझा सोच ,
सोच की उलझन में उलझा सोच ,
.
सोच सोच के सोच रहा था ,
क्या है ये सोच सोच रहा था ;
.
सोच सोच के सोच रहा था ,
कैसे मै सोचूं सोच रहा था /

Monday, 5 July 2010
मिला बड़े शौक से किसी से,
बड़ा रुलाया तेरी बातों ने रह रह कर ,

Sunday, 4 July 2010
किन संग वक़्त गुजरता तेरा किन संग तू दिन भर रहता है /

Saturday, 3 July 2010
मेरी आखों को नम बनाये रखा /
बुलाये रखा , उलझाये रखा ,
मेरे दिल के जख्मों को सलीके से ताज़ा बनाये रखा ;
मुस्कराया भी मुझको हँसाया भी ,
पर मेरे भावों को तुने पराया रखा ,मुझको सताए रखा ;
मरहम लगता हर बार तू एक नए अंदाज से ,
पर रिसते घावों में कांटा चुभाये रखा ;
फूलों की खुसबू को मेरे पास बनाये रखा ;
बड़ी खूबसूरती से तुने मुझे अपनी जिंदगी के किनारे लगाये रखा ;
मेरे ओठों पे अपना नाम बनाये रखा ;
मेरी आखों को नम बनाये रखा /

Thursday, 1 July 2010
फितरत नहीं थी वैसा बना डाला ,
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न फितरत बदली न चाहत बदली ,
बदलते वक़्त ने करवट न बदली ;
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न व्यवहार बदला न संस्कार बदला ,
बदला वक़्त ने सिर्फ अभाव बदला ;
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फितरत नहीं थी वैसा बना डाला ,
मोहब्बत ने न जाने कैसा बना डाला ;
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सहज मासूम से ख्वाब थे मेरे ,
उन्हें आखों से बहता काजल बना डाला ;
चल रही थी जिंदगी जों सहज अंदाज से ,
तेरी इनायतों ने उसे हलाहल बना डाला ;
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फितरत नहीं थी वैसा बना डाला ,
मोहब्बत ने न जाने कैसा बना डाला /
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